प्रमाणक
एक व्यापारिक संस्था में पुस्तपालन लेन-देनों के संबंध में प्रविष्टियाँ सर्वप्रथम प्रारंभिक लेखे की पुस्तकों में करते हैं। इन प्रविष्टियों को करते समय सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि उस प्रविष्टि के प्रमाण क्या है, बिना प्रमाण के कोई भी प्रविष्टि नहीं की जा सकती।
उदाहरण के लिए क्रय बहीं में दर्ज की जाने वाली प्रविष्टियों के लिए कैश-मेमो की नकल, विक्रेता के सारांश एवं रोकड़िये के विवरण पत्र प्रमाणक का कार्य करेंगे। इन प्रमाणकों (Vouchers) के आधार पर ही लेखा पुस्तकों में प्रविष्टियाँ की जाती हैं। यह हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए कि संस्था की लेखा पुस्तकों में कोई भी प्रविष्टि ऐसी न की जाये जिसके लिए प्रमाणक (Vouchers) न हों।
प्रमाणक के प्रकार
(i) नगद व्यवहारों का लेखा करने के लिए।
(ii) अन्य व्यवहारों का लेखा करने के लिए।
व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा प्रमाणक निश्चित प्रारूप में मुद्रित कर लिया जाता है जिनमें प्रत्येक व्यवहारों का विवरण सर्वप्रथम दर्ज किया जाता है।
व्यावसायिक व्यवहारों की प्रकृति के पूर्व निर्धारण के लिए प्रमाणक अलग-अलग रंग के कागजों में किया जाता है। प्रत्येक प्रमाणक में संस्था के जिम्मेदार व्यक्ति का हस्ताक्षर व्यावसायिक व्यवहारों के सत्यता के प्रमाण हेतु किया जाता है।
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