अर्थशास्त्र के विभाग में पारस्परिक सम्बन्ध
अर्थशास्त्र के विभाग |
अर्थशास्त्र के विभिन्न विभाग एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं, इनके पारस्परिक सम्बन्ध को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है -
1. उपभोग तथा उत्पादन में सम्बन्ध - उपभोग तथा उत्पादन एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। वास्तव में, उपभोग उत्पादन का प्रमुख उद्देश्य होता है। उत्पादन एक साधन होता है जबकि उपभोग एक लक्ष्य उपभोग के कारण ही उत्पादन किया जाता है। समाज में किन-किन वस्तुओं का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाना चाहिए, यह यह उसकी मात्रा द्वारा निश्चित हो पाता है। वहीं दूसरी ओर, उत्पादन, उपभोग की मात्रा में कमी या वृद्धि पर निर्भर करता है तथा उनके स्वरूप में परिवर्तन करता है। उपभोग सभी आर्थिक क्रियाओं की जननी होने के कारण उत्पादन को निर्धारित करता है।
जिस प्रकार उत्पादन, उपभोग पर निर्भर होता है, उसी प्रकार उपभोग भी उत्पादन पर निर्भर करता है। इस प्रकार उपभोग तथा उत्पादन उपयोगिता के माध्यम से परस्पर सम्बन्ध रखते हैं। प्रो. फ्रेजर के अनुसार, - “यदि उपभोग का अर्थ वस्तु के से उपयोगिता प्राप्त करना है, तो उत्पादन का अर्थ उपयोगिता का सृजन करना है।
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2. उपभोग तथा विनिमय में सम्बन्ध - उपभोग तथा विनिमय में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। विनिमय उपभोग पर निर्भर करता है। उपभोग के कारण ही विनिमय किया जाता है। उपभोग के स्तर के अनुसार विनिमय का स्तर निर्धारित होता है। जैसे - पेट्रोल का उपभोग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है, तो इसका विनिमय भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है। इस प्रकार उपभोग में विविधता के कारण हो विनिमय का जन्म हुआ। उपभोग के अभाव में विनिमय का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
जिस प्रकार विनिमय उपभोग पर आश्रित है, उसी प्रकार उपभोग भी विनिमय पर आश्रित है। एक व्यक्ति के द्वारा अधिक वस्तुओं का उत्पादन करना सम्भव नहीं होता है। इसलिए उपभोग के लिए अन्य वस्तुओं को वह विनिमय के द्वारा प्राप्त करता है। इस प्रकार उपभोग में विविधता विनिमय से ही सम्भव है। विनिमय के कारण बहुत सी वस्तुएँ लोकप्रिय होती हैं और धीरे-धीरे उनका उपभोग बढ़ता जाता है।
3. उपभोग तथा वितरण में सम्बन्ध - उपभोग एवं वितरण एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर होते हैं। वितरण उपभोग पर निर्भर होता है। उपभोग के कारण ही वितरण की समस्या उत्पन्न होती है। उत्पादन में प्रयुक्त साधनों को उनके सहयोग के बदले में जो धन प्राप्त होता है, उसे ही वितरण की संज्ञा दी जाती है। इस वितरण से प्राप्त आय के द्वारा ही उत्पादन के साधन अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर पाते हैं अर्थात् उपभोग की क्रिया वितरण पर निर्भर करती है।
वहीं दूसरी ओर, उपभोग भी वितरण पर निर्भर होता है। वितरण के परिणामस्वरूप ही उत्पादन के साधनों का जीवन-स्तर निर्धारित होता है। इस जीवन स्तर के अनुरूप वस्तुओं का उपभोग किया जाता है। समाज में उत्पादित धन के वितरण की प्रकृति भी उपभोग को प्रभावित करती है। यदि धन का असमान वितरण है, अधिकांश उत्पादित धन कुछ लोगों के हाथ में केन्द्रित है, तो विलासिता की वस्तुओं का उपभोग अधिक किया जायेगा, इसके विपरीत, धन का समान वितरण होने पर सामान्य आवश्यकता की वस्तुओं का उपभोग अधिक होगा।
4. उपभोग तथा राजस्व में सम्बन्ध - उपभोग तथा राजस्व एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर होते हैं। उपभोग पर राजस्व की निर्भरता होती है। जिस अर्थव्यवस्था में उपभोग का स्तर ऊँथा होता है, वहाँ सरकार को उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, सीमा कर आदि के रूप में अधिक राजस्व की प्राप्ति होती है। उपभोग के आधार पर करों का निर्धारण होता है। सामान्यतः आवश्यकता की वस्तुओं पर निम्न दर से कर लगाये जाते हैं।
राजस्व पर उपभोग निर्भर करता है। प्राय: सरकार अपनी कर नीति के द्वारा आवश्यकता की वस्तुओं पर निम्न दर से कर लगाती है, जिससे उन वस्तुओं का उपभोग बढ़ जाता है, इसके विपरीत, नशीले पदार्थों व विलासिता की वस्तुओं पर सरकार ऊंची दर पर कर लगाती है, जिससे उनका उपभोग सीमित मात्रा में हो। सरकार जब अधिक मात्रा में उत्पादन के लिए सार्वजनिक व्यय करती है, तो इससे उपभोग का स्तर बढ़ जाता है।
5. उत्पादन तथा विनिमय में सम्बन्ध - उत्पादन तथा विनिमय में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। उत्पादन को मात्रा तथा प्रकृति का विनिमय पर प्रभाव पड़ता है। आधुनिक युग में उत्पादक अपनी वस्तु का अधिकांश भाग बाजार में विनिमय हेतु उत्पादित करता है, न कि स्वयं की आवश्यकताओं (इच्छाओं) की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि के लिए वास्तव में, विनिमय उत्पादन का अन्तिम चरण होता है।
जिस प्रकार उत्पादन विनिमय पर निर्भर होता है, उसी प्रकार विनिमय भी उत्पादन पर निर्भर होता है। उत्पादन के पश्चात् हो विनिमय होता है। उत्पादन के द्वारा ही विनिमय सम्भव होता है। उत्पादन की अधिक मात्रा ही विनिमय की मात्र में अधिकता प्रदान करती है। परिणामस्वरूप बाजार, बैंकिंग तथा परिवहन आदि साधनों का विकास होता है।
6. उत्पादन तथा वितरण में सम्बन्ध - उत्पादन तथा वितरण में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। सामान्यतया, वितरण भ होता है, जबकि उत्पादन हो। यदि उत्पादन नहीं होगा तो वितरण नहीं होगा। उत्पादन की मात्रा पर विनिमय की मात्रा निर्भर करती है, अतः उत्पादन ही विनिमय का आधार है। उत्पादन के बहुत से नियम वितरण के नियमों को समझने में सहायक होते हैं। वितरण का स्वरूप भी उत्पादन के स्वरूप पर निर्भर करता है।
वहीं दूसरी ओर, वितरण भी उत्पादन को प्रभावित करता है। यदि वितरण न्यायपूर्ण है, तो वह उत्पादन के साधनों की उत्पादकता को प्रोत्साहित करता है। यदि वितरण की प्रक्रिया दोषपूर्ण है, तो उत्पादन पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। दोषपूर्ण वितरण से हड़ताल, तालाबन्दी एवं श्रमिक में अशान्ति बढ़ती है और उत्पादन में कमी आती है। इससे स्पष्ट है कि उत्पादन एवं वितरण एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
7. उत्पादन तथा राजस्व में सम्बन्ध - उत्पादन तथा राजस्व में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। सरकार की आय उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करती है। उत्पादन में वृद्धि का अर्थ है सरकार को उत्पादन शुल्क, बिक्री कर, आयकर आदि माध्यमों द्वारा राजस्व प्राप्त होना। वहीं दूसरी ओर, राजस्व की क्रियाओं का भी उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। सरकार राजस्व की नीतियों के द्वारा किसी भी वस्तु के उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है अथवा कम कर सकती है। सरकार की सार्वजनिक व्यय नीतियों का भी उत्पादन की मात्रा एवं प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार उत्पादन तथा राजस्व एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
8. विनिमय तथा वितरण में सम्बन्ध - विनिमय तथा वितरण में भी आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। विनिमय, वितरण का आधार है। यह इसी बात से सिद्ध हो जाता है कि वितरण, विनिमय-मूल्य सिद्धान्त की ही व्याख्या है। उत्पादित वस्तु का पहले विनिमय होता है, उसके बाद आय का वितरण किया जाता है। विनिमय से प्राप्त होने वाली आय पर साधनों का अंश निर्भर करता है। उत्पादित धन का वितरण होने पर पुनः विनिमय की क्रिया उत्पन्न होती है। उत्पादन के साधनों को जो पारिश्रमिक वितरण में प्राप्त होता है, वह विनिमय मूल्यों के सिद्धान्तों या नियमों द्वारा निर्धारित होता है।
विनिमय भी वितरण पर निर्भर होता है। वितरण उचित एवं न्यायोचित ढंग से होने पर उत्पादन के साधनों को अधिक आय प्राप्त होती है, जिससे विनिमय अधिक मात्रा में होता है। इसके विपरीत, वितरण के असमान होने पर विनिमय कम मात्रा में तथा विलासिता की वस्तुओं का होता है।
9. विनिमय तथा राजस्व में सम्बन्ध - विनिमय तथा राजस्व भी परस्पर सम्बन्धित होते हैं। राजस्व, विनिमय पर निर्भर होता है। सरकार को विनिमय क्रिया से बिक्री कर, आयात-निर्यात कर आदि के रूप में आय प्राप्त विनिमय अधिक होने पर राजस्व की भी अधिक प्राप्ति होती है।
वहीं दूसरी ओर, राजस्व सम्बन्धी क्रियाओं का भी विनिमय पर प्रभाव पड़ता है। राजस्व की नीति, जैसे-कर ढाँचा, व्यय नीति, ऋण नीति का विनिमय क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।
10. वितरण तथा राजस्व में सम्बन्ध - वितरण तथा राजस्व भी परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। किसी भी देश की करदान क्षमता, आय एवं सम्पत्ति के द्वारा निर्धारित होती है। यदि समाज में आय का वितरण असमान है, तो सरकार को अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है, लेकिन जहाँ आय के वितरण में असमानता कम होती है, वहाँ पर सरकार को प्रत्यक्ष करों पर निर्भर रहना पड़ता है तथा सार्वजनिक व्यय भी कम करने पड़ते हैं।
वहीं दूसरी ओर, राजस्व भी वितरण को प्रभावित करता है। करो तथा सार्वजनिक आय दोनों से ही समाज में आय का वितरण प्रभावित होता है। यदि सरकार करों के द्वारा प्राप्त आय को गरीब और पिछड़े वर्ग के विकास पर व्यय करती है, तो समाज में आर्थिक समानता आती है। इस प्रकार राजस्व से आय का पुनर्वितरण होता है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र के विभिन्न विभाग परस्पर एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।
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