वैश्वीकरण के प्रमुख घटक कौन कौन से हैं | Major components of globalization in hindi

वैश्वीकरण का अर्थ (Globalization)


वैश्वीकरण से तात्पर्य है, देश की अर्थव्यवस्था को संसार के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से मुक्त व्यापार, पूँजी और श्रम की मुक्त गतिशीलता आदि के द्वारा संबंधित करना। 


"वैश्वीकरण से आशाय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई परस्पर आर्थिक निर्भरता तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है।"


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वैश्वीकरण

आर्थिक सुधारों की यह मान्यता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था से निकटतम संबंध होना चाहिए। इसके फलस्वरूप वस्तुओं एवं सेवाओं, टेक्नोलॉजी तथा अनुभव का संसार के विभिन्न देशों के साथ बिना रोक टोक के साथ विनिमय हो सकेगा। 

वैश्वीकरण के फलस्वरूप संसार के विभिन्न देशों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के सहयोग में वृद्धि होगी। संसार के विकसित देशों से पूँजी तथा तकनीक का प्रवाह भारत की ओर हो सकेगा।


वैश्वीकरण के प्रमुख घटक 


1. विदेशी पूंजी निवेश की साम्य सीमा में वृद्धि -


आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत विदेशी पूँजी निवेश की सीमा 40% से बढ़ाकर 51 से 100% कर दी गई है। उच्च प्राथमिकता के 47 उद्योगों में 100% तक पूँजी निवेश की इजाजत बिना रोक और लालफीताशाही के दी जायेगी। 

निर्यात करने वाले व्यापारिक घरानों में भी 100% तक विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति दी जायेगी। इस संबंध में विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून' (FEMA) लागू किया गया है। इस प्रकार की विदेशी पूँजी निवेश इकाइयों पर पुजें, कच्चेमाल और तकनीकी जानकारी के आयात के मामले में सामान्य नियम लागू होंगे।


2. आंशिक परिवर्तनशीलता - 


वैश्वीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों के अनुसार, भारतीय रुपये की आंशिक परिवर्तनशीलता कर दी गई। रुपये की आंशिक परिवर्तनशीलता का अर्थ है, विदेशी सौदों के लिए बाजार द्वारा निर्धारित कीमत पर विदेशी मुद्रा जैसे- डॉलर या पौंड को बाजार में खरीदना या बेचना। यह परिवर्तशीलता केवल निम्नलिखित सौदों के लिए की जा सकती थी 


(i) वस्तुओं और सेवाओं के आयात व निर्यात के लिए, 

(ii) व्याज तथा निवेश से आय का भुगतान करने के लिए, 

(iii) परिवार का खर्चा चलाने के लिए भेजी जाने वाली राशि। इस परिवर्तनशीलता को आंशिक परिवर्तनशीलता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये पूँजोगत सौदों पर लागू नहीं होती थी।


3. दीर्घकालीन व्यापार नीति - 


आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत विदेशी व्यापार नीति को दीर्घकाल अर्थात् पाँच वर्ष को अवधि के लिए लागू किया गया। इस नीति की मुख्य विशेषता इसकी उदारता है। इस नीति में व्यापार में लगे सभी नियंत्रण और प्रतिबंधों को हटा दिया गया है। खुली प्रतियोगिता को प्रोत्साहन दिया गया है तथा उसके लिए सभी सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। 

अब कुछ विशिष्ट वस्तुओं को छोड़कर किसी भी वस्तु का आयात-निर्यात किया जा सकता है। सरकारी एजेन्सियों द्वारा खरीदी या बेची जाने वाली वस्तुओं की संख्या भी सीमित करके अब सभी को व्यापार के समान अवसर दिये गये हैं। इस नीति की एक विशेषता यह है कि प्रशासनिक नियंत्रणों को न्यूनतम कर दिया गया है।


4. टैरिफ दरों में कमी -


आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय रूप से उपयोगी बनाने के लिए आयात तथा निर्यात पर लगाये जाने वाले सीमा शुल्क तथा टैरिफों को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है। 


वैश्वीकरण के आर्थिक सुधार 


सन् 1991 के बाद देश में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण से संबंधित निम्नांकित आर्थिक सुधार भी किये गये हैं 


1. राजकोषीय सुधार -


रोजकोषीय सुधारों से आशय, सरकार की आय में वृद्धि करना तथा व्यय को इस प्रकार कम करना है, जिसका उत्पादन तथा आर्थिक कल्याण पर बुरा प्रभाव नहीं पड़े। अतएव इसका मुख्य उद्देश्य राजकोषीय घाटे जो कि सन् 1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद का 8.5% था, को कम करके 4% करना था। 


इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए र कई सुधार किये गये, जैसे- सार्वजनिक व्यय पर नियंत्रण, करों में वृद्धि, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शेयरों की बिक्री तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पादन की कीमतों में वृद्धि। राजा चलैया समिति की रिपोर्ट के आधार पर दीर्घकालीन राजकोषीय नीति की घोषणा की गई थी। इस राजकोषीय नीति में कई सुधार किये गये, जैसे- 


(i) कर प्रणाली को अधिक वैज्ञानिक तथा युक्तिपूर्ण बना दिया गया है। आयकर की अधिकतम दर को 50 प्रतिशत से कम करके 30 प्रतिशत कर दिया गया है।

(ii) विदेशी कम्पनियों के लाभ को कम कर दिया गया है। 

(iii) आयात-निर्यात कर को 250 प्रतिशत से कम करके 50% कर दिया गया है।

(iv) अनेक वस्तुओं पर उत्पादन कर कम किया गया है।

(v) आर्थिक सहायता को कम कर दिया गया है।

(vi) सरकार सार्वजनिक व्यय को कम करने के लिए विशेष प्रयत्नशील है।

(vii) राज्य सरकार अपने उद्यमों को विशेष रूप से विकसित करेगी, बिजली बोडौं तथा यातायात निगमों के घाटे को कम किया जा रहा है।


2. वित्तीय सुधार - 


वित्तीय सुधारों से आशय, देश की मौद्रिक तथा बैंकिंग नीतियों में सुधार करने से है। सरकार ने वित्तीय सुधारों के लिए नरसिंहम कमेटी की नियुक्ति की थी। इस कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने महत्वपूर्ण वित्तीय सुधार किये हैं


(i) तरलता अनुपात में कमी - इस समिति के अनुसार, वैज्ञानिक तरलता अनुपात को 38.5% से कम करके कर दिया गया है। इसी प्रकार आरक्षित नकदी अनुपात को अपने वर्तमान उच्च स्तर से धीरे-धीरे कम अर्थात् 5% किया जा 25% रहा है जो कि 21 जनवरी सन् 2005 से लागू है। 


(ii) ब्याज दरों का स्वतंत्र निर्धारण - व्याज दरों का निर्धारण रिजर्व के स्थान पर बैंकों द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक किया जाने लगा है।


(iii) बैंकिंग प्रणाली की पुनर्संरचना - बैंकिंग प्रणाली को पुनर्संरचना की गई है। नये निजी बैंकों की स्थापना को प्रोत्साहित किया गया है।


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