माँग के नियम के अपवाद | क्या माँग वक्र ऊपर भी उठ सकता है? | exception of law of demand in hindi

माँग के नियम के अपवाद

अथवा

क्या माँग वक्र ऊपर भी उठ सकता है?


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माँग के नियम

कुछ दशाओं में माँग का नियम लागू नहीं होता है अर्थात् वस्तु की कीमत के कम होने पर माँग बढ़ने की बजाय कम हो जाती है तथा कीमत के बढ़ने पर माँग घटने के बजाय बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में माँग वक्र नीचे की ओर झुकने को बजाय ऊपर की ओर उठता हुआ होता है। इन दशाओं को माँग के नियम का अपवाद कहते हैं।


माँग के नियम के प्रमुख अपवाद निम्नांकित हैं -


1. गिफिन का विरोधाभास - गिफिन के अनुसार, निम्न कोटि की वस्तुओं की कीमत कम होने पर उनकी माँग . बड़ती नहीं है, बल्कि कम हो जाती है। इसके विपरीत वस्तु को कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है।


यह बात "वास्तव में, उन वस्तुओं के सम्बन्ध में लागू होती है जो निम्न कोटि की हैं तथा जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का बड़ा भाग खाम करता है। ये वस्तुएँ गिफिन वस्तुएँ कहलाती हैं। इन वस्तुओं का ऋणात्मक आय प्रभाव इतना शक्तिशाली होता है कि वह धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव को समाप्त कर देता है। इनसे उपभोक्ता कीमत कम होने पर वस्तु को कम मात्रा में एवं कीमत अधिक होने पर अधिक मात्रा में खरीदते हैं। इस प्रकार गिफिन का विरोधाभास माँग के नियम का एक वास्तविक अपवाद है।


2. मिथ्या आकर्षण - कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जो व्यक्ति को समाज में के कारण होती हैं, जैसे-हौरे-जवाहरात, आदि, अत: ऐसी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने पर धनवान व्यक्ति अपने धन का प्रदर्शन करने के लिए वस्तुओं को खरीदने लगते हैं। इससे इन दिखावे वाली वस्तुओं को माँग, कीमत बढ़ने पर भी बढ़ जाती है। इसके विपरीत जब वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं, तब ये प्रतिष्ठामूलक अथवा प्रदर्शन की वस्तुएँ नहीं रह जातीं, अतः इनके मूल्य में कमी होने पर धनवान व्यक्तियों के लिए इसको माँग कम हो जाती है। इस प्रकार, प्रतिष्ठामूलक अथवा मिथ्या आकर्षण या दिखावे की वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता है।


3. अनिवार्यताएँ - मानव जीवन की वे वस्तुएँ जिनका उपभोग करना मनुष्य के लिए अनिवार्य होता है, जैसे-खाद्यान्न, कपड़ा आदि। ऐसी वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होने के बावजूद इनकी माँग कम नहीं होती है, अतः ऐसी दशा में माँग का नियम लागू नहीं होता है, क्योंकि उपभोक्ता को उतनी वस्तु का उपभोग तो करना ही पड़ेगा, जितना कि जीवन के लिए आवश्यक है, अतः कीमत की वृद्धि का अधिक प्रभाव इन वस्तुओं की माँग पर नहीं पड़ेगा।


4. दुर्लभ वस्तुएँ - यदि उपभोक्ता को किसी वस्तु के भविष्य में दुर्लभ हो जाने की आशंका है तो कीमत के बढ़ जाने पर भी उनकी माँग बढ़ जायेगी, जैसे-खाड़ी युद्ध के समय तेल एवं खाद्यान्नों के सम्बन्ध में यह बात सिद्ध हो चुकी है। 


5. विशेष अवसर पर - माँग का नियम कुछ विशेष अवसरों पर भी लागू नहीं होता है, जैसे-शादी, त्यौहार या विशेष अवसर। इन अवसरों पर वस्तु की कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है। इसी प्रकार, यदि संक्रामक रोग फैल जायें तो मछली की कीमत में कमी होने पर भी उसकी माँग कम हो जाती है। 


6. अज्ञानता का प्रभाव - कभी-कभी लोग अज्ञानतावश अधिक कीमत वाली वस्तुओं को अच्छी एवं श्रेष्ठ समझने लगते हैं और कम कीमत वाली वस्तुओं को निकृष्ट किस्म की वस्तु मानने लगते हैं। इस अज्ञानता के कारण भी वस्तु को कीमतों में बढ़ोत्तरी होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है और कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है। 


7. फैशन में परिवर्तन - उपभोक्ता की आय, फैशन, रुचि एवं व्यवहार आदि में परिवर्तन हो जाने से भी माँग का नियम लागू नहीं होता है।


8. औद्योगिक तेजी एवं मन्दी - औद्योगिक तेजी एवं मन्दी के समय भी माँग का नियम लागू नहीं होता। औद्योगिक तेजी के समय लोगों को अधिक रोजगार के अवसर मिलते हैं, जिससे समाज में लोगों की आय अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है और इस कारण कीमतें बढ़ जाने पर भी लोग वस्तुएँ अधिक मात्रा में खरीदते हैं। वहीं दूसरी ओर, औद्योगिक मन्दी के समय कीमतें कम हो जाने पर भी बाजार में वस्तुओं की माँग कम हो जाती है।


9. कीमतों में वृद्धि या कमी की आशा - वर्तमान में जब कीमतें बढ़ी हों, लेकिन लोगों में यह आशंका हो कि भविष्य में कीमतें और अधिक बढ़ सकती हैं, तो वे भविष्य की आशंका से ग्रसित होकर वर्तमान में बढ़े हुए मूल्यों पर वस्तु की माँग बढ़ायेंगे। इसके विपरीत, यदि कीमतें घट गयी हैं तथा उपभोक्ता को ऐसा लगता है कि भविष्य में कीमतें और घटेंगी, तो यह वर्तमान में वस्तु की माँग कम कर देगा। ऐसा उन्हीं के सम्बन्ध में किया जा सकता है, जिन्हें भविष्य में सुरक्षित रखा जा सके तथा जिनके उपभोग को भविष्य के लिए स्थगित किया जा सके। 


उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि माँग के नियम के अपवाद दिखावटी, बनावटी एवं कपोल कल्पित हैं। जबकि माँग का नियम सत्य, सार्वभौमिक एवं वास्तविक हैं तथा अर्थशास्त्र के अन्य नियम भी इससे सम्बन्धित हैं।


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