अर्थव्यवस्था : अर्थ, परिभाषा, एवं प्रकार का वर्णन कीजिये | Economy meaning definition and describe types in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम अर्थव्यवस्था के बारे में बात करेंगे। अर्थव्यवस्था एक देश के लिए मानव जीवन के समान होती है जो एक देश को चलने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 


आज हम इस पोस्ट में अर्थव्यवस्था का परिचय से लेकर अर्थव्यवस्था का अर्थ क्या है? अर्थव्यवस्था की परिभाषा क्या होती है एवं विभिन्न अर्थशास्त्री के अनुसार अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा आज के इस आर्टिकल में दी गई हैं। 


अर्थव्यवस्था के विभिन्न प्रकार के बारे में विस्तार से समझाया गया है कि अर्थव्यवस्था होती क्या हैं और अर्थव्यवस्था कितनी प्रकार की होती है?अर्थव्यवस्था मुख्यत तीन प्रकार की होती है।

अर्थव्यवस्था की पहला प्रकार 1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था 2. समाजवादी अर्थव्यवस्था 3. मिश्रित अर्थव्यवस्था। 


आज हम इन तीनों अर्थव्यवस्था के बारे मे विस्तार से जानेंगे कि भारत की यह तीनों अर्थव्यवस्था कैसी होती और इनके प्रमुख परिभाषा के साथ विशेषता एवं गुण तथा दोष को भी अच्छे से जानेगे। तो चलिये जानते है कि अर्थव्यवस्था होती क्या हैं और यह कितने प्रकार की होती है


भारतीय अर्थव्यवस्था PDF Notes 2021 22 - Download PDF


आज हम इस आर्टिकल के अंदर अर्थव्यवस्था के इन विषय पर चर्चा करेंगे -


1. अर्थव्यवस्था का अर्थ -

2. अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा -

3. अर्थव्यवस्था के प्रकार -

(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष

(ब) समाजवादी अर्थव्यवस्था 

समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा 

समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता

समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण

समाजवादी अर्थव्यवस्था के दोष

(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था

मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा

मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषता

मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुण 

मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोष


अर्थव्यवस्था एक मानव जीवन यंत्र की तरह होती है, जिसके विभिन्न अंग और अवयव होते हैं। यही अंग अपनी विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा इसे सशक्त बनाते हैं। जिसे प्रकार मानव शरीर के लिए भोजन, पाचन प्रक्रिया तथा परिश्रम आवश्यक होता है, ठीक उसी प्रकार अर्थव्यवस्था को स्वस्थ बनाए रखने के लिए उत्पादन, उपभोग, विनियोग एवं वितरण जैसी प्रक्रियाएँ आवश्यक होती हैं। अतः अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है, जिससे व्यक्ति एवं राष्ट्र जीविकोपार्जन करते हैं।


arthvyavastha-ka-arth-evan-paribhasha-evan-prakar-bataye
अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था का अर्थ 


अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है, जो लोगों को आजीविका के साधन प्रदान करती है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन, विनिमय एवं वितरण की उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है, जिनसे लोगों की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, ताकि लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को सन्तुष्ट किया जा सके। 


इस प्रकार अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत उन सभी उत्पादन इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है, जो विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती हैं। चाहे वे इकाइयाँ बड़े पैमाने की हों अथवा छोटे पैमाने की, ग्रामीण क्षेत्र में स्थित हों अथवा शहरी क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की हों अथवा सार्वजनिक क्षेत्र की।


अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा


1. प्रो. डब्ल्यू. एन. लुक्स के अनुसार, -  “अर्थव्यवस्था में उन सभी संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें कुछ | निश्चित लोगों अथवा किसी राष्ट्र या राष्ट्रों के किसी निश्चित समूह ने ऐसे साधनों के रूप में चुना है, जिनके माध्यम से मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए संसाधनों का उपयोग किया जाता है।”


2. प्रो. ए. जे. ब्राउन के अनुसार, - “अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी प्रणाली से है, जिसके द्वारा लोग आजीविका प्राप्त करते हैं।”


3. "अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध किसी समाज में आर्थिक क्रियाओं के संगठन से है और इस प्रकार, इसका तात्पर्यं समाज में प्रचलित उपभोग व उत्पादन तथा वितरण एवं विनिमय की विधियों से है।”


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था से तात्पर्य, एक ऐसी प्रणाली से है जिसमें सभी प्राकृतिक, भौतिक एवं मानवीय साधनों का प्रयोग करके विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, जिससे राष्ट्र की, जनता अधिकतम आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और उन्हें अधिकाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जा सके।


अर्थव्यवस्था के प्रकार


सामान्यतया अर्थव्यवस्था निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है-


(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था


(ब) समाजवादी अर्थव्यवस्था 


(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था


(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें उत्पादन के साधनों पर सामान्यतः व्यक्तिगत एवं स्वामित्व नियन्त्रण होता है तथा इन साधनों का प्रयोग पूँजीपति अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए करता है। 


दूसरे शब्दों में, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर व्यक्ति विशेष का अधिकार होता है और प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ को अधिकतम करने के लिए इन साधनों का अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग करता है। इसीलिए पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था "अनियोजित अर्थव्यवस्था " भी कहा जाता है।


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा


1. लुक्स तथा हूट्स के अनुसार, -पूँजीवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें निजी सम्पत्ति पायी जाती है तथा मनुष्य द्वारा निर्मित एवं प्राकृतिक पूँजी का उपयोग निजी लाभ के लिए किया जाता है।" 


2. डी. एम. राइट के अनुसार, - “पूँजीवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें औसत तौर पर आर्थिक जीवन का अधिकांश भाग विशेषतया विशुद्ध नया विनियोग निजी इकाईयों द्वारा सक्रिय और पर्याप्त स्वतन्त्र प्रतियोगिता की दशाओं में किया जाता है और ऐसा प्राय: लाभ की प्रेरणा के अन्तर्गत किया जाता है।"


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-


1. निजी सम्पत्ति का अधिकार - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पत्ति के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। अलग अलग खेतों, खानों, कारखानों पूँजी आदि पर अलग-अलग व्यक्तियों का अधिकार होता है और वे इनका प्रयोग अपनी इच्छा व सुविधा के अनुसार करते हैं। 


2. लाभ का उद्देश्य - निजी लाभ का उद्देश्य पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को प्रमुख प्रेरक शक्ति है। प्रत्येक उद्यमकर्ता अपने लाभ को अधिकतम करना चाहता है, अतः उत्पादक अपने साधनों का इस तरह प्रयोग करना चाहते हैं, ताकि उन्हें अधिकतम लाभ मिल सके। 


जॉन स्ट्रेची के अनुसार, - “लाभ वह धूरी है जिसके चारों ओर स्वतन्त्र उद्यम अर्थव्यवस्था घूमती है। लाभ ही पूँजीवादी उत्पादन का प्रमुख आकर्षण है। "


3. आर्थिक स्वतन्त्रता - आर्थिक स्वतन्त्रता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषता है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्ति को तीन तरह की आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त होती है– 

(i) उद्यम की स्वतन्त्र अर्थात इच्छानुसार व्यवसाय चुनन स्वतन्त्रता

(ii) प्रसंविदा, अर्थात् अनुबंध करने की स्वतन्त्रता

(iii) चुनाव को स्वतन्त्रता अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति अपनी संतुष्टि अधिकतम करने के लिए किसी भी वस्तु का क्रय करने के लिए स्वतन्त्र होता है।


4. उपभोक्ता की संप्रभुता - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता सम्राट की तरह होता है। इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ता जिन वस्तुओं की मांग करते हैं, उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। 


5. कीमत यंत्र - कीमत यंत्र तथा बाजार व्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं। वस्तुओं की कीमत का निर्धारण व तन्त्र रूप से माँग और पूर्ति के संतुलन द्वारा किया जाता है। कीमत यन्त्र ही यह निर्धारित करता है कि किन वस्तुओं का तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जायेगा। 


6. प्रतियोगिता - प्रतियोगिता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का आधारभूत घटक है। यह निजी लाभ की प्रेरणा तथा आर्थिक स्वतन्त्रता का आवश्यक परिणाम है। अपने लाभ को अधिकतम करने की उत्पादकों में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होती है। 


7. आर्थिक असमानताएँ - आर्थिक असमानताएँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की अन्तर्निहित विशेषता है। पूँजीवादी आर्थिक संस्थाएँ, जैसे निजी सम्पत्ति का अधिकार, लाभ की प्रेरणा, स्वतन्त्र बाजार तथा उत्तराधिकार की संस्था, आय एवं धन के असमान वितरण को बढ़ावा देती हैं। 


8. वर्ग संघर्ष - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था समाज को दो स्पष्ट वर्गों -

(i) सम्पन्न पूँजीपति वर्ग 

(ii) निर्धन श्रमिक वर्ग में विभाजित कर देती है। श्रमिकों को सौदा करने की शक्ति कमजोर होती है, अतः पूँजीपति वर्ग श्रमिकों को कम मजदूरी देकर अधिक श्रम कराने में सफल हो जाता है। श्रमिक वर्ग भी अपने हित की सुरक्षा के लिए श्रम-संघों के रूप में संगठित होकर संघर्ष करता है


9. उत्तराधिकार द्वारा सम्पत्ति का हस्तांतरण - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्तराधिकार द्वारा सम्पत्ति के हस्तांतरण को मान्यता प्राप्त है। व्यक्ति अपनी निजी सम्पत्ति को उत्तराधिकार में अपनी संतान को हस्तांतरित कर सकता है। 


10. व्यापार चक्र - व्यापार चक्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की आधारभूत विशेषता है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की अन्तर्निहित विसंगतियों के कारण अर्थव्यवस्था में तेजी या मंदी की वैकल्पिक दशाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। 


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख गुण -


1. अधिकतम उत्पादन - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकतम उत्पादन सम्भव किया जाता है। श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। अनेक प्रकार की वस्तुएँ उत्पादित की जाती हैं। 


2. स्वचालित प्रणाली - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था स्वचालित होती है। इसे क्रियाशील रखने के लिए किसी बाह्य शक्ति के प्रभाव की आवश्यकता नहीं होती। बाजार व्यवस्था तथा कीमत-यन्त्र के द्वारा यह स्वतः संचालित होती रहती है। 


3. उच्च जीवन स्तर - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन में वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय तथा प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होती है, जिससे नागरिकों का जीवन निर्वाह स्तर ऊँचा उठता है। उपभोक्ता को न केवल अनेक प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं, बल्कि वे काफी सस्ती भी मिलती हैं।


4. कुशलता - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अधिक कार्यकुशल होती है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादकों के बीच तीव्र प्रतियोगिता होती है, अत: केवल कुशल उत्पादक ही बाजार में टिक पाते हैं। श्रम विभाजन के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता में भी वृद्धि होती है। 


5. लचीलापन - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में लोचपूर्णता तथा समयानुकूलता के गुण होते हैं। जिनसे यह बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप अपनी कार्य प्रणाली में परिवर्तन कर सकती है। यही कारण है कि युद्ध तथा अन्य गम्भीर आर्थिक संकटों में भी पूँजीवाद ने अपने आपको बनाये रखा है।


6. आर्थिक स्वतन्त्रता - आर्थिक स्वतन्त्रता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण गुण है। इसमें उद्यमकर्ताओं को अपनी इच्छानुसार व्यवसाय का चुनाव करने की स्वतन्त्रता होती है। 


7. जोखिम उठाना - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादकों का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। चूँकि बिना जोखिम उठाये लाभ नहीं हो सकता। 


8. तकनीकी विकास - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में लाभ अधिकतम करने की दृष्टि से उत्पादक वर्ग न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना चाहता है। अतः उत्पादक आधुनिकतम मशीनों का प्रयोग करते हैं, उत्पादन के नये साधनों तथा विधियों की खोज करते हैं। 


9. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्ति को निजी सम्पत्ति रखने तथा उसे उत्तराधिकार में देने का अधिकार रहता है। इससे लोगों को बचत करने की प्रेरणा मिलती है। बचतों में वृद्धि से पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन है। 


10. आर्थिक विकास - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देती है। निजी स्वामित्व तथा लाभ की प्रेरणा, पूँजी निर्माण, तकनीकी विकास, साधनों का पूर्ण दोहन आदि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को वे महत्वपूर्ण आर्थिक |


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष 


पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख दोष -


1. आर्थिक असमानताएँ - आय तथा धन के वितरण की असमानता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का सबसे गम्भीर दोष है। निजी सम्पत्ति का अधिकार, उत्तराधिकार की प्रथा तथा स्वतन्त्र बाजार व्यवस्था ने आर्थिक असमानताओं को बन दिया है।  


2. आर्थिक अस्थिरता - अपनी आंतरिक असंगतियों के कारण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था व्यापार चक्रों को जन्म देती है। उत्पादन अनियोजित होने के कारण उत्पादन और उपभोग में संतुलन नहीं रहने पाता। 


3. वर्ग-संघर्ष - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्याप्त आर्थिक असमानताओं ने वर्ग संघर्ष को जन्म दिया है। इस अर्थव्यवस्था में समाज दो स्पष्ट वर्गों "सम्पन्न" तथा "निर्धन" वर्ग में बँट जाता है। पूँजीवादी वर्ग अपना लाभ बढ़ाने के लिए श्रमिकों का शोषण करता है। 


4. बेरोजगारी - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में श्रमिकों को सदैव बेरोजगारी का भय बना रहता है। व्यापार चक्रों के कारण तेजी-मंदी की दशाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। मंदी के काल में अति-उत्पादन के कारण कल-कारखाने बंद हो जाते हैं तथा बेरोजगारी फैलती है। 


जॉन रॉबिन्सन के मतानुसार, - “ आधुनिक आर्थिक प्रणाली उन सभी लोगों को जो कार्य करने के इच्छुक हैं, सतत् रूप से रोजगार नहीं दे पाती।" 


5. सामाजिक परजीविता - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में एक ऐसे वर्ग का उदय होता है, जो अनुपार्जित आय प्राप्त करता है। उत्तराधिकार प्रथा के कारण धनी वर्ग प्रचुर सम्पत्ति का स्वामी बना रहता है तथा बिना परिश्रम किये किराया तथा ब्याज की आय प्राप्त करता है तथा भोग विलासिता का जीवन जीता है। 


6. आर्थिक शोषण - आर्थिक शोषण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का एक गम्भीर दोष है। उत्पादक वर्ग अपना लाभ बढ़ाने के लिए श्रमिकों का शोषण करता है। श्रम का सौदा करने की शक्ति साहसी की तुलना में कम होती है। 


7. एकाधिकारी प्रवृत्तियाँ - वैसे तो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था स्वतन्त्र प्रतियोगिता पर आधारित है, लेकिन यही प्रतियोगिता अन्ततः एकाधिकारी शक्तियों को जन्म देती है। प्रतियोगिता जितनी तीव्र होती है, कीमतें उतनी ही कम रहती हैं तथा विक्रय लागतें काफी बढ़ जाती हैं। 


8. साम्राज्यवाद की प्रवृत्ति - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में साम्राज्यवाद की ओर अग्रसर होने की सहज प्रवृत्ति होती है। कार्लमार्क्स ने साम्राज्यवाद को पूँजीवाद की अगली पीढ़ी बताया है। इसका स्पष्ट प्रमाण हमें निर्वाध पूँजीवाद के युग में मिलता है। 


9. भ्रष्टाचार - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है। उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग अपने हितों की रक्षा के लिए राजनैतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करते हैं। 


10. क्षेत्रीय असंतुलन - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था क्षेत्रीय अथवा प्रादेशिक असंतुलन पैदा करती है। उद्यमकर्ता उन्हीं क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने में रुचि लेते हैं, जहाँ उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होता है। 


(ब) समाजवादी अर्थव्यवस्था


समाजवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें उत्पादन के सभी महत्वपूर्ण साधनों का स्वामित्व, प्रबंध, संचालन एवं नियंत्रण सरकार के हाथों में होते हैं। 


सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण से में संबंधित सभी क्रियाओं का नियोजन, संचालन एवं नियंत्रण सरकार के द्वारा किया जाता है। सरकार यह प्रयत्न करती है कि समाज में समानता एवं न्याय स्थापित किया जा सके।


समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा 


1. प्रो. एच. डी. डिकिन्सन के अनुसार, - “ समाजवादी अर्थव्यवस्था समाज का एक ऐसा आर्थिक संगठन है, जिसमें उत्पादन के भौतिक साधनों पर समाज का स्वामित्व होता है तथा उनका संचालन एक सामान्य योजना के अन्तर्गत पूरे समाज के प्रतिनिधि तथा उसके प्रति उत्तरदायी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है। समाज के समस्त सदस्य समान अधिकारों के आधार पर ऐसे नियोजित, समाजीकृत उत्पादन के लाभों के अधिकारी होते हैं। " 


2. मॉरिसन के अनुसार, - “समाजवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि सभी बड़े उद्योग और सम्पूर्ण भूमि के अनुसार या सामूहिक स्वामित्व में हो और वे एक राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन के अनुसार इस प्रकार प्रयोग में लाये जायें कि उनसे व्यक्तिगत लाभ की तुलना में सामान्य हित में वृद्धि हो सके। 


समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता


समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता-


1. उत्पत्ति के साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व - समाजवादी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत उत्पादन के सभी महत्वपूर्ण साधनों का स्वामित्व, प्रबंध एवं संचालन सरकार के हाथ में होता है। यद्यपि कुछ निजी सम्पत्ति एवं निजी उद्यम भी विद्यमान रहते हैं, लेकिन उनका सापेक्षिक महत्व नगण्य होता है।


2. आर्थिक नियोजन - आर्थिक नियोजन समाजवादी अर्थव्यवस्था का आवश्यक अंग है। इसमें नियोजन के द्वारा आर्थिक प्रणाली को इस प्रकार संगठित किया जाता है, ताकि साधनों का प्रयोग व्यापक रूप से सार्वजनिक हित में किया जा सके।


3. प्रतियोगिता की समाप्ति - समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता को समाप्त कर दिया जाता है। उत्पादन तथा वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार तथा नियंत्रण रहता है। अतः प्रतियोगिता के कारण संभाव्य अपव्यय नहीं हो पाते। 


4. अनार्जित आय समाप्ति - निजी सम्पत्ति की संस्था के समाप्त हो जाने से कोई भी व्यक्ति ब्याज, किराया आदि की अनार्जित आय के लाभ प्राप्त नहीं कर सकता। समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यतानुसार कार्य करना पड़ता है।


5. शोषण का निराकरण - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों तथा वितरण व्यवस्था पर समाज अथवा सरकार का अधिकार होता है। इस प्रकार पूँजीपति वर्ग द्वारा किया जाने वाला श्रमिकों का शोषण समाप्त कर दिया जाता है।


6. आर्थिक समानता - समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति के समान अवसर प्राप्त होते हैं। राष्ट्रीय आय का उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण किया जाता है तथा समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता को दूर कर आर्थिक समानता लाने के प्रयास किये जाते हैं।


7. केन्द्रीय नियोजन सत्ता - समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं को संचालित करने के लिए केन्द्रीय नियोजन संस्था योजनाओं का निर्माण तथा क्रियान्वयन करती है। नियोजन संस्था का गठन किया जाता है। 


8. पूर्ण रोजगार - समाजवादी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का उन्मूलन कर पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त करने का लक्ष्य रखा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोजगार सुलभ किया जाता है।


9. सामाजिक कल्याण - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन का उद्देश्य लाभार्जन न होकर समाज की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करना होता है। इस प्रकार समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी हित के स्थान पर सामाजिक कल्याण में वृद्धि पर जोर दिया जाता है।


10. राज्य की भूमिका - समाजवादी अर्थव्यवस्था में देश के आर्थिक जीवन में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राज्य ही समाज के सर्वांगीण विकास के लिए समस्त आर्थिक क्रियाओं का संचालन करता है।


समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण


समाजवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-


1. उत्पादन में वृद्धि - समाजवादी अर्थव्यवस्था में साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग किया जाता है। उत्पादन केन्द्रीय नियोजन के अनुसार किया जाता है। इसलिए उत्पादन की मात्रा अधिक होती है।


2. आर्थिक असमानता की समाप्ति - समाजवादी अर्थव्यवस्था में आय  एवं धन का न्यायपूर्ण वितरण किया जाता है, ताकि आर्थिक असमानताओं को दूर किया जा सके। 


प्रो. पीगू के अनुसार, - “आर्थिक असमानता को समाप्त करने में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की अपेक्षा समाजवादी अर्थव्यवस्था अधिक समर्थ है। "


3. आर्थिक शोषण का अन्त - समाजवादी अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग का शोषण नहीं किया जा सकता। चूँकि देश के समस्त आर्थिक साधनों पर राज्य का स्वामित्व होता है। 


4. वर्ग संघर्ष की समाप्ति समाजवादी अर्थव्यवस्था में वर्ग - संघर्ष को समाप्त कर दिया जाता है। चूँकि सभी प्रकार की सम्पत्ति एवं उत्पत्ति के साधनों पर राज्य का अधिकार होता है। अतः समाज का धनी एवं निर्धन वर्ग के रूप में विभाजन नहीं हो पाता। 


5. आर्थिक स्थिरता -  समाजवादी अर्थव्यवस्था नियोजित होती है, अतः व्यापार चक्रों के उत्पन्न होने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है, जिससे आर्थिक जगत में स्थिरता लायी जा सकती है। 


6. सामाजिक कल्याण में वृद्धि - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का प्रयोग अधिकतम सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है। समाजवादी अर्थव्यवस्था में जनता को आवश्यकताओं को पूर्ति पर ध्यान दिया जाता है। 


7. संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग - समाजवादी अर्थव्यवस्था में समस्त प्राकृतिक उचित प्रयोग किया जाता है ताकि साधनों का अपव्यय न हो। साधनों का प्रयोग करते समय पिछड़े क्षेत्रों का विकास करने दूर करने का भी ध्यान रखा जाता है।


8. बेरोजगारी का उन्मूलन - समाजवादी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का उन्मूलन कर पूर्ण रोजगार प्राप्त करने का लक्ष्य रखा जाता है। प्रत्येक कार्य करने योग्य व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार रोजगार की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। 


9. अपव्यय की समाप्ति - समाजवादी अर्थव्यवस्था में साधनों को बर्बादी को समाप्त कर दिया जाता है, जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में आवश्यक रूप से होते हैं, जैसे- आर्थिक उच्चावचनों के कारण होने वाले साधनों की बर्बादी, विज्ञापन व प्रसार-प्रचार पर होने वाले व्यय तथा आर्थिक अस्थिरता तथा अनिश्चितता के कारण होने वाले साधनों एवं श्रमशक्ति को बर्बादो।


10. सामाजिक परजीविता का अन्त - समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी सम्पत्ति की संस्था को समाप्त कर दिया जाता है। इस कारण कोई भी व्यक्ति अनार्थिक आय का लाभ प्राप्त नहीं कर पाता। प्रत्येक व्यक्ति को आय प्राप्त करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।


समाजवादी अर्थव्यवस्था के दोष


समाजवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-


1. आर्थिक प्रेरणा का अभाव - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के समस्त साधनों पर राज्य का अधिकार होता है, अतः उत्पादन कार्य में निजी हित एवं व्यक्तिगत लाभ की प्रेरणा का अभाव होता है। 


2. नौकरशाही - समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का संचालन एवं नियंत्रण सरकारी कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है। इससे लालफीताशाही पनपती है, निर्णय लेने में देर लगती है तथा नियंत्रण ढीले पड़ जाते हैं। 


3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पत्ति के समस्त साधनों पर राज्य का अधिकार होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन योजना के अनुसार किया जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्धारित कार्य करना पड़ता है। 


4. उपभोक्ता की संप्रभुत्ता का अन्त - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं को उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना पड़ता है जिनका राज्य द्वारा उत्पादन किया जाता है। इस प्रकार समाजवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता की संप्रभुता का अन्त हो जाता है। 


5. कुशलता का अभाव - समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा वितरण पर सरकारी नियंत्रण होने के कारण प्रतियोगिता का अस्तित्व प्राय: नहीं होता। सारे आर्थिक निर्णय नौकरशाही द्वारा मनमाने ढंग से लिये जाते हैं। 


6. स्वचालित मूल्य-तन्त्र का अभाव - समाजवादी अर्थव्यवस्था में स्वचालित मूल्य-तन्त्र का अभाव होता है। साधनों के आवंटन का कार्य निर्धारित योजना के अनुसार नौकरशाही द्वारा किया जाता है।


7. प्रशासन में जटिलता - समाजवादी अर्थव्यवस्था का संचालन केन्द्रीय नियोजन संस्था के द्वारा किया जाता है। इसके अन्तर्गत उत्पादन, उपभोग, वितरण आदि के संबंध में निर्णय लेने का उत्तरदायित्व उच्च सरकारी अधिकारियों का होता है। 


8. शक्ति का केन्द्रीयकरण - समाजवादी अर्थव्यवस्था में समस्त आर्थिक एवं राजनैतिक शक्तियों हाथों में केन्द्रीयकरण हो आता है। व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक स्वतन्त्रता का लोप हो जाता है। इसलिए हमेशा का राज्य के शक्ति के केन्द्रीयकरण का भय बना रहता है।


9. आर्थिक असमानता - समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता को नहीं, बल्कि अवसरों की समान को महत्व दिया जाता है। अतः समाजवादी व्यवस्था में भी उच्च आय तथा निम्न आय वाले वर्ग होते हैं। 


10. व्यष्टि दृष्टिकोण की उपेक्षा - समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रश्नों पर समष्टि दृष्टिकोण से ही विचार किया जाता है। समाजवादी अर्थव्यवस्था में सीमांत विश्लेषण तथा व्यष्टि दृष्टिकोण की उपेक्षा की जाती है।


(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था


मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों साथ-साथ कार्य करते हैं। इन दोनों क्षेत्रों की भूमिका अर्थव्यवस्था में इस प्रकार निर्धारित की जाती है, जिससे कि समाज के सभी वर्गों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके। 


सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्योगों का स्वामित्व, नियंत्रण एवं निर्देशन सभी राज्य के द्वारा किया जाता है। इसके विपरीत, निजी क्षेत्र में स्थापित उद्योगों का स्वामित्व, प्रबंधन, नियंत्रण एवं निर्देशन निजी उद्यमियों एवं उद्योगपतियों के हाथों में होता है। 


इसके अतिरिक्त मिश्रित अर्थव्यवस्था में संयुक्त रूप से किया जाता है। इस प्रकार दोनों क्षेत्र आपसी प्रतियोगिता को समाप्त करके अपने-अपने क्षेत्र में कुशलतापूर्वक कार्य करते हैं। दोनों क्षेत्रों का उद्देश्य तीव्रगति से आर्थिक कल्याण को अधिकतम करना होता है।


इस मिश्रित अर्थव्यवस्था को प्रो. हेन्सन ने 'द्धिक अर्थव्यवस्था, प्रो. मीड ने 'उदार अर्थव्यवस्था' और प्रो. लर्नर ने इसे नियंत्रित अर्थव्यवस्था कहा है।


मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख परिभाषा


1. प्रो. जे. डब्ल्यू ग्रोव के अनुसार, - " मिश्रित अर्थव्यवस्था की अनेक मुख्य विशेषताओं में से एक यह है कि उत्पादन एवं उपभोग के विषय में मुख्य निर्णयों को प्रभावित करने में निजी उद्योगपति जितने स्वतन्त्र होते हैं, मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत वे कम स्वतन्त्र होते हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण उतना कठोर नहीं होता, जितना केन्द्रीय निर्देशित समाजवादी अर्थव्यवस्था में पाया जाता है। "


2. मुण्ड एवं वोल्फ के अनुसार, - “ मिश्रित अर्थव्यवस्था की परिभाषा निजी एवं राज्य द्वारा नियंत्रित उपक्रमों की एक मिली-जुली व्यवस्था के रूप में की जा सकती है। यह एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन अनेक स्वरूपों एवं व्यवस्थाओं के साथ सम्पन्न किया जाता है।


मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषता


मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-


1. पूँजीबाद एवं समाजवाद के बीच का मार्ग - मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवादी के बीच का मार्ग है। इसमें दोनों प्रणालियों की अच्छाइयों को तो शामिल किया गया है, लेकिन बुराइयों


2. निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र का सह-अस्तित्व - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का सह होता है अर्थात् दोनों क्षेत्र साथ-साथ कार्य करते हैं। ये एक-दूसरे के प्रतियोगी न. होकर पूरक के रूप में कार्य करते हैं। 


3. आर्थिक नियोजन - आर्थिक नियोजन मिश्रित अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था का द्रुतगामी एवं नियोजित ढंग से आर्थिक विकास करना होता है। आर्थिक नियोजन के द्वारा निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है।


4. निजी क्षेत्र का महत्व - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के उद्योगों तथा व्यवसायों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके विकास के लिए उचित अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाती है।


5. सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका - मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उद्योगों; जैसे- लोहा-इस्पात, अणुशक्ति, सुरक्षा, बिजली, रेल तथा वायु परिवहन, पेट्रोलियम एवं कोयला आदि को रखा जाता है। 


6. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता - मिश्रित अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को महत्व दिया जाता है, लेकिन यदि यह सामाजिक हितों में बाधक बनती है, तो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सीमित कर दिया जाता है। 


7. आर्थिक असमानता में कमी - मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता कम करने के प्रयास किये जाते हैं। आय तथा धन के उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण की व्यवस्था की जाती है। 


8. सामाजिक कल्याण - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निर्धन एवं श्रमिक वर्ग की सामाजिक सुरक्षा के लिए समुचित प्रावधान किये जाते हैं। इसके लिए सामाजिक कल्याण की विविध योजनाएँ, जैसे- वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी बीमा, दुर्घटना एवं मृत्यु बीमा, आश्रितों को लाभ आदि लागू की जाती हैं।


मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुण 


मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-


1. तीव्र आर्थिक विकास - मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन को अपनाया जाता है। अत: इसमें आर्थिक नियोजन के सारे लाभ प्राप्त हो जाते हैं। नियोजन के द्वारा समस्त भौतिक एवं वित्तीय साधनों का निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में आवंटन कर दिया जाता है।


2. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता - मिश्रित अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुण को महत्व दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय चुनने तथा अपनी आय को इच्छानुसार व्यय करने की स्वतन्त्रता रहती है। 


3. पूँजीवाद के लाभ - मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के लाभ भी प्राप्त होते हैं। निजी क्षेत्र के अस्तित्व के कारण पूँजीवादी संस्थाओं जैसे- निजी सम्पत्ति, लाभ का उद्देश्य, बाजार अर्थव्यवस्था तथा कीमत-यन्त्र को कायम रखा जाता है। 


4. समाजवादी के लाभ - मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद के लाभ भी प्राप्त होते हैं। आधारभूत एवं संरचनात्मक उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में रखा जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन में सहायता मिलती है। 


5. उत्पादन एवं कार्यकुशलता में वृद्धि - निजी लाभ की प्रेरणा से निजी क्षेत्र के उद्यमकर्ता उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भी भारी पूँजी निवेश, आधुनिक तकनीकों तथा मशीनों का प्रयोग एवं उत्पादन क्षमता का पूर्ण प्रयोग कर उत्पादन में वृद्धि की जाती है।


6. आर्थिक असमानता में कमी - मिश्रित अर्थव्यवस्था में आय एवं धन के उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण पर और दिया जाता है, ताकि आर्थिक असमानताओं को कम किया जा सके। इस हेतु निर्धन तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं, ताकि उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जा सके।


7. सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निर्धन एवं श्रमिक वर्ग की सामाजिक सुरक्षा तथा आर्थिक कल्याण की दृष्टि से अनेक योजनाएँ लागू की जाती हैं, जैसे- बेरोजगारी बीमा, वृद्धावस्था पेंशन, आश्रितों को लाभ, दुर्घटना बीमा, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ आदि।


8. संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग - मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्र के सभी प्राकृतिक, भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग संभव हो जाता है। 


मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोष


मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-


1. समन्वय का अभाव - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में समन्वय का अभाव पाया जाता है। दोनों क्षेत्र एक-दूसरे के सहयोगी न रहकर, प्रतियोगी बन जाते हैं। जिससे अर्थव्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन में बाधाएँ पहुँचती है। 


2. आर्थिक अस्थिरता - प्राय: यह देखा जाता है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था से निजी क्षेत्र काफी शक्तिशाली हो जाता है तथा सरकारी नियंत्रण की उपेक्षा करने लगता है। इसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में आर्थिक अस्थिरता बनी रहती है। इसलिए आलोचक इसे “निर्बल अर्थव्यवस्था' कहते हैं।


3. भ्रष्टाचार तथा पक्षपात - सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का प्रबंध सरकारी मशीनरी तथा नौकरशाही के द्वारा किया जाता है, जिससे प्रशासन में लाल फीताशाही, पक्षपात तथा भ्रष्टाचार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं।


4. कार्यकुशलता का अभाव - मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन का संचालन नौकरशाही के हाथों में होता है, जिससे निर्णय विलम्ब से लिये जाते हैं। इसका अर्थव्यवस्था के संचालन पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा कार्यकुशलता के स्तर में गिरावट आ जाती है। 


5. आंशिक नियोजन - मिश्रित अर्थव्यवस्था निजी, सार्वजनिक, सहकारी तथा संयुक्त क्षेत्रों में विभाजित होती है। अतः उसका सम्पूर्ण नियोजन संभव नहीं होता। व्यवहार में केवल आंशिक नियोजन ही हो पाता है।


6. राष्ट्रीयकरण का भय - मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के उद्योगों को सदैव राष्ट्रीयकरण का भय बना रहता है। अत: निजी क्षेत्र अपना पूर्ण योगदान नहीं कर पाता। राष्ट्रीयकरण के भय से विदेशी पूँजो भी देश में आने से कतराती है। 


7. तानाशाही की संभावना - मिश्रित अर्थव्यवस्था में यदि सार्वजनिक क्षेत्र का निरंतर विस्तार होता रहे, तो राज्य की शक्ति बहुत बढ़ जाती है, राज्य में आर्थिक तथा राजनैतिक सत्ता का केन्द्रीयकरण हो जाने से तानाशाही को संभावना उत्पन्न हो जाती है।


आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट काफी पसंद आई होंगी अगर आयी तो जरूर अपने दोस्तों के साथ शेयर और टिप्पणी जरूर करें। तो आज अपने जाना कि अर्थव्यवस्था होती क्या हैं और अर्थव्यवस्था के प्रकार के साथ ही जाना कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था क्या होती हैं और इसकी प्रमुख विशेषता के साथ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण दोष। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के बाद आता है समाजवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण दोष फिर आता है मिश्रित अर्थव्यवस्था, मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषता के साथ उसके गुण दोष, आज हमने यह आर्टिकल से यही सब सीखा की अर्थव्यवस्था एक देश के लिए कितनी जरूरी है।


यह भी पढ़े -

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

कृपया यहां स्पैम न करें। सभी टिप्पणियों की समीक्षा व्यवस्थापक द्वारा की जाती है