उपयोगिता ह्रास नियम का अर्थ, परिभाषा, महत्व तथा मान्यताएँ, अपवाद | law of diminishing utility in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम उपयोगिता ह्रास नियम के बारे में जानेंगे कि उपयोगिता ह्रास नियम होता क्या हैं? आज हम नीचे दिए गए उपयोगिता ह्रास नियम के इन विषयों पर बात करेंगे, तो चलिये जानते है उपयोगिता ह्रास नियम के बारे में…


उपयोगिता ह्रास नियम का अर्थ

उपयोगिता ह्रास नियम की परिभाषा

उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व 

उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएँ

उपयोगिता ह्रास नियम के अपवाद 

उपयोगिता ह्रास नियम किसने दिया?

उपयोगिता ह्रास नियम के लागू होने के कारण



upyogita-hraas-niyam-ka-arth-paribhasha-mahatv
उपयोगिता ह्रास नियम


उपयोगिता ह्रास नियम का अर्थ 


'उपयोगिता ह्रास नियम' उपभोग विभाग का एक महत्वपूर्ण नियम है। इस नियम का उल्लेख बेंथम नामक अर्थशास्त्री की पुस्तक में मिलता है, लेकिन इस नियम का सर्वप्रथम प्रतिपादन फ्रेंच अर्थशास्त्री गोसेन ने किया था। इसलिए इसे 'गोसेन का प्रथम नियम भी कहते हैं। 


इसके पश्चात् ब्रिटिश अर्थशास्त्री विलियम स्टेनले जेवन्स पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने मूल्य-निर्धारण के संदर्भ में इस नियम के प्रभाव की विधिवत् व्याख्या की, किन्तु इस नियम के वैज्ञानिक रूप से व्याख्या करने का श्रेय प्रो. अल्फ्रेड मार्शल को दिया जाता है। 


उपयोगिता ह्रास नियम का आधार उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य की आवश्यकता विशेष की पूर्ण संतुष्टि की जा सकती है। यह सामान्य अनुभव की बात है कि प्रत्येक आवश्यकता प्रारंभ में बहुत तीव्रता लिए होती है, लेकिन जब हमें उस वस्तु को अधिकाधिक इकाइयाँ प्राप्त होती हैं, तो उसकी तीव्रता में कमी होती चली जाती है। 


अन्ततोगत्वा एक स्थिति ऐसी भी आ जाती है, जब उस वस्तु की माँग घटकर शून्य हो जाती है, क्योंकि वस्तु से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त हो जाने के कारण हम उस वस्तु का और अधिक उपभोग करना बंद कर देते हैं, अतः दैनिक अनुभव से पता चलता है कि जैसे-जैसे किसी वस्तु को आवश्यकता की तीव्रता घटती जाती है, वैसे-वैसे वस्तु की अगली इकाइयों से प्राप्त होने वाली उपयोगिता भी घटती जाती है। वास्तव में, मनुष्य की इस अनुभूति के आधार पर ही उपयोगिता ह्रास नियम का प्रतिपादन किया गया है।


उपयोगिता ह्रास नियम यह बताता है कि जैसे-जैसे किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे उस वस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता में कमी आती जाती है अर्थात् प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली उपयोगिता में ह्रास हो जाता है। 


यदि उस वस्तु का क्रमशः उपभोग किया जाता है, तो एक स्थिति पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है। यह स्थिति हमारी आवश्यकता के पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाने पर आती है। यदि इसके पश्चात् भी वस्तु उपभोग किया जाता है तो उपयोगिता मिलने के स्थान पर अनुपयोगिता मिलने लगती है।



उपयोगिता ह्रास नियम की परिभाषा


“गोसेन के अनुसार, - "जैसे-जैसे हम किसी एक ही संतुष्टि की अधिकाधिक मात्रा को प्राप्त करते जाते हैं, वैसे-वैसे उसमें कमी होती है और अन्ततः पूर्ण संतुष्टि के बिन्दु तक पहुँच जाती है।”


"प्रो. मार्शल के अनुसार, - "किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु की जो मात्रा है, उसमें वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ उसे प्राप्त होता है, वह उस वस्तु की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ घटने लगता है।”


“प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, - "जब कोई उपभोक्ता अन्य वस्तुओं के उपभोग को स्थिर रखकर, किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो परिवर्तित वस्तु की सीमांत उपयोगिता का अन्ततः अवश्य ह्रास होता है।”



उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व 


(अ) उपयोगिता ह्रास नियम का सैद्धांतिक महत्व

(ब) उपयोगिता ह्रास नियम का व्यावहारिक महत्व


(अ) उपयोगिता ह्रास नियम का सैद्धांतिक महत्व -


उपयोगिता ह्रास नियम का सैद्धांतिक महत्व निम्नलिखित हैं -


1. माँग के नियम का आधार - उपयोगिता ह्रास नियम माँग के नियम का आधार है। यह नियम, यह बताता है कि माँग वक्र दायीं ओर क्यों झुका हुआ होता है। ज्यों-ज्यों उपभोक्ता किसी वस्तु का उपभोग करता है, त्यों-त्यों उसे उस व मंमिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटते हुए क्रम में मिलती है। इसलिए उपभोक्ता पहली वस्तु की अपेक्षा दूसरी व का कम मूल्य देता है। यही बात माँग की नियम भी बताता है। 


2. उपभोक्ता की बचत में महत्व - उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व उपभोक्ता की बचत की धारणा के लिए है। कोई भी उपभोक्ता किसी वस्तु की इकाई को उस बिन्दु तक क्रय करता है, जहाँ पर उस वस्तु की सीमांत इकाई की उपयोगिता उसके मूल्य के बराबर होती है। इस सीमांत इकाई के पहले वाली इकाइयों से उपभोक्ता को अधिक उपयोगित मिलती है, जबकि उसने सभी इकाइयों के लिए समान मूल्य दिया है।


3. मूल्य सिद्धान्त में महत्व - उपयोगिता ह्रास नियम वस्तु की माँग एवं पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ मूल्य में हो वाले परिवर्तन के कारणों को स्पष्ट करता है, जिसके आधार पर वस्तु के मूल्य का निर्धारण होता है। 


(ब) उपयोगिता ह्रास नियम का व्यावहारिक महत्व


उपयोगिता हास नियम का व्यावहारिक महत्व निम्नलिखित है -


1. कर प्रणाली का अधार - उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व राजस्व में भी है। यह नियम बताता है कि वस्तु क मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ उसकी उपयोगिता में कमी होती है। यही बात मुद्रा के संबंध में भी लागू होती है। मुद्रा क उपयोगिता एक धनी व्यक्ति की अपेक्षा निर्धन व्यक्ति के लिए अधिक होती है। सरकार इस आधार पर धनी व्यक्ति प प्रगतिशील दर पर कर लगाती है। 


2. सम-सीमांत उपयोगिता नियम का आधार - प्रत्येक उपभोक्ता अपने सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सम-सीमांत उपयोगिता नियम की सहायता ली जाती है। सम-सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख मान्यता उपयोगिता ह्रास नियम है। अधिकतम संतुष्टि के लिए उपभोक्ता अपनी मुद्रा की प्रथम इकाई उस आवश्यकता पर खर्च करता है, जिससे उसे अधिक उपयोगिता मिलती है। इस प्रकार के खर्च से उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और उसकी कुल उपयोगिता भी बढ़ती है। इससे स्पष्ट है कि उपयोगिता ह्रास नियम, सम सीमांत उपयोगिता नियम का आधार है।


3. नये उत्पादन को प्रोत्साहित करना - उपयोगिता ह्रास नियम का महत्व केवल उपभोग तक सीमित नहीं है. बल्कि इसका महत्व उत्पादन के क्षेत्र में भी है। यदि उपभोक्ता लगातार किसी वस्तु का उपभोग करता रहे, तो उसके लिए उस वस्तु की उपयोगिता घटेगी। अब उपभोक्ता की रुचि नयी वस्तु के प्रति बढ़ने लगती है। उपभोक्ता की उस रुचि को देखकर उत्पादक अपने उत्पादन के साधनों को नई वस्तुओं के उत्पादन में लगायेंगे, जिससे नई वस्तुओं का उत्पादन होगा।


4. समाजवादी समाज की आधारशीला - उपयोगिता ह्रास नियम समाजवादी समाज की आधारशिला है। इस हेतु धन के वितरण को समान करने के लिए तथा निर्धनों की सीमांत उपयोगिता को बढ़ाने के लिए सरकार धनी वर्गों से धन प्राप्त कर, इस प्रकार व्यय करती है कि निर्धन वर्ग की आय बढ़े और उन्हें अधिक सीमांत उपयोगिता की प्राप्ति हो।


5. धन व्यय करने का पथप्रदर्शक - उपयोगिता ह्रास नियम उपभोक्ता को वस्तु का चुनाव करने के लिए उचित पथ प्रदर्शन करता है । इस प्रकार, उपयोगिता ह्रास नियम के द्वारा मनुष्य अपने सीमित साधनों से अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का ज्ञान प्राप्त करता है।


6. विनिमय मूल्य एवं प्रयोग मूल्य में अन्तर का मापक - उपयोगिता ह्रास नियम विनिमय मूल्य एवं प्रयोग के अन्तर को भी स्पष्ट करता है। जिन वस्तुओं की पूर्ति पर्याप्त मात्रा में होती है, उनकी सीमांत उपयोगिता उतनी ही कम होती है। इसलिए ऐसी वस्तुओं का विनिमय मूल्य कम अथवा शून्य होता है। 


उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएँ


उपयोगिता ह्रास नियम की प्रमुख मान्यताएँ निम्नांकित हैं -


1. उपभोग की इकाइयाँ गुण तथा मात्रा में समान होनी चाहिए - उपयोगिता ह्रास नियम तभी लागू होता है, जब उपभोग की सभी इकाइयाँ गुण एवं मात्रा में एक समान हों। यदि पहले की तुलना में दूसरी इकाई गुण में अच्छी हो या मात्रा में बहुत कम या अधिक हो, तो यह नियम लागू नहीं होगा। 


2. वस्तु की इकाइयाँ उपयुक्त होनी चाहिए - उपयोगिता ह्रास नियम तभी लागू होता है, जब उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयाँ उपयुक्त हो। इकाइयों के उपयुक्त न होने की दशा में उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएं यह नियम लागू नहीं होगा। 


3. उपभोग लगातार होना चाहिए - उपयोगिता ह्रास नियम तभी लागू होता है, जब उपभोग का क्रम लगातार हो अर्थात् उपभोग का समय एक हो। यदि वस्तु का उपभोग क्रमिक रूप से न करके रुक-रुक कर किया जाता है तो उपयोगिता ह्रास नियम लागू नहीं होगा। 


4. स्थानापन्न वस्तुओं का समान मूल्य - उपभोग की जाने वाली वस्तु के स्थानापन्न वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन होने पर यह नियम लागू नहीं होता। जब किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि होती है, तो उसकी माँग कम हो जाती। यदि उपभोग की जाने वालो वस्तु मूल्य समान रहना चाहिए। तभी यह नियम लागू होगा। 


5. कीमत का अपरिवर्तित होना - उपयोगिता ह्रास नियम उसी दशा में लागू होगा, जब उपभोग को जाने वाले वस्तु की कीमत में परिवर्तन न हो, यदि उपभोग के समय संतरे की कीमत 10 रु. प्रति नग हो और संतरे के कुछ उपभोग के बाद उसकी कीमत घटकर 7 रु. प्रति नग हो जाये, तो ऐसी स्थिति में उपभोग करने वाले को संतरे से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाये तो इस स्थिति में उपभोग को जाने वाली वस्तु की मांग बढ़ जायेगी। उदाहरणार्थ, चाय का सीमांत उपयोगिता कम होने के स्थान पर बढ़ जाएगी।


6. उपभोक्ता की मानसिक स्थिति पूर्ववत् रहनी चाहिए - उपयोगिता हास नियम के लागू होने के लिए उपभोग के दौरान उपभोक्ता को मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। यदि उपभोग के दौरान उपभोक्ता को मानसिक स्थिति में परिवर्तन हो जाता है, तो यह नियम लागू नहीं होगा। 


7. उपभोक्ता की आय, स्वभाव, फैिशन, रुचि, आदत आदि समान होनी चाहिए - उपयोगिता ह्रास नियम के लागू होने के लिए उपभोक्ता की आय, स्वभाव, फैशन, रुचि, आदत आदि समान होनी चाहिए। जब किसी व्यक्ति को आद लोग में वृद्धि हो जाती है तो पिछली आय में, जो वस्तुएँ महँगी होने के कारण उपयोगी नहीं थीं, वहीं उपयोगी हो जाती हैं, क्योंकि बढ़ी हुई आय से वह महँगी वस्तु को खरीदने में सक्षम हो जाता है।


8. आवश्यकता एक होनी चाहिए - उपयोगिता हास नियम तभी लागू होगा, जब मनुष्य की आवश्यकता एक या समान हो। सामूहिक नाम के अन्तर्गत आने वाली विभिन्न आवश्यकताएँ, जो बहुत-सी आवश्यकताओं के समूह को बतलाती हैं, इस नियम के अन्तर्गत नहीं आतीं। 


9. उपयोगिता दूसरे के पास वस्तु की संख्या पर निर्भर होती है - उपयोगिता ह्रास नियम दूसरे के पास उपलब्ध वस्तु की संख्या पर निर्भर होती है। यदि किसी उपभोक्ता के पास एक वस्तु की दो-दो इकाइयाँ हों और एक व्यक्ति के पास केवल एक, तो यदि उसके पास भी उस वस्तु की दो इकाइयाँ हो जाये, तो उसे अधिक उपयोगिता मिलेगी, लेकिन व्यावहारिक जीवन में ऐसा कम होता है।


10. सुखमय आर्थिक दशा में ही क्रियाशील - उपयोगिता ह्रास नियम केवल सुखमय आर्थिक दशा में ही लागू होता है। यदि कोई व्यक्ति दो दिनों से भूखा हो और उसे रोटी खाने को दी जाये, तो पहली रोटी खाने के बाद उसे दूसरी रोटी से और अधिक उपयोगिता प्राप्त होगी, इसका कारण यह है कि एक रोटी खाने के बाद अत्यधिक भूख के कष्ट के कारण उसकी आवश्यकता की तीव्रता और अधिक बढ़ जाती है। कष्ट की स्थिति को पार करने के बाद सुखमय अवस्था आती है। इसी अवस्था में उपयोगिता ह्रास नियम लागू होता है।


उपयोगिता ह्रास नियम के अपवाद 


1. मादक पदार्थों के उपभोग में नियम का लागू न होना - कुछ लोगों का विचार है कि यदि कोई व्यक्ति शराब का उपभोग करता है, तो उसे हर अगले प्याले से प्राप्त होने वाली उपयोगिता बढ़ती जाती है तथा वह एक के बाद हर नये, प्याले की शराब को पीने की इच्छा करता है। इस प्रकार उपयोगिता घटने के बजाय बढ़ती जाती है। लेकिन यह अपवाद वास्तविक नहीं लगता, क्योंकि उपभोग करने वाले उपभोक्ता की मानसिक स्थिति शराब के पहले प्याले के उपभोग से बिगड़ जाती है। इस स्थिति में उपयोगिता ह्रास नियम तो लागू ही नहीं होगा। 


2. वस्तु की अपर्याप्त इकाइयों पर लागू न होना - यदि उपभोग की जाने वाली वस्तु को इकाइयों छोटी हों, जैसे- उदाहरण के लिए किसी प्यासे को एक चम्मच पानी दिया जाय, तो ऐसी स्थिति में दूसरे और तीसरे चम्मच से प्यासे को प्राप्त होने वाली उपयोगिता क्रमशः बढ़ती जायेगी। 


“चैपमैन के अनुसार, - "किसी व्यक्ति को चाय बनाने के लिए कोयले की आवश्यकता है और उसे पच्चीस ग्राम कोयला दिया जाए, तो दूसरे और तीसरे पच्चीस ग्राम कोयले से उसे अधिक उपयोगिता मिलेगी, क्योंकि पहले पच्चीस ग्राम कोयले से चाय का पानी गर्म तक नहीं हो सकता।" 


3. अप्राप्य एवं दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह पर नियम का लागू न होना - दुर्लभ या अप्राप्य अथवा विचित्र वस्तुओं की उत्तरोत्तर इकाइयों से अधिक उपयोगिता का अनुभव होता है। उदाहरणाथ, व्यक्तियों के हस्ताक्षर, देश-विदेश के टिकट, पुराने सिक्के संकलन करने आदि पर उयोगिता ह्रास नियम लागू नहीं होता। "लेकिन यह अपवाद भी वास्तविकता से परे है, क्योंकि जो वस्तुएँ एकत्रित की जा रही हैं, वह समरूप न होक भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। 

“जैकब वाइनर के मतानुसार, - “टिकटों के एक सेट का संग्रहण करने के बाद इसी प्रकाम के दूसरे सेट से प्राप्त उपयोगिता अवश्य घटेगी।” 


4. अच्छी कविता व गाने सुनने पर नियम का लागू न होना - प्रो. टॉजिंग के मतानुसार, - “किसी अच्छी कविता या गाना सुनने से और अधिक उपयोगिता या आनंद मिलता है और बार-बार उसे सुनने का मन करता है। लेकि टॉजिंग का यह मत पूर्णत: ठीक नहीं है, क्योंकि एक ही कविता या गाना बार-बार सुना जाये, तो कुछ समय के बाद उसे सुनने की रुचि या इच्छा समाप्त हो जायेगी। 


5. मुद्रा का मोह एवं प्रदर्शनप्रियता की इच्छा पर नियम का लागू  होना - कुछ अर्थशास्त्रियों का विचार है कि अधिक शक्ति एवं अधिक मुद्रा प्राप्त करने अथवा शानों-शौकत की वस्तुओं को प्राप्त करने में अगली इकाई की उपयोगिता बढ़ती जाती है अर्थात् उक्त संदर्भ में उपयोगिता ह्रास नियम लागू नहीं होता।


6. वस्तु या सेवा की संख्या बढ़ने पर नियम का लागू न होना - उपयोगिता ह्रास नियम वस्तु या सेवा की संख् बढ़ने पर लागू नहीं होता। यदि टेलीफोन का उपयोग करने वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है, तो उसकी उपयोगिता घटने के स्थान पर बढ़ जाती है। लेकिन यह अपवाद भी मात्र दिखावटी है। एक व्यक्ति के पास एक से अधिक टेलीफोन हो, तो बहुत से कनेक्श होने से उपयोगिता कम हो जायेगी।


7. पूरक वस्तुओं पर नियम का लागू न होना - उपयोगिता ह्रास नियम पूरक वस्तुओं पर लागू नहीं होता उदाहरणार्थ, चाय-चीनी, दूध-शक्कर, पेट्रोल-मोटर, स्याही पेन, घड़ी-चेन आदि, क्योंकि दूध-चीनी प्राप्त हो जाने प चाय की उपयोगिता में वृद्धि हो जाती है। लेकिन यह तर्क भी सही एवं व्यावहारिक नहीं है। यदि पूरक वस्तुओं की विभिन्न इकाइयों का अलग-अलग उपभोग करें, तो घटती हुई उपयोगिता प्राप्त होगी। 


उपयोगिता ह्रास नियम किसने दिया?

उत्तर : अर्थशास्त्री गोसेन


उपयोगिता ह्रास नियम के लागू होने के कारण


उपयोगिता हास नियम के लागू होने के प्रमुख तीन कारण निम्नांकित हैं -


1. आवश्यकता विशेष की संतुष्टि - मनुष्य की आवश्यकता भले ही अनन्त है, लेकिन उनकी उपभोग करने की क्षमता सीमित होती है। इसी कारण वह आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनन्त वस्तुओं का उपभोग नहीं कर सकता। वस्तु की इकाइयों का लगातार उपभोग करते-करते एक समय ऐसा अवश्य जा जाता है कि उसको आवश्यकता संतुष्ट हो जाती है। 


2. वस्तुएँ अपूर्ण स्थानापन्न होती हैं - वस्तुएँ एक-दूसरे के स्थान पर पूर्ण स्थानापन्न के रूप में स्थापित नहीं की जा सकतीं। इसलिए वस्तुओं का एक निश्चित अनुपात में ही उपयोग किया जा सकता है। एक वस्तु की मात्रा को स्थिर रखकर दूसरी वस्तु के उपभोग में वृद्धि करने से घटती हुई सीमांत उपयोगिता प्राप्त होती है। 


3. वैकल्पिक प्रयोग - प्रत्येक वस्तु के अनेक उपयोग होते हैं। कुछ प्रयोग बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि कुछ कम महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे-जैसे किसी वस्तु विशेष के स्टॉक में वृद्धि होती जाती है, उस वस्तु का उपयोग कम महत्व वाली जगह में किया जाने लगता है।


यह भी पढ़े -

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Skip Ads