पूंजी का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार तथा वर्गीकरण बताइये | Capital meaning in hindi

पूँजी का अर्थ


साधारण बोलचाल की भाषा में पूंजी का अर्थ धन या सम्पत्ति से लगाया जाता है, किन्तु अर्थशास्त्र में इसका उपयोग एक विशिष्ट अर्थ में किया जाता है। पूँजी के अन्तर्गत मशीन, कारखाने, भवन तथा बीज आदि वे सभी चीजें आती हैं, जो उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती हैं। 


पूँजी की उत्पत्ति मानव श्रम से होती है। यही कारण है कि इसे भूतकालीन श्रम कहा जाता है। आज पूँजी उत्पादन का एक अत्यन्त प्रमुख साधन माना जाता है। वर्तमान अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान पाया जाता है। 


इसीलिये आधुनिक अर्थव्यवस्था को पूँजी का युग कहा जाता है। फिर भी यह कहना गलत न होगा कि समस्त पूँजी धन है, किन्तु समस्त धन पूँजी नहीं होती है। सामान्यतः पूँजी मानव द्वारा उत्पादित धन का वह भाग होती है, जिसका उपयोग और अधिक धन कमाने के लिये किया जाता है।


Punjika-arth-paribhasha-visheshtayen-prakaar-tatha-vargikaran
पूंजी

पूँजी की परिभाषा


डॉ. मार्शल के अनुसार, - “प्रकृति की निःशुल्क देन के अतिरिक्त वह सब सम्पत्ति जिससे आय प्राप्त होती है, पूँजी कहलाती है।"


प्रो. चैपमैन के शब्दों में, - “पूँजी वह सम्पत्ति है, जो आय प्राप्त करती है या आय प्राप्त करने में सहयोग देती है या इस उद्देश्य से प्रयोग की जाती है।”


प्रो. फिशर के शब्दों में, - “पूँजी वह सम्पत्ति है जो मनुष्य के भूतकालिक श्रम का परिणाम है और जिसका उपयोग साधन के रूप में अधिक धन प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”


उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पूँजी सदैव मानव निर्मित होती है। प्रकृति दत्त पदार्थ जिनके बनाने में मानव का योगदान नहीं होता है, पूँजी नहीं होते हैं। अर्थशास्त्र में केवल वही पदार्थ पूँजी माने जाते हैं। जो धन होते हैं तथा इन्हें धनोत्पादन में उपयोग में लाया जाता है। अतएव कोई वस्तु पूँजी है इसका निर्णय केवल उस वस्तु के उद्योग के आधार पर किया जाता है।


प्रो. टामस के शब्दों में, -  “भूमि को छोड़कर पूँजी व्यक्तिगत तथा सामूहिक धन का वह भाग जो अधिक धन के उत्पादन में सहायक होता है।”


पूँजी की उपर्युक्त परिभाषाओं से पूँजी के निम्नलिखित अनिवार्य तत्वों का पता चलता है -


(i) पूँजी सदैव ही मानव निर्मित होती है। प्रकृतिदत्त पदार्थ पूँजी नहीं होते हैं।


(ii) अर्थशास्त्र में केवल वे ही पदार्थ पूँजी कहे जाते हैं जो धन के अन्तर्गत आते हैं।


(iii) धन का वही भाग पूँजी होता है, जो और अधिक धनोत्पादन में उपयोग किया जाता है। 


(iv) कोई वस्तु विशेष पूँजी है, इसका निर्णय केवल उस वस्तु के उपयोग के आधार पर होता है। 


(v) पूँजी आय प्राप्त करने वाला साधन है। इससे पूँजीपति को आय प्राप्त होती है।



पूँजी की विशेषताएँ


उत्पादन के साधन के रूप में पूँजी को निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ पायी जाती हैं -


1. पूँजी उत्पत्ति का मानव निर्मित साधन - पूँजी मानव निर्मित होती है। भूमि की भाँति प्रकृति की निःशुल्क देन नहीं है। मनुष्य अपने श्रम द्वारा पूँजी का उत्पादन करता है। वह अपनी वर्तमान की आवश्यकताओं को स्थगित करके अपनी आय के एक भाग को बचाकर रखता है। इस प्रकार पूँजी बचत का प्रतिफल है। इसीलिए कहा जाता है कि इस बचत को जब और अधिक आय प्राप्त पूँजी की विशेषताएँ करने के लिए व्यय किया जाता है तो वह धन पूँजी हो जाता है।


2. पूँजी निष्क्रिय साधन है - पूँजी स्वयं उत्पादन नहीं कर सकती है। अन्य शब्दों में यदि उसे उपयोग न किया जाय तो उससे किसी प्रकार की आय प्राप्त नहीं की जा सकती है। वास्तव में पूँजी भूमि तथा श्रम के सहयोग से ही उत्पादन करने में सक्षम होती है। यही कारण है कि इसे आज के औद्योगिक • युग में भी उत्पादन निष्क्रिय साधन माना जाता है।


3. पूँजी नाशवान साधन - पूँजी का लगातार प्रयोग करते रहने से इसमें घिसावट होती रहती है। दीर्घकाल में एक ऐसा समय आता है, जबकि इसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। यही कारण है कि कुछ समय बाद मशीन, औजार, यंत्र, मकान फर्नीचर आदि को बदलना पड़ता है। पूँजी की इस विशेषता के कारण उसकी कीमत का कुछ हिस्सा प्रतिवर्ष सुरक्षित जमा कर दिया जाता है, ताकि समाप्त हो जाने पर उसे पुनः खरीदा जा सके। अधिक गतिशील


4. पूँजी सर्वाधिक गतिशील साधन - उत्पादन के अन्य सभी साधनों की तुलना में पूँजी सबसे साधन है। इसे एक व्यवसाय से हटाकर दूसरे व्यवसाय तथा एक स्थान से दूसरे स्थान में सुगमता से स्थानांतरित किया जा सकता है। इसीलिए कहा जाता है, कि पूँजी में उत्पादन के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक भौगोलिक तथा व्यावसायिक गतिशीलता पाई जाती है। अतएव आज पूँजी का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप पाया जाता है।


5. पूँजी उत्पादन का अनिवार्य साधन नहीं - भूमि स्वयं श्रम उत्पादन का प्राथमिक अनिवार्य या मौलिक साधन है, किन्तु पूँजी इनकी तरह उत्पादन का मौलिक । नहीं है। इसका कारण यह है कि पूँजी के बिना उत्पादन का कार्य हो सकता है। उदाहरण के लिए प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत कम थीं। अतः वह बिना पूँजी के ही उनकी पूर्ति कर लेता था, किन्तु आधुनिक युग में उत्पादन के साधनों में पूँजी का महत्व इतना अधिक हो गया है कि यह उत्पादन का एक अनिवार्य साधन ही हो गया है।


6. पूँजी की मात्रा में वृद्धि या कमी संभव - पूँजी की पूर्ति को मानव अपने प्रयासों द्वारा आवश्यकतानुसार सरलता पूर्वक घटाया-बढ़ाया सकता है, किन्तु उत्पादन के अन्य साधनों के साथ इस प्रकार की सुविधा नहीं पाई जाती है, उदाहरणार्थ- भूमि की पूर्ति निश्चित होती है तथा श्रम की पूर्ति में भी आसानी से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, किन्तु पूँजी में सुविधापूर्वक कमी तथा वृद्धि किया जाना संभव होता है।


7. अन्य विशेषताएँ - पूँजी की कुछ अन्य विशेषताएँ निम्न प्रकार पायी जाती हैं -

(i) पूँजी भूतकालीन श्रम की संचित वस्तु है

(ii) पूँजी में उत्पादकता होती है 

(iii) पूँजी श्रम की अपेक्षा अधिक अक्षयशील होती है

(iv) पूँजी भविष्य में आय प्रदान करती है

(v) पूँजी को समय-समय पर पुनरुत्पादित एवं पुनरापूरित किया जा सकता है।


पूँजी के प्रकार


पूँजी को तीन भागों में विभाजित किया गया है -

1. स्थायी पूँजी (Fixed Capital) 

2. चल पूँजी (Floating Capital) 

3. कार्यशील पूँजी (Working Capital) 

पूँजी का वर्गीकरण


पूँजी उत्पादन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। अनेक अर्थशास्त्रियों ने पूँजी का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया है। कुछ प्रमुख वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार पाये जाते हैं -


1. चल तथा अचल पूंजी - चल पूँजी वह होती है, जो उत्पादन कार्य में एक ही बार उपयोग करने पर समाप्त हो जाती है। अन्य शब्दों में एक बार उपयोग करने के बाद इसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। यही कारण कि उत्पादन कार्य को चालू रखने के लिये इसे बार-बार खरीदने की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरणार्थ एक कृषक के बीज, कच्चे माल, कोयला, रूई, जूट आदि चल पूँजी के अन्तर्गत आते हैं। 


प्रो. मिल के अनुसार - "चल पूँजी वह है, जो उत्पादन में एक बार के प्रयोग से अपने समस्त कार्य समाप्त कर ले।" यह पूँजी उत्पादन कार्य में एक ही बार सहायक होती है।”


2. उत्पादन तथा उपभोग पूँजी - धन के उत्पादन में जो पूँजो प्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान करती है उसे उत्पादन पूँजी कहा जाता है। अन्य शब्दों में उत्पादन पूँजी वह होती है जो उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष रूप से सहायक होती है। उदाहरण के लिये मशीन, औजार तथा कच्चे माल, बीज, हल आदि इसी प्रकार के पूँजी होते हैं। 


डॉ. मार्शल के अनुसार - वे सभी पदार्थ उत्पादन पूँजी में सम्मिलित होते हैं, जो उत्पादन क्रिया में श्रम को प्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान करते हैं। इसके विपरीत उपभोग पूँजी वह होती है जो उत्पादन कार्य में परोक्ष रूप से सहायता प्रदान करती है।  


3. भौतिक तथा वैयक्तिक पूँजी - जिस पूँजी को देखा तथा स्पर्श किया जाता है, उसे भौतिक पूँजो कहा जाता है। अन्य शब्दों में भौतिक पूँजी वह पूँजी होती है जो मूर्त, स्थूल तथा विनिमय साध्य होती है। उदाहरणार्थ औजार, भवन, मकान, कच्चे पदार्थ तथा मशीन आदि इसके अन्तर्गत आते हैं। इसे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित आसानी से किया जा सकता है। एक विद्वान के शब्दों में वह पूँजी जो मूर्त तथा स्थूल में विद्यमान होती है उसे भौतिक पूँजी कहते हैं, यही भौतिक पूँजी के लक्षण पाये जाते हैं।


4. एकअर्थी तथा बहुअर्थी पूँजी - एक अर्थी पूँजी से अभिप्राय: उस पूँजी से होता है, जो केवल एक ही कार्य में उपयोग की जा सकती है। इसे विशिष्ट पूँजी भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि इसे अन्य कार्यों में उपयोग नहीं किया जा सकता है। उदाहरणार्थ सड़क, पुल अथवा रेलवे लाइन केवल रेल चलाने में ही उपयोग की जाती है। इसीलिये इस प्रकार की पूँजी को एक अर्थी पूंजी के नाम से पुकारा जाता है। इस प्रकार की लगी हुई पूँजी को वापस नहीं लिया जा सकता है। इसीलिये इसे विशिष्ट पूँजी कहते हैं।


5. व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक पूँजी - वह पूँजी जिस पर व्यक्ति विशेष का अधिकार होता है, उसे व्यक्तिगत पूँजी कहते हैं। उदाहरणार्थ व्यक्ति का स्वयं का मकान, कार, गाड़ी, किसान के हल, बैल, व्यक्ति के व्यक्तिगत गुण आदि। इस प्रकार की पूँजी का वर्गीकरण स्वामित्व के आधार पर किया जाता है। व्यक्तियों, फर्मों तथा कम्पनियों की पूँजी व्यक्तिगत पूँजी होती है। 


6. राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी - वह पूँजी जिस पर सम्पूर्ण देश या राष्ट्र का अधिकार होता है राष्ट्रीय पूँजी होती है। इसके अन्तर्गत देश की सभी प्रकार की व्यक्तिगत तथा सामाजिक पूँजी को सम्मिलित किया जाता है। अन्य शब्दों में राष्ट्र की समस्त पूँजी जिस पर देश की सरकार का अधिकार होता है, उसे ही राष्ट्रीय पूँजो कहते हैं। जैसे बाँध, नहरें, रेलें आदि भारतीय राष्ट्रीय पूँजी हैं।


इसके विपरीत वह पूँजी जिस पर एक राष्ट्र विशेष का अधिकार न होते हुये विश्व के सभी देशों का स्वामित्व पाया जाता है, उसे अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी कहा जाता है। अन्य शब्दों में जिस पूँजी पर संसार के सभी देशों का अधिकार होता है, उसको अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी कहते हैं। उदाहरणार्थ विश्व बैंक तथा आई. एम. एफ. की पूँजी, समुद्र तथा आविष्कार आदि। 


7. वेतन तथा सहायक पूँजी - वेतन पूँजी वह पूँजी है, जो उत्पादन कार्य में लगे हुये श्रमिकों को उनके वेतन या पारिश्रमिक के रूप में दी जाती है। जैसे- श्रमिकों को मजदूरी इसके विपरीत सहायक पूँजो वह पूँजी होती है, जो श्रमिकों को उत्पादन कार्य में सहायता प्रदान करती है। उदाहरणार्थ मशीन, औजार, कच्चा माल तथा शक्ति के साधन आदि श्रमिकों को उत्पादन कार्य करने में सहायता पहुंचाते हैं। इसीलिये इन्हें सहायक पूँजी कहते हैं।


यह भी पढ़े -

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ