मूल्य ह्रास |
मूल्य ह्रास | Depreciation
व्यापारिक कार्यों में स्थायी संपत्तियों का निरन्तर उपयोग किया जाता है, जैसे- भवन, मशीनें। चूँकि ये संपत्तियाँ स्थायों प्रकृति को होती हैं। इसी कारण इनका उपयोग निरन्तर कई वर्षों तक होता रहता है। विभिन्न कारणों से इनके मूल्य में निरन्तर कमी होती जाती है, इसे ही घिसावट, ह्रास कहा जाता है।
सरल शब्दों में स्थायी संपत्तियों के निरन्तर उपयोग में आने समय व्यतीत होने, अप्रचलित हो जाने या टूट-फूट के कारण मूल्य में जो कमी आती है, उसे मूल्य ह्रास कहते हैं। मूल्य ह्रास से संपत्तियों की कीमतों में लगातार कमी होती रहती है। संपत्ति के मूल्य में कमी व्यापार के लिए हानि है।
अतः अन्य हानियों के समान इसका भी लेखा अन्तिम खाते बनाने से पूर्व किया जाना आवश्यक है, क्योंकि इन संपत्तियों का उपयोग व्यापार में लाभ कमाने हेतु किया जाता है।
मूल्य ह्रास का अंतिम खातों पर प्रभाव
1. लाभ-हानि खाते पर - हानि होने के कारण ह्रास का लेखा लाभ-हानि खाते के विकलन पक्ष (Debit side) में दिखाया जाता है।
2. स्थिति-विवरण - स्थिति विवरण में इसे संपत्ति पक्ष में संबंधित संपत्ति के मूल्य में से ह्रास को राशि कम करके दिखाया जाता है।
ह्रास संपत्ति पर प्रतिवर्ष लगाया जाता है, जिसका निर्धारण संपत्ति के जीवन काल के आधार पर या एक निश्चित प्रतिशत के रूप में निकाला जाता है। ह्रास के लेख द्वारा संपत्ति का वास्तविक मूल्य पता चल जाता है। ह्रास खाता अलग से खोलने की दशा में इसे साल के अन्त में लाभ-हानि खाते में अन्तरित कर दिया जाता है।
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