उपभोक्ता की बचत का अर्थ, परिभाषा, महत्व तथा मान्यताएँ | Consumer's Surplus meaning in hindi

उपभोक्ता की बचत का अर्थ


‘उपभोक्ता की बचत’ अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण विचार है। उपभोक्ता की बचत का विचार सबसे पहले सन् 1844 में फ्रांस के एक सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री ड्यूपिट ने दिया था, लेकिन उन्होंने उपभोक्ता की बचत को 'सापेक्षिक उपयोगिता' के नाम से संबोधित किया था। डॉ. मार्शल ने सापेक्षिक उपयोगिता के महत्व को स्वीकार किया और उन्होंने 'उपभोक्ता की बचत' कहा। 


डॉ. मार्शल ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक 'Principles of Economics' में उपभोक्ता की बचत को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया। पहले तो मार्शल ने सापेक्षिक उपयोगिता के विचार को 'उपभोक्ता का लगान' कहा था।


लेकिन प्रो. जे. आर. हिक्स ने उदासीनता वक्र रेखाओं की सहायता से उपभोक्ता की बचत' के विचार को प्रस्तुत कर इसे और अधिक वैज्ञानिक बना दिया। 


प्रो. ड्यूपिट ने सन् 1844 में सापेक्षिक उपयोगिता का विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था कि “राजकीय अर्थशास्त्र को उस अधिकतम त्याग करने को जो एक उपभोक्ता किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए तैयार रहता है, मापने का प्रयत्न करना चाहिए।" 


प्रो. ड्यूपिट के बाद प्रो. मार्शल ने सन् 1879 में अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तकPure Theory of Domestic Values" में उपभोक्ता की बचत को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया। इसलिए प्रो. मार्शल को उपभोक्ता की बचत का पितामह कहा जाता है।


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उपभोक्ता की बचत

उपभोक्ता की बचत का विचार हमारे दैनिक जीवन के अनुभवों पर आधारित है। इस विचार का सीमांत उपयोगिता हास नियम से घनिष्ठ संबंध है। व्यावहारिक जीवन में जब हम कोई वस्तु खरीदना चाहते हैं, तो हम यह निश्चय कर लेते हैं कि उस वस्तु के लिए हम कितना मूल्य देंगे। 


मूल्य की मात्रा उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता पर निर्भर करती है। प्राय: यह देखा जाता है कि उपभोक्ता को किसी वस्तु के उपभोग से जितनी ही अधिक उपयोगिता मिलती है, उसके लिए वह उतना ही अधिक मूल्य देने को तैयार होता है। 


इस प्रकार, एक ओर तो किसी वस्तु को प्राप्त करने से हमें उपयोगिता मिलती है, तो दूसरी ओर मूल्य के रूप में हमें उसके लिए उपयोगिता का परित्याग भी करना पड़ता है। यदि मूल्य के रूप में त्याग की गयी संतुष्टि से प्राप्त संतुष्टि अधिक है, तो इससे उपभोक्ता को एक प्रकार की बचत, यानी अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है। अर्थशास्त्र में इसी अतिरिक्त संतुष्टि को उपभोक्ता की बचत कहते हैं।


उपभोक्ता की बचत की परिभाषा


प्रो. पेन्सन के अनुसार, - “हम जो कुछ देने को तैयार हैं और जो कुछ हमको देना पड़ता है, इन दोनों के अन्तर को ही उपभोक्ता की बचत कहते हैं।"


प्रो. मार्शल के अनुसार, - "किसी वस्तु के उपभोग से वंचित रहने की अपेक्षा उपभोक्ता जो कीमत देने को तैयार होता है और जो कॉमत वह वास्तव में देता है, उनका अन्तर ही अतिरिक्त संतुष्टि का आर्थिक माप है, इसे उपभोक्ता की बचत कहते हैं।"


प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, - "किसी व्यक्ति को किसी वस्तु से प्राप्त होने वाली उपभोक्ता की बचत उस वस्तु से प्राप्त हने वाले संतोष और त्याग के अन्तर के बराबर होती है, जो कि उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। 


उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए त्याग करने का संभावित मूल्य और वास्तविक मूल्य, जिसे वह देता है, का अन्तर ही उपभोक्ता की बचत है। 


उपभोक्ता की बचत उत्पन्न होने के कारण


उपभोक्ता की बचत निम्न कारणों से उत्पन्न होती है -


1. उपयोगिता ह्रास नियम का प्रभावी होना - उपयोगिता ह्रास नियम के प्रभावी होने के कारण उपभोक्ता को वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों से घटती हुई उपयोगिता प्राप्त होती है। अर्थात् पहले की इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता बाद की इकाइयों से मिलने वाली उपयोगिता की तुलना में अधिक होती है। 


2. सीमांत उपयोगिता के बराबर वस्तु के मूल्य का भुगतान करना - एक उपभोक्ता किसी भी वस्तु का उपभोग उस इकाई तक ही करता है, जहाँ उसे प्राप्त होने वाली उपयोगिता वस्तु के मूल्य के रूप में त्याग किये गये उपयोगिता के बराबर होता है। यह विन्दु लाभ-हानि की दृष्टि से शून्य होता है और इस सीमांत इकाई पर कोई उपभोक्ता बचत प्राप्त नहीं होती, लेकिन एक समान कीमत भुगतान किये जाने के कारण पूर्व की इकाइयों पर बचत प्राप्त होती है।


3. सभी इकाइयों के लिए एक समान मूल्य माँगा जाना - एक उपभोक्ता विभिन्न इकाइयों के लिए एक समान मूल्य का भुगतान करता है, जबकि सीमांत इकाई से पहले की इकाइयों पर उसे अधिक उपयोगिता प्राप्त होती है। उपयोगिता मिलने की यही अधिकता विभिन्न इकाइयों पर उपभोक्ता की बचत को उत्पन्न करती है।


4. तकनीकी उन्नति - उत्पत्ति के विभिन्न क्षेत्रों में हुई तकनीको उन्नति के कारण प्रत्येक वस्तु बाजार में उपभोक्ता के अनुमान से सस्ती प्राप्त हो जाती है। इस कारण भी उपभोक्ता को बचत प्राप्त होती है।


उपभोक्ता की बचत की मान्यताएँ 


उपभोक्ता की बचत की प्रमुख मान्यताएँ निम्नांकित हैं -


1. उपयोगिता का माप संभव है - प्रो. मार्शल ने उपयोगिता को मुद्रा में मापनीय माना है। उनके अनुसार, हम जिस वस्तु को क्रय करने के लिए, जितना मूल्य देना चाहते हैं, वह मुद्रा की उपयोगिता कही जायेगी।


2. उपयोगिता ह्रास नियम का लागू होना - प्रो. मार्शल ने उपभोक्ता की बचत का आधार उपयोगिता ह्रास नियम को माना है, अतः जब तक उपयोगिता हास नियम लागू नहीं होता, तब तक उपभोक्ता बचत नहीं होगी।


3. वस्तु विशेष का स्वतंत्र महत्व - प्रो. मार्शल के अनुसार, प्रत्येक वस्तु का अपना स्वयं का महत्व होता है और उसकी प्रकृति भी स्वतंत्र होती है। एक वस्तु की पूर्ति व उपयोगिता दूसरी वस्तु की पूर्ति व उपयोगिता को प्रभावित नहीं कर सकती है।


4. पूर्ण प्रतियोगिता की धारणा - उपभोक्ता की बचत के लिए  अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता की कल्पना की गयी है। क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तथा वस्तुएँ समान आकार-प्रकार की होनी चाहिए। जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, उन वस्तुओं की कीमत भी समान होनी चाहिए और कोई भी क्रेता व विक्रेता वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता है।


5. मुद्रा की सीमांत उपयोगिता का स्थिर होना - उपभोक्ता की बचत का विचार मुद्रा की सीमांत उपयोगता को स्थिर मान कर चलता है।


6. स्थानापन्न वस्तु का अभाव - मार्शल की मान्यता के अनुसार उपभोग की जाने वाली वस्तु की स्थानापन्न वस्तु नहीं होती है। यदि स्थानापन्न वस्तु है भी, तो उस स्थानापन्न वस्तु को भी प्रमुख वस्तु के रूप में मान लिया जाना चाहिए।


उपभोक्ता की बचत का महत्व


उपभोक्ता की बचत के महत्व को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है -


(अ) सैद्धांतिक महत्व 

(ब) व्यावहारिक महत्व


(अ) सैद्धांतिक महत्व


1. उपभोग मूल्य एवं विनिमय मूल्य में महत्व - उपभोक्ता की बचत का विचार उपभोग मूल्य एवं विनिमय मूल्य के अन्तर को स्पष्ट करता है। व्यावहारिक जीवन में हम ऐसी बहुत सी वस्तुएँ पाते हैं, जिनका उपभोग मूल्य बहुत अधिक होता है, लेकिन इन्हें प्राप्त करने के लिए बहुत कम मूल्य देना पड़ता है। 


2. विनिमय में महत्व - उपभोक्ता की बचत का विचार विनिमय के महत्व को भी बताता है। उपभोक्ता को बचत यह बताता है कि किसी वस्तु की उपयोगिता उस वस्तु के लिए त्याग की गयी मुद्रा की उपयोगिता से अधिक होती है। 


(ब) व्यावहारिक महत्व


1. एकाधिकारी मूल्य निर्धारण में महत्व - एकाधिकारी मूल्य निर्धारण में उपभोक्ता की बचत की सहायता लेता है। चूंकि एकाधिकारी का उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना होता है। इसलिए एकाधिकारी अपनी वस्तु के लिए अधिकतम मूल्य उस सीमा तक निश्चित कर सकता है, जिस सीमा तक उपभोक्ता वस्तु के उपभोग से वंचित न रहने के लिए मूल्य देने को तैयार होता है।


2. आर्थिक स्तर के तुलनात्मक अध्ययन में महत्व - उपभोक्ता की बचत की सहायता से दो यो दो से अधिक देशों की आर्थिक दशाओं की तुलना की जा सकती है और यह बताया जा सकता है कि किस देश के निवासियों का जीवन-स्तर ऊँचा है और किसका जीवन-स्तर निम्न है। 


3. कर-निर्धारण में महत्व - वित्तमंत्री को वस्तुओं पर कर लगाते समय उपभोक्ता की बचत के विचार से बहुत सहायता मिलती है। सरकार उन वस्तुओं से अधिक कर प्राप्त कर सकती है, जिनसे उपभोक्ता को अधिक उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है, क्योंकि ऐसी वस्तुओं पर कर में वृद्धि करने से लोगों द्वारा अधिक कर-भार का अनुभव नहीं किया जायेगा। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं से उपभोक्ता को कम बचत प्राप्त होती है। 


4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व - अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत एक देश दूसरे देशों से ऐसी वस्तुएँ आयात करता है, जो अपने देश में महँगी और दूसरे देशों में सस्ती होती है। यदि इन वस्तुओं का आयात विदेशों से नहीं किया जाता तो देश के उपभोक्ताओं को अधिक मूल्य स्वदेशी वस्तुओं के लिए देना होता है, लेकिन विदेशों से वस्तुओं का आयात करने से उन्हें कम मूल्य देना पड़ता है, अतः उपभोक्ताओं के द्वारा आयात के पहले वस्तुओं के लिए जो मूल्य देना पड़ता था और आयात के बाद जो मूल्य देना पड़ता है, इन दोनों मूल्यों का अन्तर ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली बचत है। यह बचत जितनी अधिक होगी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राप्त होने वाला लाभ भी उतना ही अधिक होगा।


5. सरकार द्वारा उद्योगों को सहायता देने में महत्व - सरकार द्वारा उद्योगों को सहायता देने में भी उपभोक्ता की बचत की सहायता ली जाती है। सरकार उन उद्योगों को आर्थिक सहायता देती है, जिनके उत्पादन से उपभोक्ताओं को अधिक उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है। सरकार जब किसी उद्योग को आर्थिक सहायता देती है, तो उसको हानि होती है, लेकिन उद्योग के द्वारा निर्मित वस्तु का मूल्य आर्थिक सहायता प्राप्त करने का कारण कम होता है। परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को जो बचत प्राप्त होती है, वह न केवल सरकार को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करती है, बल्कि उससे भी अधिक होती है।


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