सुपर बाजार से क्या आशय है, इसकी विशेषता, लाभ, दोष

सुपर बाजार से क्या आशय है, इसकी विशेषता, लाभ, दोष
सुपर बाजार से आशय 

सुपर बाजार से आशय 

सुपर बाजार शब्द अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों से बना है – Super+Bazar इसका आशय एक विशेष या असाधारण बाजार से होता है । वास्तव में सुपर बाजार से अभिप्राय: बड़े पैमाने की ऐसी फुटकर व्यापारिक संस्था से होता है जो विभिन्न fline प्रकार की वस्तुओं का विक्रय करती है। यह बाजार स्वयं सेवा के आधार पर चलाये जाते हैं। 


प्रो. कांडिफ एवम स्टिल के अनुसार : सुपर बाजार एक वृहत फुटकर भण्डार है जो विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता माल का विशेष रूप में खाद्य तथा गृह आवश्यकताओं की छोटी वस्तुओं का विक्रय करता है।


संक्षेप में सुपर बाजार से तात्पर्य उस बाजार से होता है जहाँ सामान्य घरेलू उपयोग की समस्त वस्तुयें बड़े पैमाने पर उचित कीमतों पर प्राप्त होती है। यह विभाग बहुत कुछ विभागीय भण्डार से मिलता जुलता है। इसी कारण इसे मिला जुला विभाग भी कहते हैं। सुपर बाजार का प्रादुर्भाव 1929 की महामन्दी के समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ है। अपनी विशेषताओं के कारण यह आज विश्व में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है। 


सुपर बाजार की विशेषतायें


1. सुपर बाजार बड़े पैमाने की फुटकर व्यापारिक संस्था होती है।


2. इसका संगठन विभागीय भण्डार के सिद्धान्त पर किया जाता है।


3. यह विभागीय भण्डार की भाँति विभिन्न वस्तुओं के विक्रय का कार्य करती है। 


4. इसका उद्देश्य सस्ती कीमत पर वस्तुओं को बेचना होता है।


5. इसमें मुख्य खाद्य पदार्थों तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं का विक्रय होता है।


6. इसमें विक्रेता नहीं होते हैं।


7. स्वयं सेवा के सिद्धान्त के आधार पर ग्राहक अपनी वस्तुयें चुनकर एकत्रित करता है। 


8. वस्तुओं का विक्रय केवल नकद के रूप में होता है।


9. यह प्रायः बड़े-बड़े शहरों में स्थिति होते हैं।


10. इसमें प्रायः वस्तुओं के अनुसार विभाग बना दिये जाते हैं


11. सुपर बाजार में पर्याप्त स्थान की व्यवस्था की जाती है। 


12. इस बाजार में क्रय से जो बचत होती है उसका लाभ ग्राहक को प्राप्त होता है।


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सुपर बाजार के लाभ 



1. अधिक विक्रय - 


एक ही स्थान पर उचित दामों पर उपभोग की समस्त आवश्यकताओं सम्बन्धी वस्तुएँ उपलब्ध करायी जाने के कारण विक्रय में तीव्र गति से वृद्धि होती है।


2. चयन की सुविधा -


इसमें ग्राहकों की अपनी पसन्द की वस्तुओं के चयन का अवसर प्राप्त होता है । इससे उपभोक्ताओं को उसकी रुचि के अनुसार वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। 


3. एक ही स्थान पर वस्तुओं की उपलब्धि -


इसमें एक ही स्थान पर उपभोक्ता को समस्त आवश्यक घरेलू वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है । अतएव ग्राहक को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं होती है।


4. समय की बचत - 


इसमें ग्राहकों के समय की पर्याप्त बचत होती है, क्योंकि इन्हें किसी से बातचीत करने या भावों के पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं होती है।


5. सस्ती वस्तुएँ - 


अधिक विक्रय तथा कम विक्रय व्यय होने के कारण माल सस्ता बेचा जा सकता है। यहाँ पर वस्तुओं का विक्रय निश्चित भावों पर होता । अतएव मोलभाव करने की जरूरत नहीं होती है तथा वस्तुएँ सस्ती मिल जाती हैं।


6. समस्याओं से मुक्ति -


इसमें विक्रेता नहीं होते हैं इसलिये विक्रेता कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं होती है । इस कारण यह व्यवसाय कर्मचारियों की समस्याओं से मुक्त होता है। 


7. रुपया डूबने का भय नहीं -


चौक वस्तुओं का विक्रय नकद होता है इसलिए रुपये के डूबने का भय नहीं रहता है इस कारण इसमें स्थिरता व निश्चितता रहती है।


18. बड़े पैमाने के व्यवसाय के लाभ -


सुपर बाजार में बड़े पैमाने पर कारोबार किया जाता है, इससे इसे वृहत पैमाने के सभी लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे क्रय से मितव्ययिता, विशेषज्ञों की नियुक्ति, स्वचालित यंत्रों का उपयोग आदि।



सुपर बाजार के दोष 



1. अत्यधिक पूँजी का आवश्यकता -


बड़े पैमाने के कारोबार में अत्यधिक पूँजी की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति करना साधारण व्यापारी की शक्ति के बाहर होती है।


2. उपयुक्त स्थान मिलने में कठिनाई -


चूँकि इसकी स्थापना नगर के मध्यम में तथा विशाल भवन में होनी चाहिये इसलिए कभी-कभी ऐसा स्थान मिलने में कठिनाई होती है। 


3. वस्तुओं के शीघ्र खराब होने का भय - 


यहाँ पर विशेषकर खाद्य पदार्थों का ही विक्रय किया जाता है जिनका अधिक समय तक संग्रह नहीं किया जा सकता है । अतएव इनके शीघ्र खराब होने का भय बना रहता है। 


4. परामर्श का अभाव - 


सुपर बाजार में कुशल विक्रेताओं के न होने के कारण ग्राहकों को वस्तुओं के चुनाव में तथा अनेक उपयोग करने के सम्बन्ध में परामर्श का अभाव होता है। 


5. साख का अभाव - 


इन बाजारों में ग्राहकों को उधार वस्तुएँ मिलने की सुविधा नहीं होती है, क्योंकि इसमें नकद सौदा होता है।


6. अनुपयुक्त -


यह विक्रय प्रणाली तकनीकी एवं भारी वस्तुओं के लिए अनुपयोगी व अनुपयुक्त होती है। इसमें पूँजी का अभाव पाया जाता है।


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