व्यवसाय में वित्त का क्या महत्व है?

व्यवसाय में वित्त के महत्व की तुलना मनुष्य के शरीर में रक्त से की गयी है। परन्तु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण वित्त प्रबन्ध का कार्य है। प्रत्येक व्यवसाय के कुशल एवं लाभदायक ढंग से संचालन के लिये पर्याप्त वित्त की उपलब्धि एक अनिवार्य आवश्यकता है। वर्तमान समय में वित्तीय प्रबन्ध का महत्व इसलिये अधिक है, क्योंकि वित्त व्यावसायिक क्रियाओं का प्रमुख आधार है।


वित्त की महत्व के सम्बन्ध में डॉ. इरविन फ्रैण्ड ने इस प्रकार कहा है, कि : "एक फर्म की सफलता यहाँ तक कि उसका अस्तित्व, उसकी कार्यक्षमता और उत्पादन करने की इच्छा, स्थायी एवं कार्यशील पूँजी में विनियोजन करने को क्षमता काफी बड़ी सीमा तक उसकी भूतकालीन एवं वित्तीय नीतियों द्वारा ही निर्धारित होती है। 


व्यवसाय में वित्त का क्या महत्व है?
व्यवसाय में वित्त का महत्व



वित्तीय प्रबन्ध का महत्व


1. व्यवसाय प्रबन्धकों के लिये महत्व - 


व्यवसाय प्रबन्धकों के लिये वित्तीय प्रबन्ध का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि वित्त के कुशल विनियोग पर ही व्यवसाय की कुशलता निर्भर करती है। व्यावसायिक प्रबन्ध यदि पूँजी का सदुपयोग करते हैं. तो इससे अंशधारियों को अधिकतम लाभांश प्राप्त होता है, जिससे अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि होती है। इस प्रकार संस्था के सफल संचालन के लिये वित्तीय प्रबन्ध एक महत्वपूर्ण अस्त्र माना जाता है। अतएव व्यवसाय का हित इसी में पाया जाता है। यही इसकी उपयोगिता है। 


2. कर्मचारियों के लिये महत्व - 


वित्तीय प्रबन्ध कर्मचारियों के लिये भी परोक्ष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वित्तीय साधनों के उचित प्रयोग के द्वारा व्यवसाय की लाभदायकता में वृद्धि की जा सकती है। इससे कर्मचारियों  को अधिक से अधिक मजदूरी व बोनस का भुगतान किया जा सकता है। यही नहीं साथ ही साथ सामाजिक सुरक्षा तथा श्रम कल्याण की योजनायें  चलायी जा सकती हैं।


3. विनियोग लाभों के लिये महत्व - 


वित्तीय प्रबन्ध विनियोक्ताओं के लिये भी महत्वपूर्ण होता है। कुशल व्यावसायिक संस्थाओं में धन विनियोजन के कारण विनियोग सुरक्षित रहता है तथा अधिकाधिक प्रतिफल प्राप्त होता है। इसलिये कहा जाता है, कि एक संस्था की सफलता उचित ढंग से बनायी गयी वित्त योजना पर निर्भर होती है। इसके अभाव में व्यवसाय की कल्पना नहीं की जा सकती है।


4. बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं के लिये महत्व - 


बैंक एवं विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं के लिये भी वित्तीय प्रबन्ध का विशेष महत्व है, क्योंकि इन संस्थाओं के प्रबन्ध वित्तीय प्रबंधक को आधार मान कर ही विभिन्न वित्तीय संस्थाओं को ऋष प्रदान करते हैं तथा धन को सुरक्षित रखते हैं। यदि इन संस्थाओं के प्रबन्धकों को उचित वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान नहीं होता है, तो इनका विनियोजित धन सुरक्षित एवं लाभदायक नहीं रह पाता है। अतएव किसी संस्था की सफलता उचित ढंग से बनायी गयी पूँजो योजना पर भी निर्भर होती है।


5. सरकार के लिये महत्व - 


सरकार को भी वित्तीय प्रबन्ध का अनिवार्य रूप से सहारा लेना पड़ता है। सरकार अपनी जनता से कर के रूप में धन की वसूली करती है तथा इस प्राप्त धन को योजनाओं में जनकल्याण के लिये उपयोग करती है। इसलिये कहा जाता है, कि यदि सरकार वित्तीय प्रबन्ध के उचित सिद्धांतों का पालन नहीं करती है, तो वह सार्वजनिक धन का उचित ढंग से उपयोग नहीं कर सकती है। इस प्रकार प्रत्येक देश की सरकार को इस बात को ध्यान में रखना पड़ता है।


6. अन्य व्यक्तियों के लिये महत्व -

वित्तीय प्रबन्ध से समाज तथा रहने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों को भी लाभ प्राप्त होता है। इससे राजनैतिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री तथा अन्य प्रकार के व्यक्तियों को लाभ पहुँचता है। यही नहीं स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद हमारे देश में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास का लक्ष्य निश्चित किया गया तथा पर्याप्त मात्रा में धन का विनियोग किया गया। इस प्रकार वित्तीय प्रबन्ध के माध्यम से इन योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया। यही वित्तीय प्रबन्ध का योगदान है।


उपर्युक्त बातों के आधार पर कहा जा सकता है, कि वित्तीय प्रबन्ध का महत्व उद्योग, व्यापार तथा वाणिज्य आदि सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। वास्तव में वित्त पूँजी व्यवसाय का आधार है। कोई भी व्यवसाय वित्त के अभाव में आज के समय में स्थापित नहीं किया जा सकता है।


इसलिये आज के औद्योगिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक युग में वित्त को व्यवसाय की आत्मा कहा जाता है। इसकी कमी तथा अभाव में कोई संस्था विकसित तथा सफल नहीं हो सकती है। इस प्रकार यह कहना गलत न होगा कि आज के युग में पूँजी या वित्त वह धुरी है, जिसके चारों ओर आर्थिक जगत चक्कर लगाता है। अन्त में यह कहना उचित होगा कि “वित्त पहिये का तेल, हड्डियों की मज्जा तथा व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग की आत्मा है।"


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