उपभोक्ता संतुलन का अर्थ
प्रत्येक उपभोक्ता का उद्देश्य अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना होता है। जब उपभोक्ता अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर रहा होता है, तो उसे संतुलन की अवस्था में कहा जाता है।
अन्य शब्दों में, उपभोक्ता संतुलन स्थिति प्राप्त करने के बाद अपनी आय के खर्च करने के ढंग में किसी प्रकार का परिवर्तन करना पसंद नहीं करता। उपभोक्ता का संतुलन उपभोग की एक आदर्श स्थिति को दर्शाता है। यह उपभोग की आदर्श स्थिति होती है। यदि वह इसमें कोई परिवर्तन करता है, तो उसको संतुष्टि में कमी आ सकती है अथवा वृद्धि नहीं की जा सकती।
उपभोक्ता संतुलन |
उपभोक्ता संतुलन की परिभाषा
प्रो. मार्शल के शब्दों में, - “उपभोक्ता संतुलन उपभोक्ता माँग की वह अवस्था है, जिसे वह श्रेष्ठ समझता है और उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहता।"
मान्यताएँ (Assumptions) - गणनावाचक विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता संतुलन का अध्ययन निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है -
(i) उपभोक्ता विवेकशील है और वह अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने की इच्छा रखता है।
(ii) उपयोगिता की गणनावाचक माप सम्भव है।
(iii) मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थिर रहती है।
(iv) उपभोक्ता की आय तथा वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं।
(v) वस्तुओं में पूरकता तथा प्रतिस्थापन्नता का अभाव पाया जाता है।
(vi) उपभोक्ता की अभिरुचि एवं पसंदगी में कोई परिवर्तन नहीं आता।
(vii) उपभोक्ता को उसके सम्मुख प्रस्तुत विभिन्न विकल्पों का पूर्ण ज्ञान है। उसे विभिन्न वस्तुओं पर किए जाने वाले खर्च से प्राप्त हो सकने वाली उपयोगिताओं की भी जानकारी है।
उपभोक्ता संतुलन का निर्धारण
उपभोक्ता संतुलन स्थिति का अध्ययन निम्न दो परिस्थितियों में किया जा सकता है -
(अ) एक वस्तु की दशा में
(ब) अनेक वस्तुओं की दशा में
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