माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त क्या है | Malthus Population Theory in hindi

Thomas Robert Malthus England के एक पादरी की सन्तान थे। ये स्वभाव से निराशावादी थे। माल्थस के काल में जनसंख्या सम्बन्धी विचार आर्थिक दृष्टिकोण के बजाय धार्मिक पहलुओं पर आधारित थे। 


Population का बढ़ना एवं घटना ईश्वर की इच्छा पर निर्भर समझा जाता था, लेकिन माल्थस इन रूढ़िवादी विचारों से सहमत न थे। का विचार था कि सन्तान पैदा करना अथवा न करना मनुष्य की इच्छा पर निर्भर करता है। इसी बीच माल्थस ने यूरोप के कुछ अन्य देशों का भ्रमण भी किया तथा उन देशों की परिस्थितियाँ देखकर उसे और भी अधिक निराशा हुई। 



जनसंख्या तीव्रगति से बढ़ रही थी। चारों ओर भुखमरी एवं गरीबी फैली हुई थी। चूँकि माल्थस ने मनुष्य के अन्धकारमय भविष्य को अपनी आँखों से देखा था, इसलिए उन्होंने जनसंख्या की समस्या पर एक क्रान्तिकारी लेख लिखा, जो गुमनाम रूप में सन् 1798 में प्रकाशित हुआ। 


माल्थस का यह लेख उनके माता-पिता तथा उस समय के प्रसिद्ध विचारक गॉडविन के 'प्रवर्तमान आशावाद' के प्रति खुला विद्रोह था। माल्थस ने अपने गुमनाम लेख पर समाज की प्रतिक्रिया देखने के बाद अपना दूसरा लेख सन् 1803 में प्रकाशित किया, जिसका नाम था 'An Essay on the Principle of Population.' इस दूसरे संस्करण को ही माल्थस के विचारों का आधार माना जाता है।



थॉमस राबर्ट माल्थस के अनुसार, -  "उत्पादन कलाओं की एक दी हुई स्थिति के अन्तर्गत जनसंख्या जीवन निर्वाह के साधनों से अधिक तीव्रगति से बढ़ने की प्रवृत्ति दिखलाती है।'' 


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माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त


माल्थस के सिद्धान्त की मान्यता


माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैं-


(1) मनुष्य में काम वासना यथा स्थिर है और इसकी सन्तुष्टि के परिणामस्वरूप सन्तानोत्पत्ति आवश्यक है अर्थात् काम-वासना और सन्तानोत्पत्ति के बीच प्रत्यक्ष सह-सम्बन्ध है।


(2) जीवन-स्तर के बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य की अधिक सन्तान पैदा करने की इच्छा भी बढ़ती जाती है। इस प्रकार माल्थस के अनुसार, आर्थिक सम्पन्नता तथा सन्तानोत्पत्ति के बीच प्रत्यक्ष और परस्पर सम्बन्ध पाया जाता है। 


(3) कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।


(4) मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन अति आवश्यक है।



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माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की व्याख्या 


1. जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री का सम्बन्ध -


माल्थस का विचार था कि "जनसंख्या में वृद्धि आवश्यक रूप से जीवन-निर्वाह के साधनों से अधिक होती है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य की जनसंख्या बढ़ाने की शक्ति भूमि की उत्पादन शक्ति से अधिक होती है। जब जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ती है और खाद्य सामग्री का उत्पादन कम दर से होता है तो देश में गरीबी और भुखमरी जन्म लेने लगती है। 


माल्थस ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "प्रकृति की मेज सीमित मेहमानों के लिए हैं और जो अतिथि बिना बुलाये आयेंगे, उन्हें निश्चित रूप से भूखा रहना पड़ेगा।" वास्तव में, माल्थस का यह विचार था कि देश में जनसंख्या की माँग देश की खाद्यान्न उत्पन्न करने की क्षमता से अधिक नहीं होनी चाहिए।


2. खाद्य सामग्री तथा जनसंख्या की वृद्धि दर में अन्तर -


माल्थस के मतानुसार, खाद्यान्न और जनसंख्या की वृद्धि अलग-अलग दर से होती है और खाद्यान्न की तुलना में जनसंख्या अधिक तीव्रगति के साथ बढ़ती है। 


माल्थस के मतानुसार, जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने का प्रमुख कारण मनुष्य में अतृप्त काम-वासना' का होना है। इसके दूसरी ओर, जीवन निर्वाह के साधनों में धीमी गति से वृद्धि होने का प्रमुख कारण कृषि में उत्पत्ति हास नियम का लागू होना है। माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि तथा खाद्यान्न उत्पादन को स्पष्ट करने के लिए इसे गणितीय रूप दिया।


माल्थस के अनुसार, यदि जनसंख्या को अप्रतिबन्धित रूप से बढ़ने दिया जाये तो यह ज्यामितिक' या 'गुणोत्तर क्रम' अर्थात् 1, 2, 4, 8, 12, 32, 64 .की दर से बढ़ती है, जबकि इसके विपरीत खाद्य सामग्री अंकगणितीय क्रम' अर्थात् 1, 2, 3, 4, 5, 6. के हिसाब से बढ़ती है।


3. जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री में असन्तुलन -


जनसंख्या में ज्यामितिक दर से तथा खाद्य सामग्री में अंकगणितीय दर से वृद्धि होने पर इन दोनों में असन्तुलन पैदा हो जाता है। इसलिए माल्थस ने यह निष्कर्ष निकाला था कि किसी भी देश को जनसंख्या 25 वर्षों में दुगुनी हो जाती है, 200 वर्षों में खाद्य सामग्री तथा जनसंख्या का अनुपात बढ़कर 9 256 हो जाता है और 1,000 वर्षों में इनके परस्पर अनुपात की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस असन्तुलन का स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि संसार में भूख, गरीबी, कष्ट एवं विपत्तियों का साम्राज्य स्थापित हो जाता है।


4. सन्तुलन के लिए आवश्यक उपाय -


माल्थस का विचार था कि मानव जाति के कल्याण की दृष्टि से जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री के बीच सन्तुलन का होना आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने दो प्रकार के उपायों का उल्लेख किया 


(i) नैसर्गिक प्रतिबन्ध तथा 

(ii) निवारक प्रतिबन्ध



माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत की आलोचना


माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं 


1. माल्थस का गतिणतीय रूप सही नहीं -


आलोचकों का विचार है कि विश्व का इतिहास इस बात को सिद्ध करता है कि जनसंख्या में वृद्धि गुणोत्तर दर से और खाद्यान्नों में वृद्धि अंकगणितीय दर से कभी भी नहीं बढ़ी है। वास्तव में, जनसंख्या या खाद्यान्न की वृद्धि को कोई निश्चित गणितीय रूप नहीं दिया जा सकता है।


2. जीवन-स्तर ऊँचा होने के साथ जनसंख्या घटती है, बढ़ती नहीं -


माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त के आलोचकों का विचार है कि यूरोपीय देशों एवं अन्य विकासशील देशों का अनुभव यह बताता है कि आर्थिक सम्पन्नता एवं जीवन स्तर में वृद्धि के साथ जनसंख्या में कमी होने की प्रवृत्ति क्रियाशील होने लगती है। 


प्राय: जीवन-स्तर ऊँचा होने से पुरुष तथा स्त्रियाँ देर से विवाह करते हैं तथा कम सन्तान चाहते हैं ताकि वे अपने बच्चे के उचित पालन-पोषण तथा उच्च शिक्षा पर व्यय कर सकें और उनका भावी जीवन सुखी बना सकें। शिक्षित महिलाएँ कम सन्तान चाहती हैं। इसी प्रकार शिक्षा के प्रसार और उन्नत जीवन स्तर के परिणाम स्वरूप जनसंख्या में कमी होती है, न कि वृद्धि, जैसा कि माल्थस का विचार था।


3. जनसंख्या वृद्धि के साथ श्रम शक्ति में भी वृद्धि -


माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त के विरोध में प्रो. कैनन का विचार है कि "प्रत्येक अतिरिक्त श्रमिक विश्व में केवल खाने के लिए मुँह लेकर ही नहीं आता, बल्कि वह दो हाथ लेकर भी आता है, जिससे उत्पादन किया जा सकता है।" निःसन्देह यह कथन सेलिंगमैन के विचारों की पुष्टि करता है कि जनसंख्या की समस्या केवल मात्रा की समस्या ही नहीं, बल्कि कुशल उत्पादन एवं उचित वितरण की समस्या है।


4. मनुष्य की सन्तानोत्पत्ति स्थिर नहीं रहती -


आलोचकों के अनुसार, माल्थस ने इस जीवशास्त्रीय सिद्धान्त की उपेक्षा की, कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य के सन्तान उत्पादन की शक्ति कम होती है, स्थिर नहीं रहती।


5. जनसंख्या की वृद्धि सदैव ही हानिकारक नहीं -


माल्थस जनसंख्या की प्रत्येक होने वाली वृद्धि को हानिकारक मानते थे, लेकिन आलोचकों के अनुसार यह विचार सही नहीं है, क्योंकि यदि किसी देश की जनसंख्या उस देश की प्राकृतिक सम्पदा से अपेक्षाकृत कम है, तो जनसंख्या में वृद्धि लाभदायक है। इसके विपरीत, यदि देश में अति जनसंख्या हैं तो जनसंख्या में वृद्धि हानिकारक होगी।


6. माल्थस का जनसंख्या नियम असत्य सिद्ध हुआ है -


माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त यह बताता है कि जनसंख्या खाद्यान्न की तुलना में अधिक तीव्रगति से बढ़ती है, लेकिन इतिहास ने इसको गलत सिद्ध कर दिया है। पश्चिमी देशों में जहाँ एक ओर कृत्रिम साधनों से जनसंख्या तीव्रगति से नहीं बढ़ी, वहीं दूसरी ओर कृषि में वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग से खाद्यान्न में बहुत तीव्र गति से वृद्धि हुई है। आज तो कुछ पश्चिमी देशों (जैसे फ्रांस) में तो जनसंख्या के कम होने की समस्या उत्पन्न हो रही है।


7. प्राकृतिक प्रकोप अति जनसंख्या का सूचक नहीं -


माल्थस के अनुसार, जिस देश में जनसंख्या अधिक होती है, वहाँ अकाल, युद्ध, भूकम्प, महामारी जैसे प्राकृतिक प्रकोप होते हैं, जबकि आलोचकों का विचार है कि वर्तमान में अनेक ऐसे देश हैं जो सदैव प्राकृतिक प्रकोप की चपेट में आते हैं, जिनकी जनसंख्या कम हैं। प्रकृति ऐसा कोई अन्तर अपने प्रकोप के लिए नहीं करती।

                               

8. दीर्घकालीन सिद्धान्त -


आलोचकों के अनुसार, माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त दीर्घकालीन समयावधि पर आधारित है। माल्थस ने केवल स्थैतिक अवस्था का अध्ययन किया है, जबकि जनसंख्या प्रत्येक दृष्टि से प्रावैगिक मात्र है। इस प्रकार मल्थिस का दृष्टिकोण सही नहीं है। 


9. संयम पर अधिक बल -


माल्थस ने जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए संयम को कृत्रिम उपाय से अधिक महत्व दिया है, जबकि ऐसा करना मनुष्य के लिए अधिक कठिन कार्य होता है। आज के युग में बिना संयम के शल्य क्रिया, निरोध, कॉपर टो आदि साधनों के द्वारा जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगायी जा रही है। 


10. निराशावादी दृष्टिकोण -


माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त से हमारे सामने भविष्य का अन्धकारमय चित्र उपस्थित होता है, लेकिन ऐसी बात नहीं है। यदि जनसंख्या में वृद्धि होती है, तो श्रमशक्ति में भी वृद्धि होती है, जिससे उत्पादन को मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। यदि माल्थस के अनुसार निराशावादी दृष्टिकोण को अपना लिया जाये, तो मानवीय प्रयास ही समाप्त हो जाएगा


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