अर्थशास्त्र के क्षेत्र को जानने के लिये इसकी प्रकृति की जानकारी का होना आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान दिया जाना अनिवार्य होता है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला या दोनों, किन्तु विज्ञान तथा कला का सही-सही शब्दों में अर्थ जानना भी आवश्यक होता है। वास्तव में यह दोनों ही ज्ञान के अंग माने जाते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जा सकता है
अर्थशास्त्र की प्रकृति |
विज्ञान का अर्थ
सामान्य अर्थ में विज्ञान का आशय एक व्यवस्थित ज्ञान से होता है। वास्तव में किसी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कहा जाता है। यह कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है।
प्रो. जे. के मेहता के शब्दों में, - “ज्ञान को विज्ञान कहते हैं।”
विज्ञान ज्ञान का वह भण्डार है जिसमें शाश्वत अवलोकन एवं प्रयोग के द्वारा किसी विषय का अध्ययन किया जाता है तथा इसी आधार पर नियमबद्ध तरीके से कुछ सिद्धान्त बनाये जाते हैं। इसके अन्तर्गत किसी तथ्य या घटना के कारण और परिणाम के पारस्परिक सम्बन्ध को तरीके से अध्ययन किया जाता है। वास्तव में विज्ञान यह बतलाता है कि अमुक कारण का क्या परिणाम होगा, या अमुक परिणाम का क्या कारण होगा ?
प्रो. एस. के. रुद्र का कहना है कि - “विज्ञान किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को कहते हैं। जिससे किसी तथ्य विशेष के कारण एवं परिणाम के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार विज्ञान यह बतलाता है कि यदि अमुक स्थिति में किसी वस्तु विशेष का अमुक ढंग से प्रयोग किया जाय तो उसका अमुक परिणाम होगा। इसीलिये विज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है।"
विज्ञान सिद्धान्तों या नियमों का एक समूह होता है, एक सिद्धान्त दो घटनाओं के बीच कारण एवं परिणाम का सम्बन्ध स्थापित करता है ताकि यदि हम एक घटना को जानते हैं तो हम दूसरी घटना की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
(अ) अर्थशास्त्र विज्ञान के रूप में
अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है इसमें कोई सन्देह नहीं है। अन्य विज्ञानों की भाँति इसमें भी कुछ नियम होते हैं उदाहरणार्थ माँग के नियम, उपभोग के नियम, उपयोगिता ह्रास नियम, क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम, जनसंख्या का सिद्धान्त आदि। साथ ही अर्थशास्त्र में मानवीय आवश्यकताओं तथा उससे सम्बन्धित ज्ञान क्रमबद्ध अध्ययन होता है।
अन्य शब्दों में अर्थशास्त्र में धन के उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग का एक क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र एक विज्ञान है। अतएव यह कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र में मनुष्य के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिसका सम्बन्ध मूल्यवान अथवा निर्णय लेने से होता है। इसके लिये मुद्रा रूपी माप यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
इस सम्बन्ध में यह कहना ठीक है कि उसकी यह मुद्रा रूपी तुला उतनी सूक्ष्म नहीं है जितनी की रासायनिक की होती है। फिर भी बाजार अर्थशास्त्र की प्रयोगशाला है जिसमें मानवीय व्यवहारों के निरीक्षण द्वारा सामान्य निष्कर्षों पर पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र एक विज्ञान है।
अर्थशास्त्रियों के द्वारा अर्थशास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं -
(क) आर्थिक घटनाओं के कारण और परिणाम के सम्बन्ध को ज्ञात करने तथा आर्थिक सिद्धान्तों तथा नियमों के लिये अर्थशास्त्र वैज्ञानिक रीति का प्रयोग करता है।
(ख) सामान्य सिद्धान्तों तथा नियमों का निर्माण करके अर्थशास्त्र एक सही और उचित मात्रा में आर्थिक घटनाओं की व्याख्या की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
(ग) चूँकि अर्थशास्त्र के पास व्याख्या करने की शक्ति है, इसीलिये उसके पास आर्थिक घटनाओं की भविष्यवाणी करने की शक्ति भी होती है।
(घ) अर्थशास्त्र को वस्तुगत या वस्तुपरक कहा जा सकता है, क्योंकि इसके सिद्धान्त तथा नियम अन्य विज्ञानों के भाँति तथ्यों पर आधारित होते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र में वे सभी गुण पाये जाते हैं जो एक विज्ञान कहलाने के लिये आवश्यक होते हैं। अतएव अर्थशास्त्र को विज्ञान कहा जा सकता है। इसे विज्ञान न मानना इसके साथ अन्याय होगा।
विज्ञान दो प्रकार के होते हैं -
(क) वास्तविक सिद्धान्त
(ख) आदर्श सिद्धान्त
अर्थशास्त्र की प्रकृति या स्वभाव
(क) अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के रूप में।
(ख) अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान के रूप में।
(क) अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के रूप में - वास्तविक विज्ञान वस्तु स्थिति का अध्ययन करता है। यह केवल यह बतलाता है कि वस्तु स्थिति क्या है ? अन्य शब्दों में वास्तविक वस्तु स्थिति जिस रूप में होती है इसे व्यक्त करना वास्तविक विज्ञान का कार्य होता है।
वास्तव में वास्तविक विज्ञान केवल कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है। यह इस बात का अध्ययन नहीं करता है कि अमुक वस्तु ठीक है या नहीं। वास्तविक विज्ञान न तो कोई आदर्श प्रस्तुत करत है और न ही कोई उपदेश देता है। उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु शराब पीने से होती है तो वास्तविक विज्ञान केवल यह बतलाता है कि शराब से मृत्यु हुई है इस प्रकार वास्तविक विज्ञान उस वास्तविक दीप स्तंभ की भाँति है जो जहाज को केवल रोशनी दिखलाता है कि आगे चट्टान है। इसीलिए कहा जाता है कि वास्तविक विज्ञान वह विज्ञान होता है जिसका सम्बन्ध क्या है ?" से होता है।
अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है, क्योंकि यह मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं के कारण और परिणाम के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है तथा इसके आधार पर नियमों का प्रतिपादन होता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति किस वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों का उपभोग करता जाता है इससे प्राप्त होने वाली इकाइयों से उपयोगिता क्रमशः घटती जा है।
इस प्रकार के उपभोक्ता की प्रवृत्ति को अर्थशास्त्र में उपयोगिता हास नियम के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार दि किसी वस्तु की कीमत बाजार में कम हो जाती है तो माँग बढ़ जाती है और जब कीमत बढ़ जाती है तो वस्तु को माँग बाजा में घट जाती है। माँग और कीमत के इस सम्बन्ध को अर्थशास्त्र में माँग का नियम कहा जाता है। अर्थशास्त्र हमें कारण और परिणाम का सम्बन्ध बतलाता है।
प्रो. सीनियर का कथन है कि - “राजनीतिक अर्थशास्त्री का कार्य कि कार्य को करने का उपदेश देना नहीं है वरन् सामान्य तथ्यों की विवेचना करना है।"
(ख) अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान के रूप में - आदर्श विज्ञान वह विज्ञान होता है जो मानव जीवन के लिए एक आदर्श उपस्थित करता है। इसका सम्बन्ध नीतिशास्त्र से होता है। इसका कार्य उन उद्देश्यों तथा आदर्शों को बतलाना हो। हैं जिनकी प्राप्ति के लिए मानव प्रयत्नशील रहता है।
इसीलिये कहा जाता है कि आदर्श विज्ञान का सम्बन्ध क्या होना चाहि से होता है। साथ ही साथ यह उचित तथा अनुचित कार्यों को और भी संकेत करता है। यदि शराब पीने से व्यक्ति की मृत होती है तो आदर्श विज्ञान यह बतलाता है कि शराब पीना बुरा है अतएव मनुष्य को शराब नहीं पीना चाहिए। इस विचारधार के समर्थकों में प्रो. फ्रेजर, हाट्रे तथा हैन्डरसन आदि अर्थशास्त्रियों के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्रो. हाट्रे ने कहा है कि, - “अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र से पूर्णतया पृथक् नहीं किया जा सकता।"
यही कारण है कि अर्थशास्त्री को अपने सिद्धान्त के व्यावहारिक पक्ष पर भी विचार करना तथा उचित एवं अनुचित के सम्बन्ध में निर्णय देना पड़ता है। अतएव अर्थशास्त्र को उद्देश्य रहित नहीं बनाया जा सकता।
अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है। इसके अध्ययन का उद्देश्य मानव कल्याण में वृद्धि करना होता है। इस रूप में अर्थशास्त्र मानव आचरण के आर्थिक पहलू को दृष्टिगत रखते हुए आर्थिक आदर्शों का प्रतिपादन करता है। जिससे समाज का अधिकतम आर्थिक कल्याण हो सके। यही कारण है कि आर्थिक सिद्धान्तों के अध्ययन के साथ-साथ आज अर्थशास्त्र में इस बात का भी अध्ययन किया जाता है कि मजदूरों को कम से कम कितनी मजदूरी दी जानी चाहिए।
वास्तव में यदि अर्थशास्त्री केवल वास्तविक तथ्यों का विवेचन करे तथा नीति निर्धारण के सम्बन्ध में बिल्कुल उदासीन हो जाये तो उसकी दशा अत्यन्त दयनीय हो जायेगी।
प्रो. फ्रेजर का कथन है कि, - "अर्थशास्त्री जो केवल एक अर्थशास्त्री है, वह एक सुन्दर, किन्तु बेबस मछली के समान है।”
प्रो. मार्शल ने भी कहा है कि, - “यदि अर्थशास्त्र भौतिक कल्याण में वृद्धि के कारणों का अध्ययन नहीं करे तो यह व्यर्थ एवं निष्फल होगा।"
इसीलिए कहा जाता है कि अर्थशास्त्र को समाज के उत्थान के एक साधन के रूप में कार्य करना है तो उसे नीतिशास्त्र से पृथक् नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह कहना गलत न होगा कि अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान भी है।
अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्श विज्ञान दोनों ही है
अर्थशास्त्रियों में इस सम्बन्ध में मतभेद पाया जाता रहा है कि अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान या दोनों ही है। प्रतिष्ठित आंग्ल अर्थशास्त्रियों तथा प्रो. राबिन्स अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मानते हैं। इनके अनुसार आर्थिक व्यवस्था की सत्यता या असत्यता की व्याख्या करना अर्थशास्त्री का कार्य नहीं है।
प्रो. सीनियर के अनुसार - “अर्थशास्त्री उपदेश का शब्द नहीं जोड़ सकता है। उनके शब्दों में राजनीतिक अर्थशास्त्री का कार्य किसी कार्य को करने अथवा नहीं करने का उपदेश देना नहीं है वरन् केवल सामान्य तथ्यों की विवेचना करना है।"
इसी प्रकार प्रो. राबिन्स ने इस विचार का समर्थन किया है। इनके अनुसार अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है। उनके शब्दों में, “अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है। उद्देश्य आर्थिक अथवा गैर आर्थिक नहीं हो सकते हैं। किसी एक कार्य को करने का तरीका मितव्ययितापूर्ण या खचला हो सकता है, किन्तु उद्देश्य तो उद्देश्य ही है।"
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रो. रॉबिन्स के अनुसार - अर्थशास्त्र का उचित एवं अनुचित से कोई सम्बन्ध नहीं पाया जाता है। इसका अर्थ है कि अर्थशास्त्र का कोई आदर्श नहीं होता है। इसका अध्ययन हम केवल ज्ञान प्राप्ति के लिये ही करते हैं।
प्रो. राबिन्स के शब्दों में, - "अर्थशास्त्री का कार्य अनुसंधान एवं व्याख्या करना है न कि समर्थन अथवा निन्दा करना किन्तु आज यह कहना गलत न होगा कि इस प्रकार का विचार उचित नहीं कहा जा सकता है।”
दूसरी ओर प्रो. हाटे, फ्रेजर व बूटन आदि अनेक अर्थशास्त्री है जो अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान मानते हैं। इनके अनुसार अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र से पृथक् नहीं किया जा सकता है। एक अर्थशास्त्री को अपने सिद्धान्त के व्यावहारिक पक्ष पर भी विचार करना पड़ता है। उदाहरणार्थ धन के असमान वितरण के कारणों की खोज करने के बाद एक अर्थशास्त्री यह कहने के लिये बाध्य हो जाता है कि इसका वितरण उचित होना चाहिए।
इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि यदि अर्थशास्त्र के व्यावहारिक पक्ष को महत्व नहीं दिया गया तो यह वास्तव में एक मानसिक व्यायाम या ज्ञानदायक विषय माना जाने लगेगा।
प्रो. पीगू के शब्दों में, - “अर्थशास्त्र का महत्व न तो केवल मानसिक व्यायाम के रूप में है और न केवल सत्य के लिये सत्य को खोज के रूप में वरन् नीतिशास्त्र की दासी तथा व्यवहार के दास रूप में है।"
एक सामाजिक विज्ञान होने के नाते अर्थशास्त्र का उद्देश्य मानव कल्याण को अधिकतम करना होता है। अतएव अर्थशास्त्र तथा अर्थशास्त्रियों को अधिकतम कल्याण के लिये कार्य करना अनिवार्य माना जाता है।
आज हमारे समक्ष अनेक समस्याएँ जैसे धन तथा आय का असमान वितरण, मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी की समस्या, जनसंख्या की समस्या आदि पायी जाती हैं। ऐसी दशा में इन बुराइयों के अध्ययन करने के साथ-साथ इनके समाधान के उपयुक्त उपाय भी प्रस्तुत करना अर्थशास्त्रियों का कर्त्तव्य माना जाता है। अतएव अर्थशास्त्री को व्यावहारिक आदर्शों का भी उपयोग करना चाहिए
प्रो. पीग के शब्दों में - "अर्थशास्त्र के अध्ययन में हमारा दृष्टिकोण एक दार्शनिक का दृष्टिकोण अर्थात् ज्ञान के लिये ज्ञान की खोज नहीं होना चाहिए। वरन् हमारा दृष्टिकोण उस डॉक्टर के समान होना चाहिए जो अपने ज्ञान द्वारा रोगियों की पीड़ा को हरने का प्रयास करता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्श विज्ञान दोनों ही है। इसीलिये कहा जाता है कि अर्थशास्त्री का कार्य केवल व्याख्या करना ही नहीं, बल्कि समर्थन एवं निन्दा करना भी है।”
कला का अर्थ - कला का आशय किसी कार्य को अच्छी तरह से करने से लगाया जाता है। इसके अन्तर्गत निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निश्चित नियमों तथा निर्देशों का उल्लेख होता है। इसीलिये कला का अर्थ कार्य करने से लगाया जाता है।
प्रो. जे. के मेहता के शब्दों में कहा जाता है कि,- “कला का अर्थ क्रिया से होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी विषय का ज्ञान विज्ञान होता है, किन्तु यदि इसी ज्ञान को व्यावहारिक रूप दे दिया जाये तो वह कला। जाता है।”
वास्तव में कला किसी समस्या के समाधान तथा किसी आदर्श की प्राप्ति के लिये सर्वोत्तम उपाय बतलाती है। यहीं नहीं यह ऐसे नियम बतलाती है जिससे किसी समस्या के समाधान हेतु उचित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके।
प्रो. जे. एन कीन्स के शब्दों में कहा जा सकता है कि, - “कला एक दिये हुए उद्देश्य की पूर्ति के लिये नियमों की एक प्रणाली है। इस प्रकार कला का उद्देश्य किसी सुन्दर या उपयोगी वस्तु की रचना करना होता है। अतः कला व्यावहारिकता प्रदान करती है।”
(ब) अर्थशास्त्र कला के रूप में
अर्थशास्त्र एक कला भी है। विज्ञान सिद्धान्तों का निरूपण करता है तथा कला उसे व्यावहारिक रूप देती है। प्रो. एडम स्मिथ, रिकार्डो, मार्शल आदि अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को कला मानते हैं तथा आर्थिक समस्याओं के समाधान करने एवं व्यावहारिक नीति बनाने पर जोर देते हैं।
वास्तव में अर्थशास्त्र एक कला भी है, क्योंकि इससे देश अथवा समाज की अनेक समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। एक अर्थशास्त्री कृषि एवं उद्योग धन्धों को विकसित करने के उपाय, बेकारी की समस्या के समाधान तथा देश की आर्थिक समृद्धि के उचित उपाय भी प्रस्तुत करता है।
आज प्रत्येक देश में आर्थिक नियोजन पर बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है। देश के आर्थिक विकास के कारण व्यावहारिक अर्थशास्त्र का महत्व बढ़ता जा रहा है। यही नहीं वास्तव में प्रत्येक देश में कुछ मुद्रा एवं साख सम्बन्धी समस्याएँ पायी जाती हैं जिनके समाधान के लिये व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है।
प्रो. पीगू ने इसके समर्थन में कहा है कि - “हमारी मनोदशा एक दार्शनिक की सी नहीं होती है अर्थात् हम ज्ञान की खोज केवल ज्ञान के लिए नहीं करते, बल्कि हमारा मनोवृत्ति एक डॉक्टर की सी होती है जो कि ज्ञान को स्वस्थ करने के लिये प्रयोग करता है।”
अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है
उपर्युक्त तथ्यों के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र केवल विज्ञान ही नहीं वरन् यह कला भी है। इसी प्रकार का विचार प्रो. कोसा का भी है। उनके शब्दों में विज्ञान को कला की तथा कला को विज्ञान की आवश्यकता पड़ती है।
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इस प्रकार विज्ञान के रूप में यह मानव आचरण को समझने में सहायता करता है तो कला के रूप में यह जीवन स्तर के सुधार के लिये उचित उपाय भी प्रस्तुत करता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र न केवल विज्ञान है वरन् कला भी है तथा इसमें कला पक्ष ही अधिक महत्वपूर्ण है।
प्रो. पीगू के शब्दों में, - "हर विज्ञान के दो पक्ष होते हैं, जानदायक तथा फलदायक, किन्तु किसी विज्ञान में ज्ञानदायक पक्ष तो किसी में फलदायक पक्ष प्रबल तथा अधिक उपयोगी होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में बाद वाला पक्ष (फलदायक पक्ष) ही अधिक प्रबल है।”
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