उपयोगिता का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं प्रकार | Meaning and definition of utility in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम उपयोगिता के बारे में जानेंगे कि उपयोगिता होता क्या हैं? आज हम नीचे दिए गए उपयोगिता के इन विषयों पर बात करेंगे, तो चलिये जानते है उपयोगिता के बारे में…


उपयोगिता का अर्थ 

उपयोगिता की परिभाषा

उपयोगिता की विशेषताएं 

उपयोगिता के प्रकार

उपयोगिता एवं संतुष्टि में अन्तर 

उपयोगिता को कैसे मापा जाता है?

क्या उपयोगिता का मापन संभव है?


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उपयोगिता

उपयोगिता का अर्थ


'उपयोगिता' शब्द का अर्थशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अर्थशास्त्र में उपयोगिता का अर्थ वस्तु के ऐसे गुण से है, जो मुनष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता रखता है अर्थात् किसी वस्तु की वह शक्ति, जिससे किसी व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति प्रत्यक्ष रूप में की जा सकती है, उपयोगिता कहलाती है। भले ही उस वस्तु के उपभोग से उपभोक्ता को हानि ही क्यों न हो, फिर भी वस्तु में उपयोगिता का गुण होता है। 


दूसरे शब्दों में, आवश्यकता पूर्ति की शक्ति उपयोगिता को जन्म देती है। सामाजिक मान्यताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शराब तथा ताड़ी का सेवन अनुचित है। सामाजिक दृष्टिकोण अपनी जगह बिल्कुल ठीक है, लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण शराब एवं ताड़ी को अनुपयोगी नहीं मानता है, क्योंकि इन वस्तुओं के उपभोग से उपभोक्ता की आवश्यकता की संतुष्टि होती है और उपयोगिता मिलती है। 


वास्तव में, उपयोगिता किसी वस्तु की आवश्यकता पूर्ति की शक्ति है, न कि लाभदायकता अत्यन्त संक्षेप में कहा जा सकता है कि "उपयोगिता किसी वस्तु विशेष के प्रति किसी व्यक्ति विशेष की तीव्रता को प्रकट करती है।"



उपयोगिता की परिभाषा


प्रो. ए. ई. वॉघ के अनुसार, - "उपयोगिता मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता है।"


एडवर्ड नेविन के अनुसार, - "अर्थशास्त्र में उपयोगिता का अर्थ, उस संतुष्टि या आनंद या लाभ से है, जो किसी के व्यक्ति को धन या सम्पत्ति के उपभोग से प्राप्त होती है।"


जॉन स्टुअंट मिल के अनुसार, - “अर्थशास्त्र में वस्तु या सेवा को मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की शक्ति अथवा गुण को उपयोगिता कहते हैं।" 


श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, - "उपयोगिता वस्तु का वह गुण है, जिसके कारण व्यक्ति इन्हें खरीदना चाहता है, यह दर्शाता है कि उनमें उपयोगिता है।"


उपयोगिता की विशेषता


उपयोगिता को प्रमुख विषेशताएँ निम्नलिखित हैं -


1. उपयोगिता एक सापेक्षिक शब्द है - उपयोगिता एक सापेक्षिक शब्द है, जो स्थान, समय व शक्ति के साथ-साथ अपना स्वरूप बदलती रहती है। शराबी के लिए शराब उपयोगी है, लेकिन शराब न पीने वाले व्यक्ति के लिए उपयोगी नहीं है। बर्फ गर्मियों के लिए उपयोगी है, जाड़ों के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त, उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता पर भी निर्भर करती है, जिसके कारण वस्तु की उपयोगिता में अन्तर आता है, चाहे वस्तु का स्वभाव पूर्ववत् रहे। 


2. उपयोगिता का कोई भौतिक रूप नहीं होता है - उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है, जिसे केवल महसूस किया जाता है। उपयोगिता का कोई भौतिक आकार-प्रकार नहीं होता है। उपयोगिता उपभोक्ता की मनोदशा के ऊपर निर्भर करती है। इसलिए एक ही वस्तु विभिन्न व्यक्तियों के लिए विभिन्न प्रकार की उपयोगिता रखती है। 


3. उपयोगिता आवश्यकताओं की तीव्रता पर निर्भर करती है - जो वस्तु जितनी तीव्र आवश्यकता की पूर्ति करती है, उसमें उतनी ही अधिक उपयोगिता होती है, प्यास के समय पानी को उपयोगिता सबसे अधिक होती है, लेकिन प्यास के बुझ जाने पर पानी की उपयोगिता नहीं रह जाती है, हालांकि पानी के तत्व वही रहते हैं।


4. उपयोगिता का संबंध लाभदायकता से नहीं होता है - उपयोगिता का संबंध लाभदायकता या फलदायकता से नहीं होता है। कोई वस्तु ऐसी हो सकती है जो किसी व्यक्ति की आवश्यकता की संतुष्टि तो करे, लेकिन वह उसके लिए लाभदायक न हो। 


5. उपयोगिता वास्तविक उपभोग पर निर्भर नहीं करती है - उपयोगिता वास्तविक उपभोग पर निर्भर नहीं करतो है, क्योंकि उपयोगिता एवं संतुष्टि में भी अन्तर है। एक उपभोक्ता उपयोगिता की गणना उस समय करता है, जब वह किसी वस्तु को प्राप्त करने की सोचता है, लेकिन उसे संतुष्टि उसी समय मिलती है, जब वह उस वस्तु का वास्तविक उपभोग कर लेता है।


6. उपयोगिता त्याग के बिना असंभव है - उपयोगिता त्याग के बिना असंभव है, क्योंकि प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी वस्तुओं से तब तक उपयोगिता प्राप्त नहीं हो सकती है, जब तक कि उनको प्राप्त करने उपभोक्ता त्याग न करे।


7. उपयोगिता क्रय की प्रवृत्ति बढ़ाती है - उपयोगिता क्रय की प्रवृत्ति को बढ़ाती है, क्योंकि उपभोक्ता को जब किसी वस्तु से उपयोगिता मिलती है, तभी वह उस वस्तु को क्रय करने के लिए प्रोत्साहित होता है। यदि वस्तुओं में उपयोगिता नहीं होती, तो क्रय भी नहीं होता।


उपयोगिता के प्रकार 


उपयोगिता प्रमुख रूप से तीन प्रकार की होती है - 

(अ) कुल उपयोगिता

(ब) औसत उपयोगिता

(स) सीमांत उपयोगिता


(अ) कुल उपयोगिता


जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का उपभोग करता है, तो समस्त इकाइयों के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता को कुल उपयोगिता कहते हैं अर्थात् समस्त इकाइयों के सीमांत उपयोगिता के योग को कुल उपयोगिता कहते हैं।


कुल उपयोगिता की परिभाषा


प्रो. मेयर्स के अनुसार, - “कुल उपयोगिता संतुष्टि की वह मात्रा है, जो किसी वस्तु को निश्चित मात्रा के उपभोग अथवा उसके स्वामित्व से प्राप्त होती है 


प्रो. मेयर्स के अनुसार, - “किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग के परिणामस्वरूप प्राप्त सीमांत उपयोगिता का योग कुल उपयोगिता है


(ब) औसत उपयोगिता


किसी वस्तु की उपभोग की गई समस्त इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता में उपभोग की गई समस्त इकाइयों की संख्या का भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होता है, वही वस्तु की औसत उपयोगिता कहलाती है।


सूत्र -


औसत उपयोगिता (AV) = कुल उपयोगिता (TV) / उपभोग की गई इकाइयों की संख्या (N)


(स) सीमांत उपयोगिता


जब उपभोक्ता किसी वस्तु की अनेक इकाइयों का उपभोग करता है, तो उपभोग की जाने वाली अंतिम इकाई को ‘सीमांत इकाई' तथा उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, सीमांत उपयोगिता उपभोग की जाने वाली वस्तु की अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता होती है।


सीमांत उपयोगिता की परिभाषा


प्रो. लिप्से के अनुसार, - “एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं।" 


प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, - "वस्तु की किसी मात्रा की सीमांत उपयोगिता कुल उपयोगिता में उस वृद्धि को बताती है, जो कि उस वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त होती है


उपयोगिता एवं संतुष्टि में अन्तर 


अर्थशास्त्रियों ने उपयोगिता एवं संतुष्टि में अन्तर किया है। 'उपयोगिता’ का अर्थ है - अनुमानित या अशंसित उपयोगिता, जबकि ‘संतुष्टि’ का अर्थ है - वास्तविक उपयोगिता उपयोगिता का संबंध उस अवस्था से होता है, जब उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदने का विचार करता है, लेकिन संतुष्टि उसे तब प्राप्त होती है, जब वह उस वस्तु का उपभोग कर चुका होता है। 


इस प्रकार संतुष्टि वस्तु के वास्तविक उपभोग पर निर्भर करती है, जबकि उपयोगिता वस्तु का उपयोग किये बिना भी प्राप्त हो सकती है। ध्यान रहे, अनुमानित उपयोगिता वास्तविक संतुष्टि से कम या अधिक या उसके बराबर भी हो सकती है। 


हाँ, उपयोगिता को मापा जा सकता है, भले ही यह मापन अप्रत्यक्ष रूप से होता है, किसी वस्तु की उपयोगिता उस वस्तु के लिए चुकायी गई कीमत के बराबर होती है, लेकिन इसके विपरीत संतुष्टि को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में मापा नहीं जा सकता। इस अन्तर के बाद भी उपभोक्ता व्यवहार विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि उपयोगिता एवं संतुष्टि पर्यायवाची शब्द हैं। 


उपयोगिता का मापन 


यह निर्विवाद सत्य है, कि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक विचार है, जिसे अनुभव तो किया जा सकता है, लेकिन एक संख्या के रूप में व्यक्त करना कठिन है। इसलिए उपयोगिता के संबंध में एक प्रश्न उठता है कि क्या उपयोगिता का मापन संभव है ? इस संबंध में अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग, जिसके नेता मार्शल हैं, उपयोगिता को मापना संभव मानते हैं, जबकि दूसरा वर्ग, जिसके नेता प्रो. जे. आर. हिक्स हैं, उपयोगिता को अमापनीय मानते हैं। 

उपयोगिता के मापन के संबंध में दो परस्पर विरोधी विचारधाराएँ हैं -


(अ) गणनावाचक दृष्टिकोण 

(ब) क्रमवाचक दृष्टिकोण


(अ) गणनावाचक दृष्टिकोण


गणनावाचक शब्द गणित से लिये गये हैं। गणित में 1, 2, 3, 4 आदि संख्याओं को गणनावाचक संख्याएँ कहते हैं। इनमें से प्रत्येक संख्या एक निश्चित आकार लिए होती है और इसलिए विभिन्न संख्याओं की परस्पर तुलना की जा सकती है। उक्त संख्याओं को देखकर यह कहा जायेगा कि 4 संख्या से चौगुनी बड़ी है और 3 संख्या एक (1) से तिगुनी है।


गणनावाचक उपयोगिता की धारणा के अनुसार, - किन्हीं दो वस्तुओं (जैसे-सेब एवं नारंगी) की न केवल उपयोगिता नापी जा सकती है, बल्कि उनकी परस्पर तुलना करना भी संभव हो जाता है। 


उदाहरणार्थ- यदि किसी भी उपभोक्ता को सेब से 15 उपयोगिता और नारंगी से 05 उपयोगिता मिलती है, तो इसका अर्थ हुआ कि नारंगी की तुलना में सेब से उपभोक्ता को तिगुनी उपयोगिता मिलेगी। 


उपयोगिता को मुद्रा के पैमाने से मापने के संदर्भ में मार्शल ने कहा है कि, - “किसी वस्तु की इकाई के उपभोग से वंचित रहने की अपेक्षा उस वस्तु की इकाई के लिए जितना मूल्य देने की तत्परता रहती है, वहीं उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता का मौद्रिक माप है।"


प्रो. मार्शल के कथन से स्पष्ट है कि - व्यक्ति जिस वस्तु के उपयोग के लिए जितना अधिक मुद्रा देने की तत्परता रखता है, उसे उस वस्तु से उतनी ही अधिक उपयोगिता मिलेगी। गणनावाचक दृष्टिकोण से उपयोगिता को निम्न दो तरह से मापा जा सकता है


1. मुद्रा के रूप में माप - जैसे-एक उपभोक्ता एक सेब के लिए एक रुपया देता है, तो उसके लिए एक सेब की उपयोगिता एक रुपये के बराबर होगी, अतः हम कह सकते हैं कि गणनावाचक दृष्टिकोण में उपयोगिता की माप मुद्रा तथा इकाइयों के माध्यम से की जाती है।


2. इकाइयों के रूप में माप - प्रो. फिशर ने उपयोगिता की माप के लिए यूटिल (Util) शब्द का प्रयोग किया है, इसके अन्तर्गत उपयोगिता को यूटिल में स्पष्ट किया जाता है। जैसे- X को चाय के प्याले से 25 यूटिल उपयोगिता प्राप्त होती है, जबकि Y को केवल 5 यूटिल उपयोगिता को उक्त विधि से जिन संख्याओं में मापा जाता है- 1,2,3,4,5 इन्हें गणनावाचक संख्याएँ कहते हैं, इन्हें जोड़ा व भटाया जा सकता है।


मान्यताएँ-गणनावाचक दृष्टिकोण की प्रमुख मान्यताएँ निम्नांकित हैं - 


(i) विभिन्न प्रकार को वस्तुओं से प्राप्त होने वाली उपयोगिता की माप को मुद्रा की इकाई में मापा जा सकता है।

(ii) विभिन्न वस्तुओं तथा वस्तु की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त होने वाली उपयोगिता को जोड़ा जा सकता है। 

(iii) विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त होने वाली उपयोगिता, दूसरी वस्तुओं की उपयोगिता पर निर्भर नहीं करती है अर्थात प्रत्येक वस्तु की स्वतंत्र उपयोगिता होती है।

(iv) उपभोक्ता का मूलभूत उद्देश्य अधिकतम उपयोगिता को प्राप्त करना है।


(ब) क्रमवाचक दृष्टिकोण 


जब संख्याओं को क्रमनानुसार रखा जाता है, जैसे- प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, तो इन्हें क्रमवाचक संख्याएँ कहते हैं। इन संख्याओं का क्रम तो निश्चित है, लेकिन उनके आकार का पता नहीं होता, इसलिए उनकी तुलना करना संभव नहीं हो पाता। उदाहरणाथ- यह आवश्यक नहीं है कि दूसरी संख्या पहली संख्या से दुगुनी ही हो, यह तीन गुनी या पाँच गुनी बड़ी भी हो सकती है अर्थात् उनका क्रम तो पता होता है, लेकिन आकार का कोई ज्ञान नहीं होता।


उपयोगिता को क्रमवाचक रूप देने का अर्थ यह है कि वस्तुओं के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता को मापा नहीं जा सकता और न ही उसकी तुलना की जा सकती है। क्रमवाचक दृष्टिकोण हमें केवल यह बताता है, कि उपभोक्ता X-वस्तु की तुलना में Y-वस्तु को अधिक पसंद करता है, लेकिन उपभोक्ता यह बताने में असमर्थ रहता है कि वह Y-वस्तु को कितनों प्राथमिकता देता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि क्रमवाचक दृष्टिकोण के अनुसार, विभिन्न वस्तुओं की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती अर्थात् उपयोगिता का सही-सही मापन संभव नहीं है।


क्या उपयोगिता का मापन संभव है?


उपयोगिता के (गणनावाचक एवं क्रमवाचक दृष्टिकोण) मापन के संबंध में अर्थशास्त्रियों में मतैक्य नहीं हैं। उपयोगिता के गणनावाचक दृष्टिकोण के प्रबल समर्थक प्रो. मार्शल का विचार है कि - उपयोगिता को निश्चित रूप से मापा जा सकता है। उनके अनुसार, किसी वस्तु के लिए उपभोक्ता द्वारा जो कीमत चुकायी जाती है, वास्तव में वही उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता की मार है। 


इससे स्पष्ट है कि उपभोक्ता किसी वस्तु के लिए जितनी अधिक कीमत देने को तैयार होगा, उपभोक्ता को मिलने वाली उपयोगिता उतनी ही अधिक होगी, अत: वस्तु को कौमत ही उससे मिलने वाली उपयोगिता को माप है। 


मार्शल के अनुसार, - "उपयोगिता की प्रत्यक्ष माप भले ही सम्भव न हो, लेकिन उसे अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात् मुद्रा के माध्यम से अवश्य मापा जा सकता है।" 


प्रो. पीगू ने इसमे थोड़ा सा संशोधन करते हुए कहा है कि, - "मुद्रा वस्तु की उपयोगिता की माप न होकर, उपभोक्ता की इच्छा की तीव्रता की माप है।"


आधुनिक अर्थशास्त्रियो, विशेष रूप स पैरेटी, जे. आर. हिक्स तथा ऐलन आदि का विचार है कि उपयोगिता का सही माप करना संभव नहीं है, अतः आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने अब 'तटस्थता वक्र विधि' का प्रयोग करना प्रारम्भ किया है। यह उपयोगिता मापन का अपेक्षाकृत अधिक अच्छा माप है।


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