व्यावसायिक जोखिम का अर्थ तथा प्रकृति एवं विशेषताएं बताइये

व्यावसायिक जोखिम का अर्थ


व्यावसायिक जोखिम का अर्थ तथा प्रकृति एवं विशेषता क्या है आज हम इसी टॉपिक पर बात करेंगे

आज के वैज्ञानिक अनुसन्धान युग में व्यवसाय में पायी जाने वाली अनिश्चितताओं तथा जोखिमों का पता लगाना आसान नहीं होता है वास्तव में पग-पग पर व्यवसाय में विभिन्न प्रकार की जोखिम विद्यमान होती है जिनका पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है। इसीलिए कहा जाता है कि एक व्यवसायी सदैव जोखिमों में ही जीना पसन्द करता है।


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व्यावसायिक जोखिम

व्यावसायिक जोखिम की परिभाषा


प्रो. लारेन्स लेमण्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "जोखिम वहन के प्रति झुकाव ही उद्यमीय व्यक्तित्व का वास्तविक लक्षण है। यही कारण है कि एक व्यवसायी सदैव अपनी विवेकपूर्ण योजनाओं तथा निर्णयों से इन जोखिमों का सामना करता है। किन्तु इनका अन्त नहीं होता है। 


डॉ. आर्थर डेविंग के शब्दों में "उद्यमी वह व्यक्ति है जो विचारों को लाभदायक व्यवसाय में रूपान्तरित करता है।


किसी भी व्यवसाय के अन्तर्गत एक व्यवसायी को सम्भावित लाभ तथा हानि को सन्तुलित करते हुये अनिश्चितता तथा जोखिम के वातावरण में निर्णय लेने पड़ते हैं, किन्तु इनके परिणाम अनिश्चित होते हैं तथा साथ ही साथ अज्ञात भी होते हैं। 



एक सफल व्यवसायी सदैव स्थिति का पूर्ण मूल्यांकन करते हुये जोखिम उठाता है। वह सदैव इन योजनाओं को हाथ में लेता है, जिन्हें पूरा किया जा सकता है। वास्तव में सन्तुलित एवं व्यावहारिक जोखिम को वहन करना ही व्यवसायी की विशेषता होती है, किसी व्यवसायिक अवसर का पूरा-पूरा लाभ तभी उठा सकता है जबकि इसमें तत्काल निर्णय लेने की क्षमता पायी जाती है। 


प्रो. इमर्सन के शब्दों में "जो व्यक्ति निर्णय ले सकता है इसके लिये कुछ भी असम्भव नहीं हैं।'' एक व्यवसायों के निर्णयों का भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः व्यवसायी द्वारा लिये गये निर्णय व्यावहारिक, सृजनात्मक तथा लाभप्रद होने चाहिये।


व्यवसाय में जोखिम तथा भविष्य की अनिश्चितता के कारण हमेशा हानि होने की आशा नहीं करनी चाहिए। इसका कारण यह है कि लाभ अनिश्चितताओं तथा जोखिमों का प्रतिफल होता है। 



प्रायः यह कहा जाता है कि जिस व्यवसाय में जितना अधिक जोखिम पाया जाता है, वह व्यवसाय उतना ही अधिक लाभ देने वाला कहा जाता है, इस संदर्भ में एक जापानी कहावत पायी जाती है जो इस प्रकार है कि "सात बार गिरे, आठ बार उठे" यह जापानी कहावत व्यवसाय की जोखिम वहन की विशेषता को बताता या दर्शाता है। 


इस प्रकार वर्तमान युग में व्यवसायी की भूमिका अत्यन्त गतिशील पायी जाती है। वह अपने बाहय वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखकर चुनौतियों एवं सुधारों का पूर्वालोकन करते हुये इनका अवसर के रूप में प्रयोग करता है।


प्रो. नाइट के शब्दों में "उद्यमी वह विशिष्ट समूह या व्यक्ति होता है जो जोखिम सहते हुये अनिश्चितता की व्यवस्था करते हैं।''


व्यवसायिक जोखिम की प्रकृति 


वर्तमान समय में व्यवसाय में व्यवसायी की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा गतिशील मानी जाती है। एक व्यवसायी को अपने बाहा वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखकर चुनौतियों एवं सुधारों का उपयोग करना पड़ता है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसके निर्णय गलत हो सकते हैं, तथा इसका प्रभाव उसके लाभ प्राप्त करने की क्रिया पर विपरीत पड़ सकती है।


अन्य शब्दों में, इस गलत निर्णय के कारण उसे हानि सहन करनी पड़ सकती है। आज के वैज्ञानिक एवं अनुसन्धान युग में एक व्यवसायी को आर्थिक सामाजिक मूल्यों का सृजनकर्ता तथा नव प्रवर्तक के रूप में देखा जाने लगा है। इस कारण आज उसके दायित्व तथा कार्य अत्यन्त व्यापक हो गये हैं। अध्ययन की दृष्टि से इसे अग्र प्रकार व्यक्त किया जा सकता है -


(क) जोखिम को वहन या सहन करना (To bear the Risks)।

(ख) साधनों का संगठन करना (To Organize the Means or Factors)

(ग) नव प्रवर्तक करना (To Innovate) |



इस प्रकार अन्त में कहा जा सकता है कि व्यवसायी वह व्यक्ति होता है जो व्यवसाय में लाभदायक अवसरों की खोज करता है, आर्थिक साधनों को एकत्रित करता है, नव करणों को जन्म देता है, तथा व्यवसाय में पाये जाने वाले विभिन्न जोखिमों तथा अनिश्चितताओं का उचित प्रबन्ध करता है। 


प्रो. जे. ए. शुम्पीटर के शब्दों में "उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी अवसर की पूर्ण कल्पना करता है तथा किसी नई वस्तु, नई उत्पादन विधि, नये कच्चे माल, नये बाजार अथवा उत्पादन के साधनों के नये संयोजन को अपनाते हुये अवसर का लाभ उठाता है।" 


व्यावसायिक जोखिम की प्रमुख विशेषताएं


1. जोखिम भविष्य की अनिश्चितता का प्रतिफल -


भविष्य की अनिश्चितता के कारण व्यवसाय में जोखिम का तत्व पाया जाता है। चूँकि वर्तमान निश्चित होता है इसलिये इसमें पायी जाने वाली जोखिम का अनुमान लगाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि "नव नकद न तेरह उधार।" किसी वस्तु की माँग, कीमत तथा गुण आदि के बारे पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसी प्रकार प्राकृतिक प्रकोप, जलवायु मौसम आदि की अनिश्चितताओं के कारण भी व्यवसाय में जोखिम का तत्व पाया जाता है। इसी प्रकार मानवीय तत्व भी जोखिम को प्रभावित करते हैं।


2. लाभ जोखिम का प्रतिफल -


प्रायः सर्वमान्य बात मानी जाती है कि लाभ जोखिम का प्रतिफल होता है। यह कहावत प्रसिद्ध है कि "जहाँ जोखिम नहीं होती है, वहाँ लाभ नहीं होता है। अन्य शब्दों में, जहाँ जोखिम की मात्रा अधिक पायी जाती है वहाँ पर लाभ का भी अंश अधिक पाया जाता है। यदि व्यवसाय में जोखिम का अंश नहीं है तो लाभ का अंश केवल नाम मात्र का होगा। अतएव यह कहना गलत न होगा कि लाभ की मात्रा जोखिम की मात्रा पर निर्भर करती है। इसलिये लाभ को जोखिम का प्रतिफल कहा जाता है।


3. जोखिम की सर्वव्यापकता - 


मानव के जीवन में जोखिम सकता है। यही जोखिम को सर्वव्यापकता का कारण है। भविष्य की अनिश्चितता के कारण जोखिम से बचा या छुटकारा नहीं पाया जा सकता है। वर्तमान यन्त्रों की सहायता से पूर्वानुमान, भविष्यवाणी तथा माँग का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है, किन्तु आज भी इन यन्त्रों के आधार पर जोखिम को समाप्त नहीं किया जा सकता है। 



केवल जोखिम की मात्रा को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है। इस प्रकार व्यवसाय चाहे लघु हो या वृहद हो किन्तु जोखिम से छुटकारा नहीं प्राप्त किया जा सकता है। यही इसको सर्वव्यापकता है। पग-पग पर पायी जाती है। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक इन जोखिमों को झेलता रहता है। इस जोखिम का अंश व्यावसायिक जगत में भी पाया जाता है। 


4. व्यवसाय के आकार का जोखिम पर प्रभाव -


प्रायः व्यवसाय का पैमाना दो प्रकार का पाया जाता है -


(क) वृहत् पैमाने का व्यवसाय तथा 

(ख) लघु या छोटे पैमाने का व्यवसाय 


प्रायः यह देखा गया है कि बड़े व्यवसायों में उत्पादन कार्य यन्त्रों तथा मशीनों की सहायता से वृहत् पैमाने पर किया जाता है। यहाँ स्वचालित यंत्रों का भी उपयोग होता है। ऐसे व्यवसायों में जोखिम की मात्रा अधिकतम पायी जाती है। इसके विपरीत छोटे पैमाने के व्यवसायों में जोखिम की मात्रा अधिक होती है। इसका पैमाना छोटा होता है तथा इनमें यन्त्रों व मशीनों का उपयोग कम होता है। इसमें काम करने वाले लोगों की संख्या भी कम होती है। इस कारण इनमें जोखिम का अंश कम होता है।


5. नवीन व्यवसायों में जोखिम का अधिक अंश -


आज के व्यापारिक तथा औद्योगिक युग में व्यवसाय को संचालित करने हेतु प्रायः अनुभव व योग्यता की आवश्यकता होती है। कभी-कभी व्यवसाय में कार्य करने वाले अनुभवशील तथा योग्यता प्राप्त व्यक्ति नहीं मिल पाते हैं। इस कारण व्यवसाय का संचालन ठीक ढंग से नहीं हो पाता है। 


अंततः व्यवसाय को हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार की जोखिम नवीन प्रकार के व्यवसायों के सामने आती है। इस प्रकार की जोखिम पुराने व्यवसायों में नहीं होती है, क्योंकि कार्य करते हुये कार्य करने वाले स्वयं अनुभवशील तथा योग्य बन जाते हैं। इस व्यवसाय में जोखिम की मात्रा कम हो जाती है।


6. परिवर्तनशील स्थिति का जोखिम पर प्रभाव -


हम जिस समाज तथा अर्थव्यवस्था में रहते हैं उसमें प्रत्येक क्षण परिवर्तन होता रहता है। वास्तव में हमारा समाज गतिशील स्थिति में है। इसमें स्वाभाविक रूप से परिवर्तन होता रहता है। इस कारण जोखिम की मात्रा में भी परिवर्तन होता है। 


किसी व्यवसाय में जोखिम का अंश अधिक हो जाता है तो किसी व्यवसाय में जोखिम की मात्रा कम हो जाती है। यह इस कारण भी होता है कि होने वाले परिवर्तनों का पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। इस परिवर्तनशीलता के कारण जोखिम की मात्रा में भी परिवर्तन होता रहता है। यह एक स्वाभाविक स्थिति है। इसका व्यवसायों पर स्वाभाविक रूप से प्रभाव पड़ता है।


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