लघु व्यवसाय का अर्थ, विशेषताएँ, महत्व, समस्याएँ

लघु व्यवसाय का अर्थ, विशेषताएँ, महत्व, समस्याएँ
लघु व्यवसाय

व्यवसाय एक विस्तृत शब्द है। इसके अन्तर्गत, वाणिज्य, उद्योग तथा सहायक सेवाओं का समावेश पाया जाता है। व्यवहार में व्यावसायिक इकाइयों के अनेक स्वरूप व्यापार पाये जाते हैं। कुछ व्यवसाय का पैमाना बड़ा होता है, तो कुछ का छोटा या लघु लघु व्यवसाय भी एक व्यापक शब्द है, जिसके अंतर्गत लघु एवं कुटीर उद्योग तथा लघु स्तर पर संचालित किये जाने वाले वाणिज्य उद्योग तथा व्यापार को सम्मिलित किया जाता है। लघु व्यवसाय से आशय उस व्यवसाय से होता है जिसका संचालन छोटे पैमाने पर यंत्रों तथा मशीनों की सहायता से किया जाता है यदि औद्योगिक संगठन में शक्ति का प्रयोग होता है, तो इसमें श्रमिकों की संख्या कम होनी चाहिये।

लघु व्यवसाय की विशेषताएँ 


1. लघु व्यवसाय का कार्य क्षेत्र सीमित तथा लघु होता है।


2. इस व्यवसाय में विनियोजित पूंजी की सीमा भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निश्चित की जाती है। 


3. लघु व्यवसाय का क्षेत्र या बाजार स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय हो सकता है।


4. यह व्यवसाय एकाकी, साझेदारी या पारिवारिक व्यापार के रूप में चलाये जा सकते


5. इन व्यवसायों के माध्यम से आम लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। 


6. लघु व्यवसाय का प्रबन्ध व्यवस्था सरल होता है।


7. इसे कहीं भी आसानी से स्थापित किया जा सकता है। 


8. इनमें कर्मचारियों की संख्या सीमित पायी जाती है।


9. यह लघु उद्योग बड़े उद्योगों के सहायक या पूरक के रूप में कार्य करते हैं। 


10. इनके द्वारा प्रायः उपभोग की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।


11. इसे स्थापित करने के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। 


12. ये व्यवसाय जीवन निर्वाह के साधन होते हैं।


13. ये व्यवसाय एकाधिकार की प्रवृत्ति को रोकने में सहायक होते हैं। 


14. इनमें संचार विधियों काफी संक्षिप्त होती है।


15. इन्हें केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा सुविधाएं तथा प्रोत्साहन प्राप्त होता है।



लघु व्यवसाय का महत्व


आज किसी देश के लिए यह संभव नहीं है कि केवल बड़े व्यावसायिक इकाइयों के आधार पर ही अपना आर्थिक तथा सामाजिक विकास कर सके। विकास तथा तीव्र प्रगति के लिये आवश्यक है, कि लघु तथा बड़े उद्योगों दोनों को समान महत्व दिया जाय। साथ ही व्यवसाय तथा उद्योग के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका संचालन केवल छोटे पैमाने द्वारा ही किया जाता उपयुक्त होता है। यही नहीं आज लघु व्यवसाय को बड़े व्यवसायों का पूरक माना जाता है। 


भारतीय अर्थव्यवस्था में इन उद्योग का एक विशेष महत्व तथा स्थान पाया जाता है। ये हमारी अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शब्दों में भारत का मोक्ष उसके लघु एवं कुटीर उद्योग में निहित है। 


योजना आयोग के अनुसार : "कुटीर एवं लघु उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग है, जिनकी कभी भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।' लघु व्यवसाय का महत्व निम्नलिखित दृष्टियों से देश के विकास के लिये उपयोगी माना जाता है


1. अधिकतम रोजगार के अवसर - 


लघु व्यवसायों तथा उद्योगों में रोजगार उपलब्ध की क्षमता अधिक पायो जातो है। इनके विकास तथा प्रोत्साहन के माध्यम से देश में विद्यमान बेरोजगार की समस्या का एक सीमा तक समाधान किया जा सकता है। चूंकि लघु एवं कुटीर उद्योग श्रम प्रधान होते हैं, इसलिये इन उद्योगों का विकास द्वारा कम पूंजी विनियोग करके अधिक रोजगार उत्पन्न किये जा सकते हैं। भारत जैसे विकासशील तथा कृषि प्रधान देशों के लिये इसका एक विशेष महत्व पाया जाता है। 


2. पूँजी की समस्या का हल - 


कुटीर एवं लघु उद्योगों का हमारे देश में इसलिये भी महत्व है कि यह एक गहन श्रम प्रधान उद्योग है। इन उद्योगों की स्थापना में कम पूंजी की आवश्यकता होती है। एक अनुमान के अनुसार वृहत पैमाने के उद्योग में एक करोड़ की पूंजी लगाने पर केवल 35 लोगों को रोजगार दिया जा सकता है, जबकि इन उद्योग में उसी राशि से लगभग 3 हजार लोगों को कार्य दिया जा सकता है। यही कारण है कि इसे हमारी अर्थव्यवस्था का आधार कहा जाता है। 


3. राष्ट्रीय आय का समान वितरण - 


इन उद्योगों द्वारा राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश का समान वितरण किया जाना संभव होता है। इसका कारण यह है कि इन उद्योगों का स्वामित्व अधिक से अधिक व्यक्तियों के हाथ में पाया जाता है। इससे आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण नहीं हो पाता है। इसके साथ ही साथ इसके उत्पादन का पैमाना छोटा होने के कारण इन उद्योगों में श्रमिकों के शोषण की सम्भावना कम होती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय के समान वितरण की सम्भावना बनी रहती है। 


4. भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुकूल - 


भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है, जिसको जीविकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि है, किन्तु हमारे देश के किसानों को वर्ष भर कार्य नहीं मिल पाता है। इस अर्ध बेरोजगारी की समस्या का हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है, तथा प्रति व्यक्ति आय में कमी आयी है। इस समस्या को हल करने में भी लघु व्यवसाय सहायक सिद्ध हुये है। इस प्रकार इन उद्योगों का हमारे देश में विकास किया जाना आवश्यक है।


5. औद्योगिक विकेंद्रीकरण - 


लघु उद्योगों के विकास से देश में उद्योगों के विकेंद्रीकरण में मदद मिली है। इससे पूंजी का विकेन्द्रीकरण होता है, तथा आय एवं सम्पत्ति का वितरण समान बना रहता है। अन्य शब्दों में इन उद्योगों की स्थापना से आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण नहीं हो पाता है। यही नहीं यह विकेन्द्रीकरण समस्त औद्योगिक बुराइयों को दूर कर देता है, इस प्रकार यह कहना गलत न होगा कि इन उद्योगों के विकास से समस्त देशवासियों को लाभ होता है। यही इसकी विशेषता है।


6. कृषि पर कम भार - 


भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा यहाँ की अधिकतर जनसंख्या अपनी जीविका के लिये कृषि पर निर्भर होती है। इसका कारण यह है कि भारत गाँवों का देश है, जहाँ हमारे देश की 75% जनसंख्या निवास करती है। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। इससे कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ गया है। यह भार तभी कम किया जा सकता है, जबकि देश में लघु एवं कुटीर उद्योगों का व्यवसाय का विकास किया जाए। इस दृष्टि से भी इनका हमारी अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्व पाया जाता है।


7. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति में सहायक - 


इन उद्योगों के विकास से आयात प्रतिस्थापन में मदद मिलती है, तथा निर्यात की दृष्टि से भी इनका महत्वपूर्ण योगदान पाया जाता है। इस प्रकार यह कहना गलत न होगा कि लघु व्यवसायों की स्थापना से हमारे देश के निर्यात को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है। यही नहीं इससे हमें विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। एक अनुमान के अनुसार इसके द्वारा प्रतिवर्ष 15 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इससे अन्य वस्तुओं का आयात करके हम आर्थिक विकास कर सकते हैं। इस दृष्टि से इन उद्योगों का विकास किया जाना हमारी अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी माना जाता है।


8. तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता - 


हमारे देश में पूँजी की भाँति तकनीकी ज्ञान का भी अभाव पाया है। लघु उद्योगों में वृहत पैमाने के उद्योगों की तुलना में कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही साथ इसके लिये किसी विशेष प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। हमारे देश में सामान्य शिक्षा, ज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा व ज्ञान का भी अभाव पाया जाता है। इसी लिये इन उद्योगों की स्थापना तथा विकास किया जाना आर्थिक संरचना के अनुकूल कहा जाता है। अतएव इस प्रकार कम से कम साधनों में अधिक से अधिक विकास करना संभव बनाया जा सकता है।



लघु व्यवसाय की समस्याएँ 


1. देश में वृहत पैमाने के उद्योगों को प्राथमिकता दिये जाने के कारण लघु उद्योगों के लिये कच्चे माल का अभाव पाया जाने लगा है। साथ ही साथ इन्हें निम्न कोटि के कच्चे माल मिलते हैं।


2. इन उद्योगों द्वारा निर्मित माल की किस्म अच्छी नहीं होती है तथा उत्पादन व्यय भी अधिक होता है। इन उत्पादकों को अपनी कोई संस्था न होने के कारण विपणन की समस्या का सामना करना पड़ता है। 


3. इन लघु उद्योगों को पूंजी की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इनके पास मशीन, यन्त्रों तथा कच्चे माल खरीदने के लिये पर्याप्त पूंजी का अभाव पाया जाता है। यह एक बड़ी बाधा है।


4. इन उद्योगों को पिछड़ी हुई अवस्था के कारण प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान का अभाव पाया जाता है। इस कारण इन उद्योगों में बड़े पैमाने के उद्योगों से प्रतिस्पर्धा की क्षमता नहीं होती है।


5. इनके अधिकांश उत्पादक प्राचीन उत्पादन प्रणाली का उपयोग करते हैं। इस कारण यह वस्तुयें कारखानों द्वारा निर्मित वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर पाती हैं। 


6. लघु उद्योगों द्वारा बनायी जाने वाली वस्तुओं के समक्ष यह भी समस्या होती है कि उनका मानदण्ड गुणों के आधार पर निर्धारित करने में कठिनाई हो जाती है।


7. लघु उद्योगों में प्रतियोगिता करने की क्षमता वृहत पैमाने के उद्योगों की तुलना में कम होती है। इन उद्योगों में वस्तुर्ये हाथ से तैयार की जाती हैं जिससे उत्पादन व्यय अधिक होता है। 


8. इनकी ख्याति कम होने के कारण इन्हें कम ब्याज की दर पर धन उधार प्राप्त करने में कठिनाई सामना करना पड़ता है। बैंकिंग सुविधाओं का भी इनके पास अभाव पाया जाता है। 


9. आज इन उद्योगों को सस्ते दामों पर यन्त्रो, कोयला तथा बिजली आदि प्राप्त नहीं होते हैं। इस कारण इनके उपयोग करने में भी इन उद्योगों को आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।


10. आज कल लघु व्यवसाय या उद्योग की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर पायी जाती है। इस कारण ये उद्योग विभिन्न प्रकार के लगाए गए करों का भुगतान करने में असमर्थ होते हैं।


11. इन लघु उद्योगों में कार्यरत व्यक्तियों व कर्मचारियों में संगठन का अभाव पाया जाता है। उचित संगठन के अभाव में इन उद्योगों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 


12. लघु व्यवसाय के अन्तर्गत एकाकी व्यापार की भाँति सभी कार्य एक ही व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं। इस कारण इन उद्योगों में कुशल प्रबंध की कमी पायी जाती है। 


13. इन उद्योगों के समक्ष एक समस्या यह भी पायी जाती है कि इन्हें जनता का पूर्ण सहयोग नहीं प्राप्त है। इस कारण भी इन उद्योगों का विकास व विस्तार उचित ढंग से नहीं हो पा रहा है।


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