भारतवर्ष में जनसंख्या के बढ़ते हुए विशाल आकार ने अनेक आर्थिक तथा गैर-आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है। इन समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण समस्या बेरोजगारी की है। बेरोजगारी की समस्या से ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं, बल्कि शहर भी प्रभावित है।
शिक्षा प्राप्त करने की प्रतियोगिता में, आज देश के समस्त विद्यालय एवं महाविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने वाले युवक और युवतियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन नवयुवकों के समक्ष रोजगार की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
बेरोजगारी |
आज हमारे देश में सामान्य स्नातक की नहीं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर एवं सच्च योग्यता वाले व्यक्ति भी बेरोजगारी के शिकार हैं। एक विकासशील राष्ट्र के समक्ष, यह समस्या अत्यन्त सोचनीय एवं विचारणीय है। बेरोजगारी चाहे जिस वर्ग में भी क्यों न हो, वह समाज के लिए कलंक होती है।
लार्ड विलियम बैवरिज ने लिखा है - "संसार में पाँच आर्थिक राक्षस सदैव मानव जाति को ग्रसित करने के लिए तैयार रहते हैं, गरीबी, रोग, अज्ञानता, गंदगी और बेरोजगारी, परन्तु सबसे भंयकर राक्षस बेरोजगारी है।”
भगवती समिति का कहना है, - कि “बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है और भविष्य में इसके और भी गम्भीर होने की आशंका है।"
बेरोजगारी का अर्थ व परिभाषा
रोजगारी का अर्थ, उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से देश में प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता।
प्रो. ए. सी. पीगू के शब्दों में, - “एक व्यक्ति केवल तब बेरोजगार होता है, जब उसके पास कोई काम नहीं होता और वह काम करने को इच्छुक होता है।
बेरोजगारी की प्रवृत्ति के आधार पर इसको अलग-अलग रूप में निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-
(अ) वह बेरोजगारी, जिसमें विभिन्न व्यक्ति प्रचलित मजदूरी पर शारीरिक व मानसिक रूप से कार्य करने के लिए तैयार होते हैं अर्थात् व्यक्तियों में कार्य करने की योग्यता व क्षमता दोनों होती है। वह कार्य करना भी चाहते हैं, लेकिन काम नहीं मिलता।
(ब) बेरोजगारी की वह परिस्थिति, जिसमें व्यक्तियों को काम मिलने के अवसर हों, लेकिन व्यक्तियों में उस कार्य को करने की योग्यता, शिक्षा की कमी हो, तो भी लोग कार्य करने से वंचित रहते हैं। कार्य के अवसर होते हुए भी काम नहीं मिलता।
(स) बेरोजगारी की वह परिस्थिति, जिसमें व्यक्ति कार्य के अनुसार योग्य एवं प्रशिक्षित, शिक्षित तो होते हैं, लेकिन उन्हें मजदूरी कम प्राप्त होती है और वह उस कार्य को करना नहीं चाहते।
(द) बेरोजगारी की वह परिस्थिति, जिसमें किसी कार्य को करने के लिए पाँच आदमियों की आवश्यकता हो, लेकिन उसे सात लोगों द्वारा किया जाता है।
बेरोजगारी के प्रकार
बेरोजगारी के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. खुली बेरोजगारी -
खुली बेरोजगारी वह है जिसमें काम करने के लिए योग्य, शिक्षित व्यक्ति उपलब्ध हों, लेकिन उन्हें कार्य न मिलता हो । व्यक्तियों द्वारा कार्य को तलाश के बाद भी काम न मिलता हो, तब इस प्रकार की बेरोजगारी को खुली बेरोजगारी कहते हैं।
2. अदृश्य अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी -
जब व्यक्तियों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिलता, लेकिन वे किसी-न-किसी कार्य में लगे रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सीमांत उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है। ऐसी बेरोजगारी को छिपी हुई या अदृश्य प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के कृषि व्यवसाय में इस प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है।
3. मौसमी बेरोजगारी -
मौसमी बेरोजगारी वह है जिसमें श्रमिकों को किसी विशेष अवधि में कार्य मिलता है और बाद के समय में वे खाली रहते हैं। उदाहरणार्थ, कृषि उद्योग में लगे श्रमिक पाँच या छ: महीने कार्य करते हैं और वर्ष के बाकी समय बेरोजगार रहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहा जाता है। चीनी उद्योग, बर्फ उद्योग, ईंटों के भट्ठों आदि में भी मौसमी बेरोजगारी पाई जाती है।
4. शिक्षित बेरोजगारी -
मान्यतः शिक्षित व्यक्तियों को जब इच्छा व योग्यता के अनुसार कार्य नहीं मिल पाता, जबकि वह कार्य की तलाश में रहते हैं, ऐसी बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी कहलाती है।
5. अल्प बेरोजगारी -
जब श्रमिकों अथवा व्यक्तियों को अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार वर्ष के सम्पूर्ण दिनों तक कार्य नहीं मिलता, तब ऐसी बेरोजगारी को अल्प बेरोजगारी कहा जाता है। जैसे-कृषि व्यवसाय में कृषि श्रमिक को 6 माह ही कार्य मिलता है और 6 माह वह बेकार हो रहता है। ऐसी बेरोजगारी अल्प बेरोजगारी कहलाती है।
6. चक्रीय बेरोजगारी -
वह बेरोजगारी जी व्यापार की आर्थिक गतिविधियों अथवा परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होती है, उसे चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं। तेजी काल में विनियोग से उद्योग व व्यापार की उन्नति होती है, जिसके कारण रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।
इसके विपरीत मंदी काल में वस्तुओं की मांग की कमी के कारण उत्पादन कम-से-कम होने लगता है और उद्योग धीरे-धीरे बंद होने लगते हैं, परिणामस्वरूप बेरोजगारी की संख्या में वृद्धि होती है। मंदी काल में उत्पन्न बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी कहलाती है।
7. तकनीकी बेरोजगारी -
जब उत्पादन कार्यों में आधुनिक तकनीकी और यंत्रों का उपयोग किया जाता है जिसके कारण उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम कर दी जाती है, तब जो बेरोजगारी उत्पन्न होती है, इसे तकनीकी बेरोजगारी कहा जाता है। जैसे- कृषि कार्य में टैक्टर एवं यन्त्रों के उपयोग किए जाने से बहुत से कृषि श्रमिक बेरोजगारी के शिकार होते जा रहे हैं।
8. ऐच्छिक बेरोजगारी -
श्रमिकों को जब योग्यता व शिक्षा के अनुसार मजदूरी प्राप्त नहीं होती, तब वे प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं करते। ऐसी बेरोजगारी ऐच्छिक बेरोजगारी कहलाती है। ऐसी बेरोजगारी में कार्य के अवसर तो प्राप्त होते हैं लेकिन श्रमिक कार्य करने से इन्कार कर देते हैं और बेरोजगार रहते हैं।
9. संघर्षात्मक बेरोजगारी -
देश में उपलब्ध यातायात के साधनों का अभाव अन्य कारणों से श्रमिकों में गतिशीतला के अभाव के कारण उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी संघर्षात्मक बेरोजगारी कहलाती है। यह बेरोजगारी कभी-कभी श्रम की माँग एवं पूर्ति में संतुलन होने के कारण भी उत्पन्न होती है।
10. संरचनात्मक बेरोजगारी -
संरचनात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है, जो देश की संरचना में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है।
यह परिवर्तन मुख्य रूप से दो प्रकार का है-
(i) प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के फलस्वरूप पुराने तकनीको कारीगरों की आवश्यकता नहीं रहती, वे बेरोजगार होते हैं।
(ii) माँग के अधिमान में परिवर्तन के फलस्वरूप कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं तथा श्रमिकों को उद्योगों से बाहर कर दिया जाता है।
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