सहायक बही (Sahayak bahi)
लेखांकन प्रणाली में पहले जर्नल का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था। वर्तमान समय में धीरे-धीरे जर्नल का महत्व घटते जा रहे हैं। उनके स्थान पर जर्नल को विभिन्न भागों में विभाजित किया गया है। जिन्हें सहायक बहियाँ कहा गया है।
जब व्यवसाय में सौदों की संख्या कम रहती है, जर्नल द्वारा व्यापारिक लेखांकन कार्यों का संपादन हो जाता है, किन्तु जब व्यावसायिक सौदों की संख्या अधिक हो, तो ऐसी दशा में जर्नल के माध्यम से लेखांकन कार्य अत्यन्त कठिन हो जाता है ऐसी दशा में नकल बही (Journal) के स्थान पर सहायक बहियों (Subsidiary books) का प्रयोग किया जाता है।
अतः कहा जा सकता है, कि सहायक बहियाँ वे लेखांकन की पुस्तकें हैं। जिनका संबंध विशिष्ट लेखांकन व्यवहारों से होता है तथा ये जर्नल का ही अंग है। सहायक बहियों का संबंध प्रारंभिक लेखांकन गतिविधियों से होता है।
सहायक बही |
सहायक बही के प्रकार
सहायक बहियों के प्रकार निम्नलिखित हैं -
1. रोकड़ बही (Cash Book) - इनमें सभी नकद व्यवहारों, बैंक संबंधी व्यवहारों तथा नकद बट्टे संबंधी व्यवहारों का लेखा किया जाता है।
सहायक बहियों के चार प्रकार का होता है -
(i) साधारण रोकड़ बही
(ii) दो खानों वाली रोकड़ बही
(iii) तीन खानों वाली रोकड़ बही
(iv) खुदरा रोकड़ बही
2. क्रय बही (Purchase Book) - उधार में क्रय किये गये व्यापारिक माल का लेखा क्रय बही में किया जाता है।
3. विक्रय बही (Sales Book) - उधार में बेचे गये व्यापारिक माल का लेखा विक्रय बही में किया जाता है।
4. क्रय वापसी बही (Purchase Return Book) - खरीदे गए व्यापारिक माल जिन्हें किन्हीं कारणवश वापस किया जाता है, उनका लेखा क्रय वापसी बही में किया जाता है।
5. विक्रय वापसी वही (Sales Return Book) - विक्रय के पश्चात् जो व्यापारिक माल वापस किये जाते हैं, उनका लेखा विक्रय वापसी यही में किया जाता है।
6. प्राप्य विपत्र बही (Bills Receivable Book) - ऐसे विनिमय विपत्र, प्रतिज्ञा पत्र, हुण्डियों का लेखा इस बही में किया जाता है, जिसकी धनराशि दूसरों से प्राप्त होना है।
7. देय विपत्र वही (Bills Payable Book) - इस लेखे में ऐसे विनिमय विपत्रों, प्रतिज्ञा पत्रों एवं हुण्डियों का लेखा किया जाता है, जिसका भुगतान दूसरों से प्राप्त किया जाना है।
8. मुख्य जर्नल (Main Journal) - इसे विशेष रोजनामचा भी कहते हैं। जिन व्यवहारों का प्रारंभिक लेखा करने के के लिए कोई पृथक सहायक पुस्तक नहीं रखी जाती है उसका लेखा मुख्य जर्नल में किया जाता है। जिन व्यवहारों पृथक् सहायक बहियाँ होती हैं उनका लेखा मुख्य जर्नल में नहीं किया जाता है।
व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा लेखांकन कार्यों के संपादन के लिए उपर्युक्त सहायक बहियाँ रखना आवश्यक है यह व्यापार की प्रकृति पर निर्भर करता है कि कौन-सी सहायक बहि उपयुक्त है। व्यावसायिक व्यवहारों की प्रकृति के अनुसार सहायक बहियों की आवश्यकता का निर्धारण होता है।
सहायक बहियों के लाभ
जर्नल के विभाजन के पश्चात् सहायक बहियाँ रखने पारियों को सामान्यतः निम्नलिखित लाभ होते हैं -
1. समय और श्रम की बचत - प्रत्येक व्यवहारों के लिए पृथक-पृथक बहियाँ रखने से खतौनी कार्य सरल हो जाता है। व्यावसायिक सौदों से संबंधित व्यवहारों का पृथक-पृथक लेखांकन करने से इनके योगों का ही पाक्षिक अथवा मासिक खतौनी कर दिया जाता है। जिससे समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है।
2. कार्य विभाजन - व्यावसायिक सौदों की प्रकृति एवं विशिष्टता के आधार पर निश्चित व्यक्ति को कार्य सौंप दिया जाता है, जिससे कार्यों का निश्चित विभाजन हो जाता है तथा कार्य शीघ्र पूरा होता है।
3. छल-कपट पर नियंत्रण - सहायक बहियों के माध्यम से सौदों की विशिष्टता के आधार पर पृथक-पृथक लेखांकन किया जाता है, जिससे किसी भी प्रकार के छल-कपटों को आसानी से खोज लिया जाता है तथा छल-कपटों पर अधिक नियंत्रण होने के कारण छल कपटों की संभावना कम हो जाती है।
4. विवरण प्राप्ति में सुगमता - चूँकि प्रत्येक विशिष्ट व्यावसायिक है। इसलिए किसी भी विशिष्ट व्यावसायिक व्यवहारों का पृथक-पृथक विवरण रखा जाता है। व्यवहार के संबंध में विवरण आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु जब समस्त व्यावसायिक व्यवहार नकल बहों में लिखे गए हों, तो विशिष्ट व्यावसायिक व्यवहारों के संबंध में विवरण प्राप्त करने में अधिक समय लगेगा।
5. अशुद्धियों की संभावना में कमी - प्रत्येक सहायक पुस्तकों से संबंधित कार्यभार निश्चित कर्मचारों पर रहता है। अतः सहायक पुस्तकों को अशुद्धियों के लिए उसे ही पूर्ण रूप से उत्तरदायी ठहराया जाता है, किन्तु उक्त तथ्य कर्मचारी को आवश्यक सावधानी के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। जिससे अशुद्धियों की संभावना कम हो जाती है।
6. अशुद्धियों की जाँच में सुगमता - अशुद्धियों से संबंधित सहायक बहियों का निर्धारण आसानों से किया जा सकता है तथा अशुद्धि की खोज आसानी से किया जा सकता है। त्रुटियों की खोज आसानी से हो जाने तथा खाताबही की प्रक्रिया निश्चित होने के कारण अन्य त्रुटियों का भी पूर्वानुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
7. खतौनी में सुविधा - चूँकि प्रत्येक व्यावसायिक व्यवहारों के संदर्भ में पृथक-पृथक सहायक बहियाँ रखी जाती है, जिनके विशिष्ट व्यावसायिक व्यवहारों का विस्तृत विवरण एक ही वही में उपलब्ध रहता है साथ ही निर्धारित अवधि के योग के आधार पर एक ही खतौनी द्वारा खाते में लेखांकन किया जा सकता है। अतः बार-बार खतौनी की कठिनाई भी समाप्त हो जाती है तथा खातों में लेन-देन की संख्या सीमित हो जाती है।
8. सभी व्यापारियों के लिए उपर्युक्त - सहायक बहियों के संबंध में कोई निश्चित नियमावली नहीं है प्रत्येक व्यापारी अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी सहायक बहियों का चयन कर सकता है। अतः सहायक बहियाँ प्रत्येक व्यापारी के लिए उपयुक्त होती है।
9. लाने ले जाने में सुविधा - प्रत्येक विशिष्ट व्यवहारों के लिए विशिष्ट बहियाँ होती है, जिनमें केवल टन व्यवहारों से संबंधित ही लेखे किये जाते हैं, इसलिए जिन व्यवहारों से संबंधित विवरण प्राप्त करना होता है, उन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है और केवल उन्हीं व्यवहारों से संबंधित बहियों को दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। अतः सहायक बहियों को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।
10. हिसाब की सुरक्षा - चूँकि विशिष्ट व्यवहारों का पृथक-पृथक लेखा किया जाता है जिससे इनसे संबंधित जाँच सुविधाजनक ढंग से किया जा सकता है, जिससे कपटों, धोखा-घड़ियों एवं त्रुटियों को आसानी से खोजा जा सकता है जिससे हिसाबों को पर्याप्त सुरक्षा होती है।
11. विशिष्टता का लाभ - एक ही कर्मचारी द्वारा विशिष्ट व्यवहारों से संबंधित लेखांकन कार्य किया जाता है, जिससे उन व्यवहारों की बारीकियों को वह पूरी तरह समझता है। इस प्रकार सहायक बहियों द्वारा लेखांकन से लेखांकन कार्यों में विशिष्टता का लाभ भी प्राप्त होता है।
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