अर्थशास्त्र के कितने विभाग हैं? | What are the 5 parts of economics in hindi

अर्थशास्त्र के विभाग


arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
अर्थशास्त्र के विभाग

आधुनिक समाज के जटिल आर्थिक संगठन में मनुष्य की धन से सम्बन्धित क्रियाओं को 5 भागों में विभाजित किया जा सकता है - 


(i) उपभोग (Consumption)

(ii) उत्पादन (Production)

(iii) विनिमय (Exchange)

(iv) वितरण (Distribution)

(v) राजस्व (Revenue)


अर्थशास्त्र के इन 5 परम्परागत विभागों अथवा विषय-सामग्री के अतिरिक्त वर्तमान में आर्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत आधुनिक कल्याणकारी राज्यों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है, अतः अर्थशास्त्र के पाँचवें विभाग के रूप में राजस्व का अध्ययन किया जाने लगा है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री अथवा अर्थशास्त्र के इन पाँचों विभागों का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है, लेकिन ये पाँचों विभाग एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, अतः यहाँ हम अर्थशास्त्र के विभिन्न विभागों एवं उनमें पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करेंगे।



अर्थशास्त्र के विभाग

arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
उपभोग (Consumption)

1. उपभोग

अर्थशास्त्र के विभिन्न विभागों में उपभोग एक महत्वपूर्ण तथा प्रथम विभाग है जैसा कि प्रो. जेवन्स ने लिखा है, - "उपभोग के उचित सिद्धान्त पर ही अर्थशास्त्र का सम्पूर्ण सिद्धान्त अवलम्बित है।'' अर्थशास्त्र में उपभोग से अभिप्राय, आर्थिक वस्तुओं एवं व्यक्तिगत सेवाओं के ऐसे उपयोग से है, जिससे मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्टि होती है, अर्थात् उपभोग एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करता है।


प्रो. एली के अनुसार, - "व्यापक अर्थ में, उपभोग से आशय मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग से होता है।


अर्थशास्त्र के उपभोग विभाग में मानवीय आवश्यकताओं की प्रकृति तथा उनकी पूर्ति से सम्बन्धित नियमों का अध्ययन किया जाता है। आवश्यकताएँ हो मानवीय प्रयत्नों को करने के लिए बाध्य करती हैं और आर्थिक प्रयत्नों की जननी हैं। उपभोग हमें आर्थिक प्रयत्नों को करने के लिए प्रेरित करती हैं और आवश्यकताओं की पूर्ति आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य भी है। 


इसीलिए "उपभोग को आर्थिक क्रियाओं का आदि एवं अन्त दोनों कहा जाता है। उपभोग के अन्तर्गत आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से सम्बन्धित नियमों एवं सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है। आवश्यकताओं को सन्तुष्टि से सम्बन्धित विभिन्न नियमों, जैसे-उपयोगिता ह्रास नियम, सम-सीमान्त उपयोगिता नियम, उपभोक्ता की बचत तथा माँग के नियमों का अध्ययन सम्मिलित रहता है। इस प्रकार, उपभोक्ता के व्यवहार से सम्बन्धित नियमों का अध्ययन उपभोग के अन्तर्गत किया जाता है।


arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
उत्पादन (Production)

2. उत्पादन


उत्पादन अर्थशास्त्र का दूसरा प्रमुख विभाग है। सामान्यतया मनुष्य जिन क्रियाओं द्वारा धन का उपार्जन करता है, उसी का अध्ययन अर्थशास्त्र के उत्पादन विभाग में किया जाता है। अर्थशास्त्र में उत्पादन का अर्थ, उपयोगिता के सृजन अथवा उपयोगिता में वृद्धि से है। 


प्रो. टॉमस के अनुसार, - “केवल ऐसी उपयोगिता वृद्धि को उत्पादन कहा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप किसी वस्तु में मूल्य की वृद्धि या विनिमय साध्यता की वृद्धि हो जाये अर्थात् उस वस्तु के बदले में पहले से अधिक वस्तुएँ मिल सकें।"


उत्पादन के पाँच साधन होते हैं - 


(i) भूमि (ii) श्रम (iii) पूँजी (iv) संगठन (v) साहस


अर्थशास्त्र के उत्पादन विभाग के अन्तर्गत इन पाँचों साधनों की विशेषताएँ तथा इनकी कुशलता में वृद्धि से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जैसे - उत्पत्ति के नियम, उत्पादन फलन, जनसंख्या के सिद्धान्त, पूँजी निर्माण उद्योगों का केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीकरण, श्रम-विभाजन, श्रम को गतिशीलता, श्रम की कार्यकुशलता, पैमाने का प्रतिफल आदि उत्पादन विभाग की विषय-सामग्री हैं। उत्पादन के अन्तर्गत उत्पादन का पैमाना, श्रम एवं पूँजी प्रधान उत्पादन व तकनीकी तथा मशीनों के लाभ एवं हानियों का भी अध्ययन किया जाता है। 


arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
विनिमय (Exchange)

3. विनिमय


विनिमय अर्थशास्त्र का तीसरा महत्वपूर्ण विभाग है। विनिमय के माध्यम से ही उत्पादित वस्तु उपभोक्ताओं तक पहुँचती है। यदि विनिमय न हो तो वस्तु उपभोक्ता तक नहीं पहुँचेगी और वस्तु का उत्पादन भी नहीं होगा। उत्पादन के न होने पर वितरण का सवाल हो उत्पन्न नहीं होता। इस प्रकार अर्थशास्त्र के समस्त विभागों के साथ विनिमय भी एक महत्वपूर्ण विभाग है। 


प्रो. मार्शल ने लिखा है, - “दो पक्षों के बीच होने वाले धन के ऐच्छिक, वैधानिक एवं पारस्परिक आदान प्रदान को विनिमय कहते हैं।"


विनिमय के अन्तर्गत बाजार मूल्य निर्धारण के सामान्य सिद्धान्त, साम्यावस्था, लागत तथा आगम विश्लेषण पूर्ण प्रतियोगिता, अपूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार एवं अल्पाधिकार का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न प्रकार को फर्मे, संयुक्त माँग एवं संयुक्त पूर्ति का अध्ययन भी विनिमय विभाग के अन्तर्गत होता है। आधुनिक युग में वस्तुओं एवं सेवाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान प्रमुख रूप से मुद्रा के माध्यम से ही होता है। इस प्रकार मुद्रा तथा बैंकिंग विनिमय विभाग की प्रमुख विषय सामग्री है। व्यापार सम्बन्धी सभी समस्याएँ विनिमय के अन्तर्गत अध्ययन की जाती हैं।


arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
वितरण (Distribution)

4. वितरण


वितरण अर्थशास्त्र का चौथा विभाग है। सामान्यतया, धन का उत्पादन, उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के सहयोग से होता है, अतः उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के सहयोग से जिस धन का उत्पादन होता है, उसका पुनः इन साधनों के बीच वितरण करना पड़ता है। इस प्रकार, वितरण अर्थशास्त्र के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विभाग है। 


प्रो. चैपमैन के अनुसार, - “वितरण के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि उत्पादन के साधनों के द्वारा उत्पादित धन को उत्पादन के साधनों में पुनः वितरण किस प्रकार किया जाता है।"


अर्थशास्त्र के वितरण विभाग में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि राष्ट्रीय आय का किस प्रकार वितरण होता है तथा उत्पादन के विभिन्न साधनों का पुरस्कार किस प्रकार से निश्चित किया जाता है। 


अर्थात् भूमि को लगान, श्रम को मजदूरी, पूँजी को ब्याज, संगठन को वेतन तथा साहसी के लाभ को निश्चित करने के सिद्धान्तों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया जाता है। आज के युग में वितरण का महत्व पहले से अधिक हो गया है, क्योंकि राष्ट्रीय आय के वितरण के तरीके पर ही समाज का आर्थिक कल्याण निर्भर करता है। अधिकतम सामाजिक कल्याण के लिए धन का न्यायसंगत वितरण आवश्यक है। 


इस प्रकार, समाज में धन के वितरण की स्थिति, वितरण में असमानता के कारणों की खोज तथा उनके दूर करने के उपायों पर विचार, इसके अन्तर्गत अध्ययन के महत्वपूर्ण घटक 


arthashastra-ke-kitne-vibhag-hain
राजस्व (Revenue)

5. राजस्व


राजस्व अर्थशास्त्र का पाँचवाँ एवं अन्तिम महत्वपूर्ण विभाग है। राजस्व के अन्तर्गत सरकार एवं सार्वजनिक सत्ताधारियों की उन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जिनका सम्बन्ध राज्य के आय-व्यय से होता है। 


इन तथ्यों को ध्यान में रखकर राजस्व की विषय-सामग्री को पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है -


(i) सार्वजनिक व्यय

(ii) सार्वजनिक आय

(iii) सार्वजनिक ऋण

(iv) वित्तीय प्रशासन

(v) संघीय वित्त 


इस प्रकार, "राजस्व एक ऐसा विज्ञान है, जो सार्वजनिक संस्थाओं के आय एवं व्यय से सम्बन्धित है। इसमें सार्वजनिक संस्थाएँ (केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारें, स्थानीय स्वायत्त संस्थाएँ) किस प्रकार से आय प्राप्त करती हैं और अपनी आय एवं व्यय में कैसे सामंजस्य स्थापित करती है, इसका अध्ययन किया जाता है। " आधुनिक युग में सरकार का दायित्व केवल जन-सुरक्षा तथा कानून व शान्ति व्यवस्था बनाये रखने तक ही सीमित नहीं है, अपितु इसका महत्वपूर्ण कार्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना है।


यह भी पढ़े -

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ