लाभ-हानि खाता : आशय, परिभाषा, विशेषताएँ, प्रारूप, लाभ | What is profit and loss account in hindi?

लाभ हानि खाता का अर्थ


व्यापार खाते के माध्यम से ज्ञात सकल लाभ या सकल हानि के आधार पर लाभ-हानि खाते के माध्यम से व्यापार के शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि की गणना की जाती है। 


लाभ-हानि के निर्माण में व्यापार के अप्रत्यक्ष व्ययों को सम्मिलित किया जाता है। अप्रत्यक्ष व्ययों से तात्पर्य उन व्ययों से है जो व्यापार तथा उत्पादन कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है, किन्तु व्यापारिक क्रियाओं के संचालन के लिए अनिवार्य है। 


लाभ-हानि खाते में अप्रत्यक्ष व्ययों के साथ-साथ व्यवसाय के अप्रत्यक्ष आय को भी सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार लाभ-हानि खाते के माध्यम से व्यापार के शुद्ध लाभ एवं शुद्ध हानि की गणना की जाती है।


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लाभ-हानि खाता


लाभ हानि खाता की परिभाषा


श्री कार्टर के अनुसार, - “लाभ-हानि खाते से आशय उस खाते से है, जिसमें सभी आय एवं व्यय एकत्रित किये जाते हैं, जिससे आय पर व्यय का या व्यय पर आय का आधिक्य का पता चलता है।"


बाटलीबॉय के अनुसार, - "लाभ-हानि खाते का कार्य किसी व्यापारी के वास्तविक या शुद्ध लाभ या हानि को सूचित करना है, जो कि एक दी हुई अवधि में उसके लेन-देन के फलस्वरूप हो।"


लाभ-हानि खाते की विशेषताएँ 


लाभ-हानि खाते की मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएँ होती है -


(i) यह एक निश्चित अवधि के अंत में तैयार किया जाता है। 


(ii) यह खाता व्यापारिक खाता बनाने के बाद बनाया जाता है।


(iii) इसमें समस्त आय व व्ययों के मदों को सम्मिलित किया जाता है। 


(iv) यह खाता व्यापार के शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि को प्रदर्शित करता है।


(v) इस खाते का लाभ या हानि शेष पूँजी खाते में हस्तांरित होता है।


(vi) इस खाते में समस्त अप्रत्यक्ष व्ययों को विकलन (Debit) तथा समस्त आयों को समाकलन (Credit) पक्ष में लिखा जाता है।


लाभ-हानि खाते का प्रारूप


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लाभ-हानि खाते का प्रारूप


लाभ-हानि खाते तैयार करने के लाभ या उद्देश्य


लाभ-हानि खाता बनाने के लाभ या उद्देश्य निम्नानुसार हैं -


(i) इस खाते के माध्यम से व्यापार में होने वाली शुद्ध लाभ या हानि की जानकारी प्राप्त होती है। 


(ii) इस खाते के माध्यम से व्यापार के समस्त अप्रत्यक्ष व्ययों की जानकारी मिलती है, जिससे अप्रत्यक्ष व्ययों के संबंध में निर्णय लेना सरल होता है।


(iii) शुद्ध लाभ से पूँजी में वृद्धि तथा शुद्ध हानि से पूँजी में कमी होती है अर्थात् इस खाते से पूँजी में कमी या पूँजो में वृद्धि की जानकारी मिलती है।


(iv) व्यापार के सम्पूर्ण अप्रत्यक्ष व्ययों के संबंध में जानकारी मिलती है, जिससे इन्हें नियंत्रित करना आसान रहता है।


(v) व्यापार के मुख्य आय के अतिरिक्त अन्य प्राप्तियाँ, जैसे- कमीशन, ब्याज, किराया आदि के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। 


(vi) लाभ-हानि खातों के माध्यम से व्यापार के आय व व्ययों की विस्तृत जानकारी मिलती है जिसके आधार पर भावी योजनाओं का निर्माण सरल होता है।



(vil) गत वर्ष के लाभ-हानि खातों के विश्लेषण के आधार पर व्यापार में हो रही त्रुटियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।


लाभ-हानि खाता बनाने की विधि


लाभ-हानि खाते का निर्माण व्यापार खाते के समान ही किया जाता है, इसके दो पक्ष होते हैं बांयी ओर विकलन (Debit) तथा दांयी ओर समाकलन (Credit) पक्ष होता है। विकलन पक्ष में समस्त अप्रत्यक्ष व्ययों तथा समाकलन पक्ष में समस्त अप्रत्यक्ष प्राप्तियों को प्रदर्शित किया जाता है। 


लाभ-हानि खाते बनाने की विधि निम्नानुसार है -


1. लाभ-हानि खाते की अवधि एवं शीर्षक - लाभ हानि खाता एक अवधि विशेष के लिए बनाया जाता है, अत: इसके शीर्षक में दिनांक.... को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए" (For the year ending on ) वाक्य लिखा जाता है। व्यापार खाता, लाभ-हानि खाते का हो एक भाग होता है। अतः ये दोनों खाते संयुक्त रूप से बनाये जाते हैं तथा दोनों का संयुक्त शीर्षक व्यापार एवं लाभ-हानि खाता... को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए" (Trading and Profit and Loss Account for the year ending on ") 


2. लाभ-हानि खाते के विकलन पक्ष में लिखी जाने वाली मदें - व्यवसाय में लाभ संबंधी सभी व्ययों अर्थात् आयगत व्ययों (Revenue Expenses) में से प्रत्यक्ष व्ययों अर्थात् उन व्ययों जिनका संबंध उपर्युक्त कार्यों से सीधा होता है या ये व्यय जो व्यापार खाता (Trading Account) में प्रदर्शित किया जाता है, को छोड़कर अन्य सभी व्ययों को लाभ-हानि खाते में प्रदर्शित किया जाता है साथ ही विविध हानियों जैसे संपत्तियों पर ह्रास, डूबत ऋण आदि अप्रत्यक्ष व्यापारिक हानियों को भी लाभ-हानि खाते के विकलन (Debit) पक्ष में लिखा जाता है।


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