सम सीमांत उपयोगिता नियम का अर्थ, परिभाषा, महत्व, मान्यताएँ तथा आलोचना, व्याख्या | Law of equi marginal utility in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम सम-सीमांत उपयोगिता नियम के बारे में जानेंगे कि सम-सीमांत उपयोगिता नियम होता क्या हैं? आज हम नीचे दिए गए सम-सीमांत उपयोगिता नियम के इन विषयों पर बात करेंगे, तो चलिये जानते है सम सीमांत उपयोगिता नियम के बारे में…


सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है?  

सम-सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या

सम-सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा

सीमांत उपयोगिता का सिद्धांत किसने दिया है

सम सीमांत उपयोगिता का दूसरा नाम क्या है?

सम-सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यताएँ

सम सीमांत उपयोगिता का दूसरा नाम क्या है?

सम-सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व

सम-सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना


sam-seemaant-upayogita-niyam-ka-arth-paribhasha-mahatv
सम-सीमांत उपयोगिता नियम

सम सीमांत उपयोगिता नियम का अर्थ


सम-सीमांत उपयोगिता नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम एच. एच. गोसेन ने किया था। इसलिए इस नियम को गोसेन का दूसरा नियम भी कहा जाता है। सामान्य रूप से अनुभव की बात है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और उनको संतुष्टि के साधन सीमित होते हैं, अतः मनुष्य अपने सीमित साधनों को इस प्रकार व्यय करना चाहता है, कि उसे अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति हो। प्रत्येक उपभोक्ता अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को उनकी तीव्रता के क्रम में रखता है। और अपने साधनों को इस प्रकार खर्च करता है, कि उसे विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता बराबर हो जाये। सम-सीमांत उपयोगिता नियम का यही मूलाधार है।


सम-सीमांत उपयोगिता नियम के अन्य नाम सम-सीमांत उपयोगिता नियम के अन्य नाम निम्नानुसार हैं -


1. अधिकतम संतुष्टि का नियम - पभोक्ता संतुलन को अधिकतम संतुष्टि का नियम भी कहते हैं, क्योंकि इस नियम का पालन करके ही कोई उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। 


2. प्रतिस्थापन का नियम - उपभोक्ता संतुलन को प्रतिस्थापन का नियम भी कहा जाता है, क्योंकि एक उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए एक वस्तु का प्रतिस्थापन दूसरी वस्तु से करना पड़ता है।


3. उदासीनता का नियम - उपभोक्ता संतुलन को उदासीनता का नियम भी कहते हैं, क्योंकि विभिन्न प्रयोगों से उपयोगिता समान मिलने के कारण उपभोक्ता किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के प्रति तटस्थ या उदासीन हो जाता है।


4. उपभोग का नियम - उपभोक्ता संतुलन को उपभोग का नियम भी कहते हैं, क्योंकि यह नियम उपभोक्ता को बताता है कि अधिकतम संतुष्टि को प्राप्त करने के लिए उपभोग किस प्रकार करना चाहिए।


5. मितव्ययिता का नियम - उपभोक्ता संतुलन को मितव्ययिता का नियम भी कहा जाता है, क्योंकि एक उपभोक्ता अपने सीमित साधनों का प्रयोग जब मितव्ययिता के साथ करता है, तभी वह अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है। 


6. अर्थशास्त्र का नियम - उपभोक्ता संतुलन को अर्थशास्त्र का नियम भी कहा जाता है, क्योंकि अर्थशास्त्र के समस्त नियमों का आधार उपभोक्ता संतुलन ही है। 


7. उपभोक्ता का संतुलन - इसे उपभोक्ता का संतुलन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उपभोक्ता इस नियम की सहायता से संतुलन की अवस्था को प्राप्त करता है। व्यावहारिक रूप में, इसे सम-सीमांत उपयोगिता नियम अथवा प्रतिस्थापन का नियम कहा जाता है।


सम-सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या


सम-सीमांत उपयोगिता नियम उपभोग का नियम है। इसका उद्गम उपयोगिता हास से हुआ है। उपयोगिता हास नियम के अनुसार, जब किसी वस्तु का उपभोक्ता के द्वारा उपभोग किया जाता है, तब उस वस्तु को प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है। 


यदि उपभोक्ता उक्त वस्तु से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है, तो उस सीमांत बिन्दु के ऊपर अपना उपभोग बन्द कर देना चाहिए। एक वस्तु के संबंध में तो अधिकतम संतुष्टि इस नियम से प्राप्त की जा सकती है, लेकिन उपभोग में आने वाली अनेक वस्तुएँ होती हैं, जबकि मनुष्य के पास साधन सोमित होते हैं, अतः सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है, इस तथ्य की ओर ही सम सीमांत उपयोगिता का नियम प्रकाश डालता है। 


अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त उपयोगिताओं की तुलना करनी चाहिए। क्रय की जाने वाली किसी वस्तु की क्रमिक इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता की तुलना अन्य वस्तु से प्राप्त उपयोगिता से करनी चाहिए। 


जिस वस्तु से सबसे अधिक उपयोगिता प्राप्त होता है, उस वस्तु की प्रथम इकाई को सबसे पहले लेना चाहिए। उसके पश्चात् देखना चाहिए कि उक्त वस्तु की दूसरी इकाई से जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उसकी तुलना में अन्य वस्तु की प्रथम इकाई से कितनी उपयोगिता मिलती है।  यदि अन्य वस्तु की प्रथम इकाई से मिलने वाली उपयोगिता, पूर्व वस्तु की द्वितीय इकाई से मिलने वाली उपयोगिता से अधिक हो, तो अन्य वस्तु की प्रथम इकाई को लेना चाहिए। 


इस प्रकार, अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए एक वस्तु का प्रतिस्थापन दूसरी वस्तुओं से उस समय तक करते जाना चाहिए, जब तक उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की सीमांत उपयोगिताएँ बराबर नहीं हो जाती हैं।


सम-सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा


गोसेन के अनुसार, - “यदि समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण संतुष्टि बिन्दु तक संतुष्ट करना आवश्यक है, तो अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि विभिन्न आवश्यकताओं की संतुष्टि को उस बिन्दु पर रोक दिया जाय, जहाँ उनकी तीव्रता समान हो चुकी है।” 


मार्शल के अनुसार, - “यदि किसी व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु है, जो अनेक प्रयोगों में लायी जा सकती हैं, तो वह उनको विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार वितरित करेगा कि उसकी सीमांत उपयोगिता समस्त प्रयोगों में समान हो जायें, क्योंकि यदि वस्तु की सीमांत उपयोगिता एक प्रयोग में अन्य की अपेक्षा अधिक है, तो वह अन्य प्रयोगों से वस्तु की मात्रा निकालकर प्रथम प्रयोग में करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है।”


प्रो. सिल्वरमैन के अनुसार, - “एक उपभोक्ता विभिन्न वस्तुओं की खरीद को इस प्रकार नियमित करता है कि उनसे प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता समान हो।"


सम-सीमांत उपयोगिता नियम के चार आधार हैं - 


1. मानवीय आवश्यकताओं की असीमितता

2. आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाले साधनों की सीमितता तथा उपलब्ध साधनों के एक से अधिक उपयोग

3 सीमित साधनों द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने की इच्छा

4. उपभोक्ता का विवेकपूर्ण तरीके से निर्णय लेने की क्षमता।


सीमांत उपयोगिता का सिद्धांत किसने दिया है?

उत्तर : एच. एच. गोसेन

सम सीमांत उपयोगिता का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर : अधिकतम संतुष्टि का नियम, प्रतिस्थापन का नियम

सम-सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यताएँ 


सम-सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख मान्यताएँ निम्नांकित हैं -


1. उपभोक्ता का विवेकशील होना - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की पहली मान्यता यह है कि प्रत्येक उपभोक्ता विवेकशील होता है। वह अपनी सीमित आय को सोच-विचारकर इस प्रकार खर्च करता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो, अतः विवेक से कार्य करने की मान्यता सम्पूर्ण अर्थशास्त्र का आधार है।


2. प्रतियोगी बाजार - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की दूसरी मान्यता यह है कि बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता होनी चाहिए, ताकि साधनों को प्रतिस्थापित किया जा सके।


3. वस्तुओं में विभाजनीयता का गुण - सम-सीमांत उपयोगिता नियम के अन्तर्गत वस्तु में विभाजनीयता का गुण होना चाहिए। वस्तु का प्रतिस्थापन तभी किया जा सकता है, जब वस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सके। 


4. फैशन, रुचि व अज्ञानता का प्रभाव नहीं - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की यह मान्यता है कि उपभोक्ता की इस उपभोग क्रिया में फैशन, रुचि व उपभोक्ता की अज्ञानता का अथवा परम्पराओं, रीति-रिवाजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।


5. साधनों की गतिशीलता - सम-सोमांत उपयोगिता नियम की यह भी मान्यता है कि उत्पत्ति के साधन गतिशील होते हैं, तभी तो उनका प्रतिस्थापन किया जा सकता है।


6. वस्तुओं की निरंतर आपूर्ति - सम-सीमांत उपयोगिता नियम को यह भी मान्यता है कि उपभोग की जाने वाली वस्तु की निरंतर आपूर्ति आवश्यक है। वस्तु की निरंतर आपूर्ति में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं होनी चाहिए, अन्यथा उपभोक्ता संतुलन का नियम लागू नहीं होगा।


7. स्थिर सीमांत उपयोगिता - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यता के अनुसार, मुद्रा और आय का उपयोगिता सदैव समान होती है, उसमें परिवर्तन नहीं होता। 


8. उपयोगिता हास नियम की मान्यताओं की उपस्थिति - सम-सीमांत उपयोगिता नियम उसी दशा में लागू है, जब उपयोगिता ह्रास नियम की सभी मान्यताएँ अन्य बातें यथा स्थिर रहें उपस्थित हों।


सम-सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व


1. उपभोग के क्षेत्र में महत्व - सम-सीमांत उपयोगिता नियम का उपभोग के क्षेत्र में निम्नांकित महत्व है 


(i) अधिकतम संतुष्टि - प्रत्येक विवेकशील उपभोक्ता अपने सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि उसी समय प्राप्त कर सकता है, जब यह कम उपयोगिता वाली वस्तुओं का अधिक उपयोगिता वाली वस्तुओं से प्रतिस्थापन उस समय तक करे, जब तक कि सभी वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता बराबर न हो जाय। 


(ii) वस्तु का प्रयोग - सम-सीमांत उपयोगिता नियम के अनुसार, उपभोक्ता एक वस्तु को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार बाँट सकता है कि वस्तु के प्रत्येक प्रयोग से समान सीमांत उपयोगिता प्राप्त हो।


(iii) वर्तमान और भविष्य में वस्तु का प्रयोग - सम-सीमांत उपयोगिता नियम के आधार पर उपभोक्ता वस्तुओं का प्रयोग वर्तमान और भविष्य में इस प्रकार विभाजित करता है कि वर्तमान में उपभोग की जाने वाली वस्तु की अंतिम इकाई से जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उतनी ही उपयोगिता भविष्य में उपभोग की जाने वाली वस्तु की अंतिम इकाई से भी प्राप्त हो।


(iv) मुद्रा का वर्तमान एवं भविष्य में प्रयोग - सम-सीमांत उपयोगिता नियम के आधार पर उपभोक्ता अपनी आय को व्यय तथा बचत के बीच इस प्रकार बाँटता है कि व्यय की जाने वाली मुद्रा की अंतिम इकाई और बचत की जाने वालो मुद्रा की अंतिम इकाई को उपयोगिता समान होती है। इस प्रकार, व्यय एवं बचत को समान सीमांत उपयोगिताओं से उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है।


2. उत्पादन के क्षेत्र में महत्व - सम-सीमांत उपयोगिता नियम उत्पादन के विभिन्न इकाइयों में इस प्रकार प्रतिस्थापित किया जाता है कि प्रत्येक इकाई से अधिकतम सीमांत उत्पादन प्राप्त हो। इस प्रकार, श्रम या पूँजी को इकाइयों को एक-दूसरे के स्थान पर परिवर्तित कर उपभोग करना ही प्रतिस्थापन का नियम कहलाता है, अतः इस नियम का सहारा लिया जाता है।


3. विनिमय के क्षेत्र में महत्व - सम-सीमांत उपयोगिता नियम का विनियम के क्षेत्र में भी उपयोग किया जाता है। उपभोक्ता अपनो कम आवश्यक वस्तु से अधिक आवश्यक वस्तु को प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार, विनिमय क्रिया के द्वारा विभिन्न वस्तुओं को प्रतिस्थापित तथा परिवर्तित कर अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने का प्रयास करता है। 


4. वितरण के क्षेत्र में महत्व - सम-सीमांत उपयोगिता नियम का वितरण के क्षेत्र में भी महत्व है। प्रायः उत्पादक उत्पादन की इकाइयों को इस अनुपात में जुटाता है कि सभी साधनों से समान सीमांत उत्पादन को प्राप्ति हो, क्योंकि उसे इसी बिन्दु पर न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति होगी। यह बिन्दु जिस पर विभिन्न उत्पादन को इकाइयाँ अधिकतम उत्पादन करती हैं, साधनों का संयोग आदर्श अनुपात कहलाता है।


5. राजस्व के क्षेत्र में महत्व - सम-सीमांत उपयोगिता नियम राजस्व के क्षेत्र में भी लागू होता है। उपभोक्ताओं की भाँति सरकार भी यह कोशिश करती है कि विभिन्न मदों पर व्यय इस प्रकार करें कि नागरिकों को अधिकतम सामाजिक कल्याण एवं जीवन की बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त हों। सभी व्यय से समान उपयोगिता प्राप्त होने से अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त होता है।


सम-सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना 


सम-सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं -


1. प्रत्येक उपभोक्ता का विवेकशील न होना - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की यह मान्यता है कि उपभोगता सोच-विचार कर एवं विवेकपूर्ण तरीके से अपनी आय को व्यय करता है, लेकिन प्रत्येक उपभोक्ता पूर्ण विवेकशील हों, यह सदैव सम्भव नहीं है। उपभोक्ताओं में कुछ इस प्रकार के भी होते हैं, जो कि बिना सोचे-विचारे अपने धन को खर्च करते हैं। कुछ उपभोक्ता ऐसे भी होते हैं, जो इस बात की गणना नहीं कर पाते कि धन के खर्च से किस वस्तु से कितनी सीमांत उपयोगिता मिलेगी। 


2. उपयोगिता अमापनीय है - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की यह मान्यता है कि उपयोगिता मापनीय है, लेकिन व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता का माप संभव नहीं है। कोई भी उपभोक्ता यह नहीं बता सकता कि वस्तु की विशेष इकाई के उपभोग से उसे कितनी उपयोगिता मिली है।


3. वस्तुओं की अविभाजनीयता - सम-सीमांत उपयोगिता नियम की यह मान्यता है कि यह अविभाजनीय वस्तुओं पर लागू नहीं होता, क्योंकि रेडियों, पंखा, टेलीविजन, मकान, कार, टेलीफोन आदि ऐसी वस्तुएँ हैं, जिनको छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा नहीं जा सकता और इसलिए इन वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता की तुलना अन्य वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता से नहीं की जा सकती।


4. उपभोक्ता की अज्ञानता - कुछ उपभोक्ता ऐसे भी होते हैं, जो अज्ञानतावश यह अनुमान नहीं लगा पाते, कि उन्हें किस वस्तु से कितनी उपयोगिता प्राप्त होगी, और कौन-सी वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में अधिक उपयोगिता प्रदान करेगी। इस अज्ञानता के कारण सम-सीमांत उपयोगिता नियम में बाधा उत्पन्न होती है।


5. वस्तु की कीमत में परिवर्तन - वस्तुओं की कीमतों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं, जिसके कारण उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की सीमांत उपयोगिता की तुलना करने में कठिनाई होती है। कीमतों में परिवर्तन वस्तु की उपयोगिता को बढ़ाता और घटाता है। ऐसी दशा में सम-सीमांत उपयोगिता नियम में कठिनाई होती है।


6. आदत, रीति रिवाज और फैशन में परिवर्तन - बहुत से उपभोक्ता आदत, रीति-रिवाज, फैशन व परम्पराओं के दास होते हैं। उनके लिए भले ही वे वस्तुएँ कम उपयोगिता प्रदान करती हों, लेकिन वे रीति-रिवाज, आदत, फैशन एवं परम्पराओं के कारण उनका ही उपयोग करते हैं। ऐसी दशा में सम-सीमांत उपयोगिता नियम में कठिनाई आती है।


7. वस्तुओं का उपलब्ध न होना - कभी-कभी उपभोक्ता को बाजार में वे वस्तुएँ उपलब्ध नहीं होती, जिन्हें वह अपनी उपयोगिता के में खरीदना चाहता है, अतः उसे कम उपयोगिता वाली वस्तु को खरीदना पड़ता है। जिससे उपयोगिता अधिकतम नहीं हो पाती है।


8. पूरक वस्तुओं पर लागू नहीं - कुछ वस्तुएँ पूरक होती हैं और वे एक निश्चित मात्रा में प्रयोग की जाती हैं, जैसे-कार-पेट्रोल, पेन स्याही, दूध-चाय, रोटी-मक्खन आदि। इन वस्तुओं को एक-दूसरे स्थान पर प्रयोग नहीं किया जा सकता इसलिए सम-सीमांत उपयोगिता नियम के अन्तर्गत नहीं आते हैं।


9. टिकाऊ वस्तुओं पर लागू नही - सम-सीमांत उपयोगिता नियम टिकाऊ वस्तुओं के प्रयोग पर लागू नहीं होता। कार, मकान, फर्नीचर आदि टिकाऊ वस्तुएँ हैं, जिनका वर्षों तक प्रयोग किया जाता है। इन वस्तुओं को खरीदते समय इनकी उपयोगिताओं की तुलना एक निश्चित समय तक चलने वाली वस्तुओं से करनी चाहिए। इस कठिनाई के कारण यह नियम लागू नहीं हो पाता है।


आशा करता हूँ आपको यह Post काफी पसंद आया होगा। सम सीमांत उपयोगिता नियम आज के समय में लोगों को जानना चाहिए कि होता क्या हैं? आज के इस आर्टिकल में बस इतना ही काल हम उपयोगिता ह्रास नियम के बारे में जानेंगे। शायद आपको पोस्ट काफी अच्छी लगी होंगी अगर अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें।


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