एकाकी व्यापार के गुण एवं दोष

एकाकी व्यापार के गुण एवं दोष
एकाकी व्यापार के गुण एवं दोष


एकाकी व्यापार की लोकप्रियता का प्रधान कारण यह है कि व्यापारिक जगत सबसे प्राचीनतम प्रारूप होते हुए भी यह आज तक जीवित है। यही कारण है कि आज के युग में भी यह विश्व के सभी देशों में पाया जाता है। 


प्रो. किम्बाल एवं किम्बाल के शब्दों में : "व्यावसायिक संगठन के समस्त प्रारूपों में से एकाकी स्वामित्व सबसे पुराना, सरलतम तथा कुछ बों में यह पूर्णतः प्राकृतिक है।" 


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एकाकी व्यापार के गुण या लाभ 



1. सरल प्रारम्भ तथा समापन - 


एकाकी व्यापार को प्रारम्भ करने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है, क्योंकि यह तमाम वैधानिक बन्धनों से स्वतंत्र होता है। इनसे आवश्यकतानुसार कभी भी बंद तथा प्रारम्भ किया जा सकता है। इसे कम से कम पूंजी में भी प्रारम्भ किया जा सकता है तथा इसका पंजीयन कराया जाना आवश्यक नहीं होता है। इस प्रकार एकल व्यवसाय का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी स्थापना करना, कार्य प्रारम्भ करना तथा व्यवसाय को बंद करना सरल एवं सुगम होता है। यही इसके आज भी जीवित रहने तथा इसकी लोकप्रियता का कारण पाया जाता है। 


2. शीघ्र निर्णय -


एकल स्वामित्व में व्यापारी ही सर्वेसर्वा होता है। यह व्यवसाय का एक ऐसा संगठन होता है जिसका संचालक एवं प्रबंधक केवल एक ही व्यक्ति होता है। इस कारण व्यवसाय से सम्बन्धित सभी निर्णय उसे स्वयं लेने पड़ते हैं। अतएव एकाकी व्यापार में किसी अन्य व्यक्तियों से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। इसलिए कहा जाता है .कि संकटकाल में इस व्यवस्था के अन्तर्गत महत्वपूर्ण बातों के सम्बन्ध में शीघ्रता के साथ निर्णय लिया जा सकता है। इससे व्यापार में आसानी होती है। यह व्यवस्था अन्य व्यावसायिक प्रणालियों में नहीं पायी जाती है। यही इसकी श्रेष्ठता का कारण है।


3. व्यक्तिगत योग्यता - 


एकाको व्यापार व्यवस्था के अन्तर्गत एक ही व्यक्ति में कुशलता चतुरता एवं व्यक्तिगत उत्साह जैसे गुणों का शीघ्र विकास होता है। व्यावसायिक सफलता में इन गुणों का अपना एक विशेष महत्व पाया जाता है। 


एकल व्यापार के सम्बन्ध में डॉ. हैने ने कहा है कि : "यह स्वरूप उस विस्तृत क्षेत्र में जीवित रहेगा, जिसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती है, किन्तु व्यक्तिगत योग्यता की अधिक आवश्यकता पड़ती है। अर्थशास्त्री एवं राजनीति इस बात को कभी भी नहीं भूल सकते हैं कि व्यापार में उत्तरदायित्व एवं आत्मनिर्भरता के गुण अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह सब गुण एकल व्यापार में पाये जाते हैं।" 


एकल व्यापारी अपने सम्पूर्ण कार्य की देखरेख स्वयं ही करता है अंतरण उसमें आत्मविश्वास की भावना का पाया जाना नितांत आवश्यक माना जाता है।


4. कर्मचारियों तथा ग्राहकों से मधुर सम्बन्ध - 


व्यवसाय की सफलता में मधुर सम्बन्ध का महत्वपूर्ण योगदान पाया जाता है। प्रायः यह देखा गया है कि एकाकी व्यापारी अपने व्यवसाय के कुशल संचालन के लिये कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति करता है। वह अपने व्यवसाय में कार्य करने वाले समस्त कर्मचारियों से सुमधुर सम्बन्ध बनाये रखता है ताकि व्यवसाय की उन्नति हो सके। इसी प्रकार इस व्यवस्था में व्यापारी को अपने ग्राहकों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध बनाये रखने का अवसर प्राप्त होता है। 


5. अल्प पूँजी से व्यवसाय - 


एकाकी व्यापार में सीमित मात्रा में पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। इस व्यवसाय का प्रारम्भ अल्प पूंजी से किया जा सकता है। इसलिए कहा जाता है कि एकाकी व्यवसाय का प्रबन्ध मितव्ययी होता है, क्योंकि इसमें स्वामी स्वयं प्रबन्ध कार्य करता है, स्वयं पूँजी लगाता है तथा स्वयं ही सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है। 


6. पैतृक ख्याति - 


एकाकी व्यापार का स्वभाव प्रायः पैतृक पाया जाता है। इसका पैमाना इतना छोटा होता है कि पारिवारिक स्तर पर घर के छोटे बच्चे स्वयं अपने आप अपने पिता या परिवार का व्यवसाय सीख जाते हैं। उन्हें इसमें दक्ष बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। पैतृक व्यवसाय की दशा में एकाकी व्यापारी को अपने पूर्वजों की ख्याति का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है तथा उसके आधार पर वह अपने व्यवसाय को और अधिक बढ़ा सकता है। 


एकाकी व्यवसाय के दोष या हानियाँ



1. सीमित साधन - 


एकाकी व्यापार में व्यवसाय के स्वामी के साधन सीमित होते हैं। पूंजी के अभाव में वह उत्पादन कार्य का विस्तार नहीं कर पाता है। इस अभाव के कारण उसे कार्य संचालन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन व्यवसायों को ऋण प्राप्त करने की सुविधा भी सीमित होती है। इसलिए कहा जाता है कि आज के युग में बिना पर्याप्त पूंजी के व्यवसाय को कुशलतापूर्वक संचालित करना तथा उसका विस्तार तथा विकास करना एक दुष्कर तथा कठिन कार्य बन जाता है। 


2. सीमित प्रबन्ध योग्यता - 


एकल स्वामित्व में पूँजी की भाँति प्रबन्ध योग्यता भी सीमित होती है। उसे प्रबन्ध ज्ञान भी कम होता है। एक व्यवसायी के लिये व्यापार के प्रत्येक क्षेत्र में दक्ष एवं निपुण होना कठिन कार्य होता है। वास्तव में एक अकेले व्यक्ति की निर्णय शक्ति, विवेक, बुद्धि तथा प्रबन्ध क्षमता प्रायः सीमित होती है, जिसके कारण व्यापार को एक सीमा से अधिक विस्तार करना संभव नहीं होता है। इसीलिये कहा जाता है कि एकाको व्यापार केवल छोटी मात्रा के व्यवसाय के लिये उपयुक्त होता है।


3. गोपनीयता से सन्देह को जन्म - 


एकाकी व्यापार में व्यावसायिक गोपनीयता सबसे अधिक रहती है। यह संदेह को जन्म देती है। जिससे व्यवसाय की प्रगति में बाधा आने लगती है। उदाहरणार्थ कम्पनी की भाँति एकाकी व्यवसायी के लिये अपने खातों को प्रत्येक वर्ष प्रकाशित करना आवश्यक नहीं होता है। अतएव ऋण देने वाले को इस एकाकी व्यापार की आर्थिक स्थिति का अनुमान नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में एकाकी व्यवसायी की कभी-कभी जब ऋण की आवश्यकता होती है, प्राप्त नहीं हो पाते हैं। इससे व्यवसाय को हानि होती है। 


4. शीघ्र निर्णय घातक होने की सम्भावना - 


एकाकी व्यापार के अन्तर्गत व्यवसायों को अकसर यकायक व्यवसाय सम्बन्धी निर्णय लेने पड़ते हैं। उसे अन्य लोगों से गोपनीयता के कारण सलाह लेने की आवश्यकता नहीं होती है। अतएव उसे स्वयं शीघ्र निर्णय लेने पड़ते हैं। कभी-कभी शीघ्र निर्णय लेने के कारण इस बात की आशंका पायी जाती है कि यह निर्णय व्यापार के लिए हानिप्रद न बन जाये। प्रायः यह देखा गया है कि कई बार व्यापारी द्वारा जल्दबाजी में गलत निर्णय ले लिए जाते हैं जो कि व्यवसाय के लिए घातक सिद्ध होते हैं।


5. सीमित ऋण क्षमता - 


साझेदारी तथा कम्पनी व्यावसायिक संगठन की तुलना में एकाकी व्यापारी की ऋण लेने की क्षमता बहुत कम पायी जाती है। इसका कारण यह है कि एकल व्यवसाय की ख्याति कम तथा सीमित होती है। इस सौमित, ख्याति के कारण अनेक व्यावसायिक वित्तीय संस्थाएं एकाकी व्यापारी को ऋण देने में संकोच करती है। इस प्रकार ऋण प्राप्त न होने के कारण एकाकी व्यवसाय की प्रगति प्रभावित होती है। यही कारण है कि वृहत पैमाने के व्यवसायों की तुलना में इसका क्षेत्र सीमित होता है। 


6. अनुपस्थिति की स्थिति में हानि - 


प्रायः यह सत्य माना जाता है कि व्यापार की सफलता स्वामी कि उपस्थिति एवं उसकी व्यक्तिगत देखभाल पर निर्भर होती है, किन्तु कभी विषम दशाओं में व्यवसाय को हानि भी उठानी पड़ती है। यह विषम स्थिति एकाकी व्यापार में ज्यादा पायी जाती है, क्योंकि वह अकेला कार्य करने वाला होता है। यदि वह अस्वस्थ होने के कारण व्यवसाय को बंद रखता है, तो ऐसी दशा में उसे हानि उठानी पड़ेगी, जो दीर्घकाल में व्यवसाय के लिए अहितकर सिद्ध हो सकती है।


7. अन्य दोष या हानियाँ - 


एकाकी व्यापार के कुछ अन्य दोष या हानियाँ निम्नलिखित प्रकार से पायी जाती हैं 


(i) एकाकी व्यवसाय वृहत पैमाने के उद्योग धंधे के लिये अनुपयुक्त होता है।


(ii) इसका सीमित क्षेत्र होता है तथा इसका व्यापार प्रायः स्थानीय स्तर पर होता है। 


(iii) एकाकी व्यवसाय विशिष्टीकरण के लाभों से वंचित रहता है।


(iv) इसका जीवनकाल अनिश्चित तथा अस्थिर होता है।


(v) एकल व्यवसाय में सौदा करने की शक्ति भी सीमित होती है।


(vi) एकाकी व्यवसाय का बाजार सीमित अर्थात् स्थानीय पाया जाता है। 


(vii) उत्पादन की जाने वाली वस्तु की लागत इसके अन्तर्गत अधिक होती है।


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