मांग की लोच का क्या महत्व है? | Importance of elasticity of demand in hindi

मांग की लोच का महत्व


अर्थशास्त्र में माँग की लोच के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रो. कीन्स के अनुसार, "मार्शल को सबसे बड़ी देन माँग को कॉमत लोच का सिद्धान्त है और इसके अध्ययन के बिना मूल्य एवं वितरण के सिद्धान्तों की विवेचना सम्भव नहीं है।" 



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मांग की लोच

माँग की लोच के महत्व को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है -


1. मूल्य निर्धारण के सिद्धान्त में - 


मूल्य-निर्धारण के सिद्धान्त में की कीमत लोच के महत्व को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है -


(i) सन्तुलन की दशाओं में मूल्य निर्धारण - सन्तुलन की दशा के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया में माँग की कीमत लोच की धारणा काफी सहायक सिद्ध होती है। कोई भी फर्म सन्तुलन की स्थिति में उस समय होती है, जब फर्म की सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हो। सोमान्त आगम माँग की कीमत लोच पर निर्भर करती है। प्रत्येक उत्पादक को अपनी वस्तु की कीमत निर्धारित करते समय उसकी माँग की कीमत लोच को ध्यान में रखना पड़ता है। यदि उसकी वस्तु की माँग की कीमत लोच अधिक है तो वह अपनी वस्तु की कौमत कम रखेगा और यदि माँग की कीमत लोच कम है तो वह अपनी वस्तु की कीमत ऊँची रख सकता है।


(ii) एकाधिकार की दशाओं में मूल्य निर्धारण - एकाधिकारी को भी अपनी वस्तुओं की कीमत निर्धारित करते समय उनको माँग की कीमत लोच को ध्यान में रखना पड़ता है, क्योंकि एकाधिकारी केवल वस्तु की आपूर्ति पर नियन्त्रण रख सकता है, उसकी माँग पर नहीं। इसलिए यदि किसी वस्तु की माँग अधिक लोचदार है तो उसे ऐसी वस्तु की कीमत कम रखना पड़ेगा और यदि किसी वस्तु की माँग कम लोचदार (बेलोचदार) है तो वह उसकी कीमत ऊँची रख सकता है, तभी वह अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकेगा।


(iii) एकाधिकारी कीमत विभेद की दशा में मूल्य निर्धारण कीमत - विभेद का अर्थ है, एक ही वस्तु को विभिन्न बाजारों में अलग-अलग कीमतों पर बेचना। जिस बाजार में वस्तु की माँग बेलोचदार है, उसमें उत्पादन अपनी वस्तु को ऊँची कीमत पर बेच सकता है, लेकिन जिस बाजार में वस्तु को माँग अधिक लोचदार है, वहाँ उसे अपनी वस्तु को कीमत कम रखनी पड़ेगी, ताकि वह अधिकतम विक्री करके अधिकतम लाभ कमा सके।


(iv) संयुक्त पूर्ति की दशा में मूल्य निर्धारण - कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी पूर्ति संयुक्त रूप से की जाती है, जैसे-गेहूँ एवं भूसा, चीनी एवं शौरा आदि। ऐसी दशा में इन वस्तुओं को अलग-लागत ज्ञात कर पाना कठिन होता है, अतः इनकी कीमत, इनकी माँग की कीमत लोच के आधार पर निर्धारित की जाती है और जिस वस्तु को माँग अधिक लोचदार होती है, उसकी कीमत अपेक्षाकृत कम रखी जाती है।


2. वितरण के सिद्धान्त में - उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के मूल्य निर्धारण में भी माँग को कीमत लोच का विशेष महत्व है। उत्पादक उन साधनों को अधिक पारिश्रमिक देने को तैयार हो जाता है जिनकी माँग खेलोचदार होती है। इसके विपरीत, जिन साधनों की माँग अधिक लोचदार होती है, उन्हें अपेक्षाकृत कम पारिश्रमिक दिया जाता है। इस प्रकार जिन श्रमिकों की माँग बेलोचदार है, वे ऊँची मजदूरी पाने में सफल हो जाते हैं।


3. सरकार के लिए महत्व - सरकार के लिए भी माँग की कीमत लोच का विशेष महत्व है। 


(i) कर-नीति के निर्धारण में सहायक - माँग की कीमत लोच सरकार की कर नीति के निर्धारण में भी सहायक सिद्ध होती है। जब वित्तमन्त्री बजट के नये कर के प्रस्तावों पर विचार करते हैं तो उन्हें यह ध्यान में रखना पड़ता है कि ऐसी वस्तुओं पर कम कर लगाया जाये, जिनकी माँग अधिक लोचदार है और ऐसी वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाये, जिनको माँग बेलोचदार है। 


(II) कर-भार का अध्ययन करने में सहायक - करारोपण के समय सरकार के सामने एक महत्वपूर्ण समस्या कर भार की होती है। प्रत्येक देश की सरकार का यह प्रयास होता है कि कर इस प्रकार लगायें जायें कि उनका भार न्यायपूर्ण हो। इसके लिए सरकार को माँग की कीमत के विचार की सहायता लेनी पड़ती है। यदि किसी वस्तु को मांग बलोचदार है उत्पादक कर के भार का अधिकांश भाग उपभोक्ताओं पर डाल देंगे। इसके विपरीत यदि किसी वस्तु को मगध लोचदार है तो उत्पादक कर के भार को इस प्रकार हस्तान्तरित नहीं कर पायेंगे और उन्हें यह कर भार स्वयं हो वहन क पड़ेगा। 


(III) आर्थिक नीति के निर्धारण में सहायक - माँग एवं माँग की कीमत लोच का पूर्ण ज्ञान आर्थिक नीति निर्माण में सहायक होता है। व्यापारिक उच्चावचनों पर नियन्त्रण करने के लिए, मुद्रा स्फीति एवं मुद्रा संकुचन के दुष्प्रभव को नियन्त्रित करने के लिए तथा आर्थिक गतिविधियों में वांछित परिवर्तन लाने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार को इस सम्बन्ध में पूर्ण एवं विस्तृत जानकारी हो। 


(iv) सार्वजनिक सेवाओं को निर्धारित करने में सहायक - माँग की कीमत लोच सरकार को यह निर्णय लेने में भी सहायता करती है कि किन-किन उद्योगों को सार्वजनिक सेवाओं का उद्योग घोषित किया जाये ताकि उनका स्वामित्व एवं प्रबंध सरकार द्वारा अपने पथ में वे लिया जाये। इस सम्बन्ध में यह वांछनीय है कि जिन उद्योगों के उत्पादों को और बेलोचदार है, उन्हें सार्वजनिक सेवा के उद्योग घोषित कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा जिन उद्योगों में आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उन्हें भी सार्वजनिक सेवा वाले उद्योग घोषित किया जाना चाहिए। लोचदार माँग वाली वस्तुओं को उत्पादन करने वाले उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।


4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व - माँग की कीमत लोच का विचार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की नीतियों का निर्माण करने के सम्बन्ध में भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी सहायता से यह निर्धारित करने में सहायता मिलती है कि अपने देश को वस्तुओं को दूसरे देश की वस्तुओं से किस दर पर बदला जाना चाहिए। यदि हमारे देश में उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं को माँग बेलोचदार है तो हम अपनी वस्तुओं की अधिक कीमत प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार जिन वस्तुओं का हम आयात कर रहे हैं, यदि हमारे देश में उनकी माँग बेलोचदार है तो हमें उनके लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।


5. यातायात उद्योग में महत्व - माँग की कीमत लोच यातायात उद्योग में भाड़े की दर निश्चित करने में भी सहायक होती है। जिन वस्तुओं को परिवहन/ यातायात माँग बेलोचदार होती है, उनका भाड़ा अधिक रखा जाता है और जिन वस्तुओं की यह माँग अधिक लोचदार है, उनका भाड़ा कम रखना पड़ता है।


6. साधनों के आवंटन में सहायक - माँग की कीमत लोच का विचार उत्पादन के साधनों के आवंटन में भी सहायक होती है। एक स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण उत्पादन कार्यों का संचालन एवं नियन्त्रण माँग की कीमत लोच के आधार पर किया जाता है। जिन वस्तुओं की माँग बेलोचदार हैं, उनके उत्पादन के लिए अधिक साधनों का आवंटन किया जाता है, क्योंकि ऐसा करने से उत्पादक इनका अधिक उत्पादन कर सकेगा और परिणामस्वरूप अपनी विक्री को बढ़ाकर अधिक लाभ कमा सकेगा।


7. विनिमय दर के निर्धारण में सहायक - विनिमय दर के निर्धारण में भी माँग की कीमत लोच की सहायता लो जाती है। जिन देशों के लिए हमारे देश को मुद्रा को माँग बेलोचदार होती है, उन देशों की मुद्रा के साथ अपने देश की मुद्रा की विनिमय दर ऊँची रखी जाती है और जिन देशों के लिए हमारे देश की मुद्रा की माँग अधिक लोचदार होती है, उन देशों की मुद्रा के साथ अपने देश की मुद्रा का विनिमय दर नीची रखी जाती है। इसके अतिरिक्त जब एक देश को अपनी मुद्रा के अवमूल्यन अथवा अधिमूल्यन के बारे में निर्णय लेना होता है तो भी माँग की कीमत काफी महत्वपूर्ण सहायक होती है।


8. सम्पन्नता के बीच निर्धनता के विरोधाभास की व्याख्या - माँग की कीमत लोच की धारणा हमें यह समझाने में सहायता करती है कि सम्पन्नता के बीच निर्धनता कैसे बनी रहती है। यदि किसी वस्तु की माँग बेलोचदार है तो उसके अधिक उत्पादन होने पर उसकी कीमत में कमी हो जाती है।


अत: वस्तु के अधिक उत्पादन होने पर भी कीमत में कमी होने के कारण गरीबी बनी रहती है। ऐसी स्थिति शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के सम्बन्ध में लागू होती है। इसीलिए सरकार कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होने पर इसकी कीमत में कमी होने की सम्भावना पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए समर्थन मूल्य की विशेष व्यवस्था करनी है।


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