भारत में आर्थिक नियोजन: अर्थ, परिभाषा, विशेषता, महत्व और आवश्यकता | Economic Planning in India in hindi

आर्थिक नियोजन 20 वीं शताब्दी की देन है। आधुनिक युग में संसार के सभी देशों में आर्थिक नियोजन का प्रयोग किया जा रहा है। वर्तमान में आर्थिक नियोजन को समस्त आर्थिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए रामबाण औषधि माना जाता है। 


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भारत में आर्थिक नियोजन

भारत के भूतपूर्व वित्तमंत्री श्री टी. टी. कृष्णामचारी ने कहा था कि - “आध्यात्मिक क्षेत्र में जो महत्व ईश्वर का है, आर्थिक क्षेत्र में वही महत्व आर्थिक नियोजन का है।" 


आर्थिक नियोजन का सर्वप्रथम प्रयोग सोवियत रूस ने सन् 1928 में किया था। में नियोजन की अभूतपूर्व सफलता से योजना के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा। इसलिए विकासशील देशों ने अपने देश का तीव्रगति से आर्थिक विकास करने के लिए आर्थिक नियोजन का प्रयोग किया। 



वर्तमान में सोवियत रूस के विघटन एवं साम्यवादी देशों में हुए परिवर्तनों के कारण आज विश्व के देश बाजारोन्मुखी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर फिर से मुड़ रहे हैं। 


इसके बावजूद भी आर्थिक नियोजन का अपना विशेष महत्व है, क्योंकि आर्थिक नियोजन कल्याणकारी राज्य के आदर्शों को प्राप्त करने का एक मात्र साधन माना जाता है। 


आर्थिक नियोजन का अर्थ 


आर्थिक नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत किसी देश के साधनों को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित समय में आर्थिक विकास के निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। 


आर्थिक नियोजन से तात्पर्य, उस तरीके से है, जिसमें एक केन्द्रीय योजना अधिकारी (जैसे-भारत में योजना आयोग) देश के साधनों को ध्यान में रखते हुए निश्चित समय में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक कार्यक्रमों तथा नीतियों को लागू करता है। 



इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों, जैसे- कृषि, उद्योग एवं सेवा आदि के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। इन लक्ष्यों को एक निश्चित समयावधि में पूरा करने के लिए देश के सीमित संसाधनों के प्रयोग की एक रणनीति तैयार की जाती है। 


इस रणनीति के विभिन्न कार्यक्रमों को एक केन्द्रीय सत्ता की देख-रेख में इस प्रकार कार्यान्वित किया जाता है, कि सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग हो और निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके।


आर्थिक नियोजन की परिभाषा 


1. प्रो. रॉबिन्स के अनुसार, - "नियोजन से तात्पर्य उत्पादन पर किसी भी प्रकार के राजकीय नियंत्रण से है।" 


2. डॉल्टन के अनुसार, - “आर्थिक नियोजन अपने व्यापक अर्थ में, विशाल साधनों के संरक्षण व्यक्तियों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आर्थिक क्रियाओं का इच्छित निर्देशन है।


3. गुन्नार मिर्डल के अनुसार, - “आर्थिक नियोजन राष्ट्रीय सरकार की व्यूह रचना का एक कार्यक्रम है, बाजार की शक्तियों के साथ-साथ सरकारी हस्तक्षेप द्वारा सामाजिक प्रक्रिया को ऊपर ले जाने के प्रयास किये जाते 



4. योजना आयोग के अनुसार, - “आर्थिक नियोजन का अर्थ है, स्वीकृत राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार दे साधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना।


5. एच. डी. डिकिन्सन के अनुसार, - आर्थिक नियोजन प्रमुख आर्थिक निर्णयों का निर्माण है, जिसमें स अर्थव्यवस्था में विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर एक निर्धारक सत्ता द्वारा सोच-विचार कर यह निर्णय किया जाता है, कि एवं कितना उत्पादन किया जायेगा और उनका वितरण किसको होगा।


उपर्युक्त परिभाषाओं से आर्थिक नियोजन की एक उचित परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है - “आर्थिक आर्थिक विकास की वह सतत् एवं दीर्घकालीन प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत राज्य आर्थिक शक्तियों एवं गतिविधियों को प्रकार नियंत्रित करता है, कि उपलब्ध साधनों का विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सर्वोत्तम उपयोग सके।" 


आर्थिक नियोजन की विशेषता


1. केन्द्रीय नियोजन सत्ता - 


आर्थिक नियोजन के लिए एक केन्द्रीय सत्ता की स्थापना की जाती है। यह सत्ता में उपलब्ध समस्त साधनों का सर्वेक्षण कराकर आर्थिक विकास के लिए कार्यक्रम सुनिश्चित करती है। 

इस प्रकार की सत्त या तो सरकार स्वयं होती है अथवा कोई अन्य संस्था होती है, जिसकी नियुक्ति सरकार करती है, जैसे-भारत में इस कार्य के लिए योजना- आयोग का गठन किया गया है। 


2. पूर्व निर्धारित उद्देश्य - 


आर्थिक नियोजन किसी निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है। आर्थिक नियोजन के उद्देश्य, भिन्न-भिन्न देशों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। सामान्यतया ये उद्देश्य होते हैं-रोजगार एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना, देश का तेजी से औद्योगीकरण अथवा अनाज के उत्पादन में आत्म-निर्भरता प्राप्त करना इत्यादि। 


3. एक निश्चित समयावधि - 


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत निश्चित किये गये उद्देश्यों को एक निश्चित समय में पूरा करने का प्रयत्न किया जाता है।



4. प्राथमिकताओं का निर्धारण - 


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत केन्द्रीय नियोजन इन सत्ता उद्देश्यों बीच प्राथमिकताओं का निर्धारण करती है। इसका कारण यह है कि साधन सीमित होते हैं, जबकि उद्देश्य अनेक प्रकार के होते हैं। 


सीमित साधनों से आर्थिक विकास के इन विभिन्न उद्देश्यों को एक निश्चित समयावधि में प्राप्त नहीं किया जा सकता, अतः इन उद्देश्यों के बीच साधनों का वितरण एवं प्रयोग प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है।


5. सम्पूर्ण कार्य नियोजन के अनुसार -


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत सभी आर्थिक क्रियाएँ एक निश्चित योजना के अनुसार की जाती हैं। योजना का उद्देश्य किसी विशेष पहलू का नियोजन न होकर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का नियोजन होता है। 


6. मूल्यांकन तंत्र का होना - 


आर्थिक नियोजन की सफलता को मापने के लिए देश में मूल्यांकन-तंत्र का होना आवश्यक होता है। यह तंत्र निष्पक्षता के साथ योजना की उपलब्धियों एवं कमियों को स्पष्ट करता है तथा लक्ष्यों को निर्धारित अवधि में प्राप्त करने के लिए आवश्यक सुझाव भी देता है। भारत में यह कार्य स्वयं योजना आयोग करता है अथवा उनके द्वारा गठित मूल्यांकन-तंत्र के द्वारा किया जाता है।



7. राज्य द्वारा हस्तक्षेप -


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत राज्य का हस्तक्षेप अथवा नियंत्रण आवश्यक माना जाता है। इसका कारण यह है, कि उत्पादन के साधनों पर राज्य का अधिकार होता है। राज्य के द्वारा ही उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है, अतः राज्य के हस्तक्षेप के बिना आर्थिक नियोजन की सफलता संदिग्ध होती है।


8. सामाजिक कल्याण में वृद्धि -


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत आर्थिक क्रियाओं का संचालन सामाजिक लाभ को अधिकतम करने के लिए किया जाता है, न कि व्यक्तिगत लाभ को। इसलिए आर्थिक नियोजन में उत्पादन के साथ-साथ वितरण का भी नियोजन किया जाता है, ताकि सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो सके।


9. आय व धन का उचित वितरण - 


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत आय व धन की असमानता को यथासंभव दूर करना एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इसके लिए रूस में निजी सम्पति के अधिकार को ही समाप्त कर दिया गया था। 


भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में निजी सम्पति के अधिकार को समाप्त नहीं किया गया है, लेकिन यहाँ भी नियोजन का एक प्रमुख उद्देश्य धन एवं आय के वितरण में असमानता को यथासंभव दूर करना है।


10. दीर्घकालीन प्रक्रिया -


आर्थिक नियोजन एक निरंतर एवं दीर्घकाल तक चलने वाली प्रक्रिया है। पं. जवाहर लाल नेहरू के अनुसार, “नियोजन वस्तुतः एक लगातार जारी रहने वाला क्रम है - नियोजन का अर्थ वस्तुओं को उत्पादन में प्राथमिकता देना ही नहीं है, बल्कि यह एक गम्भीर एवं विस्तृत विषय है। 



आर्थिक नियोजन की प्रथम बात यह है, कि इसमें लक्ष्य की एक निश्चित रूपरेखा होती है, लेकिन इस रूपरेखा के अत्यन्त दृढ़ होने की आवश्यकता नहीं है।


अतः आर्थिक नियोजन को व्यापक तथा पूर्ण बनाने के लिए मुख्य रूप से दीर्घकालीन नियोजन की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन इसमें अल्पकालीन योजनाएँ भी सम्मिलित की जा सकती हैं।


आर्थिक नियोजन का महत्व 


1. तीव्र आर्थिक विकास - 


अल्पविकसित देशों का आर्थिक विकास नियोजन के द्वारा ही संभव हो सकता है। इन देशों में आर्थिक विकास के लिए आर्थिक नियोजन का महत्व प्रेरणा आर्थिक नियोजन के द्वारा ही उत्पन्न होती है।


2. सीमित साधनों का अधिकतम प्रयोग - 


अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक साधनों की कमी होती है, सीमित साधनों से आर्थिक विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता, अतः नियोजन के द्वारा इन सीमित साधनों पर नियंत्रण कर सरकार प्राथमिकता के आधार पर इनका अधिकतम एवं श्रेष्ठतम उपयोग करती है।



3. सामाजिक न्याय एवं समानता की प्राप्ति - 


देश में सामाजिक समानता एवं सामाजिक न्याय की प्राप्ति आर्थिक नियोजन के द्वारा ही की जा सकती है। इसका कारण यह है कि आर्थिक नियोजन में सरकार लाभ कमाने की अपेक्षा सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने के लिए सेवाभाव से कार्य करती है, अतः धन एवं आय का वितरण लोगों की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। 


श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण कर उन्हें उचित पारिश्रमिक दिलाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार सामाजिक न्याय एवं समानता के लिए नियोजन आवश्यक है।


4. सामाजिक उपरिपूँजी का निर्माण - 


अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण बाधक तत्व इन देशों में सामाजिक उपरिपूँजी का अभाव होना है। इन देशों में परिवहन के साधनों, जैसे-रेल, सड़कों, जलयान एवं वायुयानों, सिंचाई के साधनों, विद्युत् शक्ति संचार के साधनों, बैंक बीमा कम्पनियाँ, बन्दरगाहों एवं तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों की कमी होती है। 


इनकी स्थापना के लिए बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है तथा इनसे लाभ भी दीर्घकाल में प्राप्त होता है, अतः निजी क्षेत्र इनमें पर्याप्त पूँजी नहीं लगा पाते हैं। सरकार आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत इनका विकास कर आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।


5. आर्थिक स्थिरता - 


अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाये रखना आर्थिक विकास के लिए परम आवश्यक है, अनियोजित अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र की घटनाएँ तेजो व मंदी की अवस्थाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। इससे अर्थव्यवस्था में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। 


विशेषकर मंदी के समय देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। सन् 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदो इसका उदाहरण है। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत सरकार अर्थव्यवस्था को नियंत्रित कर आर्थिक अस्थिरता को दूर करती है। 


6. जनसंख्या पर नियंत्रण -


अल्पविकसित देशों में तीव्रगति से बढ़ रही जनसंख्या इन देशों के आर्थिक विकास में बाधा बन गयी है। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत परिवार नियोजन एवं परिवार कल्याण पर विशेष बल देकर जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन ने प्रभावपूर्ण जनसंख्या नीति के द्वारा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। 


7. कल्याणकारी राज्य की स्थापना -


वर्तमान समय में सरकार का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। सरकार आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने के लिए शुद्ध पानी, ग्रामीण आवास, सड़क, विद्युतीकरण, सस्ते अनाज एवं कपड़े की व्यवस्था कर लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयत्न कर रही है। इस प्रकार आर्थिक नियोजन के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि पर अधिक ध्यान देकर लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देती है।


8. पूँजी का संचयन -


अल्पविकसित देशों में पूंजी की कमी होती है, अतः वे अपने देश में उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम उपयोग नहीं कर पाते हैं। नियोजन की सहायता से देश में पूँजी के संचयन एवं पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि की जा सकती है, सार्वजनिक क्षेत्र से प्राप्त बचतों एवं लाभों का उपयोग सरकार उद्योगों के विकास के लिए कर सकती है। 



इसके अतिरिक्त सरकार की साख व्यक्ति से अधिक होती है, अतः वह विदेशों से ऋण प्राप्त कर अथवा देश के भीतर सार्वजनिक ऋण प्राप्त कर पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि कर सकती है। इस प्रकार, औद्योगीकरण से के आर्थिक विकास को बढ़ाया जा सकता है।


9. तकनीकी विकास - 


अल्पविकसित देशों में तकनीकी ज्ञान का स्तर अत्यन्त पिछड़ा हुआ रहता है, अतः इन देशों में उत्पादकता का स्तर भी निम्न होता है एवं आर्थिक विकास की दर कम होती है, अतः आर्थिक विकास के लिए तकनीकी स्तर में सुधार आवश्यक है। 


आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत सरकार तकनीकी अनुसंधान पर किसी व्यक्ति अथवा संस्थान की तुलना में अधिक व्यय कर सकती है, अतः आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत तकनीकी विकास पर बल दिया जाता है तथा उत्पादकता स्तर में सुधार कर आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। 


10. संतुलित विकास - 


आर्थिक नियोजन के अंतर्गत कृषि, उद्योग, वन, व्यापार, व्यवसाय, परिवहन, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में विनियोग कर देश के संतुलित विकास को बढ़ावा दिया जाता है। नियोजन के अन्तर्गत सरकार पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना कर क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करती है।


आर्थिक नियोजन की आवश्यकता 


1. स्वतंत्र उपक्रम एवं पूँजीवाद के दोष - 


विश्व में प्रारंभ में पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली ही प्रचलित थी, लेकिन इसमें अनेक दोष पाये गये; जैसे- निर्धनों का शोषण, सीमित साधनों का अपव्यय, धन का असमान वितरण, व्यापारिक उयावचन आदि। इन्हीं दोषों के कारण आर्थिक नियोजन की आवश्यकता महसूस की गयी। 


देश के आर्थिक विकास के लिए नियंत्रण प्रणाली को अपनाना आवश्यक था, जो नियमन द्वारा ही संभव हो सकता था, अतः स्वतंत्र उपक्रम एवं पूँजीवाद के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से आर्थिक नियोजन का सहारा लिया गया। 


कीन्स ने भी पूँजीवाद की बराइयों को दूर करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप को उचित बताया। पूंजीवाद के दोषों से मुक्ति पाने के उद्देश्य से ही फ्रांस में प्रयोग एवं में न्यू डील कार्यक्रम प्रारंभ किये गये।


2. आर्थिक विचारधारा - 


वर्तमान समय में समाजवाद एवं आर्थिक नियोजन के विचार का विश्व के प्रायः सभी जीबादी देशों में पूँजीवाद के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से तथा समाजवादी देशों में समाजवाद के सिद्धांतों को अपनाने ने समर्थन किया। विश्व में समाजवाद के विकास ने इस विचार को और अधिक प्रभावित किया समय में उदेश्य से आर्थिक नियोजन का उपयोग बढ़ रहा है।


3. संगठन संबंधी आवश्यकताएँ -


अल्पविकसित देशों में आर्थिक नियोजन के लिए निम्नलिखित संगठन संबंधी आवश्यकताएँ होती हैं- 

(i) व्यापार व उद्योग का संगठन

(ii) अनुसंधान व सांख्यिकी का संगठन 

(iii) शासकीय संगठन 

(iv) वित्तीय संगठन

(v) परिवहन के साधनों का संगठन 

(vi) प्रसार एवं प्रचार का संगठन

(vii) कृषि का संगठन। 


4. जर्मनी व रूस की अभूतपूर्व सफलताएँ - 


जर्मनी में आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य सैनिक शक्ति बढ़ाना था। देश में व्याप्त बेरोजगारी को दूर करने जर्मनी ने सन् 1923 में 4 वर्षीय योजना का निर्माण किया, जिसमें उसे अपार सफलता मिली और उससे प्रेरित होकर सन् 1936 में द्वितीय योजना का निर्माण करके देश को सम्पूर्ण यूरोप में सर्वाधिक शक्तिशाली पूर्व ही पूर्ण होने से देश की अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ा। 


रूस की आर्थिक प्रगति का मुख्य कारण योजना का निर्माण हो रहा है। जिसकी सफलता से प्रेरित होकर ही विश्व के अन्य देशों पर भी व प्रभाव पड़ा। सन् 1930 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने जनता का पूँजीवाद से विश्वास उठा दिया। 


विश्व का ध्यान रूस की सफलता की ओर गया, जो उसने अल्पकाल में ही प्राप्त की। जर्मनी व रूस की सफलता से प्रेरित होकर ही विश्व के अन्य विकसित देशों ने आर्थिक नियोजन को विकास का आधार बनाया।


5. विश्व युद्धों के अनुभव -


युद्ध के समय विभिन्न देशों ने अपने सीमित साधनों का प्रयोग व्यवस्थित ढंग से युद्ध के कार्यों में ही किया तथा अनेक प्रकार के नियंत्रणों का प्रयोग किया गया। युद्ध के पश्चात् युद्ध जर्जरित देशों ने अपने पूर्व की स्थिति प्राप्त करने के उद्देश्य से नियोजित नीति का सहारा लिया। 


अमेरिका ने युद्ध जर्जरित देशों के पुनर्निर्माण एवं विकास के लिए 'मार्शल योजना' का निर्माण किया, जिसके द्वारा यूरोपीय देशों को निश्चित योजनाएँ बनाकर सहायता दी जाती थीं। इसी प्रकार युद्ध के पश्चात् विश्व के अनेक देशों में विनियोजन का प्रयोग एवं महत्व काफी बढ़ गया।

विश्व के अधिकांश देशों में तीव्र आर्थिक विकास के लिए नियोजन का सहारा लेना आवश्यक समझा जाने लगा। भारत ने भी रूस से प्रेरणा लेकर देश के विकास हेतु आर्थिक नियोजन का सहारा लिया था। 


6. अल्पविकसित देशों को स्वतंत्रता प्राप्त होना - 


द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् एशिया व अफ्रीका के कई उपनिवेशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, जिससे वहाँ की जनता में आर्थिक विकास की भावना जाग्रत हुई। इससे वहाँ सरकारी हस्तक्षेप एवं आर्थिक नियोजन को महत्व दिया गया। 


अल्पविकसित देशों ने तीव्र आर्थिक विकास के लिए नियोजन को आवश्यक माना है। इन देशों में अनेक प्रकार के दोषों ने भी आर्थिक निजोजन को लोकप्रिय बनाया। इन दोषों में आय व धन का असमान वितरण, कीमतों में वृद्धि, आदि प्रमुख हैं। 


देश में सामाजिक न्याय एवं समानता लाने के उद्देश्य से एवं आर्थिक विकास के लिए नियोजन की आवश्यकता या औचित्य का अनुभव किया गया।


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