उद्योग क्या है? उद्योग कितने प्रकार के होते हैं?
दोस्तों आज हम उद्योग और उसकी कुछ विशेषता के साथ उद्योग के प्रकार के बारे में बात करेंगे, तो चलिये जानते है उद्योग के अर्थ को और उसके प्रकार को विस्तार से
प्रो. एम. आर. डावर का कथन है कि "उद्योग वाणिज्य का वह विभाग है, जो धन के उत्पादन से सम्बन्धित है।"
औद्योगिक वस्तुओं को उनके उपभोग के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि वस्तुओं का उपभोग अंतिम उपभोक्ता द्वारा किया जाता है तो उस वस्तु को उपभोक्ता वस्तु कहा जाता है। उपभोक्ता वस्तुओं के अन्तर्गत कपड़ा, बिस्कुट, टी.वी., पंखा आदि आते हैं। उत्पादक वस्तुओं के अंतर्गत मशीनरी, यंत्र तथा औजार आदि आते हैं, क्योंकि इन्हें दोबारा उत्पादन के लिये उपभोग में लाया जाता है। तीसरे वर्ग में मध्यवर्ती वस्तुएँ आती हैं। जिसे औद्योगिक उपक्रम द्वारा तैयार किया जाता है तथा अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। ऐसी वस्तुओं में सूती धागा, रबड़, प्लास्टिक को रखा जाता है।
प्रो. सार्नेन्ट फ्लोरेन्स के शब्दों में कहा जा सकता है कि "उद्योग से आशय निर्माण क्षेत्र से है जिसमें कृषि तथा खनिज सेवाएं आती हैं।
एक उद्योग में निम्नलिखित विशेषताएं पायी जाती हैं
1. उद्योग एक आर्थिक क्रिया है जिसमें मूल रूप को नवीन आकार प्रदान किया जाता है।
2. इसमें कच्चे माल या मूल उत्पादन का उपयोग किया जाता है।
3. इसमें वस्तुओं को इस योग्य बनाया जाता है कि उसका पुन: उपयोग किया जा सके।
4. उद्योग की क्रिया से वस्तुओं की लागत में वृद्धि होती है।
5. प्रायः यह कहा जाता है कि उद्योग से निर्मित माल अधिक आकर्षक होता है।
6. इसके अन्तर्गत वस्तुओं को बिक्री योग्य बनाया जाता है।
7. अन्त में यह कहना उचित होगा कि उद्योग कला एवं विज्ञान दोनों है।
उद्योग मुख्यतः 2 प्रकार के होते हैं
(क) प्राथमिक उद्योग (Primary Industry)
(ख) द्वितीयक उद्योग (Secondary Industry)
इसी प्रकार द्वितीयक उद्योगों को भी दो भागों में विभाजित किया जाता है
(i) निर्माणकारी उद्योग
(ii) रचनात्मक या निर्माणकारी उद्योग
अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से औद्योगिक क्रियाओं को प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों के रूप में विभाजित किया जाता है।
प्राथमिक उद्योग को पुनः दो भागों में बाँटा जाता है–
(i) निस्सारक या निष्कर्षण उद्योग
(ii) जननिक
(1) निस्सारक या निष्कर्षण उद्योग -
इसके अन्तर्गत वे उद्योग आते हैं, जिनका सम्बन्ध प्रकृति की गोद से मानवीय प्रयासों से निकाली गयी वस्तुओं या पदार्थों से होता है। इस प्रकार के उद्योग भूमि या जल के नीचे से किसी न किसी की वस्तुओं को प्राप्त करके धन अर्जित करने में व्यस्त रहते हैं। उदाहरणार्थ, कोयला, लोहा, मैगनीज, तेल निकालना, मछली पकड़ना तथा शिकार करना इसी प्रकार के उद्योग में आते हैं। इन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है तथा इनके द्वारा अन्य वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। इन्हें द्रव्यमान उद्योग भी कहा जाता है।
(ii) जननिक उद्योग–
इन उद्योगों में वनस्पति एवं पशुओं की विशिष्ट नस्लों में प्रजनन करके उनकी संख्या को बढ़ाया जाता है, ताकि उनके विक्रय द्वारा लाभ कमाया जा सके। इन उद्योगों के अंतर्गत खेती-बाड़ी, बागवानी, पशुपालन, मुर्गी पालन आदि को रखा जाता है। इसे प्राथमिक या उत्पत्ति सम्बन्धी उद्योग भी कहा जाता है।
(i) विनिर्माणकारी उद्योग–
प्रायः उद्योग का अभिप्राय विनिर्माण कार्य उद्योगों से ही होता है। इसके अंतर्गत कच्चे माल या अर्धनिर्मित माल को पूर्णतः निर्मित या पक्के माल में परिवर्तित कर दिया जाता है। समाज तथा देश में रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हीं उद्योगों द्वारा बनायी जाने वाली वस्तुओं से होती है। उदाहरणार्थ लौह-इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग तथा वस्त्र उद्योग आदि ऐसे ही उपयोगी उद्योग इसी श्रेणी में आते हैं। इन्हें आधारभूत उद्योग के नाम से भी जाना जाता है।
(ii) रचनात्मक निर्माणकारी उद्योग-
इसके अन्तर्गत वे सभी उद्योग आते हैं जो रचनात्मक कार्य करते हैं। साथ ही साथ यह उद्योग प्रायः ऐसी वस्तुओं का निर्माण करता है जो स्थायी स्वभाव की होती हैं। इसके अंतर्गत सड़क निर्माण, पुल निर्माण, बाँध निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
ये उद्योग ऐसी वस्तुओं के निर्माण में व्यस्त रहते हैं जिसकी सहायता से आर्थिक विकास के लिये अधोसंरचना तैयार किया जा सके। यह उद्योग अन्य उद्योगों के उत्पादों पर आश्रित होते हैं। अन्य शब्दों में यह उद्योग अन्य उद्योगों के उत्पादों की सहायता से चलाया जाता है।
(ग) तृतीयक या सेवा उद्योग -
तृतीयक या सेवा उद्योग के अन्तर्गत वे सेवाएं आती हैं जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के आवागमन को सरल तथा सुगम बनाती हैं। इसके अन्तर्गत परिवहन, बैंकिंग, बीमा, भण्डारण तथा विज्ञापन क्रियाएँ आती हैं, जो उद्योग तथा व्यापार के लिये अधोसंरचना का कार्य करती हैं। वास्तव में ये वे क्रियाएं होती हैं जो व्यावसायिक क्रियाओं को सहारा देती है। इसलिए कहा जाता है, कि ये वर्तमान औद्योगिक पद्धति की रीढ़ के रूप में कार्य करती हैं। तृतीयक उद्योग उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं के बीच सेतु का कार्य करते हैं। यही नहीं यह उन समस्याओं के समाधान में सहायक होता है जो उत्पादन तथा वितरण के समय उत्पन्न होती है।
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