अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं को समझाइए | Central problems of an economy in hindi

अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या


यह सर्वविदित है कि साधनों की सीमितता ही समस्त आर्थिक समस्याओं की जननी है। चूँकि सीमितता सब देशों एवं समयों में पायी जाती है। 


अतः आर्थिक समस्या भी सभी देशों एवं सभी समयों में पायी जाती है। सीमितता से उत्पन्न इस आर्थिक समस्या का जब गहन अध्ययन किया जाता है, तो इसके कई रूप सामने आते हैं। इन्हें ही अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय या आधारभूत समस्याएँ कहते हैं। 


प्रत्येक अर्थव्यवस्था चाहे पूँजीवादी हो या समाजवादी हो या मिश्रित हो, विकसित हो या अर्धविकसित हो, छोटी हो या बड़ी हो, सभी में ये समस्याएँ पायी जाती हैं। 


अतः प्रत्येक अर्थव्यवस्था को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इनका समाधान भी करना पड़ता है। इसीलिए इन्हें अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ कहा जाता है।


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अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या

एक अर्थव्यवस्था की प्रमुख केन्द्रीय अथवा आधारभूत समस्याएँ निम्नांकित हैं -


1. किन वस्तुओं एव सेवाओं पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में किया जाए? 

2. वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए?

3. उत्पादन किसके लिए किया जाए? 

4. संसाधनों का पूर्ण उपयोग कैसे हो?

5. संसाधनों का विकास कैसे हो?


1. किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए?


यह सर्वविदित है कि मानवीय आवश्यकताओं की तुलना में संसाधन सीमित हैं। अतः हम सभी वस्तुओं का उत्पादन उतना नहीं कर सकते, जितना कि हम उत्पादन करना चाहते हैं। 


संसाधनों के बँटवारे तथा परिणामस्वरूप चुनाव की समस्या के लिए हमें यह निर्णय लेना होता है कि किन वस्तुओं तसा सेवाओं का उत्पादन किया जाए और किनका नहीं। 


हमें यह भी निर्णय लेना होता है कि किन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि को प्राथमिकता दी जाए और किन के लिए थोड़ा इन्तजार किया जाए। जिन आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने का निर्णय ले लिया जाता है, 


किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए विषय में दो बातें तय करनी पड़ती हैं -


(i) एक तो यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए? उदाहरण के लिए, कौन-सी उपभोक्ता वस्तुओं जैसे -  चीनी, कपड़ा, गेहूँ, घी आदि का उत्पादन किया जाए तथा कौन-सी पूँजीगत वस्तुओं जैसे - मशीनों, ट्रैक्टरों आदि का उत्पादन किया जाए ? इसी प्रकार यह चुनाव करना पड़ता है कि कौन-सी युद्धकालीन वस्तुओं जैसे - बन्दूकों, तोपों, टैंकों का उत्पादन किया जाए तथा कौन-सी शीतकालीन वस्तुआ जैसे - ब्रेड, मक्खन, बिस्कुट आदि का उत्पादन किया जाए।


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(i) जब एक अर्थव्यवस्था यह तय कर लेती है कि कौन-सी वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करना है तो उसे यह भी निर्णय लेना पड़ता है कि उन वस्तुओं का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए? यह निर्णय लेना पड़ता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए तथा पूँजीगत वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए ? उदाहरण के लिए, यदि कोई अर्थव्यवस्था एक निश्चित समय में अपने सीमित संसाधनों द्वारा कपड़े तथा गेहूँ का अधिक उत्पादन करना चाहेगी, तो उसे मशीनों का उत्पादन कम करना पड़ेगा। वास्तव जिनसे उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का तथा उतनी ही मात्रा में उत्पादन करते हैं, 


2. वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए?


उत्पादन किस प्रकार किया जाए' एक अर्थव्यवस्था को दूसरी केन्द्रीय समस्या है। उत्पादन किस प्रकार किया जाए का अर्थ है कि उत्पादन का संगठन कैसे किया जाए? इस समस्या का सम्बन्ध उत्पादन की तकनीक का चुनाव करने से है। 


उदाहरण के लिए, कपड़े का उत्पादन हाथकरणों को सहायता से हो सकता है अथवा आधुनिक मशीनों द्वारा किया जा सकता है। उत्पादन को कई तकनीकों को अपनाया जा सकता है। 


(i) श्रम प्रधान तकनीक-इस तकनीक में श्रम का उपयोग पूँजी की तुलना में अधिक किया जाता है।

 

(ii) पूँजी प्रधान तकनीक-इस तकनीक में पूँजी का उपयोग श्रम की तुलना में अधिक किया जाता है। एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना पड़ता है कि वह कौन-सी तकनीक का प्रयोग किस उद्योग में करे, जिसमें उत्पादन अधिक कुशलतापूर्वक किया जा सके। 


उत्पादन की विभिन्न तकनीकों में सबसे कुशल तकनीक वह तकनीक है जिसके प्रयोग से समान मात्रा का उत्पादन करने के लिए सीमित साधनों की सबसे कम आवश्यकता होती है अर्थात् उत्पादन न्यूनतम लागत पर किया जाना चाहिए। किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की कौन-सी तकनीक अपनाई जाए यह संसाधनों को उपलब्धता तथा उनके सापेक्षिक मूल्यों पर निर्भर करेगा।


3. उत्पादन किसके लिए किया जाए?


एक अर्थव्यवस्था की तीसरी केन्द्रीय समस्या यह है कि उत्पादन किसके लिए किया जाए। यह निर्णय लेते समय कि 'क्या उत्पादन किया जाए हम इस निर्णय की उपेक्षा नहीं कर सकते कि उत्पादन किसके लिए किया जाए। आवश्यक रूप से यह अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण की समस्या है। 


दूसरे शब्दों में, यह उत्पादन के वितरण की समस्या है। किसी भी अर्थव्यवस्था में उत्पादन का मूल्य, आय के मूल्य के समान होता है। इसलिए उत्पादन के वितरण की समस्या का अर्थ आय के वितरण की समस्या है। इसके मुख्य दो पहलू हैं -


(i) प्रथम पहलू का सम्बन्ध व्यक्तिगत वितरण से है। इसका अभिप्राय यह है कि उत्पादन का समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा परिवारों में किस प्रकार वितरण किया जाए।  इसका सम्बन्ध आय के वितरण की असमानता की समस्या से भी है। वितरण की समस्या का एक दूसरा पहलू कार्यात्मक वितरण है।


(ii) विभिन्न साधनों अर्थात् भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम में उत्पादन का बँटवारा कैसे हो। इसका सम्बन्ध आय के वितरण को असमानता से नहीं है


4. संसाधनों का पूर्ण उपयोग कैसे हो?


एक अर्थव्यवस्था की मुख्य केन्द्रीय समस्या सभी संसाधनों का पूर्ण उपयोग करना अर्थात् पूर्ण रोजगार प्रदान करना है। लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के संसाधन जैसे - भूमि, श्रम तथा पूँजी का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है, कारखाने बन्द रहते हैं, मजदूर बेरोजगार रहते हैं या भूमि का पूरा उपयोग नहीं हो पाता। लेकिन प्रत्येक अर्थव्यवस्था में उत्पादन के संसाधन सीमित होते हैं। 


इसलिए सीमित संसाधनों का उपयोग न करना या उनका कम उपयोग करना अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक या अपव्यय होता है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि सभी संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जाए कोई भी संसाधन बिना उपयोग के न रहे तथा न ही उनका उपयोग कम हो। 


प्रत्येक अर्थव्यवस्था अनैच्छिक एवं अन्य प्रकार की बेरोजगारी को दूर करने का प्रयत्न करती है। एक अर्थव्यवस्था को यह भी ध्यान में रखना पड़ता है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति में कीमत में स्थिरता बनी रहनी चाहिए।


5. संसाधनों का विकास कैसे हो?


प्रत्येक अर्थव्यवस्था की एक अन्य मुख्य समस्या उत्पादन के स्तर में वृद्धि करना है। इस समस्या को ही आर्थिक विकास की समस्या कहा जाता है। 


आर्थिक विकास से अभिप्राय है प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में निरन्तर वृद्धि प्रत्येक अर्थव्यवस्था के सामने यह समस्या होती है कि अपनी उत्पादन क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए, जिससे अधिक उत्पादन किया जा सके। एक अर्थव्यवस्था तकनीकी प्रगति करके या नयी वस्तुओं का उत्पादन करके आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। 


इसके लिए पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है। पूँजी निर्माण के लिए वर्तमान उपभोग का त्याग करना पड़ता है। इसलिए आर्थिक विकास लागत भावी विकास के लिए वर्तमान उपभोग का त्याग है। आर्थिक विकास द्वारा सामाजिक न्याय तथा समानता के लक्ष्य को भी प्राप्ति होनी चाहिए।


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