उदारीकरण का अर्थ
सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष या भौतिक नियंत्रणों से अर्थव्यवस्था की मुक्ति' सन् 1991 से पहले सरकार ने अर्थव्यवस्था पर कई प्रकार से नियंत्रण लगाये थे, जैसे-औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था, वस्तुओं पर कीमत या वित्तीय नियंत्रण, आयात लाइसेंस, विदेशी मुद्रा नियंत्रण, कई व्यापारिक घरानों द्वारा निवेश पर प्रतिबंध आदि।
सरकार ने यह अनुभव किया कि इन नियंत्रणों के फलस्वरूप अर्थव्यस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गई थीं। उद्यमियों द्वारा नये उद्योग स्थापित करने की प्रवृत्ति पर बुरा प्रभाव पड़ा। इन नियंत्रणों के फलस्वरूप भ्रष्टाचार, अनावश्यक विलम्ब तथा अकुशलता में वृद्धि हुई।
अर्थव्यवस्था की आर्थिक प्रगति की दर कम हो गई तथा ऊँची लागत वाली अकुशल आर्थिक प्रणाली का जन्म हुआ। इसलिए आर्थिक सुधारों ने अर्थव्यवस्था पर लगाये गये प्रतिबंधों को कम करने का प्रयास किया।
आर्थिक सुधार इस मान्यता पर आधारित है कि सरकारी नियंत्रण के बजाय बाजार शक्तियों अर्थव्यवस्था का उचित मार्गदर्शन कर सकती हैं दुनिया के अन्य अल्पविकसित देशों जैसे- कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर आदि ने भी उदारीकरण के फलस्वरूप तेजी से आर्थिक विकास किया है।
उदारीकरण |
उदारीकरण के उद्देश्य
(1) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुधारों की श्रृंखला प्रारंभ करके देश को राष्ट्रीय आय, प्रतिव्यक्ति आय एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास
(ii) आर्थिक विकास का मौलिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था को स्थिरता के साथ आर्थिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाना
(iii) आर्थिक विकास एवं उदारीकरण प्रक्रिया को अधिक सफल बनाने के लिए औद्योगिक नीति को अधिक उदार एवं गतिशील बनाना।
(iv) देश के घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्द्धा के योग्य बनाना।
(v) भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल, कार्यशील एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक बनाना।
(vi) उदारीकरण नीति का व्यापक उद्देश्य व्यापार में न्यूनतम प्रतिबंध अधिक स्वतंत्रता एवं न्यूनतम प्रशासनिक नियंत्रण सुनिश्चित करना।
(vii) उत्पादन के पैमाने एवं तकनीको स्तर की क्षमता में सुधार के लिए सरकारी नियंत्रणों को न्यूनतम अथवा समाप्त किया जाय। इसके साथ-साथ उत्पादन में गुणात्मक सुधार करके स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के योग्य बनाना।
उदारीकरण की आवश्यकता
1. उदारीकरण के द्वारा कर प्रणाली में सुधार लाया जा सकता है।
2. उदारीकरण के द्वारा वित्तीय साधनों को सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
3. उदारीकरण की नीति के द्वारा आयात-निर्यात नीति में सुधार लाया जा सकता है।
4. उदारीकरण की नीति द्वारा नियमित आगतों को दरों को कम किया जा सकता है।
5. उदारीकरण के द्वारा अनुपयुक्त क्षेत्र में हो रहे निवेश को कम एवं सफल बनाया जा सकता है।
उदारीकरण के उपाय
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए निम्नांकित उपाय अपनाये गये हैं-
1. लाइसेंस तथा पंजीकरण की समाप्ति -
नये आर्थिक सुधार की एक मुख्य विशेषता नियंत्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर उदारता की नीति अपनाने की है। अभी तक भारत का निजी क्षेत्र एक कठोर लाइसेंस व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य कर रहा था। नये आर्थिक सुधार निजी क्षेत्र को काफी सीमा तक लाइसेंस तथा अन्य प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया ने थी।
इसके लिए जुलाई सन् 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई इसके अनुसार, अब केवल 6 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों के लाइसेंसों को समाप्त कर दिया गया है। जिन उद्योगों के लिए लाइसेंस जरूरी है वे उद्योग हैं-
(i) शराब
(ii) सिगरेट
(iii) रक्षा उपकरण
(iv) औद्योगिक विस्फोटक
(v) खतरनाक रसायन एवं
(vi) औषधियाँ
अन्य उद्योगों के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। कोई भी उद्यमी बिना किसी प्रतिबंध के नई कम्पनी शुरू कर सकता है तथा उसके शेयर बेच सकता है।
2. एकाधिकारी कानून से छूट -
एकाधिकार तथा प्रतिबंधात्मक व्यापार अधिनियम (MRTP Act) के अनुसार, जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 100 करोड़ रु. से अधिक थी, उन्हें एम. आर. टी. पी. फर्म घोषित कर दिया जाता था तथा उन पर अनेक प्रतिबंध थे। अब एम. आर. टी. पी. की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है।
इन फर्मों को निवेश संबंधी निर्णय लेते समय सरकार से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें अपना विस्तार करने को स्वतंत्रता मिल गई है। एकाधिकारी कानून के अन्तर्गत आने वाली कम्पनियों को भारी छूट दी गई है।
एकाधिकारी कानून लागू होने के लिए निर्धारित पूँजी निवेश सीमा ही समाप्त कर दी गई है। इसके परिणामस्वरूप बड़ो कम्पनियों और उद्योग पठनों पर उद्योगों के विस्तार एवं नये उद्योग खोलने, कम्पनियाँ खरीदने एवं विलय करने पर कोई पाबंदी नहीं होगी।
इस नीति में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए अनुचित व्यापार व्यवहार को नियंत्रण में रखने पर अधिक महत्व दिया जायेगा। इसके अन्तर्गत नये अधिकार प्राप्त एकाधिकार बोर्ड अपनी मर्जी से किसी भी मामले में जाँच कर सकेगा। यह जाँच किसी भी उपभोक्ता की शिकायत पर की जा सकती है।
3. विस्तार तथा उत्पादन की स्वतंत्रता -
उदारीकरण की नीति के अनुसार, उद्योगों को अपना विस्तार तथा उत्पादन करने की स्वतंत्रता है। इसके लिए उन्हें किसी पूर्व सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है, उदारीकरण को नोति के फलस्वरूप उद्योगों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ प्राप्त हो गई
(i) उदारीकरण से पहले पुरानी नीति के अन्तर्गत लाइसेंस देते समय सरकार की ओर से उत्पादन क्षमता की उच्चतम सीमा निर्धारित कर दी जाती थी। कोई उद्योग इससे अधिक उत्पादन नहीं कर सकता था। अब इस सीमा को हटा दिया गया है ताकि उद्योग बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त कर सकें।
(ii) उत्पादकों को इस बात की भी स्वतंत्रता मिल गई है, कि बाजार में माँग के अनुसार यह निर्णय ले सकते हैं कि कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन करना है। पहले लाइसेंस में जिन वस्तुओं का उल्लेख होता था, केवल उन्हीं का उत्पादन किया जा सकता था। अब ऐसा नहीं है।
4. लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि -
उदारीकरण के कारण लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ा कर करोड़ रुपये कर दिये गये हैं, ताकि वह अपना आधुनिकीकरण कर सकें। अति लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दिया गया है।
5. पूँजीगत पदार्थों के आयात की स्वतंत्रता -
उदारीकरण की नीति के अनुसार भारतीय उद्योगों को अपना विस्तार, तथा आधुनिकीकरण करने के लिए विदेशों से मशीनें तथा कच्चामाल खरीदने की स्वतंत्रता होगी। इस नीति के अनुसार कोई भी उद्योग बाजार से विदेशी मुद्रा खरीदकर मशीनों तथा कच्चेमाल का आयात कर सकता है।
6. तकनीकी आयात की छूट -
उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत आधुनिकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए उच्च तकनीक के प्रयोग पर बल दिया गया है। इस नीति का उद्देश्य उदीयमान उद्योगों अर्थात् कम्प्यूटरों तथा इलेक्ट्रॉनिक्स को विकसित करना है। भारतीय उद्योगों को नई तकनीक उपलब्ध कराने के उद्देश्य से नई औद्योगिक नीति में यह प्रावधान किया गया है, कि उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को तकनीकी समझौते करने के लिए कोई इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
7. ब्याज दरों का स्वतंत्र निर्धारण -
उदारीकरण की नीति के अनुसार देश की बैंकिंग प्रणाली की ब्याज दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित नहीं की जायेगी। देश के बैंकों को यह स्वतंत्रता दो गई है, कि वे स्वयं ही ब्याज की दर का निर्धारण करें।
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