लेखांकन का अर्थ एवं परिभाषा तथा उद्देश्य | Accounting meaning and definition and Purpose in hindi

आज के इस आर्टिकल में जानेंगे कि लेखांकन (Accountancy) क्या है, आज के दौर में सभी जगह जैसे बड़े पैमाने के व्यापार तथा बिज़नेस में लेखांकन (accountancy) या पुस्तपालन (Book-keeping) की काफी जरूरत होती है और इसका प्रयोग हर क्षेत्र में होते आ रहा है जैसे निजी कंपनियों से लेकर सरकारी विभागों में लेखांकन का उपयोग होता है


लेखांकन (Accountancy) में बिज़नेस तभी Successful हो सकता जब तक आप लेखांकन के बारे में अच्छे से नहीं जानेंगे तो चलिये जानते हैं आखिर लेखांकन होता क्या है?



आज के इस Post में लेखांकन (Accountancy) को विस्तार से समझेगें और साथ जानेंगे भी की लेखांकन क्या होता है, लेखांकन का आशय, लेखांकन की परिभाषा क्या है, लेखांकन की विशेषता क्या है, लेखांकन विज्ञान है या कला, लेखांकन के कार्य, लेखांकन के प्रकार कितने है, लेखांकन के उद्देश्य, लेखांकन के लाभ बताइये आदि।


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लेखांकन 

लेखांकन का अर्थ (Meaning of Accounting)


लेखांकन (Accounting) से आशय वित्तीय स्वभाव के सौदे एवं घटनाओं के मौद्रिक रूप का लेखा करने एवं मौद्रिक वर्गीकरण कर उनका सूक्ष्म (Brief) बनाने से है ताकि व्यावसायिक व्यवहारों तथा उससे संबंधित व्यक्तियों के साथ वित्तीय संबंधों को सही रूप से ज्ञात किया जा सके, लेखांकन के माध्यम से एक निश्चित अवधि के लिए संबंधित संस्थान के लाभ-हानि का लेखा-जोखा किया जाता है जिससे वित्तीय वर्ष के अंत में संस्था के आर्थिक स्थिति को निश्चित किया जा सके और इनके परिणामों से उचित निष्कर्ष निकाला जा सके।


लेखांकन की परिभाषा (Definition of Accounting) 


लेखांकन की परिभाषा कुछ लेखाकार के अनुसार दी गई है जो निम्न प्रकार से हैं -


अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाईड पब्लिक एकाउण्टेण्ट्स - “लेखांकन एक कला है, जिसमें वित्तीय लेन-देनों एवं घटनाओं को प्रभाव पूर्ण ढंग से मौखिक रूप में लिखने, वर्गीकृत करने एवं संक्षिप्त करने का कार्य किया जाता है और उनके परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।"


आर.एन. अन्येली - "लेखांकन का संबंध संगठन के मौद्रिक व्यवहारों की सूचनाओं का एकत्रण, संक्षिप्तिकरण, विश्लेषण एवं परिणामों को स्पष्ट करने से है।" 


एच. वायरमेन - वित्तीय सूचनाओं का प्रमाणन, मूल्यांकन, अभिलेखन एवं एकत्रण लेखांकन कहलाता है।


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि लेखांकन मौद्रिक सूचनाओं को एकत्रित कर उन्हें व्यवस्थित करने तथा उनका विश्लेषण कर उचित निष्कर्ष पर पहुँचने की प्रक्रिया है।


लेखांकन की विशेषता (Characteristics of accounting)


लेखांकन को प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -


(i) लेखांकन कला एवं विज्ञान दोनों है।

(ii) लेखांकन में वित्तीय व्यवहारों का उनकी प्रकृति के अनुसार अभिलेखन किया जाता है।

(iii) लेखांकन में वित्तीय व्यवहारों एवं घटनाओं को मुद्रा के रूप में अंकित किया जाता है।

(iv) यह व्यवहारों का व्यवस्थित क्रम में पूर्ण, शुद्ध, स्पष्ट तथा स्थायी रिकार्ड रखता है।

(v) इसमें निश्चित नियमावली एवं बहियों में लेखा किया जाता है।

(vi) लेखांकन के अंतर्गत व्यवहारों के परिणामों की व्याख्या भी की जाती है।



लेखांकन विज्ञान है या कला है या दोनों


लेखांकन विज्ञान (accounting science) है अथवा कला इस संबंध में विद्वानों के मतभेद हैं। कुछ इसे विज्ञान मानते हैं तथा कुछ विद्वान इसे कला तथा कुछ इसे दोनों मानते हैं। लेखांकन की प्रकृति समझने के लिये सर्वप्रथम कला एवं विज्ञान से आशय समझनाआवश्यक है।


विज्ञान से आशय (Meaning Of Science) -


विज्ञान किसी विषय वस्तु के वास्तविक ज्ञान से संबंधित है। विज्ञान कारण एवं परिणाम की निश्चित व्याख्या स्पष्ट करता है। विज्ञान द्वारा यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि किसी कार्य का परिणाम क्या होगा जैसे- गुरुत्वाकर्षण का नियम विज्ञान के सिद्धान्त सार्वभौमिक रूप से सत्य होते हैं। ये प्रत्येक स्थान एवं परिस्थितियों में समान परिणाम देते हैं।


कला से आशय (Meaning Of Art) -


कला के द्वारा कारणों के विभिन्न संभावित परिणामों का विश्लेषण किया जाता है तथा उन संभावित परिणामों में सर्वोत्तम परिणाम के चयन का प्रयास किया जाता है ताकि सर्वोत्तम विकल्प के चयन द्वारा सर्वोत्तम व इच्छित परिणाम प्राप्त किया जा सके। 


लेखाकर्म विज्ञान तथा कला के रूप में 


लेखाकर्म (accounting work) में विज्ञान व कला दोनों के ही गुण विद्यमान हैं। लेखांकन के सिद्धान्त निश्चित पुस्तकों तथा निश्चित नियमों पर आधारित है। परिणामस्वरूप परिणाम निश्चित प्राप्त होते हैं जो यह प्रदर्शित करता है कि लेखाकर्म विज्ञान है।


प्राप्त परिणाम के विश्लेषण के आधार पर विभिन्न परिणामों का पूर्वानुमान लगाकर पुस्तकों में आवश्यकता अनुरूप सुधार करना तथा कार्य व्यवहारों व आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण करना भी लेखाकर्म द्वारा ही संभव है, जो इस कला के गुण की व्याख्या करता है। 


अत: कहा जा सकता है कि लेखाकर्म प्रणाली में कला एवं विज्ञान दोनों के ही गुण विद्यमान है।


पुस्तपालन तथा लेखांकन (Bookkeeping And Accounting)


सामान्यतः पुस्तपालन तथा लेखाकर्म को समान समझा जाता है किन्तु दोनों का अस्तित्व पृथक है। मान्यता है कि जहाँ पर पुस्तपालन समाप्त होता है वहाँ से लेखाकर्म प्रारंभ होता है। इस प्रकार दोनों का कार्यक्षेत्र भिन्न है।



पुस्तपालन का कार्य (Bookkeeping)


व्यापारिक लेन-देनों को नियमानुसार क्रमबद्ध रूप से प्रारंभिक लेखों की पुस्तकों में लिखना तथा संबंधित खातों में वर्गीकरण करना होता है। इसके अन्तर्गत आने वाले कार्य क्रमश: निम्न हैं


(i) जर्नल तथा अन्य सहायक बहियों का लेखा करना। 

(ii) खातावही (Ledger) में खतौनी (Posting) करना।

(iii) खाता का शेष (Balancing) निकालना तथा 

(iv) तलपट तैयार करना (Trial Balance)


लेखांकन के प्रकार (Types of Accounting)

1. वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting)

2. प्रबंध लेखांकन (Management Accounting)

3. लागत लेखांकन (Cost Accounting)


लेखांकन के उद्देश्य (Accounting Objectives)


लेखांकन के उद्देश्यों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है


1. मुख्य उद्देश्य (Main objects)


2. सामान्य उद्देश्य (General objects)


1. मुख्य उद्देश्य (Main objects)


1. व्यावसायिक व्यवहारों का स्थायी लेखा रखना - 


व्यावसायिक आर्थिक व्यवहारों एवं लेन-देनों को व्यवस्थित रूप से लिखने पर एक स्थायी लेखा तैयार हो जाता है जिसका प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जा सकता है। 


2. व्यापारिक परिणामों को प्राप्त करना - 


लेखा पुस्तकों की सहायता से एक निश्चित अवधि में व्यावसायिक व्यवहारों से प्राप्त लाभ या हानि ज्ञात किया जा सकता है जिसकी सहायता से उचित व्यावसायिक निर्णय लिया जा सकता है। 


3. व्यापार के आर्थिक स्थिति की जानकारी -


लेखा पुस्तकों के माध्यम से व्यापारी को व्यापार के लाभ-हानि व उसके आर्थिक स्थिति के संबंध में जानकारी मिल जाती है।


4. कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति - 


व्यावसायिक संस्थाओं (फर्मों एवं कम्पनियों) का वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये लेखा करना अनिवार्य है, इन लेखों का प्रयोग लाभ, लाभांश निर्धारण एवं करारोपण के लिये किया जाता है।


5. भावी योजनाओं के निर्माण में सहायक -


लेखा पुस्तकों के माध्यम से व्यासायिक व्यवहारों तथा इनसे होने वाले लाभ एवं हानियों का मूल्यांकन किया जाता है, जिसके आधार पर भविष्य हेतु नीति निर्धारण निर्णनयन आसान हो जाता है।


2. सामान्य उद्देश्य (General objeets)


1. आर्थिक स्थिति का ज्ञान -


प्रत्येक व्यापारिक लेन-देनों के आर्थिक प्रभावों के जानकारी के लिए बही खाते बनाए जाते हैं जिससे हर समय व्यापारी को अपनी आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो सके।


2. लाभ या हानि की जानकारी -


एक निश्चित समय में होने वाले व्यापारिक लाभ या हानि की जानकारी सब लेन-देनों को विधिवत लिखने के बाद ही होती है। यदि हानि हुई तो हानि के कारणों की जानकारी पुस्तपालन की सूचनाओं के आधार पर की जा सकती है और हानि से बचा जा सकता है।


3. स्टॉक (रहतिया) की स्थिति का ज्ञान -


किसी निश्चित समय में माल का कुल क्रय-विक्रय अथवा वापसी जानने के लिए खाते बनाना आवश्यक है। इससे निश्चित अवधि में माल की खरीद बिक्री तथा कितना माल स्टॉक है, सब ज्ञात हो जाता है।


4. लेनदारों व देनदारों की स्थिति -


किसको कितना देना है अर्थात् कुल लेनदार कितने हैं और कितना लेना है या कुल देनदार (Debtor) कितने हैं, यह भी बही खातों से तुरन्त पता लग जाता है। 


5. नगद राशि की स्थिति की जानकारी -


किसी समय विशेष पर कितनी नगदी शेष (Cash-in-hand) है और बैंक में क्या शेष (Cash at Bank) है की जानकारी भी पुस्तपालन के माध्यम से प्राप्त की जाती है।


6. संपत्ति व दायित्व का ज्ञान -


व्यापार में एक निर्धारित समय के बाद कितनी पूँजी लगी और व्यापार में संपत्ति (Assets) तथा दायित्व (Liabilities) की क्या स्थिति है, इसे जानने के लिए पुस्तपालन करना आवश्यक होता है।


7. त्रुटियों का ज्ञान -


पुस्तपालन की व्यवस्था से लेखे व लेन-देन की त्रुटियों की जानकारी होती रहती है।


8. कर दायित्वों की जानकारी -


व्यापारिक व लेखा पुस्तकों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि उसे कितना बिक्री कर व आयकर आदि देना पड़ेगा। 


9. व्यापारिक आवश्यकताओं का ज्ञान -


पुस्तपालन से व्यापार की वर्तमान व भावी आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। भविष्य में पूँजी की मात्रा का अनुमान पहले से लगाने के लिए हिसाब-किताब की अच्छी प्रणाली रखना उपयोगी होता है।


10. व्यापारिक कार्यक्षमता का अध्ययन -


पुस्तपालन से व्यापार की क्षमता व लाभदायकता का तुलनात्मक अध्ययन कई वर्षों के व्यापारिक परिणामों के आँकड़ों के आधार पर किया जा सकता है। 


पुस्तपालन व लेखांकन की आवश्यकता


आधुनिक व्यापारिक क्रियाओं के सफल संचालन के लिए पुस्तपालन व लेखांकन एक आवश्यकता है। इसे निम्न तर्कों से स्पष्ट किया जा सकता है 


1. व्यापारिक लेन-देनों को लिखित रूप देना आवश्यक होता है -


व्यापार में प्रतिदिन अनगिनत व्यावसायिक व्यवहार होते हैं। इन्हें याद नहीं रखा जा सकता। इनको लिख लेना प्रत्येक व्यापारी के लिए आवश्यक होता है। पुस्तपालन के माध्यम से इन लेन-देनों को सही तरह से लिखा जाता है।


2. बेइमानी व जालसाजी आदि से बचाव के लिए लेन-देनों का समुचित विवरण रखना - 


व्यापार में विभिन्न लेन-देनों में किसी प्रकार की बेईमानी, धोखाधाड़ी व जालसाजी न हो सके, इसके लिए लेन-देनों का समुचित तथा वैज्ञानिक विधि से लेखा होना चाहिए। इस दृष्टि से भी पुस्तपालन को एक आवश्यक माना जाता है।


3. व्यापारिक करों के समुचित निर्धारण के लिए पुस्तकें आवश्यक होती हैं -


एक व्यापारी अपने लेन-देनों को भली-भाँति लिखने, लेखा पुस्तकें रखने तथा अन्तिम खाते आदि बनाने के बाद ही अपने कर दायित्व की जानकारी कर सकता है। पुस्तपालन से लेन-देनों के समुचित लेखे रखे जाते हैं। 


विक्रय की कुल राशि तथा शुद्ध लाभ की सही जानकारी मिलती है जिसके आधार पर विक्रय कर व आयकर के राशि के निर्धारण में सरलता हो जाती है। 


4. व्यापार के विक्रय मूल्य के निर्धारण में पुस्तपालन के निष्कर्ष उपयोगी होते हैं - 


यदि व्यापारी अपने व्यापार के वास्तविक मूल्य को जानना चाहता है या उसे उचित मूल्य पर बेचना चाहता है तो लेखा पुस्तकें व्यापार की सम्पत्तियों व दायित्वों आदि के शेषों के आधार पर व्यापार के उचित मूल्यांकन के सही आँकड़े प्रस्तुत करती हैं।


पुस्तपालन व लेखांकन के लाभ (Advantages of Bookkeeping and Accounting)


लेखांकन से मिलने वाले लाभों का वर्णन निम्नानुसार किया जा सकता है 


1. व्यापारियों को लाभ (Advantage of Businessman)

2. कर्मचारियों को लाभ (Advantage to Employees) 

3. विनियोजकों को लाभ (Advantage for Investors)

4. सरकार को लाभ (Advantage for Government) 

5. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to consumer) 



1. व्यापारियों को लाभ (Advantage of Businessman)


1. पूँजी या लागत को ज्ञात करना - 


समस्त सम्पत्ति (जैसे-मशीन, भवन, रोकड़ आदि) दायित्व (जैसे- लेनदारों, बँक या ऋण आदि) को घटाकर किसो समय विशेष पर व्यापारी अपनी पूँजी ज्ञात कर सकता है। 


2. विभिन्न लेन-देनों को याद रखने का साधन -


व्यापार में अनेकानेक लेन-देन होते हैं। उन सबको लिखकर ही याद रखा जा सकता है और उनके बारे में कोई जानकारी उसी समय सम्भव हो सकती है जब इसे ठीक प्रकार से लिखा गया हो। 


3. कर्मचारी के छल-कपट से सुरक्षा -


जब लेन-देनों को बहीखातों में लिखा जाता है तो कोई कर्मचारी आसानी से धोखा, छलकपट नहीं कर सकता और व्यापारी को लाभ का सही ज्ञान रहता है। यह बात विशेषकर उन व्यापारियों के लिए अधिक महत्व की है जो अपने कर्मचारियों पर पूरी-पूरी दृष्टि नहीं रख पाते। 


4. समुचित आयकर (Income tax) या विक्री कर (Sales Tax) लगाने का आधार -


यदि बहीखाते ठीक रखे जायें और उनमें सब लेन-देन लिखित रूप में हो तो कर अधिकारियों को कर लगाने में सहायता मिलती है, क्योंकि लिखे हुए बहीखाते हिसाब की जाँच के लिए पक्का सबूत माने जाते हैं।


5. व्यापार खरीदने -


बेचने में आसानी-ठीक-ठीक बहीखाते रखकर एक व्यापारी अपने कारोबार को बेचकर किसी सीमा तक उचित मूल्य प्राप्त कर सकता है। साथ ही साथ खरीदने वाले व्यापारी को भी यह संतोष रहता है कि उसे खरीदे हुए माल का अधिक मूल्य नहीं देना पड़ा। 


6. अदालती कामों में बहीखातों का प्रमाण (सबूत) होना - 


जब कोई व्यापारी दिवालिया हो जाता है (अर्थात् उसके ऊपर ऋण उसकी संपत्ति से अधिक हो जाती है) तो वह न्यायालय से अपने आपको दिवालिया घोषित करवा सकता है। 


उसके ऐसा करने पर उसकी संपत्ति उसके लेनदारों में ऋण के अनुपात में बँट जाती है और व्यापारी ऋणों के दायित्व से मुक्त हो जाता है। यदि बहीखाते न हों तो न्यायालय व्यापारी को दिवालिया घोषित करने में संदेह कर सकता है।


7. व्यापारिक लाभ-हानि जानना -


बहीखातों में व्यापार व लाभ-हानि खाते निश्चित समय के अंत में बनाकर कोई भी व्यापारी अपने व्यापार में लाभ या हानि मालूम कर सकता है।


8. पिछले आँकड़ों से तुलना - 


समय-समय पर व्यापारिक आँकड़े द्वारा अर्थात् क्रय-विक्रय, लाभ-हानि इत्यादि की तुलना पिछले सालों के आँकड़ों से करके व्यापार में आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं। 


9. वस्तुओं की कीमत लगाना - 


यदि व्यापारी माल स्वयं तैयार करता है और उन सब का हिसाब बहीखाते बनाकर रखता है, तो उसे माल तैयार करने की लागत मालूम हो सकती है। लागत के आधार पर वह अपनी निर्मित वस्तुओं का विक्रय मूल्य निर्धारित कर सकता है।


10. आर्थिक स्थिति का ज्ञान - 


बहीखाते रखकर व्यापारी हर समय यह मालूम कर सकता है कि उसको व्यापारिक स्थिति संतोषजनक है अथवा नहीं।


2. कर्मचारियों को लाभ (Advantage to Employees) 


लेखांकन द्वारा संस्था के कर्मचारियों को निम्नलिखित लाभ होते हैं


1. पारिश्रमिक निर्धारण में सहायक -


सुचारु लेखांकन द्वारा यह आसानी से ज्ञात किया जा सकता है कि कर्मचारियों की योग्यता से संस्था के लाभ में कितनी वृद्धि हो रही है, जिसके आधार पर कर्मचारियों के पारिश्रमिक का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है।


2. पारिश्रमिक संबंधी समस्याओं के निवारण में सहायक - 


लेखा पुस्तकों के माध्यम से संस्था के वास्तविक वित्तीय स्थिति के संबंध में जानकारी प्राप्त हो जाती है जिसके आधार पर पारिश्रमिक संबंधी निर्णय सरलता से लिया जा सकता है।


3. विनियोजकों को लाभ (Advantage for Investors)


1. निर्णनयन में सहायक - 


लेखा पुस्तकों के माध्यम से संस्था के आर्थिक स्थिति एवं लाभ के संबंध में जानकारी मिल जाती है जिसके आधार पर वह आसानी से निर्णय ले सकता है। 


2. मतभेदों को दूर करने में सहायक - 


वित्तीय लेखों के माध्यम से संस्था के वित्तीय व्यवहारों के संबंध में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है जो आर्थिक मतभेदों को दूर करने में सहायक होते हैं।


4. सरकार को लाभ (Advantage for Government) 


1. करारोपण में सहायक - 


लेखों के माध्यम से उत्पादन एवं व्यापारिक लाभों के संबंध में जानकारी प्राप्त हो जाती है जिसके आधार पर उचित कारारोपण किया जा सकता है।


2. वित्तीय सहायता के निर्धारण में सहायक - 


लेखों के माध्यम से संस्था के वास्तविक वित्तीय स्थिति की जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिसके माध्यम से दिये जाने वाले वित्तीय सहायता का निर्धारण किया जा सकता है।


3. व्यावसायिक नीति निर्धारण में सहायक -


 वित्तीय लेखे वास्तविक व्यावसायिक स्थिति तथा प्रगति को प्रदर्शित करते हैं जिसके आधार पर सरकार को व्यावसायिक नीति निर्धारण में सुविधा होती है। वित्तीय लेखों के अध्ययन से पूर्व व्यावसायिक नीतियों के प्रभावों का भी अध्ययन किया जा सकता है।


5. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to consumer) 


वित्तीय लेखों के माध्यम से वास्तविक उत्पादन •लागत जानकारी मिल जाती है जिसके कारण उचित मूल्य पर वस्तुएँ उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है, जो उपभोक्ताओं के लिए लाभदायक है।


सावधानियाँ - बहीखाते के ऊपर लिखे हुए पूरे-पूरे लाभ उसी समय मिल सकते हैं, जब व्यापार से संबंधित कुछ अन्य आवश्यक बातों को भी ध्यान में रखा जाए, जो इस प्रकार हैं


1. व्यापार का स्वभाव -


व्यापार के स्वभाव से अर्थ यह है कि एक व्यक्ति द्वारा व्यापार किया जा रहा है या दो से अधिक व्यापारियों की साझेदारी में काम हो रहा है व्यापार कम्पनी बनाकर भी किया जाता है। बहीखातों का लेखा भिन्न भिन्न प्रकार के व्यापार के अनुसार ही होता है।


2. व्यापारी की कार्यक्षमता -


व्यापारी को हर समय सतर्क होकर देखना चाहिए कि सभी लेन-देन ठीक-ठीक लिखे जाते हैं अथवा गलत पुस्तकें तो प्रयोग में नहीं लाई जाती हैं। दैनिक देखभाल या नियंत्रण में उसकी सावधानी जितनी ज्यादा होगी उतने ही अधिक लाभ बहीखाते से मिल पायेंगे।


3. बहीखाते में उचित प्रणाली का प्रयोग -


बहीखातों में हिसाब लिखने की ऐसी प्रणाली का प्रयोग होना चाहिए जिससे कम से कम समय में माल, द्रव्य या सेवाओं के लेन-देन के बारे में अधिक सूचनाएँ मिल सकें। यदि कोई प्रणाली अधूरी है या जिसका प्रयोग कठिनाई से समझ में आता है तो बहीखाते रखकर भी उसका पूरा-पूरा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।


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इस प्रकार बहीखाता बनाकर व्यापारी अपने व्यापार के उद्देश्यों की पूर्ति कर लेता है और उससे होने वाले लाभ से अपने व्यापार को और उन्नत बना सकता है। लेकिन स्वयं बहीखाता ही सब कुछ नहीं देता, उसके लिए उसमें प्रयोग की जाने वाली प्रणाली का वैज्ञानिक स्वरूप होना आवश्यक है। पुस्तपालन (Book-keeping) के लाभ मुख्यतः उनके प्रयोग पर निर्भर है। इसलिए बहीखाते लिखने की इस प्रणाली का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है।


आशा करता हूँ की आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा क्योंकि हमने लेखांकन को पूरी Details से समझाया है की लेखांकन क्या होता है, लेखांकन की परिभाषा क्या है एवं लेखांकन के प्रकार एवं उद्देश्य को काफी सरल भाषा में समझाया गया है। अगर आपको यह Post पसंद आयी तो आप अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें।


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