एम. जी. बोकरे की अर्थशास्त्र की परिभाषा, विशेषताएँ | M. G. Bokre definition of economics in hindi

डॉ. एम. जी. बोकरे जी का परिचय


डॉ. एम. जी. बोकरे का जन्म महाराष्ट्र में सन 1926 में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा वर्धा के जी.एस. कालेज में प्राप्त की एवं उसी कालेज में सन् 1960 तक अध्यापन कार्य किया। इसके बाद इसी कालेज की नागपुर शाखा में अध्यापन कार्य किया डॉ. बोकरे नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, महाराष्ट्र योजना आयोग के सदस्य, योजना आयोग की परामर्शदात्री समिति के सदस्य आदि पदों पर भी रहे। उनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें- 'इकोनोमिक्स थ्योरी ऑफ सर्वोदय', तथा 'हिन्दु इकोनोमिक्स'


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डॉ. एम. जी. बोकरे

डॉ. बोकरे ने मूल्य आधारित अर्थशास्त्र का विवेचन किया है। वह धर्म को समाहित करते हुए आर्थिक जीवन में मानव के विवेकपूर्ण व्यवहार की कल्पना करते हैं। इसी कारण प्रो. पी. आर. ब्रम्हानंदा ने उनके कार्य को 'धर्मानोमिक्स' कहा है। उनके अनुसार, अर्थशास्त्र का जन्म भारतीय वेदों से हुआ है। इसीलिए उन्होंने इसे हिन्दू अर्थशास्त्र का नाम दिया। उनके अनुसार, हिन्दू अर्थशास्त्र ही अर्थशास्त्र का भविष्य है तथा इसमें बताये गये नियमों एवं सिद्धांतों पर चलकर ही समाज अधिकतम सुख प्राप्त कर सकता है।


डॉ. बोकरे के अनुसार, पाश्चात्य अर्थशास्त्री एक ऐसे आर्थिक मानव की कल्पना करते हैं, जो आर्थिक जीवन में विवेकपूर्ण व्यवहार करता है, लेकिन ध्यान रहे धर्म के अभाव में वह आर्थिक संतुष्टि में वृद्धि हेतु अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकता है। डा. बोकरे अपने हिन्दू अर्थशास्त्र में ऐसी प्रतियोगिता की कल्पना करते हैं जिसमें दीर्घकाल में आपूर्ति बढ़े, कीमतों में कमी हो, एकाधिकारी प्रवृत्तियां उदित न हों तथा औद्योगिक विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहन मिले अर्थात् इस प्रतियोगिता से सभी लोगों को लाभ होना चाहिए।


डॉ. बोकरे के अनुसार, वस्तुओं की कीमतें उत्पादन लागत के आधार पर निर्धारित होनी चाहिए एवं कृषि व औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन लागत की घोषणा की जानी चाहिए। सरकार सभी औद्योगिक इकाइयों के लिए अनिवार्य करे, कि वह अपने वार्षिक लेखे-जोखे में उत्पादन लागतों के आँकड़ों को प्रकाशित करें।


डॉ. बोकरे के अनुसार, संसाधनों का अपव्यय व उपभोग में संयम न होने के कारण हो सीमितता की समस्या उत्पन्न होती है। डॉ. बोकरे के अनुसार, - अर्थशास्त्र में उन मानवीय क्रियाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए, जो सीमितता उत्पन्न करने वाली सभी शक्तियों को हटाकर क्रमानुसार प्रचुरता की दशा उत्पन्न करती हैं। 


डॉ. एम. जी. बोकरे की अर्थशास्त्र की परिभाषा


"हिन्दू अर्थशास्त्र बाहुल्य का अर्थशास्त्र है। अर्थव्यवस्था को वह प्रक्रिया, जो समाज को बहुलता की ओर ले जाए तथा उन शक्तियों को दूर करे, जो समाज में, अर्थव्यवस्था में सीमितता पैदा करे, हिन्दू अर्थशास्त्र कहलाता है।"


डॉ. एम. जी. बोकरे की परिभाषा की विशेषताएँ


डॉ. एम.जी. बोकरे के परिभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं -


(i) हिन्दू अर्थशास्त्र बहुलता का शास्त्र है, जबकि पाश्चात्य अर्थशास्त्र सीमितता का शास्त्र है।


(ii) वैभव या बहुलता सत्य निष्ठ वैदिक दर्शन का आधार है। विपुलता प्रतिस्पर्द्धा से आएगी। आचार्य शुक तथा कौटिल्य ने भी इसका समर्थन किया है।


(ii) हिन्दू अर्थशास्त्र मानवीय कल्याण का तंत्र है। यह पूँजीवाद, समाजवाद या मार्क्सवाद की प्रतिक्रिया नहीं है। यह इन सबसे परे एक तीसरा रास्ता है।


(iv) भारत तथा पश्चिमी धारणाओं तथा मान्यताओं में जो अंतर है, वहीं हिन्दू अर्थशास्त्र के क्रमिक विकास की सबसे बड़ी बाधा रही है।


(v) हिन्दू अर्थशास्त्र मात्र पदार्थ को महत्व नहीं देता, बल्कि मानव के सर्वांगीण विकास (भौतिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक) पर बल देता है। 


(vi) हिन्दू अर्थशास्त्र इस बात में विश्वास रखता है कि बहुलता से समानता आएगी, गरीबी मिटेगी तथा मूल्य गिरेंगे। 


(vii) हिन्दू अर्थशास्त्र यह मानता है कि मनुष्य हो हमारे अध्ययन का विषय है।


(viii) हिन्दू अर्थशास्त्र स्वनियोजन पर बल देता है, जो विदुर नीति पर आधारित है। लोगों को सम्पत्ति रखना चाहिए जिसे उनके बच्चों को उत्तराधिकार में प्राप्त करना चाहिए। सम्पत्ति रखने का उनका अबाध अधिकार है। यह एक प्रकार से स्वनियोजन है, जिससे आय प्राप्त की जा सकती है। 


(ix) हिन्दू अर्थशास्त्र एक ऐसी राज्य अर्थव्यवस्था पर बल देता है जिसमें वे सब बाधाएं दूर की जाएगा जो आर्थिक विकास के मार्ग में उपस्थित है तथा आर्थिक जीवन में बाहुल्य विरोधी हैं।


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