माँग का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, तथा माँग को प्रभावित करने वाले तत्व | Meaning of demand in hindi

माँग का अर्थ


साधारणतया, सामान्य बोलचाल की भाषा में 'माँग' का अर्थ किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा से लगाया जाता है, लेकिन अर्थशास्त्र में किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा मात्र को ही माँग नहीं कहा जाता है, बल्कि अर्थशास्त्र में माँग का सम्बन्ध सदैव एक निश्चित कीमत एवं निश्चित समय से होता है, अतः माँग के साथ एक निश्चित कीमत और एक निश्चित समय को बताना आवश्यक होता है। 


Mang-ka-arth-paribhasha-prakar
माँग

माँग की परिभाषा


प्रो. बेन्हम के अनुसार, - "किसी दी हुई कीमत पर किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की माँग उस वस्तु की वह मात्रा है, जो उस कीमत पर एक निश्चित समय में खरीदी जायेगी।" 


प्रो. मेयर्स के अनुसार, - "किसी वस्तु की माँग उन वस्तुओं की मात्राओं की तालिका होती है जिन्हें क्रेता एक समय विशेष पर सभी सम्भव मूल्यों पर क्रय करने के लिए तत्पर रहता है।" 


प्रो. चैपमैन के अनुसार, - "माँग का अर्थ सदा एक निश्चित कीमत पर माँग करना होता है। कीमत को व्यक्त किये बिना माँग का प्रायः कोई अभिप्राय नहीं होता है।"


प्रो. जे. एस. मिल के अनुसार, - "माँग का अर्थ किसी वस्तु की उस मात्रा से है, जो एक निश्चित कीमत पर खरीदी जाये। इस अर्थ में माँग सदा कीमत से सम्बन्धित होती है।" 


5. बॉबर के अनुसार, - "माँग से अभिप्राय दी हुई वस्तुओं एवं सेवाओं की उन मात्राओं से हैं जिन्हें उपभोक्ता एक बाजार में एक दी हुई समयावधि के अन्तर्गत विभिन्न कीमतों अथवा विभिन्न आयों अथवा सम्बन्धित वस्तुओं की विभिन्न कीमतों पर खरीदेगा।"



मांग के आवश्यक तत्व


अर्थशास्त्र में माँग के लिए निम्नांकित तत्वों का होना आवश्यक है -


1. इच्छा - सर्वप्रथम, माँग के लिये उपभोक्ता की इच्छा का होना आवश्यक है। अन्य तत्वों की उपस्थिति के बाद भी यदि उपभोक्ता उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता, तो उसे माँग नहीं कहेंगे। 


2. साधन - माँग के लिये मनुष्य की इच्छा के साथ-साथ पर्याप्त धन (साधन) का होना आवश्यक है। जैसे, एक भिखारी कार खरीदने की इच्छा रख सकता है, लेकिन साधन के अभाव में इस इच्छा की माँग की संज्ञा नहीं दी जा सकती। 


3. खर्च करने की तत्परता - माँग के लिये मनुष्य के मन में इच्छा एवं उस इच्छा की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधन के साथ-साथ उस धन को, उस इच्छा की पूर्ति के लिए व्यय करने की तत्परता भी होनी चाहिए। जैसे, एक कंजूस व्यक्ति कार खरीदने की इच्छा रखता है और उसके पास उसकी पूर्ति के लिए धन की कमी नहीं है, लेकिन वह धन खर्च करने के लिए तैयार नहीं है तो इसे माँग नहीं कहेंगे। खरीदने की इच्छा रखता है और उसके पास उसकी पूर्ति के लिए धन की कमी नहीं है, लेकिन वह धन खर्च के लिए तैयार नहीं है तो इसे माँग नहीं कहेंगे।


4. निश्चित कीमत - माँग के लिये एक निश्चित कीमत का होना आवश्यक है अर्थात् उपभोक्ता के द्वारा माँगी जाने वाली वस्तु का सम्बन्ध यदि कीमत से नहीं किया गया तो उस स्थित में माँग का अर्थ पूर्ण नहीं होगा। जैसे, यदि यह कहा जाये कि 100 किलोग्राम चावल की माँग है, तो यह अपूर्ण होगा। उसे 100 किलोग्राम चावल की माँग 10 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर कहना उचित होगा।


5. निश्चित समय - माँग के लिये निश्चित समय का होना आवश्यक है। प्रभावपूर्ण इच्छा जिसके लिए मनुष्य के पास धन हो और वह उसे उसकी पूर्ति के लिये व्यय करने का इच्छुक भी है और किसी निश्चित कीमत से भी सम्बन्धित है, लेकिन यदि वह किसी निश्चित समय से सम्बन्धित नहीं है, तो माँग का अर्थ पूर्ण नहीं होगा।


माँग के प्रकार 


अर्थशास्त्रियों ने प्रमुख रूप से माँग के तीन प्रकार बताये हैं -


1. कीमत माँग (Price Demand) 

2. आय माँग (Income Demand)

3. आड़ी या तिरछी माँग (Cross Demand)


1. कीमत माँग - अर्थशास्त्र में माँग से अभिप्राय, प्राय: कीमत माँग से होता है। कीमत माँग किसी वस्तु की मात्राओं को बताती है जो अन्य बातें समान रहने पर एक उपभोक्ता एक निश्चित समय में विभिन्न काल्पनिक कीमतों प खरीदने को तैयार है। अन्य बातें समान रहने से तात्पर्य है कि उपभोक्ता की आय, रुचि, फैशन एवं सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। प्रायः माँग एवं कीमत में विपरीत सम्बन्ध होता है।


2. आय माँग - आय माँग से अभिप्राय, वस्तुओं एवं सेवाओं की उन विभिन्न मात्राओं से हैं, जो अन्य बातें समान रहने पर उपभोक्ता एक निश्चित समय में आय के विभिन्न स्तरों पर खरीदने को तैयार रहता है अर्थात् आय के बढ़ने पर माँग बढ़ती है और आय के कम होने पर माँग कम होती है। आय के परिवर्तन का प्रभाव विभिन्न वस्तुओं पर भिन्न भिन्न पड़ता है, जो कि वस्तु की श्रेणी पर आधारित है।


श्रेणी की दृष्टि से वस्तुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है- 

(i) श्रेष्ठ किस्म की वस्तुएँ

(ii) निकृष्ट किस्म की वस्तुएँ।


3. आड़ी अथवा तिरछी माँग - आड़ी माँग से अभिप्राय, एक वस्तु के लिए माँग की उन मात्राओं के परिवर्तन से है, जो उस वस्तु विशेष की कीमत में परिवर्तन न होकर किसी अन्य सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप होता है, अर्थात् X-वस्तु की माँग, Y-वस्तु की कीमत का फलन है। आड़ी माँग उन्हीं वस्तुओं पर उत्पन्न होती है, जो एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होती हैं। ऐसी वस्तुएँ भी दो प्रकार की होती हैं


माँग के निर्धारक तत्व


अथवा 


माँग को प्रभावित करने वाले तत्व 


किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नांकित हैं -


1. वस्तु की कीमत - किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व उसकी कीमत है। वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण उसको माँग भी परिवर्तित हो जाती है। प्रायः वस्तु की कीमत के कम होने पर माँग बढ़ती है उथा कीमत के बढ़ने पर माँग घटती है।


2. मौसम एवं जलवायु - वस्तु की माँग पर मौसम एवं जलवायु का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ-पंखा, कूलर, फ्रीज, ठण्डा पेय आदि की माँग गर्मियों में बढ़ जाती है। इसी प्रकार ऊनी कपड़े, होटर आदि की माँग सर्दियों में बढ़ जाती है। इसी प्रकार छाते, बरसाती कोट आदि की माँग बरसात के दिनों में बढ़ जाती है। 


3. धन का वितरण - समाज में धन का वितरण भी वस्तुओं की माँग को प्रभावित करता है। यदि समाज में धन का वितरण असमान है तो विलासितापूर्ण वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। इसके विपरीत, यदि समाज में धन का वितरण समान है तो अनिवार्य एवं आरामदायक वस्तुओं की माँग अधिक की जायेगी।


4. भविष्य में कीमत परिवर्तन की आशा - जब कभी लोगों को भविष्य में वस्तुओं को कीमतों में परिवर्तन की आशंका होती है, तब वस्तु की माँग में परिवर्तन होने लगता है। यदि भविष्य में कीमत बढ़ने की आशंका होती है तो वर्तमान में माँग बढ़ेगी। इसके विपरीत, यदि भविष्य में कीमत घटने की आशंका है तो वर्तमान में माँग कम होगी। 


5. उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय किसी भी वस्तु की माँग को प्रभावित करता है। यदि वस्तु की कीमत में कोई परिवर्तन न हो, तो आय बढ़ने पर वस्तु को माँग बढ़ जाती है तथा आय के कम होने पर वस्तु की माँग भी कम हो जाती है।


6. उपभोक्ताओं की रुचि - उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, आदत, रीति रिवाज के कारण भी वस्तु की माँग प्रभावित हो जाती है। प्रायः जिस वस्तु के प्रति उपभोक्ता को रुचि बढ़ती है, उस वस्तु की माँग भी बढ़ जाती है। जैसे-यदि लोग कॉफी को चाय की तुलना में अधिक पसन्द करने लगते हैं, तो काफी की माँग बढ़ जायेगी तथा चाय की माँग कम हो जायेगी।


7. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत - सम्बन्धित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं -


(i) स्थानापन्न वस्तुएँ (ii) पूरक वस्तुएँ


(i) स्थानापन्न वस्तुएँ - स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। यदि किसी X वस्तु की स्थानापन्न वस्तु को कीमत बढ़ जाती है, तो वस्तु X की माँग बढ़ जायेगी और यदि स्थानापने वस्तु की कीमत घट जाती है तो X वस्तु की माँग घट जायेगी, क्योंकि उपभोक्ता अब स्थानापन्न वस्तुओं का अधिक प्रयोग करेंगे, क्योंकि यह सस्ती हो गई है, अपेक्षाकृत X वस्तु के


(ii) पूरक वस्तुएँ - पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो मिलकर किसी वस्तु की माँग को पूरा करती है। यदि वस्तु 'X' पूरक वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो पूरक वस्तु की माँग कम होगी और चूँकि 'X' वस्तु अपनी पूरक वस्तु के साथ प्रयोग होती है, इसलिए 'X' वस्तु की माँग भी घट जायेगी। इसी प्रकार यदि वस्तु X की पूरक वस्तु की कीमत घट जाती है, तो पूरक वस्तु की माँग बढ़ेगी और इसलिए वस्तु X की माँग बढ़ेगी।


8. व्यापार चक्र - व्यापार चक्रों में जब तेजी आती है तब रोजगार के नये अवसर प्राप्त होते हैं, लोगों की आय बढ़ती है, जिससे वे अधिक माँग करते हैं। इसके विपरीत, मन्दी के समय माँग में कमी आती है। इस प्रकार व्यापार-चक्रों का प्रभाव माँग पर पड़ता है।


9. जनसंख्या - जनसंख्या वृद्धि की दर वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा पर प्रभाव डालती है। जनसंख्या वृद्धि की दशा में वस्तुओं की माँग भी अधिक हो जायेगी, क्योंकि अधिक जनसंख्या अधिक उपभोग करेगी। इसके विपरीत, यदि देश में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और मृत्यु दर अधिक है तो देश में प्रौढ़ या वृद्धों की संख्या अधिक होगी और देश में घड़ियों, चश्मों आदि की माँग अधिक होगी।


यह भी पढ़े -

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ