ऋणपत्र क्या है? ऋणपत्र परिभाषा एवं ऋणपत्र के प्रकार, लाभ एवं हानि बताइए

ऋणपत्र क्या है? ऋणपत्र परिभाषा एवं ऋणपत्र के प्रकार, लाभ एवं हानि बताइए
ऋणपत्र क्या है



एक कम्पनी ऋण पत्रों को जारी करके वित्त प्राप्त कर सकती है। ऋण पत्र को एक कम्पनी के द्वारा प्राप्ति को औपचारिक स्वीकृति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ऋणपत्रों से कम्पनी की ऋण पूँजी बनती है तथा इन्हें ऋणधारी कहते हैं, क्योंकि ऋणपत्रधारियों को कम्पनी का लेनदार समझा जाता है। ऋण पत्रधारियों को एक नियत अवधि के बाद एक निश्चित दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकार होता हैं तथा निर्गमन की शर्तों व नियम के अनुसार अपने ऋणपत्रों को शोध्य करवाने का अधिकार भी होता है। 


ऋणपत्रों की परिभाषाएँ


चिट्टी जे. के शब्दों में, : “ऋणपत्र से तात्पर्य एक ऐसे प्रलेख से है जो या तो ऋण का निर्माण करता है या ऋण की स्वीकृति देता है तथा कोई भी प्रलेख जो इनमें से किसी भी शर्त को पूरा करे, ऋण पत्र कहलाता है।"। 


पामर का मत है कि, : “ऋण पत्र एक ऐसा प्रपत्र है जिस पर कम्पनी की सार्वमुद्रा लगी होतो हैं और जो ऋण का द्योतक है। ऋण को मान्यता देना ही इसका मुख्य तत्व है।" 


थामस के अनुसार, : “ऋणपत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अन्तर्गत एक प्रलेख है जो कम्पनी को मूलधन प्रदान कराता है तथा उस पर एक निश्चित दर से ब्याज का भुगतान करने का अनुबन्ध है जिसे प्रायः कम्पनी का स्थायी या परिवर्तनीय सम्पत्तियों का प्रभार देकर प्राप्त किया जाता है तथा जो कम्पनी को दिये गये ऋण को स्वीकृति है।" "


उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि ऋण पत्र एक ऐसा बाँड है जो कम्पनी द्वारा ऋण लेने और उनका पुनः भुगतान करने की शर्तों का ज्ञान कराता है। कई बातों में एक ऋण पत्र अंश की तरह होता है। स्टॉक एक्सचेंज में इसका क्रय-विक्रय किया जा सकता है। अंशों की तरह ऋण पत्र का धारक अपने ऋणपत्रों को जमानत के रूप में गिरवी रखकर अस्थायी ऋण प्राप्त कर सकता है। 


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ऋणपत्र विशेषताएँ



1. स्थिति - 


एक ऋण पत्रधारी कम्पनी का लेनदार होता है और ऋण पत्र ऋण के रूप में एक प्रतिभूति होता है।


2. विनियोग पर प्रतिफल - 


एक ऋण पत्र का धारक एक निश्चित तिथि पर ब्याज प्राप्त करता है चाहे कम्पनी को लाभ हो या हानि।


3. वापसी की अवधि -


एक ऋण पत्र वापस लेने का अधिकार है। के धारक को निश्चित समय की समाप्ति के बाद अपनी मूलधन राशि को वापस लेने का अधिकार  हैं।


4. वापसी का क्रम -


समापन की दशा में, पूर्वाधिकारी तथा साधारण अंशधारियों को पूँजी वापस करने से पहले ऋणपत्रधारियों की राशि वापस करनी पड़ती हैं।


5. जारी करने की शर्तें -


ऋण पत्रों को जारी करने सम्बन्धी शर्तों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।



ऋण-पत्र के प्रकार



एक कम्पनी के द्वारा निम्न प्रकार के ऋण पत्रों को जारी किया जाता है


1. सुरक्षित तथा असुरक्षित ऋण पत्र - 


सुरक्षित ऋण पत्र वे पत्र होते हैं, जो कम्पनी की स्थायी या चल सम्पत्ति बन्धक रखकर जारी किये जाते हैं। ऐसे ऋण पत्रों को बंधक ऋण पत्र भी कहते हैं। इसके दूसरी तरफ ऐसे ऋण पत्र जो कम्पनी की सम्पत्तियों को बन्धक रखे बिना जारी किये जाते हैं, असुरक्षित या नग्न ऋण पत्र कहलाते हैं।


2. रजिस्टर्ड तथा वाहक ऋण पत्र -


रजिस्टर्ड ऋण पत्र वे होते हैं जो केवल पंजीकृति धारकों को ही देय होते हैं। रजिस्टर्ड ऋण पत्र रजिस्टर दोनों पर लिखा होता है। उनका हस्तांतरण केवल हस्तांतरण संलेख के द्वारा ही हो सकता हैं। केवल वही ऋणपत्रधारी जिनका नाम केवल रजिस्टर में लिखा होता है, भुगतान व ब्याज पाने के अधिकारी होते हैं। वाहक ऋण-पत्र वे ऋण-पत्र होते हैं, जिन्हें कम्पनी को सूचित किये बिना केवल सुपुर्दगी के द्वारा हस्तांतरण किया जा सकता है। ऋणपत्र साथ कूपन लगे होते हैं तथा उन ऋणपत्रों के धारक इन कूपनों को भरकर ब्याज प्राप्त करने के लिए कम्पनी के पास भेज देते हैं।


3. शोध्य तथा अशोध्य ऋणपत्र -


शोध्य ऋणपत्र वे होते हैं जो शोध्य आधार पर जारी किये जाते हैं या इस शर्त पर जारी किये जाते हैं कि उनका एक निश्चित समय के बाद भुगतान कर दिया जायेगा। अशोध्य ऋण पत्र वे होते हैं जिनका भुगतान कम्पनी के जीवन काल में नहीं होता, परन्तु ऋण भुगतान के लिये देय केवल कम्पनी के समापन के समय ही होता है या जब ब्याज नियमित रूप से देय होता है भुगतान न किया जाय।


4. परिवर्तनशील तथा अपरिवर्तनशील ऋण पत्र - 


इन ऋण-पत्रधारियों को यह विकल्प दिया जाता है कि यदि वे चाहे तो निश्चित अवधि के पश्चात् अपने ऋण पत्रों को अंशों में बदल लें तथा इस तरह इन ऋण-पत्रधारियों को कम्पनी के कार्यों में भाग लेने का अवसर मिल जाता है। ऐसे ऋणपत्रधारियों को ऋणपत्र का लाभ तो प्राप्त होता ही है, परन्तु कम्पनी की आर्थिक दशा ठीक होने पर ऋणपत्रधारी कम्पनी के लाभों में हिस्सा लेने के लिए अंशधारी बन जाता है। अपरिवर्तनशील ऋणपत्र वे होते हैं जिन्हें साधारण अंशों में नहीं बदला जा सकता।



ऋण-पत्रों से लाभ 



1. प्रबन्ध में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं -


कम्पनी का संचालन एवं प्रबन्ध पूर्णरूपेण अप्रभावित रहता है, क्योंकि ऋण-पत्रधारियों को कम्पनी के ऋणदाता होने के कारण कम्पनी के प्रबन्ध में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता। 


2. स्थायी ब्याज - 


ऋण-पत्रों पर दिया जाने वाला ब्याज उनके निर्गमन के समय ही निश्चित हो जाता है जो सदा के लिए निश्चित रहता है।


3. समानाधिकारी शेयरों के लाभ को बढ़ाने की सुविधा - 


अनुमानित लाभ की अपेक्षा कम ब्याज वाले ऋण पत्र निगर्मित करके समानाधिकारी के लाभ को बढ़ाया जा है।


4. आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति - 


ऋण पत्रों का निर्गमन आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अच्छा साधन है, क्योंकि धन की आवश्यकता पूरी हो जाने पर कम्पनी इसे वापस कर सकती है। 


5. न्यूनतम जोखिम - 


ऋणपत्रधारियों का जोखिम न्यूनतम होता है क्योंकि उनका ऋण सुरक्षित होता है। 


6. स्थायी तथा निश्चित आय -


ऋणदाताओं की आय स्थायी और निश्चित होती है। अतः कम्पनी को लाभ-हानि से उनका कोई सरोकार नहीं होता है।


7. अन्य उत्तरदायित्वों से मुक्ति - 


विनियोजकों को ऋण पत्रों से यह भी लाभ प्राप्त होता है कि वे एक निश्चित राशि के ऋण-पत्रों को क्रय करने के बाद से कम्पनी के अन्य दायित्वों एवं कार्यों से मुक्त रहते हैं। अतः ये स्वतंत्र रूप से अपना अलग व्यापार कर सकते हैं।



ऋण-पत्रों से हानियाँ 



1. कम्पनी की साख कम हो जाती है - 


ऋण-पत्रों के निर्गमन से कम्पनी की साख कम हो जाती है, क्योंकि इससे यह समझा जाता है कि कम्पनी अपने आन्तरिक साधनों से धन की व्यवस्था करने में असमर्थ है। 


2. ब्याज देना अनिवार्य - 


ऋण-पत्रा पर एक निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है। कम्पनी को लाभ हो या हानि चाण-पत्रों पर कम्पनी को निश्चित ब्याज देना अनिवार्य होता है।


3. संकट काल में उपयुक्त नहीं -


संकट के समय पूँजी प्राप्ति का यह साधन अच्छा नहीं माना जाता। 


4. सामान्य रूप से लाभदायक नहीं -


ऋण पत्रों का निर्गमन उन कम्पनियों के लिए लाभदायक नहीं है जिनमें लाभ बाजार के ब्याज से कम होता है अथवा जिनके पास स्थायी सम्पत्तियाँ नहीं हैं अथवा जिनके उत्पादन की वस्तुओं की मांग बहुत अधिक लोचदार है।


5. कम्पनी के प्रबन्ध में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं


ऋणपत्रधारी कम्पनी के ऋणदाता होते हैं। इसलिए उन्हें कम्पनी के प्रबन्ध में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होता।


6. कम्पनी की प्रगति का लाभ नहीं - 


कम्पनी चाहे कितनी ही प्रगति कर ले इनको उसका कोई विशेष लाभ नहीं होता। इन्हें केवल निश्चित ब्याज ही मिलता है।


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