गरीबी का अर्थ एवं परिभाषा तथा कारण | Poverty Meaning and Definition and Causes in hindi

गरीबी (Poverty) का अर्थ


आधुनिक युग में सरकार, राजनेता, समाज सुधारक आदि सभी गरीबी के बारे में बातें करते हैं, लेकिन सभी को गरीबी के सही अर्थ का बोध नहीं होता है। सामान्यतया, गरीबों का अर्थ है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं को प्राप्ति को अयोग्यता। 


इन न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएँ शामिल होती हैं। इन न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं के पूरा न होने से मनुष्य को कष्ट तथा दुःख झेलने पड़ते हैं। स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता की हानि होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि करना तथा भविष्य में गरीबी से छुटकारा पाना कठिन हो जाता है। 



इसके परिणामस्वरूप गरीबों तथा उत्पादन का निम्न स्तर एक-दूसरे का पीछा करना शुरू कर देते हैं। देश निर्धन इसलिए बना रहता है, क्योंकि वह निर्धन है। गरीबी स्वयं अपने आपको जन्म देती है। जैसा कि Shaheen Rafi तथा Damian Killen ने लिखा है, - “गरीबी भूख है, गरीबी रोग की अवस्था में डॉक्टर के पास जाने की असमर्थता है। 


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गरीबी


गरीबी की प्रमुख परिभाषा


राबंट मेकनमारा के शब्दों में, - "घोर गरीबी जीवन की एक ऐसी दशा है, जो अपर्याप्त भोजन, अशिक्षा, बीमारी, ऊँची शिशु मृत्यु दर और औसत आयु का कम होना आदि के द्वारा उल्लिखित की जाती है।" 


गोडार्ड के अनुसार, - "गरीबी उन वस्तुओं का अभाव या अपर्याप्त पूर्ति है, जो कि एक व्यक्ति तथा उनके आश्रितों को स्वस्थ एवं ताकतवर बनाये रखने के लिए आवश्यक है।"


गिलिन व गिलिन के शब्दों में, - "गरीबी का अर्थ, उस अवस्था से है, जिसमें व्यक्ति अपर्याप्त आय अथवा अविवेकपूर्ण खर्च के कारण अपना एवं परिवार के सदस्यों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में असमर्थ रहता है, ताकि उसको एवं उसके परिवार के सदस्यों की शारीरिक व मानसिक क्षमता यथावत रहे।"



भारत में गरीबी के प्रमुख कारण 


भारत में गरीबी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-


1. जनसंख्या का अधिक दबाव - 


भारत में जनसंख्या अत्यन्त तीव्रगति से बढ़ रही है। इस वृद्धि का कारण पिछले वर्षों से मृत्यु दर का तो कम हो जाना, लेकिन जन्म-दर का लगभग स्थिर रहना है। जनसंख्या की वृद्धि दर जो सन् 1941-51 में 1-0 प्रतिशत थी, यह बढ़कर सन् 1991-2001 में 2.1 प्रतिशत हो गई। 


इसी प्रकार जनसंख्या सन् 2005-06 में बढ़कर 111 4 करोड़ हो गई है, जबकि सन् 1991 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 84-63 करोड़ थी। जनसंख्या का अधिक दबाव निर्भरता भार को बढ़ा देता है, जिसका अभिप्राय है समय के साथ-साथ गरीबी का और अधिक बढ़ना।


2. निरन्तर रहने वाली बेरोजगारी -


भारत में चिरकालीन बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी है। यहाँ शिक्षित बेरोजगारी से भी बढ़कर कृषि में अदृश्य बेरोजगारी की समस्या है। बेरोजगारी की समस्या गरीबी का मुख्य कारण है। भारत में सन् 2003-04 में लगभग 2 करोड़ व्यक्ति बेरोजगार थे।


3. राष्ट्रीय उत्पाद का निम्न स्तर -


भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पादन जनसंख्या की तुलना में काफी कम है। इस कारण भी प्रति व्यक्ति आय कम रही है। भारत का शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन सन् 2004-05 में उसी वर्ष की कीमतों के आधार पर 25,35, 627 करोड़ रु. था तथा प्रतिव्यक्ति आय केवल 9. योग्य एवं निपुण उद्यमकर्ताओं का 23,241 रुपये थी, जो संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित मापदण्ड के अनुसार बहुत अधिक गरीब देशों की है।


4. विकास की कम दर -


भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में विकास की दर बहुत कम रही है। योजनाओं को अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर लगभग 4 प्रतिशत रही है, किन्तु जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 2 प्रतिशत होने से प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि केवल 2-4 प्रतिशत हो गई है। अतएव जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना में विकास की दर बहुत कम बढ़ रही है। प्रतिव्यक्ति आय में निम्न वृद्धि दर ने गरीबों को जारी रखा है। 



5. स्फीतिक दबाव -


उत्पादन की निम्न दर तथा जनसंख्या वृद्धि की ऊंची दर के फलस्वरूप भारत जैसी अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्था स्फीतिक दबाव के जाल में फँस जाती है। मुद्रा स्फीति भारतीय अर्थव्यवस्था का एक स्थायी लक्षण बना हुआ है। इसका अर्थ है, कीमतों में निरन्तर वृद्धि की स्थिति कीमत वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित कौन होता है ? निश्चित रूप से मजदूरी कमाने वाला। अत: गरीब की और अधिक गरीब होने की प्रवृत्ति बनती चली जाती है।


6. पूँजी की अपर्याप्तता -


पूँजी आर्थिक विकास का एक सहायक तत्व है। पूँजी निर्माण को किसी देश को उत्पादन क्षमता के एक सूचक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। धारणीय विकास के लिए आवश्यक पूँजी का स्टॉक तथा पूँजी का निर्माण दुर्भाग्यवश अभी भी निष्क्रिय अवस्था में चल रहा है। निम्न पूँजी निर्माण का अर्थ है, कम उत्पादन क्षमता और इसलिए गरीबी


7. आधारभूत संरचना का अभाव - 


भारत में आधारभूत संरचना के प्रमुख घटक जैसे-ऊर्जा, परिवहन तथा संचार और सामाजिक आधारभूत संरचना के प्रमुख घटक जैसे- शिक्षा तथा आवास सेवाएँ बहुत ही बुरी अवस्था में है। 


आर्थिक वृद्धि तथा विकास के कार्यक्रम में ये सभी एक आधारशिला का कार्य करते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश 56 वर्षों के योजनावधि के बावजूद भी यह आधारशिला अभी भी अपनी शैशवावस्था में है। विकास प्रवृत्तियों की धीमी बढ़ोतरी या गुणन तथा गरीबी का निरन्तर बने रहना इसके स्पष्ट परिणाम हैं।


8. आय का असमान वितरण - 


भारत में गरीबी का एक महत्वपूर्ण कारण आय का असमान वितरण है। योजनाओं में प्रगतिशील कर प्रणाली तथा दूसरे उपायों द्वारा आय के असमान वितरण को दूर करने का प्रयत्न किया गया है, किन्तु इन उपायों के बावजूद आय तथा धन की असमानता बढ़ती जा रही है। 


आर्थिक अनुसंधान परिषद् की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के 20 प्रतिशत व्यक्ति 41 प्रतिशत राष्ट्रीय आय के स्वामी हैं। एकाधिकार जाँच अयोग के अनुसार, देश की 1536 कम्पनियाँ 75 परिवारों के नियंत्रण में हैं। आय का असमान वितरण न केवल गरीबी को प्रकट करता है, बल्कि गरीबी के फैलाव एवं व्यापकता का भी आधार होता है।


9. योग्य व निपुण उद्यमकर्ताओं का अभाव -


किसी भी देश में औद्योगिक विकास की प्रारंभिक अवस्था में साहस और कल्पना शक्ति रखने वाले, जोखिम उठाने की योग्यता रखने वाले तथा अपने कार्य में दक्ष, निपुण एवं चतुर उद्यमकर्ताओं की आवश्यकता होती है लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में ऐसे उद्यमकर्ताओं को बहुत कमी है। फलस्वरूप, देश में उत्पादन प्रक्रिया बहुत निम्न स्तर पर रही है। उत्पादन प्रक्रिया के निम्न स्तर का अर्थ, रोजगार का निम्न स्तर तथा गरीबी का उच्च स्तर है।


10. पुरानी सामाजिक संस्थाएँ -


भारत की अर्थव्यवस्था का मूल सामाजिक आधार पुरानी सामाजिक संस्थाएँ तथा रुढ़ियाँ हैं, जैसा-जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और उत्तराधिकार के नियम आदि। ये सब हमारी अर्थव्यवस्था के प्रावैगिक परिवर्तनों में बाधा उपस्थित करते हैं। इससे विकास दर में रुकावट पड़ती है तथा इसका परिणाम गरीबी होता है।


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