आर्थिक संवृद्धि
आधुनिक युग आर्थिक विकास का युग है। द्वितीय महायुद्ध के पहले आर्थिक विकास की कोई चर्चा नहीं की जाती थी, क्योंकि अधिकांश विकसित देश महायुद्ध में व्यस्त थे। लेकिन द्वितीय महायुद्ध के बाद पचास के दशक में एशिया, अफ्रीका के अनेक देशों को राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।
आर्थिक संवृद्धि |
सैकड़ों वर्ष की गुलामी के कारण इन देशों में व्यापक निर्धनता, बेरोजगारी तथा आय एवं धन की असमानता उत्पन्न हो गयी थी, अतः इन समस्याओं को दूर करने के लिए इन देशों में आर्थिक विकास को महत्व दिया जाने लगा। वहीं दूसरी ओर विकसित देशों की मुख्य समस्या अपनी आर्थिक वृद्धि दर को बनाये रखने की थी।
विकसित तथा विकासशील देशों के बीच बढ़ती हुई असमानता ने विकासशील अथवा अर्धविकसित देशों के लोगों में आर्थिक विकास के लिए चेतना का संचार कर दिया है तथा वे आर्थिक विकास को गरीबी दूर करने की अचूक औषधि मानने लगे हैं। इसलिए इन देशों में आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है
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आर्थिक संवृद्धि का अर्थ
सामान्यतया, आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास को एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में माना जाता है, लेकिन शुम्पीटर, श्रीमती उर्सला हिक्स, एल्फर्ड बोन तथा डॉ. ब्राहट सिंह आदि विद्वान इन दोनों शब्द में अन्तर करते हैं।
आर्थिक संवृद्धि की परिभाषा
1. किण्डल बर्जर के अनुसार - आर्थिक संवृद्धि से आशय अधिक उत्पादन से है।
2. शुम्पीटर के अनुसार - आर्थिक संवृद्धि से अर्थ परम्परागत, स्वचालित एवं नियमित विकास से है।
3. प्रो. रोस्टोव के अनुसार - आर्थिक संवृद्धि एक ओर पूँजी व कार्यशील शक्ति में वृद्धि की दरों के बीच तथा दूसरी और जनसंख्या वृद्धि की दर के बीच ऐसा संबंध है जिससे प्रतिव्यक्ति उत्पादन में वृद्धि होती है।
4. श्रीमती उर्सला हिक्स के अनुसार - आर्थिक संवृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध में किया जाता है, जहाँ पर साधन ज्ञात और विकसित हैं।
5. प्रो. मेडीसन के अनुसार - आय का बढ़ता हुआ स्तर धनी देशों में सामान्यतः आर्थिक वृद्धि कहलाता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि आर्थिक संवृद्धि तभी सम्भव है, जब राष्ट्रीय आय एवं प्रतिव्यक्ति आय दीर्घकाल में निरंतर नियमिक रूप बढ़ती जाये।
अनियमित अथवा अकस्मात वृद्धि आर्थिक विकास कहलाएगी। आर्थिक संवृद्धि का संबंध उत्पादन, नवीन तकनीक एवं संस्थागत सुधारों के समन्वय से है।
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