अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त | Theory of optimum population in hindi

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का उद्गम 


पूर्णतया यह बता पाना कठिन होगा कि अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया ? आर्थिक विचारों के इतिहास के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि प्रो. एडवर्ड वेस्ट ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक “An Essay on the Application of Capital to Land" में अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को स्पष्ट किया है। उन्होंने इस पुस्तक में इस बात की चर्चा की है, कि जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ श्रम में विशिष्टता आ जाती है और परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ने लगता है, लेकिन अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की वास्तविक आधारशिला प्रो. हेनरी सिजविक ने डाली। 



अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रयोग प्रो. कैनन द्वारा किया गया। इन्होंने अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की वैज्ञानिक एवं सुस्पष्ट व्याख्या की है। लेकिन अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को आधुनिक समय में अधिक लोकप्रिय एवं व्यापक बनाने का श्रेय प्रो. कार सौण्डर्स, डॉल्टन, रॉबिन्स आदि अर्थशास्त्रियों को जाता है। अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को आधुनिक, सर्वोत्तम, आदर्श, इष्टतम जनसंख्या सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।


अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त का उद्देश्य


अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त का उद्देश्य यह बताता है कि एक देश के लिए आर्थिक दृष्टि से जनसंख्या का कौन-सा आकार, अनुकूलतम है अर्थात् जनसंख्या का कौन-सा आकार अनुकूलतम होगा, जिसमें प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होगी।


अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त की मान्यताएँ अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त अग्रलिखित मान्यताओं पर आधारित है


(1) जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात समान रहता है, अर्थात् जब जनसंख्या बढ़ती है तो कार्यशील जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ती है।


(2) एक दी हुई समयावधि के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक साधन, तकनीकी ज्ञान तथा पूँजी आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या के बढ़ने पर प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है, लेकिन एक सीमा के बाद उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होने लगता है।



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अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त 

अनुकूलतम जनसंख्या का अर्थ एवं परिभाषा 


"अनुकूलतम जनसंख्या, उस सर्वोत्तम जनसंख्या को कहते हैं, जो किसी देश में एक निश्चित समय पर उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करने अथवा अधिकतम उत्पादन करने के लिए आवश्यक होती है।" 


इस कथन से स्पष्ट है कि जनसंख्या का आकार तभी अनुकूलतम माना जायेगा, जब प्रति व्यक्ति आय अधिकतम हो। इसका कारण यह है कि साधनों का सर्वोत्तम उपयोग होने पर अथवा उत्पादन के अधिकतम होने की दशा में ही प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है।


अनुकूलतम जनसंख्या की प्रमुख परिभाषा


1. प्रो. रॉबिन्स के अनुसार, "अनुकूलतम जनसंख्या वह जनसंख्या है, जो अधिकतम उत्पादन को सम्भव बनाती है। 


2. प्रो. डॉल्टन के अनुसार, "अनुकूलतम जनसंख्या वह है जो अधिकतम प्रति व्यक्ति आय प्रदान करती है।



3. प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, "वह जनसंख्या जिस पर जीवन स्तर अधिकतम होता है, अनुकूलतम जनसंख्या कहलाती है।"  


4. प्रो. हिक्स के अनुसार, "अनुकूलतम जनसंख्या, जनसंख्या का वह रूप है जिस पर प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिकतम होता है। 


5. प्रो. कार सौण्डर्स के अनुसार, "अनुकूलतम जनसंख्या, वह जनसंख्या है जो अधिकतम आर्थिक कल्याण उत्पन्न करती हो। अधिकतम आर्थिक कल्याण का अधिकतम प्रति व्यक्ति आप के समान होना आवश्यक नहीं है, लेकिन व्यवहार में उन्हें उसके बराबर समझा जा सकता है। 


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की व्याख्या


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त एक अत्यन्त सरल सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि किसी देश के प्राकृतिक साधनों का समुचित ढंग से शोषण करने के लिए एक निश्चित मात्रा में उत्पादन के साधनों को आवश्यकता होती है। 


चूंकि ब्रम भी उत्पत्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है, इसलिए प्राकृतिक साधनों का पूर्णरूपेण उपयोग करने के लिए एक उचित मात्रा में कार्यशील जनसंख्या का होना आवश्यक है। जनसंख्या में वृद्धि या कमी के फलस्वरूप कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि या कमी होती है।


अतः जिस देश में जनसंख्या कम होती है, उस देश में कार्यशील जनसंख्या भी कम होती है। अतः जिस देश में उत्पादन के साधनों का अधिक उपयोग नहीं हो पाता है, उस देश में प्रति व्यक्ति आय भी कम होती है, लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, देश के साधनों का उचित दोहन होने लगता है, जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है। 


दूसरे शब्दों में, प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है, लेकिन कुछ समय में एक ऐसा बिन्दु आ जायेगा, जिस पर जनसंख्या का अनुकूलतम अनुपात स्थापित हो जायेगा। इस पर प्रति व्यक्ति आय अधिकतम एवं जनसंख्या अनुकूलतम होगी, लेकिन यदि जनसंख्या इस बिन्दु अनुकूलतम अनुपात समाप्त हो जायेगा और उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने लगेगा।


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की आलोचना


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नांकित हैं-


1. यह सिद्धान्त अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है -


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की यह मान्यता है कि जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के साथ-साथ कार्यशील जनसंख्या अर्थात् श्रम शक्ति में वृद्धि भी उसी अनुपात में होती है, जबकि वास्तव में यह अनुपात बदलता रहता है। 


दूसरा, इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि किसी देश में एक समयावधि में प्राकृतिक साधन, तकनीकी स्तर इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता, यह पूर्णतया गलत है। किसी देश के लिए अनुकूलतम जनसंख्या का अनुमान लगाना पूर्णतः काल्पनिक जान पड़ता है। 


2. अनुकूलतम बिन्दु ज्ञात करना कठिन है -


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त के प्रतिपादकों ने जनसंख्या के अनुकूलतम बिन्दु का निर्धारण जितना सरल माना है, वास्तव में वह उतना ही कठिन है। अर्थव्यवस्था में होने वाले निरन्तर परिवर्तनों के कारण जनसंख्या के आकार में भी परिवर्तन होता रहता है, जिससे अनुकूलतम आकार का निर्धारण करना सम्भव नहीं हो पाता।


3. यह जनसंख्या का सिद्धान्त न होकर मात्र एक दृष्टिकोण है-


आलोचकों के अनुसार, अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को जनसंख्या का सिद्धान्त कहना ही गलत है, क्योंकि यह इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता कि जनसंख्या किस प्रकार और क्यों बढ़ती है या उसके बढ़ने का क्या नियम है ? यह सिद्धान्त तो जनसंख्या के अनुकूलतम बिन्दु की मात्र कल्पना करता है।


4. यह सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के वितरण पक्ष पर कोई ध्यान नहीं देता -


अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के केवल उत्पादन पक्ष पर ध्यान देता है, वितरण पक्ष पर कोई ध्यान नहीं देता। आर्थिक कल्याण का प्रश्न वितरण से सम्बन्ध माना जाता है, जिसकी इस सिद्धान्त ने पूरी तरह से उपेक्षा की है, जो कि आपत्तिजनक है।


5. यह सिद्धान्त जनसंख्या की समस्या का अध्ययन केवल आर्थिक दृष्टिकोण से करता है -


आलोचकों का विचार है कि अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त एक भौतिकवादी सिद्धान्त हैं और इसका दृष्टिकोण अत्यन्त संकुचित है। अनुकूलतम जनसंख्या का आकार केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक एवं सैनिक परिस्थितियों को दृष्टि में रखकर ही निश्चित किया जाना चाहिए।


6. यह सिद्धान्त सामाजिक मूल्यों के प्रति संकुचित दृष्टिकोण अपनाता है - 


अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त आर्थिक विकास के लिए प्रति व्यक्ति आय को अधिकतम करने की बात तो करता है, लेकिन जनसंख्या के स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल निर्माण, उच्च बौद्धिक स्तर तथा चरित्र निर्माण पर कोई ध्यान नहीं देता। 


7. इस सिद्धान्त का कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है - 


नुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त, अनुकूलतम जनसंख्या का एक निरपेक्ष कथन मात्र है, जो हमारे लिए जनसंख्या सम्बन्धी नीति के निर्धारण में सहायक सिद्ध नहीं होता, यह सिद्धान्त हमारे सामने जिस 'आदर्श' को प्रस्तुत करता है, उस आदर्श को प्राप्त करने में हमारी सहायता नहीं कर पाता। इसलिए अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का व्यावहारिक महत्व नहीं के बराबर है।


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