वाणिज्य का अर्थ एवं उसके प्रकार, महत्व, विशेषता क्या है? | What is the meaning of commerce and its type, importance, specialty

वाणिज्य का अर्थ एवं उसके प्रकार, महत्व, विशेषता क्या है? | What is the meaning of commerce and its type, importance, specialty


वाणिज्य क्या है? और इसका अर्थ के साथ उसका महत्व और वाणिज्य प्रकार कितने होते है? जानेंगे आज हम इस आर्टिकल में, वाणिज्य एक बहुत व्यापक शब्द है और वाणिज्य व्यवसाय का एक अंग है जिसमें ज़ोखिम की मात्रा बहुत कम पायी जाती हैं। वाणिज्य में क्रय विक्रय के साथ साथ उन साधनों को समिल्लित किया जाता है जो व्यापार के विकास में एक उपयोगी सिद्ध मानी जाती हैं। तो चलाये जानते हैं आज वाणिज्य के अर्थ को और उसकी विशेषता के साथ उसके महत्व और प्रकार को विस्तार से


वाणिज्य का अर्थ एवं उसके प्रकार, महत्व, विशेषता क्या है?
वाणिज्य का अर्थ एवं उसके प्रकार, महत्व, विशेषता


वाणिज्य का अर्थ (MEANING OF COMMERCE)

वाणिज्य एक व्यापक शब्द है, यह क्रिया उद्योग द्वारा उत्पादन का कार्य पूर्ण करने के बाद प्रारम्भ होती है तथा उपभोक्ता के पास वस्तुयें पहुँचने पर समाप्त हो जाती है। इस प्रकार वाणिज्य एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों को एक दूसरे के निकट लाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि उद्योग द्वारा जो भी वस्तुयें तैयार की जाती हैं, वाणिज्य उन्हें उनकी आवश्यकता वाले व्यक्तियों तक पहुँचाता है। इसमें उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो उत्पादन के स्थान से उपभोक्ता तक वस्तुयें पहुँचाने के अंतर्गत आती हैं। अन्य शब्दों में इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ आती है जिनका उद्देश्य वितरण में आने वाली बाधाओं को दूर करना है। इस लिये वाणिज्य को कला एवं विज्ञान दोनों ही माना जाता है। 



वाणिज्य की कुछ विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषा 


डॉ. जेम्स स्टीफन्सन के अनुसार, "वाणिज्य में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के मध्य रुकावटों को तोड़ने में सहायता करती है। यह उन सभी प्रक्रियाओं का जोड़ है जो कि वस्तुओं के हस्तान्तरण में व्यक्तियों (व्यापार) स्थान (परिवहन व बीमा) तथा समय (भण्डारण) की रुकावटों को हटाने में लगी है।"


प्रो. इविलिन थॉमस के शब्दों में, “वाणिज्य उन सभी क्रियाओं का संयोग है जो माल के बनाने, खरीदने, बेचने और हस्तांतरित करने से सम्बन्धित है।"


वेवस्टर शब्द कोष के मतानुसार, "सामान्यतया वाणिज्य से अर्थ व्यक्तियों तथा राष्ट्रों के बीच किसी भी प्रकार की


वस्तु उपादनों या संपत्ति के आदान-प्रदान से है चाहे वह वस्तु विनिमय द्वारा हुआ हो या क्रय-विक्रय द्वारा " उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वस्तुओं का उत्पादन उत्पादकों द्वारा किया जाता है तथा इनका उपभोग उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है। उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक वस्तुओं को पहुंचाने में जितनी भी क्रियाएँ प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सहायक होती है उसे वाणिज्य कहा जाता है। 


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वाणिज्य की प्रमुख विशेषताएं 


1. वाणिज्य व्यवसाय का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। इसके अभाव में व्यावसायिक कार्य नहीं होगा।


2. इसका क्षेत्र व्यापक होता है, क्योंकि इसमें व्यापार तथा सहायक क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।


3. वाणिज्य के कारण वस्तुओं का हस्तान्तरण सरल होता है।


4. यह उत्पादक तथा उपभोक्ता के बीच महत्वपूर्ण कड़ी होती है।


5. इसके अन्तर्गत उपयोगिता का सृजन अधिकार तथा स्थान परिवर्तन द्वारा किया जाता है।


6. इसके अन्तर्गत उत्पादक से वस्तुयें क्रय करके उपभोक्ताओं को विक्रय किया जाता है।


7. वाणिज्य कला तथा विज्ञान दोनों होता है।





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वाणिज्य के प्रकार 


1) व्यापार

2) व्यापार के सहायक


वाणिज्य का महत्व (IMPORTANCE OF COMMERCE)


किसी देश के आर्थिक विकास में वाणिज्य का महत्वपूर्ण योगदान पाया जाता है। आज के युग में वही देश विकसित माना जाता है जहाँ पर वाणिज्य उन्नतशील दशा में होता है। वाणिज्य व्यावसायिक क्रियाओं का वह अंग कहा जाता है जिसमें वस्तुओं का क्रय-विक्रय तथा इसकी सहायक क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इससे व्यापार में आने वाली बाधायें तथा रुकावटें दूर हो जाती हैं। इसलिए कहा जाता है कि व्यापार को ठीक प्रकार से चलाने के लिये अनेक प्रकार की सुविधाओं की आवश्यकता होती है। वाणिज्य का मुख्य लक्ष्य वस्तुओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचाना है। इसके लिये हस्तान्तरण, एकत्रीकरण, संग्रह, बीमा एवं वित्तीय आदि कार्य किये जाते हैं। इन्हीं कार्यों को वाणिज्य कहा जाता है। इस प्रकार वाणिज्य देश के विकास का मापक होता है।


1. प्राकृतिक साधनों का अधिकतम उपयोग -


वाणिज्य क्रियाओं के कारण देश में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है। प्राकृतिक साधनों की स्थिति को देखते हुए देश में उद्योगों की स्थापना की जाती है। इसलिए कहा जाता है कि देश में पाये जाने वाले प्राकृतिक साधनों का उपयोग प्रायः देश में पाये जाने वाले प्राकृतिक साधनों तथा मानवीय सम्पदा पर निर्भर करते हैं। यदि नदी का पानी समुद्र में जाकर मिल जाता है तो उसकी कोई उपयोगिता नहीं होती है, किन्तु जब एक व्यापारी द्वारा उसी नदी पर बांध निर्माण कर जल विद्युत उत्पादन केन्द्र की स्थापना करता है तो स्वाभाविक रूप से जल को उपयोगिता बढ़ जाती है। इस प्रकार वाणिज्य व्यवस्था के कारण प्राकृतिक साधनों का पर्याप्त विदोहन होने लगा।


2. उत्पादन विशिष्टीकरण - 


आज के समय में उत्पादन कार्य वृहद पैमाने पर विशिष्टीकरण के आधार पर किया जाता है। इसके अन्तर्गत स्वचालित मशीनों, यंत्रों तथा श्रम विभाजन का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। इससे देश को वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त होती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं की माँग बढ़ती है तथा व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है। वाणिज्य की इस प्रगति के कारण वस्तु की पर्याप्त मांग होती है तथा आपस में प्रतियोगिता उत्पन्न होती है। इस प्रतियोगिता से बचने के लिये उत्पादक विशिष्टीकरण प्रारम्भ कर देते हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं को कम कीमत पर वस्तुयें प्राप्त होने लगती हैं। यही इसका लाभ होता है।


3. मानवीय साधनों का अधिकतम उपयोग -


वाणिज्य एक ऐसा साधन है जो उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों को एक दूसरे के निकट लाने में सहायक होता है। अन्य शब्दों में वाणिज्य उन समस्त क्रियाओं का योग होता है जो वस्तुओं के विनिमय में आने वाले व्यक्ति स्थान तथा समय की बाधाओं को दूर करने में सहायक होते हैं। इसके विकास से न केवल उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन मिलता है वरन् रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है तथा मानवीय साधनों का अधिकतम उपयोग होता है। इस प्रकार व्यवसाय तथा वाणिज्य प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही प्रकार के अवसरों में विकास करता है।


प्रो. मेकाइल के शब्दों में, व्यवसाय मनुष्य का रचनात्मक साधन है। इस प्रकार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।


4. जीवन स्तर में वृद्धि -


वाणिज्य तथा व्यवसाय का जीवन स्तर से प्रत्यक्ष तथा घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इसके विकास से राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। आय में वृद्धि होने के कारण अब लोग पहले से अच्छी तथा अधिक मात्रा में वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं। इस प्रकार लोगों को संतुष्टि मिलती है तथा उनके रहन-सहन का जीवन ऊँचा होता है। यहीं नहीं इसके कारण व्यापार तथा वाणिज्य में सहायता प्रदान करने वाले साधनों का तेजी से विकास होता है। इसका लाभ वहाँ के रहने वालो को प्राप्त होने लगता है। इसी कारण सुख-सुविधाओं का उपभोग संभव हो सका है।


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5. सरकारी आय में वृद्धि - 


वाणिज्य तथा व्यवसाय की प्रगति के कारण सरकारी आय में वृद्धि में होना स्वाभाविक माना जाता है। यदि देखा जाये  तो सरकार को अधिकांश मात्रा में आय उद्योग-धंधों में लगाये करों से ही होती है। उदाहरणार्थ, हमारे देश में सर्वाधिक आय आबकारी से ही प्राप्त होती उत्पादन कर के अतिरिक्त आय कर भी सरकारी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। यह कहना गलत न होगा कि यदि देश में इनका अस्तित्व न हो तो प्रत्यक्ष व परोक्ष करों का भी नाम समाप्त हो जायेगा। यही कारण है कि आज देश की सरकार वाणिज्य एवं उद्योग धन्धों के विकास पर स्वयं ध्यान देती है। अन्त में यह कहना गलत न होगा कि वाणिज्य राजस्व का प्रधान साधन होता है। 


6. शिक्षा एवं सांस्कृतिक विकास - 


वाणिज्य तथा व्यवसाय की प्रगति ने अनेक व्यावसायिक जटिलताओं को जन्म दिया है। इनको हल करने के लिये व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। इसके लिये शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा का प्रसार किया गया है। इस प्रकार वाणिज्य के कारण शिक्षा के विकास को प्रोत्साहन मिला है। यही नहीं विदेशों के आयात-निर्यात संबंध होने से विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ सम्बन्ध कायम होता है तथा उनके विचारों का आदान-प्रदान होता है। इससे सांस्कृतिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। साथ ही साथ इससे तकनीकी ज्ञान में भी वृद्धि होती है। यही आज के वाणिज्य युग की देन हैं।


7. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि - 


आज विश्व का कोई भी देश शायद ही आत्मनिर्भर हो। इस कमी के कारण ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास हुआ है। आधुनिक यंत्रों व मशीनों की सहायता से उत्पादन पूर्ण क्षमता के साथ किया जाता है। अपने देश में मांग को पूरा हो जाने के बाद जो अतिरिक्त उत्पादन होता है उसे अन्य देशों को भेज दिया जाता है। इससे प्राप्त कर्त्ता देश में इसका श्रेष्ठतम उपयोग किया जाता है तथा भेजने वाले देश को पर्याप्त लाभ भी होता है। इसलिए कहा जाता है कि वाणिज्य तथा उद्योग-धंधों की उन्नति तथा विकास के कारण ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का जन्म हुआ। यही कारण कि आज अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भावना इसी आयात-निर्यात के फलस्वरूप विभिन्न देशों के मध्य पायी जाती है।


8. अन्य लाभ -



 (i) वृहत पैमाने पर उत्पादन तथा उपभोग सम्भव होता है।


(ii) पर्याप्त मात्रा में उत्पादन के कारण कीमतों में स्थिरता पायी जाती है। 


(iii) इससे औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है।


(iv) वाणिज्य के कारण तकनीकी ज्ञान में वृद्धि हुई।


(v) व्यापारिक क्रियाओं के सामाजिक जीवन में पर्याप्त सुधार आया है तथा देश व लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है। 


(vi) वाणिज्य के कारण ही व्यापार को बढ़ावा मिलता है। इससे वस्तुओं का अभाव नहीं अनुभव होता हैं। 


(vii) इसके माध्यम से रोजगार में वृद्धि होती है तथा निर्धनता में कमी आने लगती है।


(viii) वाणिज्य की शिक्षा प्रदान करके देश के नवयुवकों को सफल व्यापारी बनाया जा सकता है।


 (ix) वाणिज्य के विकास ने सभ्यता, तथा संस्कृति को प्रोत्साहित किया है। यही वाणिज्य का सार पाया जाता है।


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