श्रम का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ बताइये | Meaning of shram in Hindi

श्रम का अर्थ


श्रम, उत्पादन का द्वितीय अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य साधन माना जाता है। दैनिक बोल-चाल की भाषा में श्रम से आशय किसी कार्य को करने के सभी प्रयासों से होता है, किन्तु यह श्रम का संकुचित अर्थ है। 


अर्थशास्त्र में श्रम का उपयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार भी जाती है कि, “अर्थशास्त्र में श्रम से आशय मनुष्य के उन सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों से है, जो धनोत्पादन के उद्देश्य से किये जाते हैं। 


इसीलिए कहा जाता है कि श्रम के अन्तर्गत जहाँ एक ओर कुली, मिस्त्री, बढ़ई, राज आदि के कार्यों को सम्मिलित किया जाता है, वहीं दूसरी ओर इसमें डाक्टर, वकील, शिक्षक आदि के कार्यों को भी रखा जाता है। इनका उद्देश्य भी धन की प्राप्ति होता है।



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श्रम

श्रम की परिभाषा


प्रो. जेवन्स के अनुसार, - “श्रम वह मानसिक या शारीरिक प्रयत्न है जो पूर्णतया या अंशतः कार्य से प्राप्त प्रत्यक्ष होने वाले सुख के अतिरिक्त किसी आर्थिक उद्देश्य से किया जाता है।"


डॉ. मार्शल के शब्दों में, - “श्रम का आशय मनुष्य के आर्थिक कार्य से है, चाहे वह हाथ से किया जाय या मस्तिष्क से।"


प्रो. थॉमस के मतानुसार - श्रम मनुष्य का वह शारीरिक या मानसिक प्रयत्न है, जो पारिश्रमिक प्राप्त करने की आशा से किया जाता है।  


उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धन के उत्पादन के उद्देश्य से किये गये मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयासों को श्रम कहा जाता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र में श्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश पाया जाता है-


(क) अर्थशास्त्र में श्रम के अन्तर्गत केवल मानवीय प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है।

(ख) इसके अन्तर्गत मनुष्य के शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार के प्रयासों को शामिल किया जाता है। 

(ग) मनुष्य के केवल उन्हीं प्रयासों को सम्मिलित किये जाते हैं जो आर्थिक उद्देश्य से किये जाते हैं। 


इस प्रकार यह कहना गलत न होगा कि श्रम के अन्तर्गत मनुष्य के शारीरिक तथा मानसिक प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है, जिसका उद्देश्य धनोत्पादन से होता है। प्रो. निकलसन के शब्दों में बम के अन्तर्गत प्रत्येक प्रकार ऊँची से ऊँची व्यावसायिक योग्यता के साथ-साथ निपुण तथा अनिपुण श्रमिक तथा कारीगरों के परिश्रम को सम्मिलित कर पड़ता है। 


केवल साधारण व्यापार में लगे हुये व्यक्तियों के परिश्रम को ही श्रम में सम्मिलित नहीं करते अपितु शिक्षा, ललित कला, साहित्य, विज्ञान, न्याय, शासन और सरकारी सेवाओं में लगे हुये श्रम तथा उस परिश्रम को जो कि उत्पत्ति कार्य कार हुये नष्ट हो जाता है, सम्मिलित किया जाता है।"


श्रम का प्रकार


श्रम को मुख्यत: तीन प्रकार से बांटा जा सकता है -

 

  1. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम

  2. कुशल एवं अकुशल श्रम

  3. मानसिक व शारीरिक श्रम 


श्रम की विशेषता


श्रम की निम्नलिखित विशेषतायें पायी जाती हैं -


1. श्रम उत्पादन का अनिवार्य साधन - भूमि की भाँति श्रम भी उत्पादन का एक अनिवार्य, तथा अविभाज्य सर माना जाता है। यद्यपि आज के मशीनीकरण के युग में यन्त्रों का महत्व पर्याप्त पाया जाता है, फिर भी श्रम का योगदान कर नहीं है। इसीलिये कहा जाता है कि श्रम के बिना आज उत्पादन सम्भव नहीं है। श्रम के द्वारा ही भूमि तथा प्राकृतिक साधनों का शोषण सम्भव है। इस


2. श्रम एक सक्रिय साधन - श्रम की एक अन्य विशेषता यह है कि इसे उत्पादन का एक सक्रिय साधन माना जाता है। इसके सहयोग के अभाव में कोई भी वस्तु उत्पन्न नहीं की जा सकती है। जब भूमि व पूँजी पर श्रम का उपयोग किया जाता है, तभी उत्पादन होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रम हो उत्पादन के अन्य साधनों का उपयोग करके उत्पादन को सम्भव बनाता है इसीलिये कहा जाता है कि श्रम उत्पादन का एक सक्रिय साधन है।


3. श्रम नाशवान साधन - श्रम उत्पादन का अत्यन्त नाशवान साधन है। इसे संग्रह करके नहीं रखा जा सकता है। यह शीघ्र नष्ट हो जाता है। जब किसी दिन कोई व्यक्ति कार्य नहीं करता है तो उस दिन का उस व्यक्ति का श्रम अपने आप नष्ट हो जाता है, किन्तु यह बात उत्पादन के अन्य साधनों में नहीं पायी जाती है। इसीलिये एक व्यक्ति कार्य करने के लिये उत्सुक रहता है। इस प्रकार यह कहना गलत है कि श्रम एक अत्यन्त नाशवान साधन है। 


4. श्रम को श्रमिक से पृथक् नहीं किया जा सकता - श्रम को एक अन्य विशेषता यह भी पायी जाती है कि श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। इसका कारण है कि श्रम के साथ श्रमिक भी जाता है। यह बात उत्पादन के अन्य साधनों में नहीं पायी जाती है। अन्य साधनों को इनके स्वामियों से अलग किया जा सकता है, किन्तु एक श्रमिक को श्रम करने के लिये निश्चित स्थान पर स्वयं जाना पड़ता है। इसीलिये श्रमिक पर स्थान व वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। 


5. श्रम एक गतिशील साधन - श्रम उत्पादन का एक अत्यन्त गतिशील साधन माना जाता है। यही कारण है कि एक श्रमिक कार्य करके अन्य बातें समान रहने पर बड़ी आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यवसाय से अन्य व्यवसाय में आ जा सकता है। यही कारण है कि एक देश के निवासी दूसरे देश में कार्य करने के लिये जाते रहते हैं, किन्तु इस सम्बन्ध में यह भी कहना गलत न होगा कि बम पूँजी की तुलना में कम गतिशील साधन माना जाता है। 


6. श्रम उत्पादन का साधन तथा साध्य दोनों - श्रम उत्पादन का सक्रिय साधन है तथा इसके द्वारा विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। तत्पश्चात् इन्हीं उत्पादित वस्तुओं का उपभोग श्रमिकों द्वारा किया जाता है। इसीलिये श्रमिक को उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों ही कहा जाता है। डॉ. मार्शल के अनुसार मनुष्य उस धन के उत्पादन का प्रमुख साधन है, जिसका वह अन्तिम उद्देश्य अर्थात् उपभोक्ता भी है। इस प्रकार कहा जाता है कि हम केवल उत्पादन का साधन ही नहीं होता है, वरन् साध्य भी होता है, अतः श्रम साधन व साध्य दोनों हो है।


7. श्रमिक अपना श्रम बेचता है स्वयं को नहीं - श्रम के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि एक श्रमिक अपना श्रम बेचता है न कि स्वयं को भूमि तथा पूँजी साधनों के क्रय-विक्रय के बाद क्रेता इनका स्वामी बन जाता है, किन्तु श्रम के सम्बन्ध में ऐसा नहीं पाया जाता है। कहने का अभिप्राय: यह है कि एक उत्पादक केवल श्रम को खरीदता है न कि श्रमिक को।


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