आज के इस आर्टिकल में हम श्रम विभाजन के बारे में जानेंगे, की श्रम विभाजन होता क्या है? और श्रम विभाजन का अर्थ तथा परिभाषा के श्रम विभाजन के कितने प्रकार होते है एवं श्रम विभाजन के लाभ एवं हानि के साथ श्रम विभाजन की सीमाएं को जानेंगे।
श्रम विभाजन |
श्रम एक व्यापक शब्द है जो उत्पादन के सभी कार्यो को साथ में लेकर विभिन्न क्षेत्रों में अपने योग्यता के अनुसार सम्पन्न कराना ही श्रम विभाजन होता है, तो चलिये जानते हैं कि श्रम विभाजन क्या है?
श्रम विभाजन का अर्थ
किसी वस्तु विशेष के उत्पादन के कार्य को विभिन्न क्रियाओं या उपक्रियाओं में विभाजित कर प्रत्येक क्रिया या उपक्रिया को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनकी योग्यता के अनुसार सम्पन्न कराना ही श्रम विभाजन कहलाता है।
उदाहरण के लिये कपड़े के व्यवसाय में सूत की कताई, कपड़े की बुनाई, धुलाई, रंगाई तथा छपाई आदि उपक्रियाओं को अलग-अलग श्रमिकों द्वारा सम्पन्न कराया जाना ही श्रम विभाजन कहलाता है।
वस्तुतः श्रम विभाजन से विशिष्टीकरण का जन्म होता है। विशिष्टीकरण का आशय किसी कार्य को एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित रखना है। विशिष्टीकरण एक व्यापक शब्द है और श्रम विभाजन इसकी एक किस्म मात्र है।
श्रम विभाजन शब्द का उपयोग केवल श्रम के लिये होता है जबकि विशिष्टीकरण का प्रयोग श्रम, पूँजी आदि के संबंध में होता है। वर्तमान समय में इसी कारण से श्रम के विशिष्टीकरण को ही श्रम विभाजन की संज्ञा दी जाती है।
आज के सामूहिक उत्पादन युग में कार्य करने की क्षमता में समानता नहीं पायी जाती है। अत: प्रत्येक श्रमिकों को उसकी रुचि, इच्छा और योग्यता के अनुसार कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाना ही श्रम विभाजन है।
1. श्रम विभाजन का सिद्धांत किसका है?
Answer : स्काटलैंड के अर्थशास्त्री एडम स्थिम काश्रम विभाजन की परिभाषा
1. प्रो. चैपमैन के अनुसार, - “कार्यों का विशिष्टीकरण ही श्रम विभाजन है।
2. प्रो. हैन्सन के अनुसार, - “श्रम विभाजन का अर्थ उत्पादन क्रियाओं का विशिष्टीकरण है।"
3. प्रो. वाटसन के शब्दों में, - “किसी उत्पादन क्रिया को अलग-अलग उपक्रियाओं में बाँटकर प्रत्येक साधन विशेष को उसी उपक्रिया में प्रयुक्त करना जिसके लिए वह योग्य व निपुण हो और उसके बाद सबके उत्पादन को मिलाकर उपभोक्ता की अपेक्षित वस्तु तैयार करना ही श्रम विभाजन है।"
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि श्रम विभाजन का आशय उत्पादन की एक क्रिया से होता है जिसमें किसी कार्य को अथवा वस्तु के उत्पादन को छोटे-छोटे खण्डों या उपखण्डों में विभाजित किया जाता है। जिससे कार्य करने वाले प्रत्येक श्रमिक की कार्य में रुचि व इच्छा यथावत बनी रहे।
श्रम विभाजन के प्रकार
श्रम विभाजन के प्रमुख प्रकार निम्न है -
1. सरल श्रम विभाजन -
यह श्रम विभाजन का प्राचीन रूप है, इसके अन्तर्गत एक क्रिया को कई व्यक्ति मिलकर सम्पन्न करते हैं और प्रत्येक व्यक्ति ने कितना काम किया है यह कहना कठिन होता है। इस प्रकार जब किसी व्यवसाय का कार्य प्रारंभ से लेकर अन्त तक एक ही व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किया जाता है, तो इसे सरल श्रम विभाजन कहते हैं।
सरल श्रम विभाजन के अन्तर्गत एक ही कार्य को कई भागों में विभाजित किया जाता है। कठिन और भारी कार्य एक ही व्यक्ति नहीं कर सकता है, अत: इसका विभाजन कर दिया जाता है, यही सरल श्रम विभाजन है।
इस कार्य को दो या दो से अधिक व्यक्तियों के द्वारा एक ही तरीके से मिलकर सम्पादित किया जाता है। इसे ही व्यावसायिक श्रम विभाजन भी कहते हैं। उदाहरण के लिए डॉक्टर, वकील, कृषक, जुलाहे तथा शिक्षक का कार्य आदि।
2. जटिल श्रम विभाजन -
जब किसी एक कार्य को कई क्रियाओं या उपक्रियाओं में विभाजित कर सम्पन्न किये जाता है तो उसे जटिल श्रम विभाजन कहते हैं। श्रम विभाजन जटिल जब होता है जब एक व्यक्ति केवल एक छोटे से कार्य को ही करता है और सभी व्यक्तियों का कार्य पृथक्-पृथक् होता है।
उदाहरणार्थ, कपड़ा तैयार करने के सम्पूर्ण प्रक्रिया में कपास का उत्पादन, कपास से बिनौले निकालने का कार्य, रुई कातने का कार्य, धागे को रंगना, धागे से कपड़े बुनने का कार्य पृथक-पृथक श्रमिकों के द्वारा किया जाता है और इन सबको मिलाकर ही कपड़ा तैयार होता है।
3. प्रादेशिक या भौगोलिक श्रम विभाजन -
विभिन्न प्रदेशों अथवा देशों में अनेक उद्योग केन्द्रित होते हैं, जो वहाँ की भौगोलिक स्थिति, कच्चे माल की उपलब्धि, श्रमिकों की प्राप्ति, जलवायु, शक्ति के साधन तथा अन्य सुविधाओं के कारण स्थापित होते हैं तो इसे ही प्रादेशिक या भौगोलिक श्रम विभाजन कहते हैं। अहमदाबाद में सूती वस्त्रोद्योग, आसाम में चाय उद्योग, अलीगढ़ में ताला उद्योग, कलकत्ता में जूट उद्योग, पंजाब में गेहूँ उत्पादन, उत्तरप्रदेश में शक्कर कारखाने आदि प्रादेशिक या भौगोलिक श्रम विभाजन के उदाहरण हैं।
श्रम विभाजन के लाभ
श्रम विभाजन के प्रमुख लाभ निम्नानुसार हैं -
1. उत्पादन शक्ति में वृद्धि - श्रम विभाजन से उत्पादन शक्ति में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि इसमें एक क्ति वही कार्य करता है जिसमें वह दक्ष होता है। इसमें कार्य निरन्तर चलता है। इस कारण उत्पादन में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
2. श्रम कौशल तथा निपुणता में वृद्धि - श्रम विभाजन से श्रमिक पूर्ण निपुणता आती है। एक ही कार्य को बार-बार करते रहने से श्रमिक कुशल हो जाता है। वह कम से कम समय में यंत्रों की सहायता से अधिक मात्रा में कार्य करने में सफल हो जाता है।
3. समय की बचत - श्रम विभाजन से समय की बचत होती है क्योंकि श्रमिक अधिक निपुण होने के कारण कम समय में ही अधिक उत्पादन कर लेता है। सभी श्रमिकों का कार्य तथा स्थान निश्चित होता है।
4. आविष्कारों की संख्या में वृद्धि - इस कार्य प्रणाली में कार्य बहुत ही सरल होता है तथा श्रमिक इन्हें बड़ी आसानी से करने लगता है। वह अपने इस कार्य में बहुत निपुण व दक्ष हो जाता है तथा सोचने लगता है कि इस कार्य को किस तरह सरल बनाया जाये।
5. औजारों व उपकरणों की बचत - श्रम विभाजन के अन्तर्गत एक श्रमिक को किसी कार्य का केवल एक भाग ही सम्पन्न करना पड़ता है। उदाहरणार्थ कुर्सी बनाने के कार्य में उसे केवल कुर्सी के पाँव बनाना है तो उसे सब प्रकार के औजार देने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
6. बड़े पैमाने का उत्पादन - श्रम विभाजन के कारण उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगता है। अधिक उत्पादन का लाभ सभी प्रकार की बचत के रूप में समाज को होता है। इसके विपरीत बड़े पैमाने का उत्पादन भी श्रम विभाजन को प्रोत्साहित करता है।
7. रोजगार के अवसरों में वृद्धि - श्रम विभाजन के कारण अनेक उद्योग-धन्धों की स्थापना होती है जिनमें भारी, सरल, जटिल, सभी प्रकार के कार्य होते हैं जिन्हें बच्चे, स्त्रियाँ तथा पुरुष सभी कर सकते हैं इस प्रकार अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं और बेरोजगारी की समस्या का भी अन्त हो जाता है।
8. अधिक आराम - श्रम विभाजन से श्रमिकों को मानसिक तथा शारीरिक आराम तथा मनोरंजन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत मशीनों का अधिक प्रयोग होने से उत्पादन कम समय में तथा अधिक मात्रा में किया जा सकता है।
9. सस्ती वस्तुएँ - श्रम विभाजन से लोगों को सस्ती व अच्छी किस्म की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। इससे वे उनका अधिकाधिक उपयोग कर अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठा सकते हैं।
10. श्रमिकों की गतिशीलता में वृद्धि - श्रम विभाजन के अन्तर्गत उत्पादन कार्य को अनेक उपक्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक उपक्रिया सरल व सुगम होने से कोई भी श्रमिक उसे आसानी से सीख सकता है, यदि श्रमिक एक उद्योग को छोड़कर अन्य दूसरे उद्योग में आता है तो उसे दूसरे कार्य को सीखने में कठिनाई नहीं आती है और कम समय में ही उस कार्य को करने में वह निपुण हो जाता है।
11. उपयुक्त कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति - श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिकों को इस प्रकार कार्य में विभाजित कर दिया जाता है कि जिससे प्रत्येक श्रमिक अपने कौशल का कार्य करता है। इस प्रकार कार्य की अनुपयुक्तता एवं असंगति का प्रश्न नहीं उठता है।
12. आंतरिक एवं बाह्य मितव्ययिताएँ - श्रम विभाजन का एक लाभ यह है कि इसमें विभिन्न क्रियाओं का विशिष्टीकरण होकर उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। फलस्वरूप उत्पादन में प्रायः समस्त आंतरिक व बाह्य मितव्ययिताएँ प्राप्त होती हैं।
13. सांस्कृतिक तथा मानसिक विकास - ग्रम विभाजन के अन्तर्गत हजारों की संख्या में श्रमिक एक स्थान पर आकर कार्य करते हैं तथा परस्पर सहयोग करते हैं। एक दूसरे के सामाजिक रीति-रिवाजों से परिचित होते हैं और इस प्रकार आपस में संस्कृति का आदान-प्रदान करते हैं तथा एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आकर नई नई बातें सीखते हैं। इस प्रकार श्रम विभाजन से श्रमिकों का सांस्कृतिक तथा मानसिक विकास होता है।
14. नई-नई वस्तुओं का उत्पादन - श्रम विभाजन के अन्तर्गत नए-नए आविष्कार होने के कारण नई-नई वस्तुओं का उत्पादन भी संभव होता है तथा विचार विनिमय से नई कल्पना शक्ति का विकास होता है और नई-नई वस्तुओं का जन्म होता है।
15. पूँजी की वृद्धि - श्रम विभाजन से विशिष्टीकरण को बल मिलता है। इससे भौतिक प्रगति होती है। जिससे धन की प्राप्ति होती है और पूँजी में वृद्धि होती है।
16. उत्पादन लागत में कमी - श्रम विभाजन के अन्तर्गत कम समय में अधिक वस्तुएँ उत्पन्न की जाती हैं, जिससे वस्तु की उत्पादन लागत में कमी आती है।
17. उत्पादन की श्रेष्ठता - श्रम विभाजन के अन्तर्गत विशिष्ट योग्यता प्राप्त श्रमिकों द्वारा वस्तुएँ उत्पादित होने के कारण वस्तुएँ श्रेष्ठ व अच्छी किस्म की होती हैं।
18. मशीनों के प्रयोग में वृद्धि - श्रम विभाजन के अन्तर्गत किसी उत्पादन क्रिया को अनेक उपक्रियाओं में बाँट दिया जाता है, अत: प्रत्येक क्रिया सरल व सुगम हो जाती है तथा मशीनों के द्वारा की जाने लगती है। इस कारण मशीनों के प्रयोग में वृद्धि हो जाती है।
19. पारिश्रमिक में वृद्धि - श्रम विभाजन से अत्यधिक उत्पादन होने लगता है जिससे श्रमिकों के पारिश्रमिक वृद्धि होती है।
20. मानवीय साधनों का अच्छा प्रयोग - श्रम विभाजन के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि, स्वभाव एवं योग्यता के अनुसार कार्य मिल जाता है। इससे मानवीय साधनों का अच्छा प्रयोग हो जाता है।
श्रम विभाजन की हानि
श्रम विभाजन की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं -
1. कार्य में नीरसता - श्रम विभाजन के अन्तर्गत प्रत्येक श्रमिक एक ही छोटा सा कार्य प्रतिदिन करता रहता है, इससे वह कार्य के प्रति नीरसता का अनुभव करने लगता है। फलतः कार्य निम्न कोटि का तथा कौशलहीन हो जाता है तथा श्रमिक को अपने कार्य के प्रति अरुचि होने लगती है।
2. मनुष्य के विकास में बाधक - मनुष्य का शारीरिक और मानसिक विकास उसके कार्यों पर निर्भर करता है। एक ही प्रकार के कार्य को करते रहने से मस्तिष्क के कुछ गुणों का ही विकास होता है, परन्तु अन्य गुण सुप्त अवस्था में हो रह हैं।
3. उत्तरदायित्व का अभाव - श्रम विभाजन से श्रमिकों के उत्तरदायित्व का ह्रास हो जाता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत श्रमिकों के द्वारा एक कार्य को आरंभ से अंत तक किया जाता है, परन्तु इस बात की चिन्ता किसी को भी नहीं रहती है कि वस्तु अच्छी बनी है या खराब। ऐसी स्थिति में यह कहना मुश्किल होता है कि यह किस श्रमिक के कारण हुआ है।
4. कौशल की हानि - श्रम विभाजन के कारण एक कुशल शिल्पकार अपने कौशल को खो देता है। वह या तो कातना जान सकता है अथवा बुनना, या तो वह कुर्सी का पाँव बना सकता है या उस पर बैठने का स्थान, सम्पूर्ण कुर्सी वह नहीं बना सकता है।
5. वर्गवाद - श्रम विभाजन के कारण उद्योग विशेष में वर्गवाद का जन्म होता है। चूँकि श्रम विभाजन विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों को जन्म देता है। विशेषज्ञों का यह वर्ग अन्य विशेषज्ञों की परवाह न करते हुए अपनी ही दुनिया में रहता है।
6. बेकारी का डर - श्रम विभाजन के कारण श्रमिकों में बेकारी फैल जाने की सदैव आशंका रहती है, क्योंकि किसी कार्य को किसी एक उपक्रिया के निर्माण का ज्ञान रखने वाले श्रमिक को बेकारी का सदैव डर रहता है।
7. पारिवारिक जीवन में गड़बड़ी - श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिकों के अतिरिक्त उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी काम करने का अवसर मिलता है। स्त्रियों का उद्योगों या कारखानों में कार्य करना गृहस्थ जीवन में गड़बड़ी उत्पन्न कर देता है तथा बच्चों को काम पर लगाने से राष्ट्र के मूल्यवान मानवीय स्रोत को नष्ट करना होता है जो एक राष्ट्रीय हानि है।
8. कारखाना प्रणाली के दोष - श्रम विभाजन के कारण कारखाना प्रणाली के सभी दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कारखाने का वाढावरण गंदा व संकीर्ण हो जाता है। भीड़-भाड़ के कारण चरित्र का पतन होता है। बीमारी एवं रोग फैलने लगते हैं। मनुष्य मशीन का दास हो जाता है।
9. मशीन एवं बड़े पैमाने के दोष - श्रम विभाजन के अन्तर्गत मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। इस कारण मशीनों के सभी दोष इस प्रणाली में उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने के सभी दोष जैसे-स्त्रियों व बच्चों का शोषण, गंदा वातावरण, श्रमिकों तथा उत्पादकों में संघर्ष, अति उत्पादन व मंदी का भय, गंदी आवास व्यवस्था, महँगाई में वृद्धि तथा औद्योगिक संघर्ष आदि उत्पन्न हो जाते हैं।
10. सृजनात्मक आनंद का अभाव - श्रम विभाजन के कारण एक ही कार्य को मशीनों की सहायता से करते रहने से प्राय: श्रमिक यंत्रवत् हो जाता है। उसे कार्य में कोई आनंद का अनुभव नहीं होता। इसके अतिरिक्त किसी वस्तु को वह सम्पूर्ण रूप से नहीं बनाता। इस कारण भी उसे कार्य करने में आनंद का अनुभव नहीं होता है।
श्रम विभाजन की सीमा
श्रम विभाजन के विस्तार की निम्न सीमाएँ हैं -
1. बाजार का विस्तार - अर्थशास्त्र के जनक तथा सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने श्रम विभाजन की सीमा के सम्बन्ध में कहा है कि, - "श्रम विभाजन बाजार के विस्तार द्वारा सीमित होता है।"
यदि किसी वस्तु की माँग विस्तृत होगी तो उसका उत्पादन का पैमाना भी वृहद् होगा जिससे श्रम विभाजन को प्रोत्साहन मिलेगा। कभी-कभी वस्तु विशेष का बाजार संकुचित होता है तो श्रम विभाजन करना संभव नहीं हो पाता है।
2. व्यवसाय का समभाव तथा प्रगति - श्रम विभाजन का विस्तार व्यवसाय के स्वभाव तथा उसकी उन्नति पर भी निर्भर करता है। जिस व्यवसाय में उपभोक्ता की रुचि, जीवित सम्पर्क अथवा निपुणता होती है, ऐसा व्यवसाय छोटे पैमाने पर ही किया जाता है और श्रम विभाजन भी संकुचित हो जाता है।
3. श्रम की उपलब्धता तथा सहकारिता - श्रम विभाजन उस स्थिति में ही संभव है जबकि श्रमिकों की पूर्ति पर्याप्त हो, उनमें परस्पर सहयोग की भावना हो।
4. व्यापारिक सुविधाएँ - यदि परिवहन एवं संचार के साधन, बैकिंग, व्यापारिक सूचनाएँ, बीमा कम्पनियाँ आदि व्यापारिक सुविधाएँ अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं तो बाजार का उतना अधिक विस्तार होगा तथा बाजार के विस्तार से म विभाजन का भी काम उतना जटिल होगा।
5. पूँजी संचय - श्रम विभाजन का सीमित तथा विस्तृत होना पूँजी पर भी निर्भर करता हैं। यदि पूँजी का संचय अधिक मात्रा में है तो श्रम विभाजन बड़ी सीमा तक होगा। इसके विपरीत पूँजी का संचय कम होने की दशा में श्रम बहुत विभाजन सीमित होगा।
6. तकनीकी तत्व - किसी व्यवसाय में जितनी अधिक तकनीकी प्रगति होगी, वहाँ श्रम विभाजन उतना ही अधिक व्यापक रूप में होगा।
7. माँग की स्थिरता तथा उत्पादन की निरंतरता - वस्तु की माँग यदि सामाजिक है तो उत्पादन का बड़े पैमाने पर न तो विस्तार किया जा सकता है और न श्रम विभाजन का विस्तार किया जा सकता है। इस प्रकार यदि वस्तु के उत्पादन में निरंतरता नहीं है तो श्रम विभाजन के लिए अधिक अवसर नहीं रहेगा।
आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट काफी पसंद आयी होंगी,अपने श्रम विभाजन को अच्छे से जाना होगा आज के इस आर्टिकल में की श्रम विभाजन आखिर होता क्या हैं और श्रम विभाजन के प्रमुख प्रकार को भी जाना होगा। श्रम विभाजन की लाभ तथा हानि को भी जाना होगा अपने की श्रम विभाजन के क्या क्या लाभ एवं हानि हैं। दोस्तों अगर आपको यह पोस्ट पसन्द आयी हो तो जरूर अपने दोस्तों के साथ साझा करें धन्यवाद!
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