बैंक का अर्थ, परिभाषा एवं कितने प्रकार के होते हैं?


बैंक का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
बैंक का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार


बैंक शब्द बैंको शब्द से बना है। बैंकिंग एक अति प्राचीन व्यवसाय है। यद्यपि प्राचीन काल में आज जैसे बैंक नहीं पाये जाते थे, फिर भी अनेक देशों में बैंकिग कार्य महाजन, सुनार और सराफा आदि द्वारा किया जाता था। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व बेबोलोन में साख का लेनदेन होता था। ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में असीरिया में साख पत्र मिट्टी के टुकड़े पर लिखे जाने थे। इसी प्रकार प्रारम्भिक बैंकिंग के प्रमाण चाल्दिया, फोनीसिया तथा मिस्र के इतिहास को देखने से मिलते हैं, किन्तु इस शब्द का प्रचलन 1171 ई. में इटली में प्रथम बैंकिंग गृह की स्थापना के बाद हुआ। प्राचीन इटली में बैंकों का तात्पर्य बेंच पर बैठकर मुद्रा बदलने से लगाया जाता था। इसी प्रकार भारत तथा यूरोप के अन्य देशों में सुनार तथा सराफा बेन्चों पर बैठकर मुद्रा परिवर्तन का कार्य किया करते थे।


प्रो. क्राउथर के अनुसार : आधुनिक बैंकों के तीन पूर्वज व्यापारी, महाजन तथा सोनार या सराफा हैं। आधुनिक बैंक अपने इन तीन पूर्वजों की ही देन है। परन्तु आधुनिक प्रकार का बैंक सर्वप्रथम सन् 1401 ई. में स्पेन में स्थापित किया गया।


इसके बाद सन् 1607 ई.में हॉलैंड तथा सन् 1619 ई. में जर्मनी में बैंक ऑफ हैन्वर्ग की स्थापना की गयी। किन्तु इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के साथ बैंकों के विकास का एक नवीन युग शुरू होता है। नये-नये उपनिवेशों की खोज हो जाने के कारण अधिक धन की आवश्यकता पड़ने लगी। इस प्रकार इस काल में बैंकों का विकास तेजी के साथ हुआ। सन् 1694 शताब्दी में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना हुई, जिससे आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का रूप प्राप्त हुआ। इस शताब्दी के अन्त तक चैक प्रणाली भी ज्ञेन देन में आ गयी थी। मिश्रित पूंजी कंपनियों की स्थापना से बैंकिंग व्यवस्था को और अधिक प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार शनैः शनैः बैंकिंग व्यवस्था का विकास हुआ। आज इसका इतना अधिक प्रचलन हो गया है, कि यह आर्थिक सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन का एक प्रमुख अंग बन गया है


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बैंक की परिभाषा 


प्रो. सेयर्स के अनुसार : “बैंक वह संस्था है, जिसके ऋणों को अन्य व्यक्तियों के पारस्परिक ऋणों के भुगतान के लिये विस्तृत रूप से स्वीकार किया जाता है।


प्रो. काउधरके अनुसार : बैंकर अपने तथा अन्य लोगों के ऋणों का व्यवसायी होता है अर्थात बैंकर का व्यवसाय अन्य से ऋण लेना और बदले में अपना ऋण देना और इस प्रकार मुद्रा का सृजन करना है।"


भारतीय बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 5 (स) में बैंकिंग कम्पनी उसे बताया गया है, जो बैंकिंग का व्यवसाय करे और स्वयं बैंकिंग शब्द की परिभाषा धारा 5 (ब) में इस प्रकार दी गयी है बैंकिंग से तात्पर्य, ऋण देने अथवा विनियोजन के लिये जनता से धन जमा करना है, जो मांग करने पर लौटाया जा सकता है तथा चैक ड्राफ्ट अथवा अन्य प्रकार की आज्ञा द्वारा निकाला जा सकता है


उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है, कि बैंक या बैंकर वह संस्था होती है, जो बैंकिंग के कार्य को मुख्य व्यवसाय के रूप में करती है। यदि यह आर्थिक लेन देन का कार्य गौण होता है तो वह बैंकर नहीं कहा जा सकता है। साथ ही साथ वह समाज में इसी कार्य के लिये जाना जाता है। दूसरे, एक संस्था तभी बैंकर कहलाती है, जबकि आय का एक मात्र साधन बैंकिंग व्यवसाय होता है। इस दृष्टि से बेल्सटर शब्द कोष की परिभाषा को सर्वोत्तम कहा जा सकता है। उसके अनुसार बैंक वह संस्था है, जो द्रव्य में व्यवसाय करती है, एक ऐसा प्रतिष्ठान है, जहाँ धन का जमा, संरक्षण तथा निगमन होता है तथा ऋण एवं कटौती की सुविधायें प्रदान की जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था की जाती हैं



बैंक के प्रकार (TYPES OF BANK)


आज कल अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति पृथक-पृथक बैंकों के द्वारा की जाती है। वर्तमान समय में बैंकिंग के क्षेत्र में भी अन्य क्षेत्रों की भाँति विशिष्टीकरण पाया जाता है। इसी कारण कृषि, उद्योग, व्यापार, नियंत आयात आदि के अलग-अलग प्रकार की बैंकों की व्यवस्था तथा स्थापना की गयी है। वर्तमान समय में पाये जाने वाले कुछ बैंकों के नाम इस प्रकार हैं


1. व्यापारिक बैंक - 


वह बैंक, जो सामान्य बैंकिंग का कार्य करते हैं, उन्हें व्यापारिक बैंक कहते हैं। यह प्राय: संयुक्त स्कन्ध बैंक होते हैं। इनकी पूँजी अनेक अंशों में विभाजित होती है तथा ये अंश अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा खरीदे हुये होते हैं। व्यापारिक बैंक धन जमा करने, ऋण देने, चैकों का संग्रहण एवं भुगतान करने तथा एजेंसी सम्बन्धी अनेक कार्य करते हैं। 


प्रो. काउथर के अनुसार : "व्यापारिक बैंक वह संस्था है, जो अपनी स्वयं की तथा जनता की साख का व्यापार करती है।"


2. औद्योगिक बैंक - 


आज औद्योगीकरण का युग है। बड़े पैमाने के उद्योगों को साख सम्बन्धी माँग की पूर्ति करना व्यापारिक बैंकों तथा अन्य बैंकों के लिये सम्भव नहीं है। इसलिये उद्योगों को भारी मात्रा में दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराने के उद्देश्य से औद्योगिक बैंकों की स्थापना की गयी है। औद्योगिक बैंक दीर्घकालीन साख देने के अतिरिक्त बड़ी औद्योगिक इकाइयों के ऋण पत्रों, बॉण्ड्स एवं अंशों को विक्रय कराने में भी सहायता देते हैं। ये बैंक उनके अंशों का अभिगोपन भी करते हैं। 


3. कृषि बैंक - 


कृषि के लिये जिस साख की आवश्यकता होती है, उसकी प्रकृति उद्योगों की साख से भिन्न होती है। यही कारण है कि कृषि साख के लिये एक भिन्न बैंक की आवश्यकता होती है। कृषि बैंक बीज, हल बैल, सिंचाई आदि के लिये ऋण की व्यवस्था करते हैं। अन्य शब्दों में ये बैंक अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था करते हैं। हमारे देश में इसके अंतर्गत कृषि सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक तथा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कृषि शाखा अपनी सेवाएं देश के कृषकों को प्रदान करती हैं। इन बैंकों को केंद्रीय बैंक तथा सरकार से आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है।


4. विदेशी विनिमय बैंक - 


विदेशी विनिमय बैंक केवल विदेशी व्यापार के लिये वित्त की व्यवस्था करते हैं। इसका कारण यह है कि प्रत्येक निर्यातक अपने देश की मुद्रा में ही अपनी वस्तु या माल का भुगतान लेना पसन्द करता है। इससे एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तन करने की समस्या उत्पन्न होती है। इसी समस्या का समाधान करने के लिये विदेशी विनिमय बैंकों की स्थापना की जाती है। यह बँक अपने पास विभिन्न देशों की मुद्राएं रखते हैं। इनकी शाखाएं विदेशों में भी स्थापित की जाती हैं। यह बैंक विदेशी विनिमय वित्तों का क्रय विक्रय करके अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का निपटारा करते हैं।


5. केन्द्रीय बैंक - 


वर्तमान समय में प्रत्येक देश में एक केन्द्रीय बैंक होता है। हमारे देश के केंद्रीय बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक के नाम से पुकारा जाता है। यह देश के बैंकों का बैंक 2. होता है तथा इसे ही नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त होता है। यह सरकार का बैंक होता है 3. तथा सरकार के वित्तीय प्रतिनिधि का कार्य भी करता है, किन्तु केन्द्रीय बैंक का एक महत्वपूर्ण कार्य देश की आवश्यकतानुसार साख की मांग को नियंत्रित करना है। जब देश में मुद्रा प्रसार या मुद्रा संकुचन की स्थिति होती है, तो केन्द्रीय बैंक साख नियंत्रण की बैंक दर खुले बाजार की क्रियाएँ, परिवर्तनशील कोषानुपात, चयनात्मक साख नियंत्रण आदि रीतियों का उपयोग करके कीमत को सामान्य स्तर पर पुनः ला जा सकता है।


6. सहकारी बैंक - 


हमारे देश में सहाकारी बैंक की स्थापना सन् 1904 के सहकारी साख समिति अधिनियम के अंतर्गत की गयी। ये बैंक सहकारिता के सिद्धांतों के आधार पर कार्य करते हैं। इनका स्वरूप त्रिस्तरीय होता है। ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक साख समितियां, जिला स्तर पर केन्द्रीय सहक बैंक तथा राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक, जो प्राथमिक साख समितियों को सहायता तथा मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। सहकारी बैंक प्राय: अपने सदस्यों को अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं। भारतीय किसानों को महाजनों के चुंगुल से छुटका दिलाने हेतु इन बैंकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने सहकारी भावना को बढ़ाया है।


7. बचत बैंक -


पाश्चात्य देशों में साधारण वर्ग के लोगों की छोटी बचतों को प्रोत्साहित करने के लिये अलग प्रकार के बैंक बनाये गये हैं, जिन्हें बचत बैंक के नाम से पुकारा जाता है। इन बैंकों में छोटी से छोटी रकम जमा की जाती है तथा इन रकमों को निकालने की भी पर्याप्त सुविधा दी जाती है। बचत बैंक प्रायः व्यापारिक बैंकों के सहायक के रूप कार्य करते. हैं। हमारे देश में बचत बैंक नहीं पाये जाते हैं। भारत में व्यापारिक बैंक ही बचत खातों का संचालन तथा नियंत्रण करते हैं। पश्चिमी देशों में विशेषकर अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी आदि देशों में इनका प्रचलन पर्याप्त लम्बे समय से पाया जा रहा है। भारत में डाकघर बचत बैंक के रूप में कार्य कर रहा है।


8. देशी बैंकर - 


देशी बैंकर को महाजन, साहूकार, सराफा आदि नामों से भी पुकारा जाता है। यह विश्व के सभी देशों में पाया जाता है। भारत जैसे विकासशील देशों में ये 60 से 70 प्रतिशत साख प्रदान करते हैं। भारतीय बैंकिंग जांच समिति के अनुसार “देशी बैंकर या बैंक वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाएँ स्वीकार करने, हुंडियों में व्यवसाय करने और ऋण देने का कार्य करते हैं। देशी बैंकर भारत के कोने-कोने में पाये जाते हैं तथा कृषि व व्यापार के लिये वित्त को व्यवस्था करते हैं। भारतीय बैंकिंग कम्पनी अधिनियम ने इनको बैंक या बैंकर का दर्जा नहीं दिया है, किन्तु फिर भी यह मानना पड़ेगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इनका अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान पाया जाता है।


9. एक्जिम बैंक -


एक्ज़िम का पूरा नाम भारतीय निर्यात-आयात बैंक है। इस बैंक की स्थापना जनवरी 1982 में को गयी। इस मुख्य कार्यालय मुम्बई में स्थित है। यह बँक वस्तुओं के आयात-निर्यात से सम्बन्धित सामान्य बैंकिंग कार्य करता है। इसके अलावा अन्य कार्य भी करता है, किन्तु इसके मुख्य कार्यों में भारत से निर्यात तथा भारत को आयात का वित्त प्रबंधन विदेशों में स्थित संयुक्त उद्यमों का वित्त प्रबंधन तथा लीज पर मशीन उपकरणों के निर्यात-आयात का वित्त प्रबन्ध सम्मिलित है। यह निर्यात विलों को क्रय, बट्टकरण तथा पर काम्य की जिम्मेदारी भी लेता है। इस प्रकार यह बैंक निर्यातकों को प्रोत्साहित करता है।


10. नाबार्ड - 


नाबार्ड का पूरा नाम दि नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलपमेंट (NABARD) है। इस बैंक ने 15 जुलाई 1982 में कृषि तथा ग्रामीण क्रियाओं के लिये शीर्ष बैंक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया। नाबार्ड राज्यीय सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों भूमि विकास बैंकों, तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं को दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन ऋण व अग्रिम प्रदान करता है। यही बैंक कृषि, लघु स्तरीय उद्योगों, शिल्पकारों, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों, हस्तकलाओं तथा अन्य संबंधित आर्थिक क्रियाओं के लिये उत्पादन तथा निवेश उधार की व्यवस्था करता है।


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