जोखिम से सुरक्षा प्राप्त करने करने के लिये ही बीमा की आवश्यकता होती है। मानव जीवन को प्रारम्भ से ही जीवन तथा सम्पत्ति के सम्बंध में भय तथा जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं मानव ने इन जोखिमों तथा हानियों से बचने के लिए लगातार प्रयास किया है। इस सुरक्षा पाने की आवश्यकता ने कुटुंब, संयुक्त परिवार तथा आज के युग में बीमा का आविष्कार किया है। अन्य शब्दों में इन जोखिमों से सुरक्षा पाने के लिये समय समय पर विभिन्न बीमा प्रणालियों का विकास हुआ है। इस प्रकार यह कहना गलत न होगा वर्तमान युग में बीमा का क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक तथा विस्तृत हो गया है।
बीमा क्या है बीमा के प्रकार |
बीमा के प्रमुख प्रकार
1. जीवन बीमा (Life Insurance )
2. अग्नि बीमा (Fire Insurance )
3. समुद्री बीमा (Marine Insurance)
4. सामाजिक बीमा (Social Insurance)
5. विविध बीमा (Miscellaneous Insurance)
1. जीवन बीमा -
मानवीय जीवन में अनिश्चितता तथा अस्थिरता का वातावरण पाया जाता है। साथ ही मनुष्य का अंत किसी भी समय हो सकता है। ऐसी स्थिति में उसके परिवार को आर्थिक कष्ट का सामना न करना पड़े, उस ध्येय से जीवन बीमा कराया जाता है। जीवन बीमा व्यवसाय का सबसे प्राथमिक स्वरूप है। इसके अंतर्गत बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद एक निश्चित रकम उसके उत्तराधिकारी को प्राप्त हो जाती है। यदि निश्चित समय तक मृत्यु नहीं होती है, तो उसको स्वयं ही बीमा की राशि प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार जीवन बीमा एक संविदा है, जिसके अंतर्गत बीमा कंपनी प्रीमियम के बदले में निश्चित समय की पूर्ति अथवा मृत्यु पर एक निश्चित राशि देने का वचन देती है।
बीमा अधिनियम की धारा के अनुसार : "जीवन बीमा व्यवसाय से तात्पर्य, उस व्यवसाय से है, जिसके द्वारा मानवीय जीवन का बीमा सम्पन्न किया जाता है।"
इसीलिये कहा जाता है कि जीवन बीमे से लोक और परलोक दोनों ही सुधरते हैं। अतएव इसमें सुरक्षा व विनियोग दोनों पाये जाते हैं। इसके कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं
1. बीमा कम्पनी एवं बीमादार के बीच लिखित समझौता।
2. दो पक्षों का होना अर्थात बीमादाता तथा बीमादार का होना।
3. निश्चित अवधि तक प्रीमियम का भुगतान करते रहना या बीमादार की मृत्यु तक करना।
4. बीमा की राशि का भुगतान अवधि के बाद बीमादार को करना अथवा मृत्यु हो जाने की दशा में उसके उत्तराधिकारी या नामजद को करना।
5. जीवन बीमा अनुबंध में लिखित शर्तों का पालन करना। इस प्रकार जीवन बीमा कम्पनी तथा बीमादार के बीच एक लिखित अनुभव होता है। जिस पर बीमा कंपनी बीमा करने एवं एक निश्चित प्रीमियम प्राप्त करने के फलस्वरूप घटना घटने पर या नियत अवधि के बीतने पर बीमित रकम देने को तैयार रहती है।
जीवन बीमा का उद्देश्य जीवन बीमा के निम्नलिखित उद्देश्य पाये जाते हैं
1. वृद्धावस्था के लिये धन की व्यवस्था।
2. पारिवारिक सुरक्षा।
3. बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था।
4. बच्चों की शादी विवाह के लिये धन की व्यवस्था।
5. करों के भुगतान के लिये धन की व्यवस्था।
अन्त में यह कहना गलत न होगा कि जीवन बीमा में बीमित व्यक्ति तथा उसके परिवार की सुरक्षा निहित होती है। अन्य शब्दों में इसके द्वारा मनुष्यों की जोखिमों एवं संकटों की रक्षा होती है। इसी कारण आज का मानव इसके प्रति आकर्षित होता है। साथ ही साथ जीवन बीमा धन विनियोग का एक उत्तम साधन भी है। यह तत्व अन्य किसी बीमा में नहीं पाया जाता है। अतएव सुरक्षा तथा विनियोग के तत्व जीवन बीमा के अनोखे उदाहरण माने जाते हैं।
2. अग्नि बीमा -
बीमा के विकास क्रम में समुद्री बीमा के बाद अग्नि बीमा का विकास हुआ। इस अग्नि बीमा का प्रारम्भ इटली से माना जाता है। यह अग्नि, मानव समाज को प्रकृति का उपहार एवं अभिशाप दोनों ही है। सन् 1666 में लंदन में भयंकर अग्निकांड हुआ, जिसमें आग लगातार चार दिन और चार रात जलती रही, इससे लगभग 10 करोड़ पाउंड की संपत्ति का नुकसान हुआ। इस अग्निकांड ने अग्नि बीमा को बहुत प्रोत्साहन प्रदान किया। लन्दन के इस भीषण अग्निकांड के बाद केवल लंदन में ही नहीं, वरन विश्व के अनेक देशों में अग्निकांड से होने वाली क्षति से सुरक्षा हेतु अग्नि बीमा का तीव्र गति से विकास हुआ। सन् 1681 में लंदन में फायर इंश्योरेंस ऑफिस की स्थापना हुई। इसी प्रकार 1710 में सन फायर ऑफिस की स्थापना हुई। यह दोनों ही संस्थायें आज भी अग्नि बीमा के लिए विश्व विख्यात हैं। इस प्रकार शनैः शनै अग्नि बीमा का महत्व शनैः शनैः बढ़ता गया, क्योंकि संसार में प्रतिवर्ष अग्नि से करोड़ों रुपये की हानि होती है।
"लार्ड बुक का कथन है कि : अग्नि एक अच्छी सेविका है, स्वामिनी नहीं, क्योंकि जब मनुष्य का इस पर नियन्त्रण नहीं रहता है, तब यह अभिशाप बन जाती है। इसी कारण अग्नि बीमा की आवश्यकता पड़ती है। अग्नि बीमा एक ऐसा अनुबंध है, जिसके अन्तर्गत बीमा कम्पनी एक निश्चित प्रीमियम के बदले बीमा कराने वाले को एक निश्चित समय में अग्नि से होने वाली हानियों की पूर्ति करने का वचन देती है।
भारतीय बीमा अधिनियम 1938 की धारा 2 के अनुसार : “अग्नि बीमा अन्य टीमों के अतिरिक्त एक ऐसी बीमा संविदा है, जो कि आग या अन्य ऐसे जोखिम से उत्पन्न हानि के विरुद्ध की जाती है, जिसका उल्लेख अग्नि बीमा संविदा में है।
इस प्रकार अग्नि बीमा का प्रसंविदा एक क्षतिपूर्ति प्रसंविदा है जिसके अनुसार बीमा कार बीमा पात्र की सम्पत्ति में अग्नि से होने वाली क्षति का उत्तरदायित्व लेता है। इस उत्तरदायित्व के बदले बीमा पात्र बीमाकार को प्रीमियम के रूप में एक निश्चित रकम देता है। अग्नि बीमा एक निश्चित समय के लिये कराया जाता है। यदि इस समय में अग्नि से कोई क्षति नहीं होती है, तो बीमा कंपनी बीमा पात्र को कोई भुगतान नहीं देती है।
अग्नि बीमा की कुछ विशेषतायें निम्नलिखित प्रकार से पायी जाती हैं
1. अग्नि बीमा के दो पक्ष होते हैं-बीमाधारक तथा बीमाकर्ता अर्थात बीमा कम्पनी
2. यह एक निश्चित समय (सामान्यतः एक वर्ष) के लिये होता है।
3. बीमित क्षतिपूर्ति के लिए तभी उत्तरदायी होगा, जब आग क्षति का निकटतम कारण हो।
4. अग्नि बीमा क्षतिपूर्ति का अनुबंध होने से बीमा कम्पनी वास्तविक हानि की हो पूर्ति करती है।
5. अग्नि बीमा में आरम्भ से अन्त तक बीमा योग्य हित का पाया जाना अनिवार्य होता है। अतएव अंत में कहा जा सकता है कि बीमा कंपनी दावे के भुगतान में बीमा करायी गयी रकम और वास्तविक हानि में जो रकम कम होती है, उस रकम का भुगतान करती है।
3. समुद्री बीमा -
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में समुद्री यातायात का विशेष महत्व पाया जाता है। यातायात के अन्य साधनों की तुलना में समुद्री मार्ग से माल भेजने में अधिक जोखिम होता है। जैसे मार्ग में तूफान, जहाज का टकराना, जहाज के कप्तान का विश्वासघात करना, जहाज में आग लग जाना, समुद्री डाकुओं द्वारा जहाज लूट लेना, दैवी प्रकोप, देश के शत्रुओं द्वारा जहाज लूट लेना और दूसरे देश के महाराजा द्वारा अपनी सीमा में जहाज को रोक लेना आदि जोखिम हैं, जिन पर जहाजी कंपनी का कोई अधिकार नहीं है। अतः इन जोखिमों से बचने के लिये समुद्री बीमा कराना आवश्यक होता है। समुद्री बीमा के विकास का श्रेय यहूदियों को दिया जाता है जिन्होंने फ्रांस से विवश होकर हटने के बाद इसे व्यावसायिक आधार पर प्रारम्भ किया।
सन् 1310 में बेल्जियम में एक चैम्बर ऑफ इन्स्योरेन्स नामक संस्था की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य समुद्री बीमा करना था। 18 वीं शताब्दी में लायड्स के बीमाकर्ताओं ने समुद्री बीमा को व्यावसायिक रूप प्रदान किया। समुद्री बीमा के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
समुद्री बीमा अधिनियम की धारा 3 के अनुसार : 'समुद्री बीमा एक ऐसा प्रसंविदा है, जिसके अन्तर्गत बीमादाता संविदा में वर्णित विधि एवं सीमा तक बीमादार की सामूहिक हानियों की पूर्ति का दायित्व ग्रहण करता है।"
अतएव कहा जा सकता है कि जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से समुद्री बीमा कराया जाता है। इसमें एक पक्षकार समुद्री बीमा कम्पनी तथा दूसरा पक्षकार समुद्री यात्रा में उपयोग किये जाने वाले जहाज का मालिक अथवा जहाज पर लदे माल का मालिक होता है। बीमादाता द्वारा भुगतान किया गया प्रीमियम बीमा कम्पनी को प्रतिफल के रूप में प्राप्त होता है।
समुद्री संकटों से बचने के लिये निम्नलिखित सामान का समुद्री बीमा कराया जाता है
(क) माल का बीमा
(ख) जहाज का बीमा
(ग) किराये का बीमा
(घ) दायित्व का बीमा
इस प्रकार समुद्री बीमा क्षतिपूर्ति का यह अनुबन्ध है, जिसमें बीमा कंपनी प्रीमियम के बदले में बीमादारी के जहान माल या भाड़े की सामुद्रिक जोखिमों के कारण हुई क्षति की पूर्ति करने का आश्वासन देती है।
समुद्री बीमा संविदा के वैध होने के लिये निम्न तत्वों का पाया जाना आवश्यक है
1. अन्य प्रसंविदा की भाँति सामुद्रिक बीमा संविदा में भी दो पक्षों का होना आवश्यक है।
2. दोनों पक्षों की संविदा सहमति स्वतंत्र तथा स्वीकृति से होनी चाहिये।
3. संविदा वैध होने के लिये आवश्यक है कि संविदा करने वाले योग्य हों।
4. संविदा विधि निहित उद्देश्य से की गयी हो।
5. बीमा संविदा का प्रतिफल भी वैध तथा उचित होना चाहिये।
6. इसमें भी बीमा योग्य हित का पाया जाना अनिवार्य है।
7. सामुद्रिक बीमा भी परम सविश्वास पर आधारित होता है।
8. इसमें भी वारण्टी का पालन किया जाना आवश्यक है।
9. कुछ अन्य शर्तें इस प्रकार हैं- 1. यात्रा परिवर्तन 2. यात्रा में विलम्ब 3. यात्रा में विचलन।
4. सामाजिक बीमा -
सामाजिक बीमा की उत्पत्ति इंग्लैंड में हुई तथा इस क्षेत्र में यह सबसे आगे है। मानव जीवन की कुछ अनिश्चितता में है, जो सामाजिक व्यवस्था की बुराइयों से उत्पन्न होती हैं। सामाजिक व्यवस्था की बुराइयों से उत्पन्न अनिश्चितताओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने के लिये ही सामाजिक बीमा का विकास हुआ है। सामाजिक बुराइयों से अभिप्राय बीमारी, वृद्धावस्था, कारखाने को दुर्घटना तथा बेरोजगारी आदि से है। इन बुराइयों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना ही सामाजिक बीमा होता है। इस प्रकार के बीमे में सरकार, नियोक्ता तथा कर्मचारी तीनों का योगदान होता है। इस बीमे का उद्देश्य सामाजिक अव्यवस्था को दूर करके अभावग्रस्त व्यक्तियों की सहायता करना होता है।
सर विलियम वेवरिज के शब्दों में : “अंशदान के बदले व्यक्तियों को अधिकार के रूप में निर्वाह स्तर तक सुविधाएं प्रदान कर देना ही सामाजिक बीमा है, ताकि वे निश्चिन्त होकर जीवन यापन कर सकें।"
वास्तव में सामाजिक बीमा अभाव तथा पीड़ा से मुक्ति दिलाता है। यही नहीं यह लोगों के जीवन स्तर को उच्च बनाने का प्रयास करता है। आज के युग में प्रत्येक देश में सामाजिक बीमा की विविध योजनाएं चल रही हैं। हमारे देश में सन् 1948 में राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम इसी ध्येय से बनाये गये हैं।
सामाजिक बीमा के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के बीमा को सम्मिलित किया जाता है
1. वृद्धावस्था का बीमा
2. बेरोजगारी बीमा
3. व्यावसायिक बीमा
4. रोगावस्था का बीमा
5. पेंशन की बीमा
6. मातृत्व का बीमा
7. असमर्थता बीमा
5. विविध बीमा -
विविध बीमा के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के बीमा को रखा जाता है
1. मोटर बीमा
2. वैयक्तिक दुर्घटना बीमा
3. चोरी बीमा
4. फसल बीमा
5. पशु बीमा
6. हवाई जहाज या वायुयान बीमा
7. सामूहिक बीमा योजना
8. निष्ठा गारन्टी बीमा
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