रॉबिन्स की दुर्लभता संबंधी परिभाषा, विशेषताएँ एवं आलोचनाएँ | Robbins : scarcity related definition in hindi

रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा


'लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स’ के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. लिओनल रॉबिन्स ने सन् 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के स्वरूप एवं महत्व पर एक निबंध में एडम स्मिथ तथा डॉ. मार्शल की परिभाषाओं की आलोचना करते हुए यह बताया कि मनुष्य किस प्रकार अपनी अनन्त आवश्यकताओं को संतुष्टि अपने सीमित साधनों द्वारा करता है।


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प्रो. लिओनल रॉबिन्स


प्रो. रॉबिन्स की दुर्लभता संबंधी परिभाषा


प्रो. रॉबिन्स के अनुसार, - “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानव व्यवहार का अध्ययन सीमित साधनों, जिनके वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं तथा लक्ष्यों के संबंध के रूप में होता है।"


प्रो. मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, - “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि कोई समाज विशेष अपनी आर्थिक समस्याओं को कैसे हल करता है। एक आर्थिक समस्या उस समय मौजूद रहती है, जबकि सौमित साधन वैकल्पिक साध्यों की संतुष्टि में लगाये जाते हैं” 


स्टिगलर के अनुसार, - “अर्थशास्त्र एक ऐसे सिद्धांतों का अध्ययन है, जिसमें प्रतियोगी लक्ष्यों में सीमित साधनों का आवंटन करता है, जबकि आवंटन का उद्देश्य लक्ष्यों को अधिकतम रूप से प्राप्त करना है”


प्रश्न : अर्थशास्त्र की दुर्लभता संबंधी परिभाषा के प्रतिपादक कौन है?

उत्तर : प्रो. लिओनल रॉबिन्स 



प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा की व्याख्या


प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा निम्नांकित चार तथ्यों पर आधारित है -


1. आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित होती हैं - मानवीय आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित होती हैं। मनुष्य अपने सीमित साधनों से केवल कुछ ही आवश्यकताओं की संतुष्टि कर सकता है, लेकिन आवश्यकताएँ अनंत हैं और एक की संतुष्टि के बाद अन्य उत्पन्न हो जाती है। मनुष्य लगातार आवश्यकताओं की संतुष्टि का प्रयत्न करता रहता है। आवश्यकताओं का यह क्रम बना रहता है और वह असीमित है।


2. सीमित साधन - असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव के पास साधन सीमित हैं। इसलिए उसके सामने चुनाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। उसे यह सोचना पड़ता है कि उसे सर्वप्रथम किस आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए चुनना होगा।


3. सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग - वैकल्पिक उपयोग का अभिप्राय, किसी वस्तु का विभिन्न तरीकों से आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपयोग किया जाना है। मानव के सीमित साधनों का वैकल्पिक उपयोग किया जा सकता है। यदि उसके वैकल्पिक उपयोग संभव नहीं, तो चुनाव की समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी।


4. आवश्यकताओं की तीव्रता में अन्तर - मनुष्य की आवश्यकताओं की तीव्रता समान न होने के कारण वह सभी आवश्यकताओं की एक साथ संतुष्टि नहीं करना चाहता। उसे इन आवश्यकताओं में उनको तीव्रता का भिन्नता की श्रेणी के आधार पर चुनाव करना पड़ता है। यह सर्वप्रथम उन्हीं आवश्यकताओं को संतुष्टि करता है, जो अधिक तीव्र होती है।


5. सीमित समय - चुनाव की समस्या उत्पन्न होने का कारण यह है कि मनुष्य के पास साधन की सीमितता के सा समय भी सीमित है। उसे तय करना पड़ता है कि वह कितना समय किसमें खर्च करता है। 


प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा की विशेषताएँ 


प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -


1. अर्थशास्त्र एक मानव विज्ञान है - प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को एक मानव विज्ञान माना है। इसके अन्तर्गत सभी मनुष्यों के सभी प्रकार के व्यवहारों के चुनाव संबंधी पहलू का अध्ययन किया जाता है।


2. धन के पैमाने का कोई महत्वपूर्ण स्थान न होना - प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में मुद्रा या धन के पैमाने को महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया है।


3. वास्तविक विज्ञान - प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान के स्थान पर वास्तविक विज्ञान माना है, जिसका कार्य वस्तु स्थिति को सामने रखना है। प्रो. रॉबिन्स के अनुसार,- अर्थशास्त्र केवल साधनों का अध्ययन करता है। तथ्यों के औचित्य या अनौचित्य पर विचार करना उसके क्षेत्र से बाहर है।


4. भौतिक व अभौतिक क्रियाओं में भेद न करना - प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा भौतिकता के जाल में नहीं फंसी है अर्थात उन्होंने भौतिक तथा अभौतिक एवं आर्थिक व अनार्थिक क्रियाओं में भेद नहीं किया है। रॉबिन्स के अनुसार - अर्थशास्त्र में मनुष्य की प्रत्येक क्रिया के आर्थिक पहलू का अध्ययन होता है।


5. मानवीय व्यवहारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन - प्रो. रॉबिन्स को परिभाषा मानवीय व्यवहारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करती है। उन्होंने बताया है कि अर्थशास्त्र में मनुष्य की किसी विशेष क्रिया का नहीं, बल्कि सभी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। हाँ, इन क्रियाओं के उस पहलू का ही अध्ययन होता है, जिस पर सीमितता या दुर्लभता का प्रभाव पड़ता है।


6. मनुष्य को विवेकशील प्राणी मानना - असीमित आवश्यकताओं तथा सीमित साधनों के बीच समायोजन करना एक विवेकशील प्राणी का ही कार्य है। प्रो. रॉबिन्स ने विवेकशील प्राणी को ही अपने विश्लेषण का आधार मानकर परिभाषा दी है।


7. अर्थशास्त्र का विस्तृत क्षेत्र - प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को विस्तृत कर दिया है। इनकी परिभाषा में व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही प्रयत्न सम्मिलित हैं और मानवीय साधन सीमित होने से प्रत्येक व्यक्ति के सामने, चाहे वह समाज में रहता हो अथवा समाज से बाहर, चुनाव का प्रश्न रहता है। अतः अब अर्थशास्त्र वस्तु विनिमय तथा मुद्रा विनिमय में, व्यक्गित तथा सामाजिक व्यवहार में, समाजबादी तथा पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में लागू होता है।


प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचनाएँ 


प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा को प्रमुख त्रुटियाँ या आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं -


1. अर्थशास्त्र का विस्तृत क्षेत्र - आलोचकों का विचार है कि प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा देकर अर्थशास्त्र के क्षेत्र को अनावश्यक रूप से विस्तृत कर दिया है। एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को 'धन' तक सीमित रखा, जिसे डॉ. मार्शल तथा उनके समर्थकों ने ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं तक बढ़ा दिया, जिनका मूल्यांकन मुद्रा के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को अत्यधिक विस्तृत कर उसे 'आर्थिक समस्या' अथवा 'चयन को समस्या' तक बढ़ा दिया है।


2. मानव व्यवहार को अधिक विवेकशील मानना - प्रो. रॉबिन्स ने मनुष्य को बहुत ही अधिक विवेकशील माना है, जो अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए अपने सीमित साधनों को खूब सोच-समझकर काम में लाता है, लेकिन आलोचकों का विचार है कि वास्तव में ऐसी बात नहीं है। सीमित साधनों का बँटवारा विभिन्न आवश्यकताओं के बीच स्वयं ही हो जाता है। यह किसी विवेकपूर्ण व्यवहार का परिणाम नहीं होता।


3. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के बीच तटस्थ नहीं रहता - प्रो. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान मानकर उसे उद्देश्यों के बीच तटस्थ मानते हैं, अर्थात् अर्थशास्त्री केवल वास्तविकता का अध्ययन करता है और उसका अच्छाई या बुराई से कोई संबंध नहीं रहता। अर्थशास्त्र एक सामाजिक और मानव विज्ञान है। इस नाते उसको मानव कल्याण से संबंध रखना पड़ता है। इसलिए डॉ. मार्शल, बूटन, बेवरिज आदि अर्थशास्त्रियों का विचार है कि यदि अर्थशास्त्र का कल्याण से संबंध-विच्छेद किया गया तो वह एक भावहीन विज्ञान रह जाएगा।


4. साधन और साध्य के बीच अन्तर स्पष्ट न होना - प्रो. रॉबिन्स ने 'साधन' और 'साध्य' के बीच अन्तर को स्पष्ट नहीं किया। कुछ अर्थ शास्त्रियों का विचार है कि कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो एक समय पर तो 'साध्य' प्रतीत होती हैं, लेकिन यही कुछ समय बाद 'साधन' बन जाती हैं। उदाहरणार्थ, बी. बनकर रह गया है ए. या एम. ए. की डिग्री विद्यार्थियों के अध्ययन काल तक साध्य रहती है, लेकिन डिग्री प्राप्त होने के पश्चात् वही उनके लिए नौकरी प्राप्त करने का साधन' बन जाती है।


5. परिभाषा में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग - प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में सीमित तथा वैकल्पिक प्रयोग शब्दों का अनावश्यक रूप से प्रयोग किया है। आलोचकों का विचार है कि साधनों का सीमित एवं वैकल्पिक प्रयोग वाला होना उनका एक निहित गुण है जब ऐसा है तो सीमित एवं वैकल्पिक प्रयोग शब्दों को परिभाषा में सम्मिलित करने की क्या आवश्यकता है ?


6. आवश्यकताओं की अनेकता का वांछनीय न होना - प्रो. रॉबिन्स का विचार था कि - मनुष्य मात्र का कल्याण अनेक आवश्यकताओं की संतुष्टि द्वारा होता है और तभी उसे सुख मिलता है. इस संबंध में भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता का मत है कि - मानव को सुख आवश्यकताओं को सीमित करने से प्राप्त होता है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी आवश्यकताएँ कम-से-कम रखे, ताकि उनकी संतुष्टि बिना किसी कष्ट के सीमित साधनों से की जा सके।


7. अर्थशास्त्र 'विज्ञान' के साथ ही 'कला' भी है - प्रो. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को एक वास्तविक विज्ञान मानते हैं, जिसका कार्य सिद्धांतों का निर्माण करना है, उसको इनके व्यावहारिक प्रयोग से कोई मतलब नहीं है। लेकिन आलोचकों के अनुसार यह एकपक्षीय बात है, क्योंकि यदि अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान के नाते व्यावहारिक समस्याओं के समाधान से कोई संबंध न रखे, तो इसका कुछ भी उपयोग नहीं रह जाता। इसलिए अनेक अर्थशास्त्रियों का विचार है कि अर्थशास्त्र को सिद्धांत बनाने के साथ-साथ सिद्धांत का प्रयोग करने वाला भी होना चाहिए।


8. अर्थशास्त्र एक मूल्यांकन सिद्धांत बनकर रह गया है - प्रो. रॉबिन्स ने चयन की बात कहकर अर्थशास्त्र को एक मूल्य सिद्धांत तक सीमित कर दिया है। इसमें केवल इस बात का अध्ययन करना रह गया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है तथा इसके फलस्वरूप वस्तुओं एवं साधनों के मूल्य किस प्रकार निर्धारित होते हैं, लेकिन वास्तव में अर्थशास्त्र का क्षेत्र साधनों के आवंटन और मूल्य सिद्धांत से कहीं अधिक है। उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा वैज्ञानिक है, जिसमें उन्होंने चयन की समस्या को प्रस्तुत किया है और इसी के कारण मनुष्य अपने आर्थिक प्रयत्नों में व्यस्त रहता है।


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