सरकारी कम्पनी का अर्थ, विशेषताएं, गुण एवं दोष

सरकारी कम्पनी का अर्थ, विशेषताएं, गुण एवं दोष
सरकारी कम्पनी 

अनेक सार्वजनिक उपक्रम कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित किये जाते हैं। चूँकि इन कंपनियों पर सरकार का स्वामित्व होता है। इसलिये इन्हें सरकारी कम्पनी भी कहा जाता है। यही नहीं हमारे देश की अर्थव्यवस्था में राज्य का विशेष महत्व है। यही कारण है कि राज्य ने अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने तथा सीमित दायित्व का लाभ उठाने के लिये कम्पनी व्यवस्था का सहारा लेकर सरकारी कंपनियां बनायी है। सरकारी कंपनी वह कंपनी होती है जिसके कम से कम 51 प्रतिशत अंश सरकार ने लिये हो। भारत में सर्वप्रथम 1956 में कम्पनी अधिनियम में सरकारी कंपनियों को पृथक रूप से मान्यता दी गयी।


सरकारी कम्पनी का अर्थ


कम्पनी अधिनियम की धारा 617 के अनुसार : "सरकारी कम्पनी से अभिप्राय एक ऐसी कम्पनी से है। जिसकी प्राप्त अंश पूंजी का कम से कम 51 प्रतिशत भाग केन्द्रीय सरकारी या किसी राज्य सरकार या सरकारी या केन्द्रीय और अंशतः एक या अधिक राज्य सरकारों के पास हो। इसके अन्तर्गत वह कम्पनी भी शामिल की जाती है जो सरकारी कंपनी की सहायक कम्पनी हो।


प्रत्येक सरकारी कम्पनी की रिपोर्ट संसद के सामने प्रस्तुत की जाती है। हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लि. सिंदरी फर्टिलाइजर लि., हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि., हिन्दुस्तान स्टील लि., हिन्दुस्तान शिपणार लि. तथा इंडियन टेलीफोन इण्डस्ट्रीज लि. आदि प्रमुख सरकारी कम्पनियाँ हमारे देश में पायी जा रही हैं। 

ये कम्पनियों 2 प्रकार की होती हैं

(क) पूर्ण स्वामित्व वाली सरकारी कंपनियां - इसके सभी अंश सरकार के हाथ में होते हैं।

(ख) मिश्रित स्वामित्व वाली कम्पनियाँ - जो सरकार और जनता दोनों से अपनी पूंजी प्राप्त करती है, लेकिन अधिकांश पूंजी सरकार से प्राप्त की जाती है।

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सरकारी कम्पनी की विशेषताएँ 


1. एक सरकारी कंपनी का पंजीयन कम्पनी अधिनियम 1956 के अधीन संयुक्त पूँजी कम्पनी की भाँति ही होता है। इसके कार्य संचालन के लिये कम्पनी अधिनियम के सभी नियम लागू होते हैं।

2. एक सरकारी कंपनी के अधिकांश अंश सरकार, केंद्रीय या राज्य या दोनों के द्वारा संयुक्त रूप से खरीदे जाते हैं।

3. संचालक मंडल की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है। 

4. एक सरकारी कम्पनी स्वायत्ततायी संस्था होती है जो संबंधित मंत्रालय के नियंत्रण अधीन कार्य करती है। 

5. कम्पनी के कर्मचारी कम्पनी द्वारा अपनी शर्तों पर नियुक्त किये जाते हैं।

सरकारी कम्पनी के लाभ 


1. मूल उद्योगों का विकास करना - 

प्रायः यह देखा गया है कि देश के आर्थिक विकास हेतु आधारभूत तथा मूल उद्योगों की आवश्यकता होती है। इन उद्योगों में पर्याप्त मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि इन उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित नहीं किया जा सकता है। दूसरे इसके अंतर्गत लाभ भी देर से प्राप्त होते हैं। इसलिए निजी क्षेत्र के उपक्रम इस कार्य को करने में असमर्थ होते हैं। अतएव इन उद्योगों के विकास हेतु सरकारी कम्पनी आवश्यक होती है।

2. एकाधिकार में कमी करना -

प्रायः यह देखा गया है कि निजी साहसी शैनेः शैनेः उद्योगों की स्थापना करने के बाद इसे एकाधिकार की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं। एकाधिकार कायम होने पर यह जनता का शोषण करने लगते हैं। दीर्घकाल में कभी-कभी सरकार को इन उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना पड़ता है। इसलिए कहा जाता है कि सरकारी कंपनी वाले उद्योगों में इस प्रकार की भावना का अभाव होता है। अतः सरकारी कंपनियां इस प्रवृत्ति को समाप्त करती है। 

3. राष्ट्रीय आय में वृद्धि का साधन - 

सरकारी कंपनियों के संचालन से जो लाभ प्राप्त होता है वह सरकारी लाभ होता है जिस पर सम्पूर्ण देशवासियों का अधिकार होता है । इसलिए कहा जाता है कि इन सरकारी कंपनियों के लाभ से सरकारी आय में वृद्धि होना स्वाभाविक होता है। यही नहीं इस आय का अधिकांश भाग देश की जनता पर व्यय किया जाता है। इस प्रकार के व्यय से निम्न वर्ग के लोगों को लाभ होता है। इस प्रकार आय की विषमता में कमी आती है। 

4. औद्योगिक विकास में सहायक -

निजी कंपनियों की तुलना में सरकारी कंपनियां औद्योगिक विकास अधिक सहायक होती है। इसका कारण यह है कि ये कंपनियां निजी लाभ की भावना से प्रेरित नहीं होती है तथा ये देश के वातावरण के अनुकूल भी होते हैं। इसलिए ये औद्योगिक विकास के साथ-साथ आर्थिक विकास की गति को भी तेज करती हैं। यही कारण है कि इसके माध्यम से देश के आर्थिक विकास को तीव्र गति से किया जा सकता है। अतएव ये सरकारी कंपनियां विकास के लिये आधार प्रदान करती हैं।

5. विशेष अधिनियम की आवश्यकता नहीं - 

इन सरकारी कंपनियों की स्थापना के लिये किसी विशेष अधिनियम को आवश्यकता नहीं पड़ती है। सार्वजनिक कंपनियों की भाँति इन सरकारी कंपनियों को भी कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत आसानी से स्थापित किया जा सकता है। साथ ही साथ इनकी स्थापना करने के लिए किसी विशेष औपचारिकताओं को आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए कहा जाता है कि बहुत सार्वजनिक उपक्रम कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित किये जाते हैं उनमें यह भी एक होता है। 

6. पर्याप्त स्वतंत्रता तथा लोच -

प्रायः देखा गया है कि सरकारी कंपनी को कंपनी अधिनियम के अन्तर्गत पृथक रूप से अस्तित्व या मान्यता दी गयी है। सार्वजनिक क्षेत्र के बढ़ते हुये इन सरकारी कंपनियों को प्रबन्ध तथा वित्त सम्बन्धी मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता होती है। इस इसमें पर्याप्त लोच पायी जाती है। अन्त में यह कहना उचित होगा कि यद्यपि इन पर सरकार का स्वामित्व तथा नियंत्रण होता है। फिर भी इन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है। इसीलिये इनके द्वारा कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न किये जाते हैं। यही इसका काम है। 

7. अकुशल उद्योगों का अन्त - 

जन कल्याण के लिये यह आवश्यक है कि देश के उत्पादन में वृद्धि हो तथा प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि हो, किन्तु ये सभी उद्देश्य तभी पूरे हो सकते हैं, जबकि देश में अनुकूल वातावरण औद्योगिक विकास के लिये पाया जाता हो। इसलिए इन कंपनियों के संचालन हेतु हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि ऐसे उद्योग जिनमें अकुशल कर्मचारी एवं प्रबन्धक कार्य करते हैं तथा जिनमें पारस्परिक स्पर्धा अधिक पायी जाती है उन्हें सरकारी कंपनियों को स्थापित करके समाप्त कर दिया जाता है। इस प्रकार अकुशल उद्योगों का अपने आप अंत हो जाता हैं

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सरकारी कंपनियों के दोष 


सरकारी कंपनियों के उपर्युक्त लाभों को देखते हुए यह नहीं समझना चाहिए कि ये दोषमुक्त हैं। अन्य संस्थाओं की भौति इसमें भी निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं

1. लालफीताशाही का बोलबाला -

इन सरकारी कंपनियों का सबसे मुख्य दोष यह है कि इनमें लालफीताशाही का बोलबाला होता है। इन कंपनियों की स्वायत्तता केवल नाममात्र की होती है। सम्पूर्ण कार्यों पर नियंत्रण सरकार का ही होता है। सरकारी कर्मचारी प्रायः कार्यों पर ध्यान न देकर अपना समय अन्य बातों में व्यतीत करते रहते हैं। वे कार्यों में कोई विशेष रुचि नहीं रखते हैं। इस प्रकार सेवा की भावना का अभाव पाया जाता है।

2. प्रबन्ध की शिथिलता - 

प्रायः इन कंपनियों में प्रबंध व्यवस्था का अभाव पाया जाता है। इनमें सचिवों तथा उपसचिवों को संचालक बना दिया जाता है। प्रायः यह देखा गया है कि इसके संचालक मंडलों के पास 6. जनता में संदेह, पहले से ही विभिन्न प्रकार के सरकारी कार्यों का बोझ होता है। इस कारण वे लोग कम्पनी के कार्यों पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते हैं। यही कारण है कि कंपनियों के प्रबंध तथा संचालन व्यवस्था में शिथिलता आ जाती है।

3. कर्मचारियों का स्थानांतरण - 

सरकारी कंपनियों में काम करने वाले व्यक्ति सरकारी कर्मचारी होते हैं। इनका समय-समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण होता रहता है। इस कारण कर्मचारी वर्ग अपने कार्यों में कोई विशेष रुचि नहीं रखते हैं। इसलिए कहा जाता है कि ऐसे कर्मचारियों में कुशलता, कार्य के प्रति रुचि, लगन एवं दक्षता का अभाव पाया जाता है। अतएव इन कंपनियों का कार्य अत्यंत धीमी गति से संचालित होता है।

4. प्रबन्धक औद्योगिक व्यक्ति नहीं होते -

इन सरकारी कंपनियों के प्रबंधक औद्योगिक एवं व्यावसायिक जगत के कार्यों से अनभिज्ञ होते हैं। इस अनभिज्ञता के कारण उन्हें कम्पनी के कार्यों में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समझने तथा उनके समाधान हेतु अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस कारण भी कंपनी के संचालन व्यवस्था में रुकावटें आती हैं तथा कार्य में शिथिलता आती है। इसलिए कहा जाता है कि इन कंपनियों की प्रगति में औद्योगिक ज्ञान का अभाव बाधक माना जाता है।

5. अनुचित सरकारी हस्तक्षेप - 

सरकारी कंपनियों में निजी व्यवसायियों की भांति लाभ-हानि की कोई चिंता नहीं होती है। सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को केवल अपने वेतन को ही चिंता रहती है। काम करने के समय पर भी विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है कभी-कभी बड़े अधिकारियों द्वारा कंपनी के कार्यों में अनुचित रूप से हस्तक्षेप भी किया जाता है। इसी कारण कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों में कुशलता का अभाव पाया जाता है। 

6. जनता में सन्देह - 

सार्वजनिक निगमों की तरह सरकारी कम्पनी खुले रूप से कार्य नहीं करती है। इनके तमाम कार्यों में पूर्णतया गोपनीयता पाई जाती है। ये कंपनियां अपने गुप्त सौंदे करती हैं तथा अपने कर्मचारियों का चयन भी गोपनीय ढंग से करती है। इस कारण इन कंपनियों की कार्यप्रणाली के प्रति जनता में अविश्वास की भावना पाई जाती है।

7. अप्रभाव पूर्ण नियंत्रण - 

इन कंपनियों में अप्रभावपूर्ण नियंत्रण का भी दोष पाया जाता है। भारत में सरकारी कम्पनी संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है। सरकार के कम्पट्रोलर तथा आडिटर जनरल को इनके खातों का लेखा परीक्षण करने का कोई अधिकार नहीं होता। फलतः इन पर सरकारी नियंत्रण ढीला रहता है।

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