बीमा क्या है ? इसके उद्देश्य एवं कार्य बताइए

मानव जीवन तथा व्यावसायिक जगत में अनेक प्रकार की जोखिमें पायी जाती हैं। इन सभी जोखिमों से सुरक्षा पाने के लिये समय-समय पर विभिन्न बीमा प्रणालियों का विकास हुआ है। उदाहरण के लिये जीवन बीमे में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसे बीमा कम्पनी से बीमें की पूरी रकम मिल जाती है। अग्नि बीमें में गोदाम में आग लग जाने पर माल का मूल्य बीमा कम्पनी से मिल जाता है। इसी प्रकार समुद्री बीमें में जहाज माल का भाड़े की हानि की क्षतिपूर्ति बीमा कम्पनी से हो जाती है। व्यवसाय में भौतिक जोखिम से बचने हेतु व्यवसायी बीमा कराते हैं। इस प्रकार बीमा कम्पनी एक निश्चित प्रीमियम के बदले में इनकी क्षतिपूर्ति करने का वचन देती है। इसीलिये कहा जाता है कि बीमा आर्थिक हानियों के कम करने का एक साधन है, क्योंकि इसके अन्तर्गत जोखिमों को बीमा कम्पनी पर हस्तान्तरित कर दिया जाता है।


बीमा क्या है ? इसके उद्देश्य एवं कार्य बताइए
बीमा क्या है ? इसके उद्देश्य एवं कार्य


बीमा क्या है 


अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि "बीमा जोखिम को व्यवसायियों तथा व्यावसायिक संस्थाओं के कन्धों पर से उठाकर उन लोगों के कन्धों पर डाल देता है जिनका व्यवसाय ही इन जोखिमों को उठाना है। इसकी कुछ परिभाषायें निम्न प्रकार से पायी जाती हैं


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डॉ. डिसेन्डेल के अनुसार : "बीमा एक साधन है, जिसके द्वारा कुछ की हानियाँ बहुतों में बांटा जाती हैं 


प्रो. ई. डब्लू पेटरसन के शब्दों में : “बीमा दो पक्षों के बीच तय की गयी एक संविदा है, जिसके अन्तर्गत एक पक्ष निश्चित प्रतिफल के बदले दूसरे पक्ष के विशिष्ट जोखिमों को ग्रहण करता है और उसे भविष्य में किसी उल्लिखित घटना के घटित होने पर एक निश्चित रकम देने या क्षतिपूर्ति करने का वचन देता है


इनसाइक्लापीडिया ब्रिटानिका के मतानुसार : "बीमा एक सामाजिक तरीका है, जिसके द्वारा व्यक्तियों का एक बड़ा समूह एक समान अंशदान की व्यवस्था के द्वारा ऐसे सामान्य आर्थिक जोखिम, जिन्हें मापा जा सकता हो, को कम या दूर कर सकता है।"


उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने से पता चलता है कि बीमा आर्थिक हानियों को कम करने का एक साधन है, क्योंकि इसमें व्यवसायी अपनी जोखिम कम्पनी को हस्तान्तरित कर देता है। किसी वस्तु का बीमा कराने का यह अर्थ नहीं है कि वह वस्तु कभी नष्ट ही नहीं होगी। किसी वस्तु के नष्ट होने की सम्भावना हर समय पायी जाती है, किन्तु जब उसका बीमा करा लिया जाता है, तब उसका क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व बीमा कम्पनी का हो जाता है। यहाँ पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि बीमा सभी जोखिमों का नहीं कराया जा सकता है।


किसी जोखिम का बीमा कराने के लिये इसमें निम्नलिखित विशेषतायें पायी जानी चाहिये


1. जोखिम मुद्रा में मापने योग्य होनी चाहिये। 


2. जोखिम समाज के अधिकांश लोगों से सम्बन्धित होनी चाहिये।


3. जिस व्यक्ति का जोखिम है, उसमें उत्तरदायित्व की भावना होनी चाहिये।


4. जोखिम का समय अनिश्चित एवं आकस्मिक होना चाहिये। कराना चाहता


5. जो व्यक्ति अपने जोखिम का बीमा चाहिये।



उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि बीमा एक सामाजिक संगठन है, जो पारस्परिक सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित होता है, वास्तव में बीमा कम्पनी बीमा कराने वाले से एक निश्चित रकम प्रिमियम के रूप में लेती है, जिसके बदले उसकी क्षतिपूर्ति करने की प्रतिज्ञा करती है। 


इसलिये कहा जाता है कि “बीमा एक ऐसा अनुबन्ध है, जिसके अन्तर्गत पूर्व निश्चित प्रतिफल के बदले में बीमाकर्ता किसी निश्चित घटना के घटित होने पर बीमित को निश्चित धन राशि देने का वचन देता है। इस प्रकार बीमा संविदा में दो पक्षकर होते हैं। प्रथम जोखिम ह करने वाला दूसरा जोखिम देने वाला इनमें से प्रथम को बीमादाता और दूसरे को बीमादार कहते हैं।


बीमा का उद्देश्य 


जोखिमों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिये ही बीमा की आवश्यकता होती है। मानव जीवन प्रारम्भिक काल से हो भ तथा जोखिम रहा है। इन जोखिमों तथा हानियों से सुरक्षा के लिये मानव द्वारा सतत् प्रयास किये गये हैं। इसके फलस्वरूप प्रारम्भिक काल में परिवार तथा संयुक्त परिवार का जन्म हुआ। इसी प्रकार इन जोखिमों से सुरक्षा प्राप्त करने हेतु आधुनिक युग में बीमा का आविष्कार किया गया है। 


प्रो. डिन्सडेल ने लिखा है कि : "बीमा सेवा जनता को इतनी पर्याप्त आकर्षित पर प्रदान की जानी चाहिये कि लोग बीमा कराने के लिये प्रोत्साहित हों और साथ ही साथ बीमा कराने वाले को यथेष्ठ लाभ अवश्य बच जाये। इसके कुछ मुख्य उद्देश्य इस प्रकार पाये जाते हैं


(i) परिवार की सुरक्षा। 


(ii) वृद्धावस्था के लिये बचत।


(iii) एस्टेट ड्यूटी के भुगतान के लिये प्रबन्ध । 


(iv) शिक्षा के लिये प्राप्त किये ऋणों की जमानत।


(v) दान से चलने वाले ट्रस्टों जैसे अस्पताल, स्कूल आदि के लिये धन राशि का प्रबन्ध



बीमा के कार्य


बीमा एक ऐसा अनुबन्ध है, जिसके अन्तर्गत बहुत से व्यक्ति मिलकर कुछ व्यक्तियों को होने वाली हानि का भार सामूहिक रूप से वहन करते हैं। इससे न केवल सामाजिक हित होगा, वरन् तीव्र गति से राष्ट्रीय विकास भी करना सम्भव होता है। वर्तमान समय में बीमा द्वारा किये जाने वाले कार्यों को देखते हुये जन हित में कोई भी देश बीमा व्यवसाय की अवहेलना नहीं कर सकता है। 


इस सम्बन्ध में प्रो. रैफेल का कथन है कि : “भावी संकटों से सुरक्षा पाने, व्यापार की सम्भावित जोखिमों से बचने अथवा किसो सम्भाव्य व्यय का पूर्ण नियोजन करने के लिये बीमा आवश्यक है। बीमा बीमादार तथा वस्तु के न रहने पर होने वाली हानि से सुरक्षा प्रदान करता है। इस प्रकार के अनुबन्धों के द्वारा व्यक्तिगत हानियों एवं जोखिमों को समस्त समाज में कर दिया जाता है।"


बीमा व्यवसाय द्वारा वर्तमान समय में सम्पन्न किये जाने वाले कुछ कार्य इस प्रकार पाये जाते हैं


1. निश्चितता प्रदान करना - 


बीमा का प्रधान कार्य अनिश्चित घटनाओं को कम करना तथा उनमें निश्चितता प्रदान करना होता है। इस प्रकार भविष्य की अनिश्चितताओं को दूर करना ही बीमा का मूल उद्देश्य होता है। किसी विशिष्ट जोखिम से हानि होगी या नहीं होगी तो कब और कितनी होगी, ये तमाम बातें अनिश्चित हैं तथा इनका सही-सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। बीमा करा लेने से ये अनिश्चिततायें निश्चितता' में बदल जाती हैं। इसीलिये बीमादार को बीमा कम्पनी को प्रीमियम देना पड़ता है। 


प्रो. रीगल एवं मीलर के शब्दों में : “बीमा का प्रमुख कार्य प्रतिकूल घटनाओं की अनिश्चितता को कम करना तथा निश्चितता प्रदान करना है।"


2. सुरक्षा प्रदान करना - 


मानव जीवन जोखिम पूर्ण होता है। इन विभिन्न जोखिम के कारण मनुष्य को असुरक्षा का भय बना रहता है। इस भय से वह सुरक्षा चाहता है। यह सुरक्षा तभी प्राप्त की जा सकती है, जब वह इन अनिश्चितताओं को निश्चितता में परिवर्तित कर दे। वास्तव में बीमा के द्वारा यह आसानी से किया जा सकता है। इस प्रकार कोई भी बीमा करा कर विशिष्ट जोखिमों से हानि पर उसकी पूर्ति करा सकता है। अतएव बीमा जोखिमों से सुरक्षा तथा निश्चितता प्रदान करता है। 


प्रो. मैत्री के शब्दों में : बीमा वह संस्था है, जो लोगों के भविष्य की अनिश्चितताओं को निश्चितता में बदल कर सुरक्षा प्रदान करती है। यह बीमा का महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है।



3. जोखिमों का वितरण -


निश्चितता तथा सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ बीमा का एक महत्वपूर्ण कार्य जोखिमों का वितरण करना भी है। बीमा कुछ विपत्ति प्रस्त व्यक्तियों की आर्थिक हानियों को एक बृहत् समुदाय में बाँट देता है। अन्य शब्दों में किसी व्यक्ति की हस्तान्तरित की गयी जोखिम को बीमा कम्पनी पूरे बीमादार समूह पर वितरित कर देती है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति पर सम्भावित विपत्ति का बोझ हल्का हो जाता है। यह कार्य सहकारिता के सिद्धांत के आधार पर किया जाता है। प्रो. घोष एवं अग्रवाल के अनुसार "बीमा किसी जोखिम को, जो कि ऐसे व्यक्तियों के समूह पर जो खुद इस जोखिम में पड़े हुये हैं, फैलाने का सहकारी ढंग है।"


4. पूँजी की व्यवस्था करना - 


बीमा की सुविधा से पर्याप्त मात्रा में पूँजी व्यावसायिक कार्यों के लिये उपलब्ध हो जाती है। यदि बीमा की व्यवस्था न होती, तो प्रत्येक व्यवसाय को सम्भाव्य हानियों की पूर्ति के लिये स्वयं प्रबन्ध करना पड़ता जिससे काफो पूँजी हानि सम्बन्धी निधि के रूप में फैंसी रहती। साथ ही साथ बीमा पूँजी निर्माण में भी काफी योगदान प्रदान करता है। बमा कम्पनियाँ प्रीमियम के रूप में एकत्र निधि की काफी राशि व्यावसायिक कार्यों के लिये उपलब्ध कराती हैं। इसके अतिरिक्त बोमा के द्वारा साख का भी निर्माण होता है। बीमा पत्र के आधार पर आसानी से ऋण प्राप्त किया जा सकता है।


5. व्यावसायिक कुशलता में वृद्धि करना - 


व्यवसाय में विभिन्न प्रकार की जोखिमें होती हैं। इनमें से अनेक प्रकार की जोखिमों का बीमा कराया जा सकता है। जैसे, पूँजी जोखिम के प्रति निश्चितता प्रदान करके बीमा व्यवसायी को बड़े पैमाने पर व्यापार करने की प्ररेणा प्रदान करती है। जिससे व्यवसायी आंशिक कुशलता से बड़े पैमाने पर व्यवसाय करता है। सीमा की सुविधा उपलब्ध होने से व्यवसायी अपना पूरा-पूरा ध्यान व्यवसाय की प्रगति में लगाते हैं। इससे उनकी व्यवसायिक कुशलता में वृद्धि होती है। इस प्रकार बीमा देश के औद्योगिक तथा आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करता है।


6. हानि को कम करना - 


बीमा कार्य के साथ-साथ बीमा संस्थायें हानि के निवारण के उपायों का भी अनुसन्धान करती है तथा इसका प्रचार जनता के बीच करती हैं। कई बार बीमा कम्पनी जोखिम को कम करने के लिये नये-नये उपाय सुझाती है। यदि बीमादार कम्पनी द्वारा सुझाये गये उपायों को व्यवसायी व्यावहारिक रूप में अपनाता है, तो उसे लाभ प्रीमियम देने की सुविधा प्रदान की जाती है। इसीलिये कहा जाता है कि बीमा संस्थायें बीमा हानि निवारण को प्रोत्साहित करके हानि एवं क्षति की सम्भावना में कमी लाने का कार्य करती हैं। वर्तमान काल में यह कार्य भी अन्य कार्यों की भाँति महत्वपूर्ण है। 


7. अन्य कार्य - 


उपर्युक्त प्रमुख नया सहायक कार्यों के अतिरिक्त बीमा के द्वारा परोक्ष रूप से कुछ सामाजिक तथा राष्ट्रीय महत्व की कार्यों में अपना योगदान दिया जाता है, जिनमें से कुछ के विवरण इस प्रकार हैं


(i) राष्ट्रीय बचत में वृद्धि।


(ii) सदृश्य निर्यात


(iii) निर्भय सामाजिक व व्यावसायिक वातावरण।


(iv) वित्तीय स्थिरता प्रदान करना।


(v) समाज के कमजोर वर्ग का विकास।


अन्त में यह कहना गलत न होगा कि बीमा आज के व्यावसायिक तथा औद्योगिक जगत में अनिवार्य बन गया है। मनुष्य के जीवन में अनेक चिन्ताएँ व जोखिमें विद्यमान हैं। इन चिन्ताओं और जोखिमों से मुक्ति पाने का एक मात्र मार्ग बीमा ही है। यही कारण है कि आज विश्व के सभी देशों में तीव्र गति से बीमा व्यवसाय उन्नति कर रहा है। यह भावी संकटों से सुरक्षा पाने का एक मात्र उपाय है।


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