इकहरा लेखा प्रणाली का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, गुणों एवं दोषों | Single entry system of accounting in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम इकहरा लेखा प्रणाली के बारे में जानेंगे कि इकहरा लेखा प्रणाली भारत में इतना क्यू महत्व दिया जाता है इस प्रणाली को आज के समय में अपूर्ण लेखा प्रणाली के नाम से जाना जाता हैं। तो चलिये जानते हैं कि आखिर इकहरा लेखा प्रणाली क्या हैं, और निचे दिए गए इकहरा लेखा प्रणाली के कुछ महत्वपूर्ण विषय में जानेंगे।


इकहरा लेखा प्रणाली क्या है

इकहरा लेखा प्रणाली का अर्थ

इकहरा लेखा प्रणाली की परिभाषा

इकहरा लेखा प्रणाली की विशेषताएँ

इकहरा लेखा प्रणाली की दोष या सीमाएँ

इकहरा लेखा प्रणाली के लाभ


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इकहरा लेखा प्रणाली

इकहरा लेखा प्रणाली का अर्थ


जो लेखांकन दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के आधार पर नहीं किया जाता, अपूर्ण लेखा की श्रेणी में आते हैं अर्थात् जिस लेखांकन पद्धति में प्रत्येक विकलन के लिए समाकलन तथा प्रत्येक समाकलन के लिए विकलन प्रविष्टि नहीं किया जाता अपूर्ण लेखा प्रणाली कहलाती है। इस प्रणाली के नाम से यह भ्रम होता है कि इसके अन्तर्गत प्रत्येक लेन-देन को एक स्थान पर लिखा जाता है, किन्तु ऐसा नहीं है। कुछ लेन-देनों के दोनों पक्ष समाकलन एवं विकलन (Credit and debit) और अन्य लेन-देनों का केवल एक पक्ष लिखा जाता है। 


इस प्रणाली में सामान्यतः निम्न विधि से लेखा किया जाता है -


(i) व्यक्तिगत खातों को दोहरा लेखा प्रणाली के अनुसार रखा जाता है और इन खातों में दोनों पक्षों की प्रविष्टि किया जाता है। 

(ii) आय-व्यय खातों का केवल एक पक्ष रोकड़ बही में लिखा जाता है।

(iii) हास (Depreciation) तथा अन्य गैर रोकड़ लेन-देनों  का कोई लेखा नहीं किया जाता। 


इस प्रणाली द्वारा लेखांकन करते समय दोहरा लेखा प्रणाली के कुछ निश्चित् सिद्धान्तों का पालन किया जाता है, परन्तु सम्पूर्ण पुस्तकें तथा बहियाँ नहीं रखी जाती हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत रोकड़ पुस्तक (Cash Book) रखी जाती है। जिसमें सभी प्रकार के नगद लेन-देन लिखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त खाता बही में व्यक्तिगत खाता (Personal Account) खोला जाता है। इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार सहायक बहियों का प्रयोग संस्था द्वारा किया जा सकता है। इन सहायक बहियों से व्यक्तिगत खातों में प्रविष्टियाँ कर दी जाती हैं अन्य खातों में प्रविष्टियाँ नहीं किया जाता।


(i) क्रय बही के आधार पर लेखों में सीधे लेनदार खाते में प्रविष्टि कर दिया जाता है। किन्तु खाता नहीं में क्रय खाता नहीं खोला जाता।

(ii) विक्रय बही से देनदारों के खाते में सीधी प्रविष्टि कर दिया जाता है, किन्तु विक्रय खाता नहीं खोला जाता। 

(iii) इसी प्रकार प्राप्य बिल बही तथा देय बिल बही के माध्यम से संबंधित व्यक्तिगत खातों में सीधी प्रविष्टियाँ कर दिया जाता है किन्तु प्राप्य विपत्र खाता तथा देय विपत्र खाता पृथक् रूप से नहीं खोला जाता। 


इसी प्रकार क्रय वापसी तथा विक्रय वापसी का सीधे व्यक्तिगत खातों में प्रविष्टियाँ किया जाता है। इसी प्रकार संपत्तियों के क्रय-विक्रय का लेखा रोकड़ पुस्तकों में तो किया जाता है, किन्तु संपत्तियों का पृथक् खाता नहीं खोला जाता है। उपर्युक्त ड्याख्या से स्पष्ट होता है कि यह प्रणाली पूर्णतः न्यायसंगत एवं वैज्ञानिक नहीं है।


इकहरा लेखा प्रणाली की परिभाषा


कार्टर के अनुसार - "इकहरी लेखा प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें किसी व्यवहार के द्वि-पक्ष पहलू को छोड़ दिया जाता है तथा इसके परिणामस्वरूप किसी व्यापारी को अपनी व्यापारिक स्थिति के ज्ञान के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ प्रदान नहीं हो पाती।”


पिकिल्स एवं इनकर्ली के अनुसार - "इकहरी प्रविष्टि प्रणाली, प्रचलित रूप से पुस्तपालन की उन सब प्रणालियों को शामिल करती है, जो यद्यपि विवरण में एक-दूसरे से भिन्न है, परन्तु एक विषय में मिलती-जुलती है कि दोहरा लेखा की पूर्ति उनमें नहीं होती।”


यह प्रणाली प्राय: छोटे व्यापारियों, होटल तथा रेस्तरा मालिकों द्वारा अपनायी जाती है। हिसाब-किताब रखने की विधि व्यापार की आवश्कताओं पर निर्भर करती है। अधिकांश व्यापारी रोकड़ वही तथा व्यक्तिगत खाता रखते हैं। परन्तु कुछ व्यापारी केवल व्यक्तिगत खाते ही रखते हैं और आवश्यक सूचनायें डायरी में नोट कर लेते हैं, जिससे कि वर्ष के अन्त में लाभ-हानि किया जा सकें।


इकहरा लेखा प्रणाली की विशेषताएँ


इकहरा लेखा प्रणाली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -


1. एकाकी व्यापारी तथा साझेदारी फर्म के लिए उपयुक्त - यह प्रणाली छोटे व्यापारी जैसे एकाकी, साझेदारी व्यापारियों के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इस प्रणाली में वैधानिक नियम पर रुकावटें नहीं हैं तथा व्यापार से संबंधित सभी महत्वपूर्ण सूचनाएँ इस प्रणाली के अन्तर्गत रखे गये खातों से प्राप्त की जा सकती है। कम्पनियों का इस विधि के अन्तर्गत इस प्रणाली से लेखा नहीं 


2. व्यक्तिगत खातों से संबंधित - इस प्रणाली में सामान्य रूप से व्यक्तिगत खाते ही खोले जाते हैं तथा वास्तविक एवं नाममात्र के खाते नहीं खोले जाते।


3. मिश्रित रोकड़ पुस्तक - इस प्रणाली में व्यापारिक तथा निजी सौदों को प्रायः एक हो रोकड़ पुस्तक में लिखा जाता है। अतः इस प्रणाली में मिश्रित रोकड़ पुस्तक रखो जाती है। 


4. एकरूपता का अभाव - इस प्रणाली में दोहरा लेखा प्रणाली की तरह सभी क्रियाएँ एक मी नहीं होती। विभिन्न व्यापारों में भिन्न-भिन्न खाते खोले जाते हैं इसलिए इनमें एकरूपता का अभाव पाया जाता है।


इकहरा लेखा प्रणाली की दोष या सीमाएँ


इकहरा लेखा प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं -


1. आधारहीन - यह प्रणाली सम्पूर्ण व्यावसायिक व्यवहारों का लेखांकन नहीं करती तथा सीमित व्यवहारों का ही लेखांकन करती है। जिन व्यवहारों का लेखांकन नहीं होता उन व्यवहारों का एक ही स्थान पर बिना किसी ठोस आधार के प्रविष्टि किया जाता है। 


2. व्यक्तिगत खातों को ही महत्व दिया जाना - इस प्रणाली में केवल व्यक्तिगत खातों में ही प्रविष्टि के प्रावधान है तथा वास्तविक तथा अवास्तविक खातों के है संबंध में कोई नियमावली नहीं है, जिसके कारण व्यवसाय की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं होता।


3. तलपट तैयार नहीं किया जाना - यह इस प्रणाली के मुख्य दोषों में एक है। सभी खातों के शेषों की गणना संभव होने के कारण तलपट तैयार करना संभव नहीं होता और इस प्रकार खातों की गणितीय शुद्धता का भी पता नहीं चल पाता।


4. कर निर्धारण में कठिनाई - यदि कोई संस्था इस प्रणाली के अनुसार खाता बना रही है तो उस पर लगने वाले आयकर अथवा बिक्री कर के निर्धारण में कठिनाई उत्पन्न होती है, क्योंकि इस प्रणाली से लेखा पूर्ण नहीं होने के कारण शुद्ध लाभ (Net Profit) का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता।


5. ऋण लेने में कठिनाई - जो व्यक्ति या संस्थाएँ इस प्रणाली को अपनाते हैं, उन्हें उस समय कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जब उन्हें वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करना होता हैं, क्योंकि अपूर्ण लेखा प्रणाली संस्था के वास्तविक वित्तीय स्थिति को प्रदर्शित नहीं करते तथा ये वैधानिक रूप से प्रमाणित नहीं होते।


6. धोखाधड़ी तथा छल-कपट की संभावना - इस प्रणाली निश्चित में है। नियमावली एवं प्रामाणिकता का अभाव होने के कारण धोखाधड़ी एवं छल-कपट की संभावना अधिक रहती है।


7. व्यवसाय के विक्रय करने में कठिनाई - चूँकि अपूर्ण लेखा प्रणाली के माध्यम से संपत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन किया जाना संभव नहीं है। इसलिए व्यापार के विक्रय हेतु मूल्य निर्धारण करने में कठिनाई होती है।


8. तुलनात्मक अध्ययन में कठिनाई - खाते अपूर्ण होने के कारण व्यक्ति अथवा संस्था के संबंध में पर्याप्त आँकड़े प्राप्त नहीं हो पाते इसलिए तुलनात्मक अध्ययन करने में कठिनाई होती है।


9. अशुद्धियों के सुधार में कठिनाई - जो संस्थाएँ दोहरा लेखा प्रणाली के अन्तर्गत खाते बनाती है, उन्हें लेखांकन संबंधी अशुद्धियों के सुधार में अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इन्हीं सीमाओं के कारण ही इकहरा प्रणाली को अवैज्ञानिक (Unscientific), अपूर्ण (Incomplete) और अविश्वसनीय (Unfaithful) मानते हैं।


इकहरा लेखा प्रणाली के लाभ


(i) यह प्रणाली व्यवसायियों के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि अभी सौदों के दोहरे रूप में इसमें लेखा नहीं करना पड़ता। 

(ii) यह उन व्यवसायियों के लिए मितव्ययी है जिसके यहाँ व्यापार छोटे पैमाने पर है और सौदे कम होते हैं। 

(iii) यह एक सरल लेखांकन प्रणाली है।


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