भारतीय बहीखाता प्रणाली क्या है? परिभाषा, विशेषताएँ, गुण तथा दोष | Indian accounting system in hindi

आज के इस आर्टिकल में हम भारतीय बहीखाता प्रणाली के बारे में जानेंगे कि भारतीय बहीखाता प्रणाली भारत में इतना क्यू महत्व दिया जाता है इस प्रणाली को आज के समय में महाजनी बहीखाता पध्दति के नाम से जाना जाता हैं। तो चलिये जानते हैं कि आखिर भारतीय बहीखाता प्रणाली क्या हैं, और निचे दिए गए भारतीय बहीखाता प्रणाली के कुछ महत्वपूर्ण विषय में जानेंगे।


भारतीय बहीखाता प्रणाली से आशय 

भारतीय बहीखाता प्रणाली की परिभाषा

भारतीय बही खाता प्रणाली के लोकप्रियता के कारण  

भारतीय बही खाता प्रणाली की विशेषताएँ 

भारतीय बही खाता प्रणाली के गुण

भारतीय बहीखाता प्रणाली के दोष

भारतीय बही खाता प्रणाली तथा अंग्रेजी बही खाता प्रणाली में अंतर

भारतीय बही खाता प्रणाली की प्रारंभिक लेखे की बहियाँ 

भारतीय बही खाता प्रणाली में रखी जाने वाली बहियों का स्वरूप

भारतीय बही खाता प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव 


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भारतीय बहीखाता प्रणाली

भारतीय बहीखाता प्रणाली से आशय 


भारतीय भाषा से भारतीय पद्धति से व्यापारिक व्यवहारों का हिसाब किताब रखने की प्रणाली को भारतीय बहीखाता प्रणाली कहते हैं। इसे महाजनी खाता प्रणाली भी कहा जाता है। यह लेखांकन करने की प्राचीनतम भारतीय प्रणाली है। इस प्रणाली के अनुसार, व्यावसायिक व्यवहारों का लेखा लेखांकन के निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार कुछ निश्चित लेखा पुस्तकों में किया जाता है। इन लेखा पुस्तकों को बहियाँ कहते हैं। भारत में अंग्रेजी प्रणाली के अपेक्षा भारतीय या महाजनो लेखांकन पद्धति अधिक लोकप्रिय है। व्यापार के विश्वव्यापीकरण के बाद भी बड़े-बड़े व्यापारियों द्वारा आज भी भारतीय प्रणाली के अनुसार ही अपना हिसाब-किताब रखते हैं।


भारतीय बहीखाता प्रणाली की परिभाषा


"भारतीय बहीखाता प्रणाली लेखांकन की वह प्रणाली है, जिसमें व्यापार में सम्पन्न होने वाले व्यवहारों का लेखांकन कुछ निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर निश्चित लेखा पुस्तकों में किसी भी भारतीय भाषा में किया जाता है।"


भारतीय बही खाता प्रणाली के लोकप्रियता के कारण  


भारतीय बहीखाता प्रणाली के लोकप्रियता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं -


(1) सरलता - भारतीय बहीखाता प्रणाली लेखांकन की एक सरल प्रणाली है। यह हिसाब-किताब रखने की स्पष्ट विधि है। इस विधि से कोई भी मामूली पढ़ा लिखा व्यक्ति थोड़े से प्रशिक्षण से आसानी से लेखा कार्य कर सकता है।


(2) मित्तव्ययी प्रणाली - यह लेखांकन की मित्तव्ययी प्रणाली है, क्योंकि इसमें साधारण लेखा पुस्तकों का प्रयोग किया जाता है तथा सामान्य प्रशिक्षित कर्मचारियों से या मुनीम के माध्यम से लेखांकन कार्य किया जा सकता है।


(3) देशी भाषा का प्रयोग - इस विधि में हिन्दी, उर्दू तथा अन्य भारतीय प्रान्तीय भाषाओं का लेखांकन कार्य में प्रयोग किये जाने के कारण यह लेखांकन प्रणाली अधिक लोकप्रिय हैं।


(4) वैज्ञानिक एवं पूर्ण प्रणाली - यह प्रणाली दोहरा लेखा प्रणाली के ही सिद्धान्तों पर आधारित हैं। अत: यह एक वैज्ञानिक प्रणाली है तथा यह छोटे-बड़े सभी व्यापार गृहों के हिसाब-किताब की पूर्ण प्रणाली है।


(5) लोच पूर्ण प्रणाली - इस प्रणाली में बहियों की संख्या का निर्धारण व्यापार आकार, प्रकार एवं आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। सामान्यतः रोकड़ वही तथा खाता वही से काम चलाया जा सकता है। इस प्रणाली में लोच का गुण होने के कारण अधिक लोकप्रिय है। 


(6) गोपनीयता - इस प्रणाली में देशी एवं क्षेत्रीय भाषा का उपयोग होने के कारण कोई बाहरी व्यक्ति इसके माध्यम से आसानी से जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता फलत: बहियों की गोपनीयता बनी रहती है। 


(7) वैधानिक मान्यता - भारत में यह प्रणाली विधान द्वारा मान्य है। अतः इस प्रणाली में हिसाब-किताब सभी छोटे बड़े व्यापारी रखना पसन्द करते हैं। सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ भी इस विधि का प्रयोग कर सकती हैं।


भारतीय बही खाता प्रणाली की विशेषताएँ 


द्वि-प्रविष्टि प्रणाली पर आधारित भारतीय बहीखाता प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -


1. लम्बी बहियों का प्रयोग - इस प्रणाली में लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। इन बहियों में सादे कागज होते हैं, जिनमें हाथों से लाईन खींचा जाता है। 


2. प्राचीनतम् प्रणाली - भारतीय बहीखाता प्रणाली लेखांकन को प्राचीनतम् प्रणाली है, जो इसकी प्रमुख विशेषता है। 


3. बहियों में स्तंभों का न होना - इन बहियों में द्वि-प्रविष्टि प्रणाली की तरह तिथि, विवरण, राशि आदि के लिए पृथक् स्तंभ नहीं होते। इन बहियों में स्तम्भों के स्थान पर पन्नों में सलवटें डाली जाती हैं।


4. लाल रंग का आवरण - भारतीय वही खाता प्रणाली में प्रयुक्त होने वाली बहियों पर लाल रंग का आवरण रहता है, क्योंकि लाल रंग में कीड़े लगने की सम्भावना कम रहती है तथा यह रंग हनुमान जी का है इसलिए शुभ भी माना जाता है।


5. तिथि लिखने का ढंग - भारतीय बही खाता प्रणाली के अन्तर्गत बहियों में व्यवहार को लिखने के लिए पृथक् से कोई स्तम्भ नहीं होता, अपितु पृष्ठ के उपर ईष्ठ देवता की स्तुति के अनुसार, भारतीय प्रधानुसार तिथि, माह एवं सम्वत् लिखा जाता है।


6. राशि लिखने का ढंग - इस प्रणाली में सबसे उपरी सिरे पर राशि लिखी जाती है तथा उसके समान्तर सौदों का विवरण दिया जाता है। इस प्रकार भारतीय बही खाता प्रणाली में पहले राशि तथा उसके बाद व्यवहारों का विवरण दिया जाता हैं।


7. भारतीय भाषा का प्रयोग - भारतीय बही खाता प्रणाली में बहियों भारतीय भाषाओं विशेषकर क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी जाती है।


8. नाम पक्ष एवं जमा पक्ष - भारतीय बही खाता प्रणाली में बायीं ओर जमा पक्ष (Credit side) तथा दायीं और नाम पक्ष (Debit side) लिखा जाता है। 


9. दोनों पक्षों का योग - इस प्रणाली में जमा पक्ष तथा नाम पक्ष के योग एक ही सामान्तर नहीं लिखे जाते बल्कि अंतिम प्रविष्टि के नीचे प्रत्येक पक्ष में लिखे जाते हैं।


10. देवी देवताओं के नाम का प्रयोग - इस प्रणाली में बहियों के प्रारंभ में ईष्ट देवी देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, जैसे- "श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय" या "श्री गणेश जी सदा सहाय"


11. विशिष्ट शब्दों का प्रयोग - भारतीय बही खाता प्रणाली में कुछ विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनका विशेष अर्थ होता है, जैसे महीने के शुरू के पखवाड़े को जो विक्रम सम्वत् के अनुसार गिना जाता है उसे बदी कहते हैं तथा उसके महीने के आधे भाग को सुदी कहा जाता है। इसी प्रकार इन्दराज, उचन्ती आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।


भारतीय बही खाता प्रणाली के गुण


भारतीय बही खाता प्रणाली के गुण निम्नलिखित है -


1. सरल प्रणाली - यह प्रणाली एक सरल प्रणाली है, जिसे सीखने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती।


2. कम खर्चीली या मितव्ययी - यह पद्धति सस्ती पद्धति है। इस पद्धति में उपयोग में आने वाली बहियाँ सस्ती होती है, तथा व्यापारी अपने आवश्यकता के अनुसार कम या अधिक बहियों का प्रयोग कर सकता है।


3. टिकाऊ एवं मजबूत - बहियों में चिकना एवं उत्तम कागज का प्रयोग किया जाता है। इसके उपर मोटे पुढे का कव्हर तथा मजबूत लाल कपड़ा बड़ा रहता है। इस कारण ये लम्बे समय तक सुरक्षित रहती हैं।


4. भारतीय भाषाओं का प्रयोग - इस प्रणाली का एक महत्वपूर्ण गुण यह भी है कि इस प्रणाली में बहियाँ भारतीय भाषाओं तथा क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी जाती है। 


5. विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता न होना - यह लेखांकन को सरल एवं सामान्य पद्धति है, इसे सिखने के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। अत: इस पद्धति में लेखांकन कार्य सामान्य योग्यता वाले व्यक्ति द्वारा भी सम्पादित किया जा सकता है। 


6. लेखांकन की पूर्ण प्रणाली - यह लेखांकन की पूर्ण प्रणाली मानी जाती है, क्योंकि इसमें लेखांकन के सिद्धांतों का पूर्ण पालन किया जाता है। 


7. प्राचीनतम प्रणाली - भारतीय बहीखाता प्रणाली लेखांकन की प्राचीनतम प्रणाली है। इस कारण परम्परागत व्यवसायियों द्वारा इसे अपनाया जाता है। 


8. सभी व्यापार में उपयोगी - व्यवहार में इसे दोहरा लेखांकन पद्धति को मान्यता प्राप्त है। इसे छोटे एवं बड़े सभी व्यापारिक गृहों द्वारा अपनाया जाता है। 


9. लोचदार प्रणाली - भारतीय बहीखाता प्रणाली पूर्णतः लोचदार प्रणाली है। अतः आवश्यकता पड़ने पर इसमें समयानुसार परिवर्तन किये जा सकते हैं।


10. गोपनीयता - देशी भाषा के प्रयोग के कारण हर कोई इसे नहीं पढ़ पाता है। अतः व्यापारिक गोपनीयता बनी रहती है।


11. वैज्ञानिक प्रणाली - यह लेखांकन की वैज्ञानिक प्रणाली है। दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धांतों पर आधारित होने के कारण यह प्रणाली वैज्ञानिक एवं पूर्ण प्रणाली मानी जाती है।


12. वैधानिक मान्यता - भारतीय लेखांकन प्रणाली भारतीय विधान के अंतर्गत मान्य है। आयकर, बिक्रीकर या न्यायालयीन साक्ष्यों के लिए इस प्रणाली द्वारा रखे खातों का प्रयोग किया जाता है।


भारतीय बहीखाता प्रणाली के दोष


भारतीय यही के प्रमुख दोष निम्नलिखित है -


1. बहियों का लम्बा आकार - भारतीय लेखांकन पद्धति के बहियों का आकार लम्बा होने के कारण लिखने, उठाने च रखने में असुविधाजनक होते हैं।


2. जालसाजी का सम्भावना - बहियों में पृष्ठ संख्या का लिखित उल्लेख होने के कारण बीच के पृष्ठ आसानी से बदले जा सकते हैं तथा जालसाजी की सम्भावना अधिक रहती है।


3. प्रमाणक पद्धति का आभाव - भारतीय प्रणाली में प्रमाणक पद्धति न होने के कारण बहियाँ विश्वसनीय नहीं होते हैं।


4. अत्यधिक कार्यभार - लेखांकन की प्रणाली अत्यंत विस्तृत है, तथा अधिकांशतः अव्यवस्थित है, परिणामस्वरूप कार्यभार अत्यधिक बढ़ जाता है।


5 त्रुटियों की खोज में समय व्यर्थ होना - इसमें स्वकीय संतुलन प्रणाली नहीं अपनाया जाता हैं। इस कारण त्रुटियों को ढूँढ़ने में ज्यादा समय लगता है।


6. संचितियों का अभाव - भारतीय लेखांकन प्रणाली में संचितियों की व्यवस्था नहीं है या है भी तो बहुत कम है, जिस कारण अप्रत्यक्ष हानियों से सुरक्षा हेतु पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाता।


7. अदत्त एवं पूर्व दत्त व्यय - इस प्रणाली में अदत्त व्यय तथा पूर्व दत्त व्ययों के लेखांकन की व्यवस्था नहीं है जिसके कारण शुद्ध लाभ तथा शुद्ध हानियों कि त्रुटिपूर्ण गणना होती है।


8. व्यवस्थित कार्य प्रणाली का अभाव - इस प्रणाली में लेखांकन कार्यों के लिए व्यवस्थीत कार्य प्रणाली नहीं है। उचित क्रम निर्धारण तथा उचित लेखांकन कार्य प्रणाली के नहीं होने से लेखांकन कार्य अत्यन्त अव्यवस्थित हो जाता है।


9. नकदी एवं उधार व्यवहारों का लेखांकन - इस पद्धति में नकद एवं उधार व्ययों के लेखांकन के संदर्भ में निश्चित नियम नहीं है जो अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं। 


10. पूँजीगत तथा आयगत मदों का विभाजन - इस प्रणाली में पूँजीगत तथा आयगत मदों के विभाजन के संदर्भ में भी निश्चित नियमावली का अभाव है परिणामस्वरूप व्यवसाय की सही स्थिति लाभ या हानि का पता नहीं चल पाता।.


11. एकसमता का अभाव - इस पद्धति में लेखांकन प्रणाली में एकरूपता नहीं पाया जाता जो अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का कारण बनते हैं। 


12. दोसपूर्ण आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन - यह प्रणाली अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों तथा दोषपूर्ण नियमावलियों से परिपूर्ण हैं, जो अंतिम खातों द्वारा प्रदर्शित वित्तीय स्थिति की सत्यता एवं शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।


भारतीय बही खाता प्रणाली तथा अंग्रेजी बही खाता प्रणाली में अंतर


भारतीय बही खाता प्रणाली तथा अंग्रेजी वही खाता प्रणाली में कुछ अंतर भी है जो निम्नलिखित हैं -


(i) दोनों ही प्रणाली दोहरा लेखा प्रणाली के वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली है।


(ii) दोनों ही प्रणालियों में व्यक्तिगत तथा अव्यक्तिगत खाते रखें जाते हैं। 


(iii) दोनों ही प्रणालियों में तलपट बनाकर खातों की शुद्धता की जाँच किया जाता है।


(iv) दोनों ही प्रणालियों में लेखा करने की विधि एक समान है। 


(v) दोनों ही प्रणालियों में पहले प्रारंभिक लेखा किया जाता है, और वर्ष के अंत में अंतिम खातें बनाये जाते है।


(vi) दोनों ही प्रणालियों में व्यवहारों का लेखा दो पक्षों में किया जाता है। 


(vii) दोनों ही प्रणालियों में रोकड़ बही लिखने के नियम समान है। दोनों ही प्रणालियों में प्राप्तियों का लेखा बायीं ओर था भुगतानों का लेखा दायीं ओर किया जाता है। 


(viii) दोनों हो प्रणालियों में चिट्ठे का दायित्व पक्ष बायीं ओर तथा सम्पत्ति पक्ष बायी ओर होता है।


भारतीय बही खाता प्रणाली की प्रारंभिक लेखे की बहियाँ 


जिस प्रकार द्वि-लेखा प्रणाली में समस्त व्यावसायिक व्यवहारों का लेखा प्रारंभिक बहियों में किया जाता है। उसी प्रकार भारतीय बही खाता में सभी व्यवहारों को प्रारंभिक बहियों में लिखा जाता है। तत्पश्चात् इसे अलग-अलग खातों में हस्तांतरित किया जाता है। 


भारतीय बही खातों को प्रमुख प्रारंभिक बहियाँ निम्नलिखित हैं -


1. बन्द बही या रोजनामचा (Rough cash book or Band bahi)

2. कच्ची रोकड़ बही या रोजमेल (Daily cash book or Kachchi rokar bahi) 

3. पक्की रोकड़ बही (Fair and summarized copy of Pakki rokar bahi)

4. जमा नकल बही (Purchases book)

5. नाम नकल वही (Sales book)

6. क्रय वापसी बही (Purchases return book)

7. विक्रय वापसी बही (Sales return book)

8. खुदरा नकल बही (Journal proper)


व्यापार के अनुसार, इन बहियों की संख्या में कमी या वृद्धि किया जा सकता है। संक्षेप में इन बहियों का विवरण निम्न प्रकार है -


1. बंद बही


यह एक साधारण कागज की बनी बही होती है, जिसमें प्रत्येक व्यावसायिक सौदों को तुरन्त लिख लिया जाता है। इस बही को रखने का मुख्य उद्देश्य यह है कि कही लेन-देन के जमा खर्च में भूल न हो जाये। यदि व्यापार का आकार बड़ा हो तो एक से अधिक बंद बही रखा जा सकता है। एक नगद सौदों के लिए तथा दुसरा उधार सौदों के लिए। बंद वही में प्रत्येक दिन के व्यवहारों का तिथि के आधार पर अलग-अलग लेखा किया जाता है। बंद वही में आठ सलें (Folds) होती है। चार जमा पक्ष की तथा चार नाम पक्ष की बंद वही में लेखा करने के पूर्व ईष्ट देव की प्रार्थना, मिति, संवत् एवं तिथि आदि लिख ली जाती है। बंद यही का योग नहीं लगाया जाता। 


बंद बही की विशेषताएँ


(i) बंद वही का मुख्य उद्देश्य सौदों को तुरन्त एवं संक्षेप में लिख लेना है, ताकि जमा व्यथ में किसी प्रकार की भूल में न हो।

(ii) यह वही सस्ते कागज की बनी होती है।

(iii) बंद वही जमा और नामे (नाम) दो भागों में विभक्त होता है। 

(iv) जमा पक्ष में नगद प्राप्ति तथा नामें की तरफ नगद भुगतान की राशि लिखी जाती है।

(v) बंद बही में व्यवहारों में लिखने की क्रिया को 'टीपना' कहते हैं।

(vi) बंद वही में उधार व्यवहारों का भी लेखा किया जाता है। 

(vii) बंद वही में अंकित सभी लेन देनों को उसी दिन संबंधित प्रारंभिक लेखे की पुस्तकों में कर दिया जाता है।

(vii) बंद वही में प्रतिदिन लेखा लिखने से पूर्व व्यापारी अपने ईष्ट देव की प्रार्थना, तिथि, दिन और दिनाँक लिखता है। 

(ix) बंद बही में लिखे गये सौदों का योग नहीं निकाला जाता 

(x) इसमें लेखे की गयी व्यवहारों की बाकी नहीं निकाली जाती है।


2. कच्ची रोकड़ बही 


यह प्रारंभिक लेखे की बहियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण बही है, जिसे व्यापार में रखना अनिवार्य होता है। यह बंद बही की सहायता से तैयार किया जाता है। इसमें सामान्यतः समस्त नगद व्यवहारों का लेखा किया जाता है, किन्तु छोटे व्यापारी जो नकल बहियों का उपयोग नहीं करते वे अपने समस्त नगद एवं उधार व्यवहारों का लेखा इस वही में करते हैं। बड़े व्यापारिक गृह नगद एवं उधार व्यवहारों का लेखा करने के लिए तथा इन व्यवहारों का पृथक्-पृथक् विवरण रखने के लिए पृथक् बहियों का प्रयोग करते हैं।


कच्ची रोकड़ बही की स्वरूप- कच्ची रोकड़ बही में आठ सलें (Folds) होती है खाता बही की बायीं तरफ की चार सलें जमा पक्ष के लिए तथा दायों ओर की चार सलें नाम पक्ष के लिए होती है। प्रत्येक सलों में संबंधित खातों के नाम एवं विवरण लिखा जाता है।


कच्ची रोकड़ बही लिखने की विधि


कच्ची रोकड़ बही लिखने के लिए जिस वही का प्रयोग किया जाता है, उसके प्रत्येक पृष्ठ पर पृष्ठ संख्या लिखी जाती है। पृष्ठ संख्या लिखने के पश्चात् कच्ची रोकड़ बही में लेखांकन के लिए निम्न विधि का प्रयोग किया जाता है


1. इष्ट देवता का नाम एवं तिथि - रोकड़ बही में लेखांकन करने से पूर्व सर्वप्रथम ईष्ट देवता का नाम लिखा जाता है। ईष्ट देवता के नाम लिखने के पश्चात् संवत्, माह का नाम व पक्ष, तिथि तथा वार लिखा जाता है। सुविधा की दृष्टि से अंग्रेजी माह की तिथि तथा माह का उल्लेख भी किया जाता है। भारतीय महीने में दो पक्ष होते हैं तथा प्रत्येक पक्ष में 1 से 15 दिन होते हैं। महीने के शुरू के पक्ष को 'बदी' या कृष्ण पक्ष तथा इसी तिथि के पन्द्रहवीं तिथि का अंक 30 (अमावस्या) लिखा जाता है। आगे का पन्द्रह दिन का पक्ष सुदी' या शुक्ल पक्ष कहलाता है। दोनों पक्षों की तिथियों में समानता के कारण तिथि के साथ बदी' या सुदी' लिखना आवश्यक होता है।


2. जमा और नाम - इसके बाद रोकड़ बही के प्रथम चार सल के सिरे पर जमा' शब्द लिखकर बाद के तीन सलों पर सीधी पंक्ति खींची जाती है। इसी प्रकार अगले चार सलों के पहले सिरे पर नाम लिखकर शेष में सीधी पंक्ति खींची जाती है। 


3. सिरा और पेटा लिखना - जिस पक्ष में लेन-देन लिखना हो उसके दूसरे, तीसरे और चौथे सल में व्यवहार संबंधित खाते के जमा या नाम लिख दिया जाता है। जैसे- श्री माल खाते जमा' या 'खर्च खाते नाम आदि, इसे सिरा कहा जाता है। इसके बाद दूसरे सल में संबंधित राशि लिखकर तीसरे और चौथी सल में उसका विवरण लिख देते हैं, इसे पेटा भरना कहते हैं। 


यदि प्रविष्टि में विभिन्न राशियों के अलग-अलग विवरण हो तो इसी प्रकार पेटा कई बार लिखकर तीसरे और चौथे सल में लाइन खींचकर विभिन्न राशियों का योग लाइन के नीचे लिख देते हैं। अंत में यही योग चढ़ाते हुए सिरे के समक्ष प्रथम सल में लिखा जाता है।


इसी प्रकार अगले सिरे चढ़ाये और पेटा भरे जाते हैं। यदि पेटे में विवरण एक ही हो तो उसका योग लगाने की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु अगला सिरा चढ़ाने के पूर्व तीसरे और चौथे सल को लाइन खींच कर बंद कर दिया जाता है। 


4. योग लगाना - दिन भर के व्यवहारों का लेखांकन हो जाने के पश्चात् दोनों पक्षों के दूसरे, तीसरे और चौथे सल पर एक रेखा खींचकर नीचे योग लिख दिया जाता है। प्रत्येक पक्ष का योग वही लगाया जाता है जहाँ प्रविष्टि समाप्त होता है। 


5. उचन्त - जब किसी व्यय के लिए अग्रिम राशि दी गई है, तथा उसका हिसाब नहीं हुआ है तो ऐसी रकम उदरत या उचन्त रखी जाती है, क्योंकि इसको प्रविष्टि नहीं की जा सकती। ऐसी राशि 'उदरत खाते के नाम' या रोकड़ बाकी के पेटे में हस्तस्थ रोकड़ के विवरण में लिखी जाती है।


6. बाद करना - भारतीय लेखा पद्धति में 'बाद' का अर्थ ऋण (Minius) होता है। जब किसी खाते की सशि में कोई राशि घटाना होता है, तो पेटे के तीसरे और चौथे सल में 'बाद' लिखकर या ऋण का चिन्ह (-) लगाकर घटाई जाने वाली रकम का विवरण लिखा जाता है। यदि 'बाद' या ऋण का चिन्ह नहीं लगाया जाता है, तो इस विवरण के नीचे जो रेखा खींची जाती है उसके प्रारंभ में (-) चिन्ह जोड़ दिया जाता है। इस चिन्ह को संयुक्त रेखा के रूप में '(-) तात्पर्य है कि उपर लिखी राशि को घटाना है।


3. पक्की रोकड़ बही


पक्की रोकड़ बही कच्ची रोकड़ वही का संक्षेपण या सारांश है यह कच्ची रोकड़ बही के आधार पर तैयार किया जाता है। पक्की रोकड़ बही प्रतिदिन नहीं बनाकर एक अवधि विशेष के लिए बनाया जाता है। उक्त अवधि में रोकड़ बही में लिख गये सम्पूर्ण व्यवहारों को वर्गीकृत कर प्रत्येक खातों को व्यवस्थित ढंग से इस वही में लिखा जाता है।


4. जमा नकल बही या क्रय पुस्तक


जमा नकल बही में उधार क्रयों के विवरण की प्रविष्टि किया जाता है। इस बही के पन्नों में 6 सल होते हैं, जिसमें पहला सल 'सिरा' तथा शेष 5 सल पेटा कहलाती है। जमा नकल बहो में व्यवहारों का प्रविष्टि करते समय सर्वप्रथम पृष्ठ संख्या डालना चाहिए। तत्पश्चात् सबसे पहले उधार क्रय की सम्पूर्ण राशि के योग की राशि को सिरा में लिखकर उसके सामनान्तर "श्री माल खाते नाम' में अन्तरित किया जाना चाहिए। तत्पश्चात् उसके नीचे पेटा खानों में उधार क्रय से संबंधित पक्षकारों के खातों में उधार क्रय की राशि जमा किया जाना चाहिए। चूँकि उधार क्रय कई बार किया जाता है। अत: एक दिन में जमा नकल वही में माल खाते नाम" केवल एक ही बार किया जायेगा जिसमें उस दिन के सम्पूर्ण उधार क्रयों का योग लिखा जाएगा।


5. नाम नकल बही या विक्रय बही


नाम नकल बही में केवल उधार विक्रय का लेखा किया जाता है। नकद विक्रय का लेखा इस विक्रय बही में नहीं किया जाता। इस लेखा बही में समस्त उधार विक्रय की राशि "श्री माल खाते जमा" लिखकर समानान्तर लिखा जाता है, तथा क्रय बही की ही तरह उधार विक्रयों का विवरण संबंधित खाते को ह्यनाम कर लिखा जाता है।


6. क्रय वापसी


उधार खरीदे गये माल को लौटाने का लेखा जिस बही में किया जाता है, उसे क्रय वापसी बही कहा जाता है। इसे क्रय प्रत्याय वही और बाह्य वापसी यही भी कहा जाता है। माल वापसी विभिन्न कारणों से किया जाता है। क्रय वापसी बही का लेखा जमा नकल बही की तरह ही किया जाता है। इसमें 7 सल होते हैं। इसमें माल खाते को जमा लिखकर व्यक्तिगत खातों को नाम किया जाता है।


7. विक्रय वापसी बही


जिस बही में उधार बेचे गये माल के वापिस लौटाए जाने का लेखा किया जाता है, उसे विक्रय वापसी यही कहते हैं। इसे विक्रय प्रत्याय वही या अन्तः वापसी मही भी कहा जाता है। विक्रय वापसी यही का लेखा नाम नकल वही के समान हो किया जाता है। इस खाते में माल खाता नाम तथा व्यक्तिगत खाते जमा किया जाता है।


8. खुदरा रोकड़ बही


उधार क्रय एवं विक्रय के अतिरिक्त अन्य उधार लेन-देन को 'खुदरा नकल वही' में लिखा जाता है। यह अन्य नकल बहियों से मिलती जुलती है। इसमें जमा एवं नाम के दो पक्ष होते हैं तथा इस बही में भी अन्य बहियों की तरह 7 सल होते हैं जिसे पहला सल सिरा' तथा अन्य सल 'पेटा' कहलाती है। 


इस नकल वही में सामान्यत: निम्न लेखे किये जाते हैं -


(i) सम्पत्तियों के उधार क्रय एवं विक्रय का लेखा

(ii) समायोजन संबंधी प्रविष्टियाँ। 

(iii) खातों के शेष स्थानान्तरण संबंधी लेखें ।

(iv) हुण्डी संबंधी व्यवहारों के लेखें।

(v) हानि-लाभ खातों से संबंधित लेखें।

(vi) अशुद्धि सुधार के लेखें ।


खुदरा नकल बही बड़े-बड़े व्यापारियों द्वारा रखा जाता है। यह दोहरा लेखा प्रणाली के नकल विशेष (Journal proper) के भाँति होता है। खुदरा नकल बही में नाम तथा जमा पक्ष दोनों होते हैं। प्रविष्टि करते समय पहले कोई खाता विशेष नाम किया जाता है और बाद में संबंधित दूसरा खाता जमा किया जाता है। नाम तथा जमा शब्द का उल्लेख खाते के साथ ही होना चाहिए। नाम तथा जमा शब्द का उल्लेख खाते के साथ ही होना चाहिए। खुदरा रोकड़ बही में न तो जोड़ लगाया जाता है और न ही शेष निकाला जाता है।


भारतीय बही खाता प्रणाली में रखी जाने वाली बहियों का स्वरूप


भारतीय लेखांकन पद्धति में पुस्तकों की चही कहा जाता है। बहियाँ का स्वरूप अंग्रेजी पद्धति के अन्तर्गत रखे जाने वाली पुस्तकों या रजिस्टर से भिन्न होता है।


1. बहियाँ सफेद, कोरे लम्बे और मजबूत कागज से बनायी जाती है। उनके ऊपर एक विशेष प्रकार का पुट्ठा तथा लाल कपड़े का आवरण होता है। इनमें सिलाई मोटे और मजबूत रस्सों से किया जाता है एवं बाँधने के लिए एक डोर लगाया जाता है। 


2. इसके पृष्ठों में खाने तथा पृष्ठ क्रमांक नहीं छपे होते वरन् सिलने से पहले बहियों के पन्नों को सफाई से मोड़ दिया जाता है। ये मोड़ खानों का काम देते हैं। इन्हें सल (Fold) कहा जाता है। 


3. सामान्यतः बही खातों के पन्नों में सलवटों की सहायता से 8 खाने बनाएँ जाते हैं। बायीं ओर के चार खाने जमा पक्ष के तथा दाहिनी ओर के चार खाने नाम पक्ष के लिए निर्धारित है। प्रत्येक पक्ष का पहला खाना "सिरा" तथा शेष तीन खाना "पेटा” कहलाता है।


4. नकल बहियाँ जैसे - नाम नकल, जमा नकल आदि में 6 सलें (Folds) डाली जाती हैं। इन्हें जमा पक्ष तथा नाम पक्ष में विभाजित नहीं किया जाता है। इसमें पहला सल सिरा तथा शेष सल पेटा कहलाता है।


5. इन बहियों में तिथि लिखने के लिए पृथक् से स्तम्भ नहीं होता। प्रत्येक दिन के सौदे लिखने के पूर्व ही ऊपर ईष्टदेव की स्तुति के साथ ही तिथि का भारतीय परम्परा के अनुसार उल्लेख किया जाता है।


6. सिरे के खाने में राशि तथा पेटा के खाने में राशि को मदों के अनुसार, विभाजित करके संबंधित राशि का विवरण लिखा जाता है।


7. बहियों में लेन-देन लिखने को 'जमा खर्च' (Entry) करना कहते हैं। 


जिस प्रकार अंग्रेजी पद्धति में हिसाब की एक प्रधान पुस्तक होती है जिसे खाता पुस्तक या लेजर कहते हैं, उसी प्रकार भारतीय लेखांकन पद्धति में भी एक प्रधान पुस्तक होती है और यह खाता बही (Khata Bahi) कहलाती हैं। "खाता बही” तथा "बही खाता" परस्पर एक-दूसरे से पृथक् है। “बही खाता' के द्वारा व्यावसायिक व्यवहारों का हिसाब रखा जाता है तथा बही खाता में वर्णित व्यवहारों को वर्गीकृत कर खाता बही में लिखा जाता है।


भारतीय बही खाता प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव 


भारतीय बही खाता प्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं -


(i) भारतीय बहियाँ लम्बी होने के कारण असुविधा जनक होती है। इसके अतिरिक्त इसमें पृष्ठ सुगमता से निकाले और लगाए जा सकते हैं। अत: बहियों के आकार में सुधार किया जाना जाहिए। 


(ii) भारतीय लेखांकन प्रणाली में व्यवद्धारों के लेखांकन के प्रमाणकों के लिए प्रावधान नहीं है जो व्यवहारों की सत्यता को प्रमाणित करते हैं। अतः व्यवहारों के लेखांकन हेतु प्रमाणकों के लिए निश्चित नियमावलीयों का प्रावधान किया जाना चाहिए।


(iii) भारतीय वही पद्धति में उद्योग किये जाने वाली रोकड़ वही के स्थान पर पर्याप्त खाते वाली बहो का प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे रोकड़ वही में प्रविष्टियाँ सरल एवं व्यवस्थित हो जाएगी। 


(iv) भारतीय पद्धति में स्वकीय संतुलन प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए, इससे अशुद्धियां शीघ्र खोजा जा सकेगा। 


(v) प्रारंभिक लेखांकन प्रणाली में नकद व्यवहारों तथा उधार व्यवहारों के लेखांकन के लिए पृथक-पृथक व्यवस्था किया जाना चाहिए।


(vi) इस पद्धति में प्राप्य एवं देय विषयों के लेखांकन के लिए भी पृथक व्यवस्था किया जाना चाहिए। 


(vii) व्यापार के समस्त व्ययों को एक ही व्यय खाता दुकान व्यय खाता में नहीं डालना चाहिए बल्कि इन व्ययों के लिए अलग-अलग खातें खोलना चाहिए।


(viii) इस पद्धति में व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाते निर्माण की प्रक्रिया भी दोष पूर्ण है। अतः इनमें से सुधार किया जाना चाहिए। 


(ix) पूँजीगत व्ययों तता आयगत व्ययों के लेखांकन के लिए भी उचित व्यवस्था या नियमावली निर्धारण किया जाना चाहिए।


(x) अंतिम खाते बनाते समय समायोजनाओं को ध्यान रखा जाना चाहिए, जिससे लाभ-हानि की सभी जानकारी प्राप्त हो सके तथा चिट्टा व्यापार की सही आर्थिक स्थिति प्रदर्शित कर सके।


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