व्यापारिक बैंक के क्या कार्य है?

आज प्रत्येक व्यक्ति, समाज तथा देश के लिये बैंकों का पर्याप्त महत्व पाया जाता है। देश का उत्पादन विनिमय, उद्योग, व्यापार, यातायात, संचार तथा आर्थिक विकास बैंकिंग व्यवस्था पर आधारित होता है। विश्व में आज आर्थिक विकास के साथ-साथ बैंकिंग व्यवस्था का भी विस्तार होता जा रहा है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में व्यापार, वाणिज्यव्यवसाय का धमनी केन्द्र बँक ही माना जाता है। 

प्रो. विकसेल का कथन है कि : "बैंक आधुनिक चलन व्यवस्था का हृदय तथा केन्द्र बिन्दु है।

वास्तव में वर्तमान काल में आर्थिक जीवन का आधार बैंक हो गया। यह कहना गलत न होगा कि देश में समुचित बैंकिंग व्यवस्था का विकास आर्थिक विकास की एक महत्वपूर्ण शर्त बन गयी है। 


व्यापारिक बैंक के क्या कार्य है
व्यापारिक बैंक के कार्य



व्यापारिक बैंक के कार्य :


(I) जमा प्राप्त करना 


व्यापारिक बैंक का मुख्य कार्य अपने देश की जनता से जमा की राशि प्राप्त करना है। समाज के अधिकांश व्यक्ति आय का एक भाग बचाकर रखते हैं। इनमें कुछ व्यक्ति अपनी बचत को उत्पादन कार्य में लगाते हैं, परन्तु अधिकांश लोग अपनी अल्प बचत को चोरी के भय के कारण बैंकों में रखते हैं। इस प्रकार बैंक के लिये जमा का विशेष महत्व होता है। यही कारण है कि बैंक समाज के सभी वर्गों के व्यक्तियों से जमा प्राप्त करने में रुचि रखते हैं। एक व्यापारिक बँक प्राय: निम्नलिखित प्रकार के खातों के द्वारा जनता की बचत को प्राप्त करती है।


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1. स्थायी जमा खाता -


 स्थायी जमा खाता में रकम एक निश्चित अवधि के लिये जमा की जाता है। इस खाते से रकम निश्चित अवधि के अन्दर नहीं निकाली जा सकती है। इसीलिये इसे समयावधि जमा भी कहा जाता है। रकम जमा करने वाले व्यक्ति को एक जमा रसीद दी जाती है, जिस पर जमा करने की तिथि, रकम ब्याज की दर तथा रकम निकालने की तिथि लिखी होती है। यह रसीद अपरिवर्तनीय होती है। इस खातें में जमा राशि पर ब्याज की दर काफी ऊँची होती है।


2. बचत खाता - 


बचत खाता छोटी-छोटी रकम वालों, वेतन भोगी तथा सामान्य आय वाले व्यक्तियों के लिये सुविधाजनक होता है। यह खाता लोगों में बचत करने की आदत को प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार के खातों में राशि कितनी ही बार जमा की जा सकती है, किन्तु धन निकालने की सुविधा सप्ताह में केवल एक या दो बार ही होती है। अतएव रुपया निकालने का 3. चालू खता अधिकार सीमित होता है। इस खाते में जमा राशि पर मामूली ब्याज दिया जाता है। 


3. चालू खाता - 


चालू जमा खाते में जमाकर्त्ता अपनी इच्छानुसार जमा करता है तथा निकाल भी सकता है। इस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता है। इस प्रकार का खाता व्यापारियों तथा बड़ी-बड़ी संस्थाओं के लिये विशेष सुविधाजनक होता है, क्योंकि इसे अपने खाते में से वे दिन में कितनी ही बार चैक द्वारा रुपया निकाल सकते हैं। पश्चिमी देशों में चालू खाता रखना प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है। इसमें खातेदारों को बैंक उनकी जमा पर कोई ब्याज नहीं देता है। कभी-कभी कुछ बैंकों द्वारा कुछ आकस्मिक शुल्क लिया जाता है।


4. घरेलू बचत खाता - 


कुछ बैंक अपने ग्राहकों को एक गुल्लक दे देते हैं, जिसमें ताला लगा होता है तथा इसको चाबी बैंक के पास रहती है। ग्राहक इस गुल्लक में समय समय पर रकम डालता रहता है। ग्राहक कुछ समय के इस गुल्लक को बैंक के पास ले जाता हैं, जहाँ पर इसमें से रकम निकाल कर ग्राहक के खाते में जमा कर दी जाती है। इस जमा पर बैंक अपने ग्राहकों को बचत खाते की भाँति ब्याज देता है। इसी प्रकार हमारे देश में कुछ बैंकों द्वारा अलग बचत योजनायें आरम्भ की गयी हैं। इसमें बैंक का कर्मचारी स्वयं ग्राहक के घर जाता है। वह स्वयं रकम लेकर ग्राहक को रसीद देता है तथा रकम खाते में जमा कर दी जाती है।


(II) ऋण प्रदान करना  


बैंक को जितनी रकम जमा के रूप में प्राप्त होती है, उसका अधिकांश भाग ऋण के रूप में वह अपने ग्राहकों को दे देता है। इससे बैंक को आय प्राप्त होती है। व्यापारिक बैंकों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के माध्यमों से अपने ग्राहकों को ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है। 


1. नकद साख - 


नकद साख व्यवस्था के अन्तर्गत बैंक अपने ग्राहकों को प्रतिभूतियों बॉण्ड्स तथा व्यापारिक मात के आधार पर ऋण देते हैं। इस प्रकार ऋण में रकम को एक ही बार में निकालना रहता है। उसे केवल वास्तव में निकाली गयी रकम पर ब्याज देना होता है। जब व्यावसायिक बैंक माल की जमानत पर ऋण प्रदान करता है, तो उस माल को अपने गोदाम में जमा कर लेता है तथा ऋण की वापसी के बाद इसे वापस कर दिया जाता है। यह व्यवस्था हमारे देश में पायी जाती है।


2. अधि विकर्ष - 


जब कोई बैंक अपने ग्राहकों को खाते में जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है, तो इसे अधि विकर्ष की सुविधा कहा जाता है। इसके अन्तर्गत ग्राहक को चालू खाते में जितनी रकम जमा रहती है, बैंक उससे ज्यादा रकम निकालने की सुविधा देता है। इस अधिक रकम के लिये बैंक अपने ग्राहक से उचित जमानत लेता है। इस प्रकार के ऋण पर बैंक ब्याज बहुत अधिक लेता है। यह सुविधा अल्पकाल के लिये दी जाती है। इसमें तथा नकद साख में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि नकद साख कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, जबकि अधि विकर्ष की सुविधा बैंक जमा रखने वाले कुछ ही प्रमुख ग्राहकों को बैंक द्वारा प्रदान की जाती हैं।


3. विनिमय बिलों का भुगतान -


बैंक द्वारा व्यापारियों को ऋण देने का यह अत्यन्त प्रचलित तथा महत्वपूर्ण उपाय है। यह ऋण अल्पकालीन होता है तथा बैंक बिलों को भुनाने में बट्टा लेता है। आज कल व्यापार में सौदे उधार किये जाते हैं। विक्रेता खरीदने वाले के नाम पर एक विनिमय बिल जारी करता है। विक्रेता इसे आपने पास बहुत दिनों तक न रखकर अपने बैंक से भुना लेता है। बैंक इस बिल से बट्टे की रकम काटकर शेष रकम भुनाने वाले व्यापारी को दे देता है। जब बिल की अवधि पूरी हो जाती है, तो उस पर अंकित रकम बैंक खरीददार से प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार व्यपारिक बैंकों के ऋण देने का यह भी एक प्रमुख साधन माना जाता है। इससे व्यापारी वर्ग को भी सुविधा होती है।


4. ऋण एवं अग्रिम - 


जब कभी ऋण एक पूर्व निश्चित अवधि के लिये दिया जाता है, तो उसे ऋण या अग्रिम कहा जाता है। बैंकों की अधिकांश रकम ऋणों तथा अग्रिमों के रूप में दी जाती है। जब तक इस प्रकार के ऋणों का पूर्णतया भुगतान नहीं हो जाता है, तब तक इसकी समाप्ति नहीं होती है। इस प्रकार के ऋण के लिये बँक उचित जमानत लेता है। इस पर ब्याज की दर भी अधिक होती है, क्योंकि यह ऋण प्रायः एक लम्बी अवधि के लिये दिया जाता है। निश्चित अवधि तक ऋणों का भुगतान न होने पर जमानत के रूप में रखी गयी सम्पत्ति के बेचकर रकम वसूल की जा सकती है। इस प्रकार व्यापारिक बैंकों का ऋण देने का यह भी एक महत्वपूर्ण साधन है।


(III ) एजेन्सी सम्बन्धी कार्य 


1. चैक तथा अन्य साख पत्रों के भुगतान का संग्रहण - 


बैंक अपने ग्राहकों द्वारा जमा कराये गये चैक, बिल ड्रॉफ्ट तथा विनिमय बिलों का भुगतान प्राप्त कर इनकी रकम ग्राहक के खाते में जमा करते हैं। चालू खाते वाले ग्राहक को ये सवायें निःशुल्क प्रदान की जाती हैं।


2. चैक विनिमय विपन्न आदि का भुगतान -


बैंक अपने ग्राहकों द्वारा लिखे गये चैकों तथा अन्य विनिमय बिलों का भुगतान करते हैं। कभी-कभी यह अपने ग्राहकों के बिल स्वीकार लेते हैं तथा तिथि पर इसका भुगतान करते हैं। इस कार्य के लिये ग्राहकों से शुल्क लिया जाता है।


3. नियमित भुगतान तथा संग्रह करना - 


बैंक अपने ग्राहकों की ओर से प्रीमियम, मकान किराया, ब्याज आदि रकमों का भी भुगतान करता है। इसी तरह बैंक अपने ग्राहकों से लाभांश तथा अन्य प्राप्तियाँ वसूल कर उनके खाते में नियमित रूप से भी जमा करते रहे हैं। इस प्रचलन आजकल पाया जाता है 


4. विशेष सुविधायें प्राप्त करना - 


बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की सुविधानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान रकम हस्तान्तरित करने की व्यवस्था की जाती है। अधिकांश बैंकों ने साख स्थानान्तरण प्रणाली की भी शुरूआत की है। इसके लिये बैंक अपने ग्राहकों से निश्चित रकम प्राप्त करते हैं।


(IV) विविध कार्य  



1. सम्पत्ति की सुरक्षा -


बैंक आज कल अपने ग्राहकों की मूल्यवान सम्पत्तियों जेवर, प्रतिभूतियों तथा महत्वपूर्ण दस्तावेज आदि को सुरक्षित रखने के लिये विशेषकर के लॉकर्स की व्यवस्था प्रदान करते हैं। इन लॉकर्स की प्राय: दो चाबियाँ होती हैं तथा दोनों के बिना इसे खोला नहीं जा सकता है। इसमें से एक चाबी बैंक के पास रहती है तथा दूसरी ग्राहक के पास रहता है। 


2. विदेशी विनिमय की व्यवस्था -


बैंक अपने ग्राहकों के लिये विदेशी मुद्रा की भी व्यवस्था करता है। परन्तु इस सम्बन्ध में बैंकों की देश में प्रचलित विदेशी अधिनियम के अन्तर्गत ही काम करना पड़ता है। इस पर केन्द्रीय बैंक का भी नियन्त्रण रहता है।


3. यात्री चैक तथा साख पत्रों की सुविधा -


व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिये यात्री चैक तथा साख पत्र की सुविधा प्रदान करते हैं। इनकी सहायता से किसी भी देश में निश्चित राशि प्राप्त की जा सकती है। इसके फलस्वरूप अब नकद राशि लेकर नहीं जाना पड़ता है तथा लोगों को जोखिम से छुटकारा मिल जाता है।


4. उपभोग साख प्रदान करना - 


बैंक अपने ग्राहकों को उपभोग सम्बन्धी वस्तुयें भी उपलब्ध कराते हैं। बैंक इन वस्तुओं के व्यापारियों को अग्रिम भुगतान कर देते हैं तथा अपने ग्राहकों से किश्तों में रकम वसूल करते रहते हैं। इससे देश के आर्थिक विकास में सहायता मिलती है। इस प्रकार देश तथा विदेश में रहने वाली जनता का जीवन स्तर ऊँचा होता है, जो आज की आवश्कता है।


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